Thursday, November 21, 2024
Thursday, November 21, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमविचारभ्रष्ट राजा और उसके भ्रष्ट भांट (डायरी 8 मई,2022)

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

भ्रष्ट राजा और उसके भ्रष्ट भांट (डायरी 8 मई,2022)

मेरे गृह राज्य बिहार के राजा नीतीश कुमार अलग तरह का व्यक्तित्व रखते हैं। उन्हें भांट पसंद आते हैं। भांट मतलब वे लोग जो उनकी तारीफ में कसीदें पढ़ते हैं। वैसे यह भी सच है कि अपने भांटों के जरिए ही नीतीश कुमार पिछले डेढ़ दशक से राजा बने हुए हैं। वैसे उनके पास भांटों […]

मेरे गृह राज्य बिहार के राजा नीतीश कुमार अलग तरह का व्यक्तित्व रखते हैं। उन्हें भांट पसंद आते हैं। भांट मतलब वे लोग जो उनकी तारीफ में कसीदें पढ़ते हैं। वैसे यह भी सच है कि अपने भांटों के जरिए ही नीतीश कुमार पिछले डेढ़ दशक से राजा बने हुए हैं। वैसे उनके पास भांटों की एक लंबी सूची है। लेकिन दो भांट मुझे हमेशा प्रासंगिक लगते हैं। वजह यह कि इन दोनों ने सबसे अधिक भांटगीरी की और सबसे अधिक लाभ भी इन्हें ही मिला। ये हैं– हरिवंश और श्रीकांत। एक की जाति राजपूत और दूसरे की जाति धानुक। वर्तमान में हरिवंश राज्यसभा के उपसभापति हैं और श्रीकांत हिन्दुस्तान अखबार से सेवानिवृत्त होने के बाद दो बार जगजीवन राम संसदीय शोध संस्थान के निदेशक रहे तथा अब विश्राम की अवस्था में हैं।

हरिवंश और श्रीकांत में भांटगिरी का गुण सबसे अधिक किसमें है, यह कहना मुश्किल है। हरिवंश चूंकि प्रभात खबर के समूह संपादक रहे तो उन्हें सबसे अधिक लाभ बेशक मिला। यह इस वजह से भी कि उन्होंने बिहार में प्रभात खबर को नीतीश कुमार की सरकार का मुख पत्र बना दिया। वहीं जब मधु कोड़ा ने हरिवंश को तवज्जो नहीं दी तब हरिवंश ने झारखंड में प्रभात खबर को मधु कोड़ा विरोधी अखबार बना दिया था।

श्रीकांत जरा दूसरे किस्म के भांट रहे हैं। उनकी छवि वामपंथी विचारधारा वाली रही। उन्हाेंने प्रसन्न कुमार चौधरी के साथ मिलकर कुछ बेहतरीन काम भी किये हैं। हालांकि उन्हें मैं बेहतर लेखक नहीं मानता। लेकिन वे अच्छे पत्रकार रहे हैं। उनकी खबरें इस वजह से भी खास रहीं कि इंट्रो से लेकर खबर के अंत तक सबकुछ स्पष्ट रहता था। वाक्य छोटे होते थे। मैं विषय की बात नहीं कर रहा। विषय तो वे अपने हिसाब से ही चुनते थे।

खैर, हरिवंश और श्रीकांत में मैं श्रीकांत को अधिक परिश्रमी मानता हूं। बात 2010 की है। तब बिहार सरकार द्वारा विधानसभा में बजट पेश किया गया था। बजट के एक दिन पहले सरकार द्वारा आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट सदन में रखा गया। अगले दिन श्रीकांत ने एक खबर लिखी, जिसका लब्बोलुआब यह था कि जीडीपी ग्रोथ रेट के मामले में बिहार ने गुजरात जैसे राज्य को भी पछाड़ दिया है। श्रीकांत की यह रपट हिन्दुस्तान के पहले पन्ने पर प्रमुखता से प्रकाशित की गयी थी। मैं तब आज अखबार में संवाददाता था।

मैंने एक शरारत की। शरारत यह कि मैंने बिहार की तुलना अमेरिका से कर दी। हालांकि मैंने यह जरूर लिखा कि अमेरिका का योजना आकार बिहार के योजना आकार से 55 गुणा अधिक है और इसलिए जीडीपी ग्रोथ रेट का एक या दो फीसदी से अधिक बढ़ना बहुत मुश्किल होता है। जबकि जिन देशों अथवा राज्यों का योजनाकार कम होता है, वहां चार-पांच फीसदी तक बढ़ना कोई बड़ी बात नहीं है। मैंने इसे ठोस उदाहरण के साथ रखा था कि यदि एक व्यक्ति की रोजाना की आय 100 रुपए है तो यह संभव है कि किसी दिन उसे अधिक मजदूरी मिल जाय और उसकी आय दो सौ रुपए हो जाए। जीडीपी ग्रोथ रेट की अर्थशास्त्रीय परिभाषा के हिसाब से यह बिल्कुल कहा जाएगा कि उस दिन उसके ग्रोथ रेट में 100 फीसदी की वृद्धि हुई। ऐसे ही यदि किसी व्यक्ति की रोजाना की आय दस हजार रुपए है और किसी दिन उसकी आय में 100 रुपए की वृद्धि होती है तो उसके उस दिन के जीडीपी ग्रोथ रेट में केवल एक फीसदी की वृद्धि मानी जाएगी।

