सरकारी पानी की गंदगी के कारण खड़ा हो रहा ‘आरओ वॉटर’ का बाज़ार
वाराणसी। ‘सुना पत्रकार भइया, बनारस में अमृत जल योजना क खाली ढिंढोरा पीटल जात हौ, ओकरे बावजूद हम लोगन के गंदा पानी सप्लाई होत हौ। अमृत अंजुरी से पियल जाला न… वही तरे सभासद यहाँ क पानी पी के देखा दें…’ (अमृत अंजुरी से पी जाती है, उसी तरह सभासद यहाँ का पानी पीकर दिखा दें)। हुकुलगंज (वॉर्ड 11) के निवासी विकास ने गुस्से भरे लहजे में यह बात कह डाली। उसके बाद वह अपने घर से एक बाल्टी पानी लेकर चले आए और उसे दिखाते हुए बोले- ‘हम लोगन के अइसने ‘अमृत’ पिलावल जात हौ।’ (हम लोगों को ऐसा ही अमृत पिलाया जा रहा है)।
वरुणापार स्थित नगर निगम कार्यालय से मात्र तीन किलोमीटर और चौकाघाट पानी टंकी से मात्र 500 मीटर की दूरी पर स्थित हुकुलगंज की इस गली में कई बुनियादी समस्याएँ हैं। यहाँ के लोग इसका कारण ‘जाति’ भी बताते हैं। इस गली में अधिकतर मुस्लिम, पिछड़ी जाति और किन्नर समुदाय के लोग रहते हैं। लोगों ने स्थानीय सभासद पर यह भी आरोप लगाया, ‘वह कहते हैं कि आप लोगों ने मुझे वोट नहीं दिया है तो समस्याओं का समाधान कहाँ से होगा?’
पेयजल के लिए हर दिन संघर्ष कर रहे हुकुलगंज के रामजी डेंटर वाली गली की स्थिति यह है कि यहाँ काफी पुराने कुएँ को मलबे से ढँक दिया गया है। उसकी हालत को लेकर गली के गगन कुमार बताते हैं कि ‘इसी परिसर में पाँच वर्ष पहले एक सरकारी हैंडपम्प लगवाया गया था। अब वह भी खराब हो चुका है। पानी के लिए मैं हर वर्ष 1200-1400 रुपये विभाग में जमा करता हूँ, बावजूद इसके हम लोगों को साफ पानी नहीं मिलता। मजबूरी में उसी पानी को पीना पड़ता है। आरओ का पानी 10 रुपये प्रति बोतल है, ठंडा पानी 20 रुपये बोतल। तीन सौ से छह सौ रुपये महीना देने की मेरी हैसियत नहीं है। कई बार शिकायत भी कर चुका हूँ, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ। चौकाघाट वाली पानी टंकी और ट्यूबवेल आए दिन खराब रहते हैं।
गिरिजा देवी बताती हैं ‘यहाँ बरसों से पानी की किल्लत है। पानी बचाने के लिए हम लोग सब्जियों को धोते नहीं, उन्हें भीगे कपड़े से पोंछकर काटते हैं। गर्मी लगती है तो हम गमछा भिंगाकर ओढ़ लेते हैं। इस भीषण गर्मी में हम दो बार नहा भी नहीं सकते। बच्चे स्कूल से आते हैं तो पानी से ही अपना चेहरा और हाथ-पाँव पोंछकर इत्मीनान कर लेते हैं।’
गर्मी से परेशान लक्ष्मी साव सिर्फ लुँगी पहनकर गली में घूम रहे थे। वह बताते हैं ‘मेरी पैदाइश यहीं पर हुई है। सत्तावन साल का हो गया हूँ लेकिन आज तक हमारी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। रतन जैसल के बाद महेंद्र शक्ति उसके बाद लक्ष्मी जैसल और अब बृजेश चंद श्रीवास्तव का कार्यकाल मैं देखता आ रहा हूँ। लक्ष्मी बताते हैं कि एक जने के कार्यकाल में सीवर-पानी की व्यवस्था हुई, दूसरके जने के कार्यकाल में पत्थर की, तीसरके जने उन्हीं सब चीजों की मरम्मत करवाकर वोट माँग रहे हैं। इस गली में एक बार नए और अच्छे स्तर का काम हो जाए तो हमारी ज़िंदगी पटरी पर आ जाए। पानी न होने के कारण ही मैं ऐसे घूम रहा हूँ, नहीं तो दो-चार मग्गा पानी शरीर पर डालकर घर में बैठता।’
