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ग्राउंड रिपोर्ट

गरीबों, चरवाहों एवं किसानों की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की सरकारी रणनीति

देश में अमीरों और गरीबों की जनगणना तो नहीं हुई है लेकिन इसके बाद यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि देश की 80 करोड़ जनता गरीबी में जीवनयापन कर रही है, जिन्हें सरकार हर महीने 5 किलो राशन देती है। लेकिन वर्ष 2024 के आम बजट में इन गरीबों के लिए कोई भी प्रावधान नहीं किया गया। सवाल यह है कि कब इनके ऊपर सरकार मेहरबान होगी।

गरीब कौन हैं? गरीब कैसे बनाये जाते हैं? क्या गरीब धार्मिक पर्यटन रूपी अर्थव्यवस्था के प्राथमिक स्रोत हैं? क्या गरीबों को और गरीब बनाने में सरकार की कोई भूमिका होती है? मैं इस आलेख में इन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा हूँ.

संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, 25 जुलाई 2024 तक भारत की वर्तमान जनसंख्या 1,442,553,042 है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शासित भारतीय जनता पार्टी की सरकार इसी आबादी में से 80 करोड़ गरीबों को हर महीने पाँच किलो राशन जीवन-यापन के लिए दे रही है। अर्थात मोदी सरकार देश के 80 करोड़ नागरिकों को गरीब मानती है।

भारत बहुत बड़ी आबादी के साथ-साथ भौगोलिक एवं सांस्कृतिक स्तर पर विविधता वाला देश है। इसका आशय यह है कि देश के हर हिस्से में गरीबी के अलग-अलग स्वरूप हैं। गरीबी के इन अलग-अलग स्वरूपों से निपटने के जो स्रोत हैं, वह उस क्षेत्र की भौगोलिकता पर आश्रित है। मैं ‘आंखन देखी’ के आधार पर गरीबी के कुछ प्रकार का यहाँ विश्लेषण कर रहा हूँ।

मेरी नज़र में सबसे गरीब वे हैं, जिनके पास रहने के लिए न मकान है, भोजन के लिए न खेत है, जीविका के लिए न ही पशुधन है, उनके पास सिर्फ और सिर्फ एक झोपड़ी है और वे जीविका के लिए दूसरों पर निभर हैं अर्थात वे पूरी तरह मजदूरी पर निर्भर हैं।

इस तरह के गरीबों का जीवनयापन पति-पत्नी दोनों की संयुक्त मजदूरी पर चलता है। यह वर्ग दूसरों के खेतों एवं ईंट-भट्ठों में हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद भयंकर महंगाई का सामना करते हुए बमुश्किल किसी तरह जीवन का निर्वाह करता है। इनके लिए इनकी जरूरत की सामानों पर कोई विशेष छूट नहीं दी जाती है।

ऐसी स्थिति में ये आजादी के फर्जी अमृतकाल में अपनों बच्चों को शिक्षा देने के लिए सोच भी नहीं सकते हैं. इनके लिए सरकारी स्कूलों, कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों का क्या महत्त्व है? ये बस आँकड़ों और वोट के लिए एनजीओ, सरकारी संस्थाओं एवं राजनैतिक दलों के स्रोत हैं। ये किसी भी स्थिति में सरकार द्वारा की गई अपनी उपेक्षा का न विरोध कर सकते हैं और न ही अपने मालिकों की मनमानी का (जिनके यहाँ काम करने से इनकी जीविका चलती है।

23 जुलाई 2024 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश किये गये बजट में इनके लिए क्या है? वे यह सवाल भी नहीं पूछ सकते हैं। बिना सवाल उठाए और बिना अधिकार के लिए लड़े कोई सरकार इतनी उदार नहीं होती है कि वह स्वेच्छा से सबसे गरीब वर्ग के लिए कुछ विशेष प्रावधान करे। यदि कभी-कभार संयोगवश कुछ ऐसा प्रावधान हो जाता है तो वह सरकारी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।

इस वर्ग के बाद वह वर्ग आता है, जिसके पास रहने के लिए कच्चा मकान या किसी सरकारी योजना के तहत बनाया गया आवास है,भोजन-उत्पादन के लिए दो बीघे से कम जमीन है और जीवन-यापन करने के लिएयह पशुधन भी रखता है। जो तबका पशुधन रखता है, उसका संबंध पशु खरीदने वाले व्यापारियों से होता ही है। जब सरकार पशु खरीदने पर रोक लगा दे, अनुपयोगी पशुओं को छुट्टा छोड़ने पर मजबूर कर दे, तब इस वर्ग के साथ व्यापारी और किसान तीनों की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाती है। यह सरकार द्वारा गरीब लोगों को और गरीब बनाये रखने की मनुवादी साजिश और सरकारी रणनीति है।

मनुवादी साजिश का ही परिणाम है कि गौरक्षा के नाम पर तमाम फर्जी गौसेवकों का उभार होना। इन गौसेवकों का मुख्य कार्य है कि व्यापारियों द्वारा पशुधन लेकर जाते हुए उनसे चंदा वसूली करना और जब चंदा देने में व्यापारी अपनी असमर्थता जताएं तब उनका मजहब पूछकर उनकी मॉब लिंचिंग या हत्या करना।

इनका दूसरा कार्य यह है कि छुट्टा जानवरों को रात में व्यापारियों के ट्रकों पर लदवाना और उनसे धन कमाना। इस तरह ये फर्जी गौसेवक गरीबों, चरवाहों एवं किसानों द्वारा छोड़ी गई गायों का व्यापार करते हैं. इस कालाबाजारी वाले व्यापार में पशुओं के मालिकों को कुछ नहीं मिलता है।

सरकार ने तमाम सरकारी गौशालाओं का निर्माण किया है। ये गौ सेवक उनमें कभी भी गाय की सेवा करते हुए दिखाई नहीं देते हैं। जब चारे के अभाव में गायें सरकारी गौशालाओं में दम तोड़ देती हैं तब इन गौ सेवकों के मुँह में दही जम जाती है, जबान सूख जाती है और गला बैठ जाता है। अतः इससें साबित होता है कि गरीबों, चरवाहों एवं किसानों की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिए मनुवादी साजिश के तहत गौरक्षकों का गठन किया गया है।

जिस समाज की अर्थव्यवस्था को इतनी बड़ी और महीन साजिश के तहत बर्बाद कर दिया जाएगा वह तालीम कैसे हासिल करेगा और जब वह तालीम हासिल नहीं कर पाएगा तब वह देश के संस्थानों में अपना वाजिब हिस्सा कैसे मांगेगा?

आज मजदूरों, गरीबों, चरवाहों एवं किसानों को इसी बात को समझना है और आस-पास जितने फर्जी गौ सेवक हैं, उनसे अपनी गायों के लिए चारा कटवाना और उसे बलवाना तथा गायों के गोबर से गोइठा/उपले पथवाना चाहिए। यकीन मानिए, चार दिन के भीतर ही उनकी सारी फर्जी गौ रक्षकी या गौ सेवकी का भूत उतर जाएगा। फिर वे खुद गौकशी प्रतिबंध को हटाने की माँग करने लगेंगे। एक सरकारी तथ्य यह भी है कि गौकशी पर प्रतिबंध लगाये जाने के बाद भारत बीफ़ का सबसे बड़ा निर्यातक देश बन कर उभरा है।

 

 

 

ज्ञानप्रकाश यादव
ज्ञानप्रकाश यादव
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं और सम-सामयिक, साहित्यिक एवं राजनीतिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं।

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