खैर, मेरी यह रपट मेरे अखबार ने पहले पन्ने पर प्रकाशित किया। शीर्षक मुझे आज भी याद है– “अमेरिका से आगे निकला बिहार!”। मैंने एक डंडा शीर्षक के अंत में अवश्य रखा था ताकि लोग भ्रम में न रहें और मेरी शरारत को समझ जाएं।

आज अपने पूर्व की शरारत को याद करने की वजह यह कि प्रभात खबर ने आज यही किया है। आज इस अखबार ने पूरा एक पन्ना ही यह बताने के लिए उपयोग किया है कि बिहार की अर्थव्यवस्था किस तरह मजबूत है और कैसे बिहार श्रीलंका बनने से बच गया। प्रभात खबर की भांटगीरी में मुख्य रूप से दो बातें हैं। एक तो यह कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में 60 फीसदी हिस्सेदारी पर्यटन क्षेत्र की रही और प्राइमरी सेक्टर की भूमिका दिन-ब-दिन घटती चली गयी, जिसके कारण श्रीलंका दिवालिया हो गया। जबकि बिहार की अर्थव्यवस्था के बारे में कहा गया है कि यहां की अर्थव्यवस्था में कृषि, सेवा क्षेत्र, होटल, निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र की बड़ी भूमिका है, और इसी कारण से यहां की अर्थव्यवस्था रोज-ब-रोज मजबूत हो रही है। दूसरी बात जो प्रभात खबर ने खास तौर पर उल्लेखित किया है, वह है राजकोषीय घाटा। अखबार के मुताबिक श्रीलंका में राजकोषीय घाटा 10.4 फीसदी और बिहार में राजकोषीय घाटा 3.6 फीसदी है जो कि 4 फीसदी की मान्य सीमा के भीतर है।

खैर, प्रभात खबर की भांटगीरी प्रभात खबर जाने। मैं तो बिहार को देख रहा हूं। सलाना प्रति व्यक्ति आय के मामले में वित्तीय वर्ष 2019-20 में यह भारत के सभी राज्यों में सबसे निचले स्थान पर था। यदि किसी दूसरे देश के साथ इसकी तुलना की जाय तो यह अफ्रीकी देश गाम्बिया के समतुल्य है। आंकड़ों में बात करें तो बिहार में प्रति व्यक्ति आय 50 हजार 737 रुपए है। इस मामले में सबसे अधिक गोवा है जहां प्रति व्यक्ति आय पांच लाख 20 हजार 31 रुपए है।

अब जरा बिहार के विभिन्न जिलों की बात कर लें। पटना में प्रति व्यक्ति आय शिवहर की सात गुनी है। पटना जिले में रहने वाले लोग प्रदेश में सबसे खुशहाल हैं। यहां के लोगों की प्रति व्यक्ति आय राज्य में सबसे ज्यादा एक लाख 31 हजार 64 रुपए हैं। इस मामले में शिवहर सबसे नीचे है। वहां के लोगों की सालाना औसत आय 19 हजार 592 रुपए है। बिहार के 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण से इसका पता चलता है। हालांकि प्रति व्यक्ति आय के आधार पर जिलों की रैंकिंग 2019-20 के आधार पर की गई है। बेगूसराय, मुंगेर, भागलपुर और रोहतास जिले में प्रति व्यक्ति आय के मामले में प्रदेश की अगली कतार में हैं। इन जिलों में लोगों की सालाना औसत आमदनी क्रमश: 51 हजार 441 रुपए, 44 हजार 321 रुपए, 41 हजार 752 रुपए और 35 हजार 779 रुपए हैं।

इस हिसाब से प्रति व्यक्ति आय की रैंकिंग में सबसे आगे का जिला पटना और दूसरे पायदान पर स्थित मुंगेर में भी भारी अंतर है। इसी तरह प्रति व्यक्ति आय के निचले पायदान पर शिवहर के अलावा अररिया, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण और मधुबनी जिले हैं। इन जिलों की सालाना प्रति व्यक्ति आय क्रमश: 20 हजार 613 रुपए, 22 हजार 119 रुपए, 22 हजार 306 रुपए और 22 हजार 636 रुपए है।

बहरहाल, कहां मैं एक भ्रष्ट और आत्ममुग्ध राजा और उसके भ्रष्ट भांटों के फेर में पड़ गया। कल सीवर में काम करनेवाले उन लोगों के बारे में जानने की कोशिश कर रहा था, जिनकी मौत पिछले दो साल में दिल्ली में हुई। मैं उनकी जाति जानना चाहता था। जो सूची मेरे पास उपलब्ध हो सकी, उसमें 9 वाल्मीकि, 3 गैर वाल्मीकि दलित और दो ओबीसी हैं। एक भी ब्राह्मणवर्ग का नहीं था। रपट तो बाद में कुछ और तथ्यों के साथ लिखूंगा। फिलहाल एक कविता, जो कल रात सूझी–

सीवर में उतरनेवाला आदमी
ब्राह्मण जात का नहीं होता
और इसलिए
ब्राह्मण जात का आदमी
ऊंची जात का होता है।

सीवर में उतरनेवाला आदमी
केवल आदमी भी नहीं होता
दलित होता है
अछूत होता है
भूमिहीन होता है
सम्मानहीन होता है।

सीवर में उतरनेवाला आदमी
नागरिक के बजाय वोटर होता है।

हां, सीवर में उतरनेवाला आदमी
ब्राह्मण जात का नहीं होता।

नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं.

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here