परचून की छोटी-सी दुकान चलाने वाले लखन हर दो-चार दिन में सफाईकर्मी को सिर्फ यही निर्देश देते है (और कह-कह के थक चुके हैं) कि ‘मेरी दुकान के सामने कूड़ा जमा मत करो।’ अब हालात ये हो चुके हैं कि उस स्थान पर मिट्टी की मोटी परत जम गई है, जिससे वहाँ लगाया गया विद्युत पोल भी नीचे से सड़ रहा है। ऐसे में अनहोनी की आशंका बनी रहती है। लखन बताते हैं ‘हर सुबह दुकान खोलने से पहले मुझे कूड़े की दुर्गंध का सामना करना पड़ता है। दुकानदारी के पहले ही पूरा ‘मूड’ खराब हो जाता है। शिकायतों को भी कोई सुनने वाला नहीं है।’
गली में ही टॉफी-बिस्किट की दुकान चलाने वाले आशीष कुमार बताते हैं कि ‘मेरे घर के ठीक सामने एक साल पहले सीवर का ढक्कन टूट गया था, दर्जनों बार शिकायत के बावजूद मरम्मत नहीं हुई। परेशान होकर तीन-चार लोगों ने पैसा मिलाकर पत्थर लगवाया। बारिश में इस सीवर से पानी निकलता रहता है, लेकिन सभासद या सरकारी कर्मचारी झाँकने तक नहीं आता। हम शिकायत भी नहीं करना चाहते। जब हमारी छोटी-सी समस्या का समाधान नहीं हुआ तो बड़ी समस्या कैसे सुलझेगी?’
हुकुलगंज की हालत काफी दयनीय है। यह गलियाँ आपस में मिलकर बड़ा क्षेत्रफल तो तय करती ही हैं साथ ही एक बड़ी आबादी भी यहाँ निवास करती है। लगभग हर गली का आखिरी छोर वरुणा का तट ही है। सड़क से शुरू हो रही इस गली में घुसते ही दर्जनों जगह प्लास्टिक के बोरे में भरकर सीवर का मलबा रखा हुआ है। दो-ढाई माह पहले यहाँ के सीवर के ‘कामचलाऊ’ सफाई हुई थी। यह बताते हुए अनीता गुप्ता कहती हैं कि ‘यहाँ के सुपरवाइजर राजेश से दर्जनों बार शिकायत की गई, बावजूद इसके उन्होंने यह मलबा नहीं हटवाया। सफाईकर्मी तो इतना मनबढ़ है, वह साफ कह देता है कि यह हमारा काम नहीं है। हाल ही में मेरे लड़के ने घर के आगे उस बोरी को सायकिल पर लादकर सड़क पर रखे कूड़ा कंटेनर में डाला। अन्य लोगों के घर के बाहर अभी-भी मलबा बोरे में बांधकर रखा हुआ है।’
खिड़की से झांकते हुए मनोरमा देवी कहती हैं ‘घर का कूड़ा ले जाने के लिए हम लोगों से हर माह 50 रुपये निगमकर्मी ले जाता है। उसके बावजूद सफाईकर्मी गलियों में इधर-उधर कूड़ा लगा देते हैं। कूड़ा हटाने के सवाल पर कहा जाता है कि दूसरी गाड़ी आएगी तब उठान होगा। एक महिला सफाईकर्मी है उसकी कूड़ा गाड़ी में नीचे से टूट गई है। वह जितना कूड़ा उठाती है, उसका एक हिस्सा गली में कहीं न कहीं गिरता हुआ जाता है। पेयजल की क्या व्यवस्था है? के सवाल पर वह कहती हैं कि यह मनाइए कि थोड़ा-बहुत पानी मिल जा रहा है। अब वह साफ है या गंदा यह मत पूछिए।’
करीना किन्नर ने हाल ही में यहाँ किराए का एक कमरा लिया है। वह बताती हैं कि ‘हमारे यहाँ तो पानी ही नहीं आता था। नया पाइप खिंचवाया तब जाकर पानी आने लगा, लेकिन उसमें मछलियाइन-मछलियाइन बदबू आती है। इसलिए पानी उबालकर पिया जा रहा है। यही कारण है कि यहाँ लोग आरओ का पानी मँगवाते हैं। अभी हमारी स्थिति तो नहीं है, लेकिन बाद में हो सकता है कि मुझे भी आरओ का पानी मँगवाना पड़े। सिलेंडर गैस इतना महँगा हो गया है कि बार-बार कौन पानी उबालेगा?’
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‘नर्क’ में रहते हैं वाराणसी के बघवानालावासी, अपना मकान भी नहीं बेच सकते
इस गली में कई जगह पानी की दर्जनों पाइपें किनारे-किनारे लोगों के घरों तक बिछी हुई हैं। कोई भी मनमाने ढंग से इन पाइपों से कनेक्शन कर लेता है। रवि गुप्ता बताते हैं ‘हमारे गली में सफाई व्यवस्था के साथ सीवर की समस्या का समाधान हो जाए तो राहत मिल जाए। सरकार हमसे कूड़ा उठाने तक का टैक्स वसूल रही है, अब इसका भी फायदा न मिले तो बेकार है टैक्स देना।’
इसी गली में अंदर जाने पर एक कुँआ और है। यहाँ के लोग बताते हैं कि इसके दीवाल से सटाकर शिवजी का मंदिर बना दिया है। स्थानीय निवासी अतुल गुप्ता बताते हैं कि ‘मंदिर के कारण ही यह कुआं साफ-सुथरा है। चार साल पहले इस कुएं का पानी भी गंदा हो गया था। हमारी शिकायतें सभासद ने नहीं सुनीं तो हम लोगों ने मिलकर इसकी सफाई कर डाली। महीना-दो महीना पर कुएं में गमक्सिन पाउडर डाल दिया जाता है। नहाने सहित अन्य कामों में इसके पानी का उपयोग किया जाता है। लेकिन इसका पानी पीया नहीं जाता।’
पूरा नाम न बताने की त्रासदी
बबलू ने सिर्फ अपना नाम बताया। पूरा नाम पूछने पर बबलू खान बताते हैं कि ‘इसी कारण हमारी गली में विकास कार्य नहीं हो रहे हैं। कई बार कह दिया जाता है कि इस गली में मुसलमान और चमार रहते हैं, इसलिए पूरा नाम नहीं बता पाता हूँ। देखिए, इस मंदिर और कुँए की सफाई के लिए हम सभी लोग मिलकर मेहनत करते हैं। हम लोग यहाँ बचपन से एक साथ मिल-जुलकर रहते आए हैं। गली की अधिकतर समस्याओं का समाधान मिलकर ही निकाल लिया जाता है। अब तक यहाँ जो भी पार्षद हुए उन लोगों ने पूरी तरह से समस्या का समाधान नहीं करवाया।’
कल्लू कुरैशी मंदिर के ठीक बगल में खड़े होकर बेबाकी से कहते हैं कि ‘सरकार को हिन्दू-मुसलमान से फुरसते नहीं है। अभी के सभासद चुनाव के दौरान ही आए थे, उसके पहले दो या तीन बार आए होंगे। हमारी समस्याओं का समाधान तो नहीं किया जाता, लेकिन यह कह दिया जाता है कि ‘इस गली से वोट नहीं मिला है, महेन्द्र शक्ति को दिया है, तो उन्हीं से बोल दो कि शिकायतों का निपटारा करें।’
गली के निवासी फरीद यहाँ की सफाई व्यवस्था और पेयजल की गंदगी को लेकर काफी नाराज़गी व्यक्त करते हैं। फरीद की सामाजिकता इसी से समझ में आ जाती है कि उन्होंने विद्युत तार को गली के अंदर ले जाने के लिए अपने घर की दीवाल पर दो एंगल (लोहे का एक उपकरण) लगवा दिया है। इस गली में विद्युत पोल भी लगे एक ज़माना हो गया है। दीवाल के सहारे विद्युत तार दौड़ाए गए हैं। फरीद के कहने पर ही एक प्रायवेट सफाईकर्मी को गली का कूड़ा उठाने के लिए नियुक्त कर दिया गया है। उसे प्रत्येक सप्ताह कुछ रुपये दे दिए जाते हैं। यह बात हो ही रही थी कि वह सफाईकर्मी प्लास्टिक का एक झोला लेकर आया और कूड़ा उठाने लगा।
इसी बीच लालजी महंत आ जाते हैं। उन्होंने जलकल विभाग के ठेकेदार के प्रति कड़ी नाराजगी जताई। वह बताते हैं कि ’19 दिसम्बर, 2022 को गली में सीवर कार्य करवाते हुए ठेकेदार की लापरवाही के कारण मेरे मकान के आगे का पूरी दीवाल गिर गई। छत का छज्जा ढहकर नीचे लटक गया। काफी शिकायत के बाद 9 जनवरी, 2023 को विभाग के लोगों ने मकान के उस हिस्से को अधूरे तरीके से ठीक किया। मकान के ऊपर की चहारदीवारी बनवाई ही नहीं। मिन्नतें करने के बावजूद ठेकेदार ने कह दिया कि ‘हमें इतने ही काम का पैसा और निर्देश मिला था।’
लालजी की समस्या यहीं खत्म नहीं हुई। वह बताते हैं कि मेरी शिकायतों के बाद जब मेरा मकान बनाने का निर्देश हो गया तो सीवर-चौका का काम कर रहे लोगों ने मेरी गली भी अधूरी छोड़ दी। इसका कारण पूछने पर लालजी बताते हैं कि ‘सड़क की तरफ जाकर देखिए, नरेंद्र मोदीजी की प्रेरणा से स्थानीय सभासद ने जो शिलापट्ट लगाया है, उस पर साफ लिखा है कि मुस्ताक के आवास से लालजी के मकान तक चौका मरम्मत कार्य करवाया गया, लेकिन हक़ीकत आपके सामने है।’ हक़ीकत यह है कि लालजी के मकान के सामने लगभग 16-18 फुट तक के मार्ग पर चौका-पत्थर नहीं लगाया गया।
गली में मुझे दूर से ही देखकर मेरा इंतज़ार कर रहे नसीम पानी की समस्या से काफी परेशान हैं। पास जाने पर वह बताते हैं कि ‘भोर में जब सरकारी पानी सप्लाई से आता है तो काफी दुर्गंध मारता है। ठीक सात बजे ट्यूबवेल शुरु होने पर पानी थोड़ा-बहुत पीने लायक दिखता है। वह बताते हैं कि सप्लाई जब शुरू होती है, तब गली में जगह-जगह पानी भी जमा हो जाता है। पानी की पाइपें अंदर से जगह-जगह टूट चुकी हैं। इसी कारण पानी ऊपर निकल आता है। सुबह के समय बच्चे जब स्कूल के लिए निकलते हैं तब उन्हें इसका खामियाज़ा अपने कपड़े गंदे कर भुगतने पड़ते हैं। एक बार तो इसी पानी में मेरी बिटिया गिर गई थी, उसका पूरा कपड़ा गंदा हो गया। उस दिन मेरी बेटी स्कूल नहीं गई, जिस बात का उसे मलाल भी था।
बगल में खड़ी शांति पानी की समस्या पर हमारी बातें सुन रही थीं। मुझे रोककर वह एक मग में पानी भरकर ले आईं। उन्होंने उस पानी को सूंघने के लिए कहा- जिससे दुर्गंध आ रही थी। शांति कहती हैं ‘यह आज की नहीं बरसों की समस्या है। शिकायत के बावजूद आज तक समाधान नहीं किया गया। नेताओं और अधिकारियों का आश्वासन सुनते-सुनते मैं तंग हो चुकी हूँ। मेरे यहाँ सुबह-शाम, दोनों टाइम आरओ का पानी आता है। 20 रुपये के हिसाब से 600 रुपये महीना पानी में ही चला जा रहा है। 12 से 13 सौ रुपये सरकारी नल का भी चार्ज देना होता है।’ मन में हिसाब लगाकर शांति बताती हैं कि उनके यहाँ पानी के लिए सालाना छह से साढ़े छह हजार रुपये खर्च हो रहे हैं।
67 वर्षीय कुराबा देवी बताती हैं कि एक समय इस गली में दर्जनों नल हुआ करते थे। किसी को भी दिक्कत होती थी तो वह अपने घर के पास लगे नल से पानी ले लेता था। वह नल अब ज़मींदोज़ हो चुके हैं। गली में कहीं-कहीं आधा-एक फुट ऊपर ऐसे नल दिख भी गए। कुराबा बताती हैं कि ‘दसों बरस पहले इस गली में पाइप लाइन बिछी थी। लोहे वाली पाइप से अब प्लास्टिक की पाइपें बिछा दी गई हैं। कहीं-कहीं यह पाइपें टूट चुकी हैं, उसमें छेद हो गए हैं। निकाय चुनाव के पूर्व यहाँ के सभासद वोट माँगने आए थे, तब गली के लोगों ने इस समस्या की शिकायत की थी, लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। जीतने के बाद तो सभासद इस गली को भूल ही गए।’
बीते मार्च में प्रधानमंत्री ने किया था 19 पेयजल योजनाओं का लोकार्पण
काशी में विरासत भी है, विकास भी है। https://t.co/2BVc89DBL5
— Narendra Modi (@narendramodi) March 24, 2023
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 24 मार्च को वाराणसी में 1780 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया था। इन परियोजनाओं में जल जीवन मिशन के तहत 19 पेयजल योजनाएं भी समर्पित की गई हैं, जिससे 63 ग्राम पंचायतों के 3 लाख से अधिक लोग लाभान्वित होंगे। दूसरी तरफ, प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पानी की समस्या आए दिन किसी-न-किसी इलाके में हो रही है, विभाग भी इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहा है। इसका भरपूर फायदा आरओ वॉटर प्लान्ट वाले उठा रहे हैं।
काशी के विकास की चर्चा आज पूरे देश और दुनिया में हो रही है। pic.twitter.com/zpZwHoLuFy
— PMO India (@PMOIndia) March 24, 2023
उन्होंने मिशन के तहत 59 पेयजल योजनाओं का शिलान्यास भी किया। उनके अनुसार, इस योजना से बनारस में पेयजल की समस्याओं का काफी हद तक समाधान हो जाएगा।
वाराणसी के उत्तरी विधान सभा के पूर्व विधायक हाजी अब्दुल समद अंसारी बताते हैं कि भाजपा की कथनी और करनी में काफी अंतर है। उनकी हर योजनाएँ कुछ समय बीतने के बाद गर्त में चली जाती हैं। उनकी योजनाएं सिर्फ कागजों और अखबारों तक ही सीमित रह गई हैं। उसके कार्यकर्ता गली-मोहल्लों में घूमकर सिर्फ आश्वासन ही देते रहते हैं। हुकुलगंज का इलाका काफी बड़ा है। यहाँ की गलियाँ अन्य कई इलाकों को आपस में जोड़ती हैं। लाखों की आबादी वाले इस क्षेत्र को यहाँ के विधायक व मंत्री ने अनदेखा कर दिया है। बघवानाला क्षेत्र में जो कूड़े की समस्या है, उस पर खासतौर से ध्यान देना चाहिए। भाजपा सरकार के कार्यकर्ताओं को लेकर एक ही बात ठीक लगती है- जनता त्रस्त, भाजपा नेता मस्त।
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