घरेलू महिला उत्पीड़न व लैंगिक भेदभाव के मुद्दों पर जागरुकता एवं संवेदनशीलता प्रसार हेतु बसंता महिला महाविद्यालय, राजघाट की छात्राओं के बीच दख़ल संगठन और महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में फ़िल्म प्रदर्शन के माध्यम से संवाद का आयोजन किया गया।
छात्राओं के बीच लघु फिल्म घर की मुर्गी का प्रदर्शन किया गया। करीब 19 मिनट की यह फिल्म समाज के पारम्परिक रूढ़िवादी ढाँचे पर सोचने को मजबूर करती है। फ़िल्म सवाल पैदा करती है कि घर में काम करने वाली गृहिणी है क्या? उसकी जरूरत क्या है, वो कौन है? क्या घर की मुर्गी है? जिसके श्रम की कोई कद्र नहीं करता।
घर की मुर्गी एक परिवार की कहानी है। यह देश का कोई भी परिवार हो सकता है। बच्चों को कभी उनकी पसंद का तो कभी उनकी नापसंद का नाश्ता खिलाने वाली गृहिणी स्कूल की वैन के लिए भागती है। दूध लेने के लिए भागती है। सास के शरीर की मालिश करने को भागती है। ससुर के दवाइयों लिए भागती है। फिर रात को बच्चों का होमवर्क। पति के ताने और गुडनाइट। यही नहीं इस सबके बीच वह अपना छोटा-सा ब्यूटी पार्लर चलाकर अतिरिक्त आमदनी भी घर लाती है। लेकिन किसी को उसकी कद्र नहीं। सब उसे घर की मुर्गी समझते हैं।
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फिल्म एक महिला की खोई हुई अहमियत को उस बल के साथ पेश करती है, जिसकी चाह हर उस महिला को होती है जो घर को बुनती और संजोती है।
फिल्म प्रदर्शित करने के बाद खुली चर्चा की गई। छात्राओं ने सिनेमा देखकर मन मे जो विचार उत्पन्न हुए उन्हें साझा किया। एक छात्रा ने बताया की हम अक्सर पितृसत्ता के बारे में सुनते थे लेकिन उसका अर्थ नहीं समझ पाते थे। इस फिल्म को देखकर और इस पर हुई चर्चा के माध्यम से पितृसत्तात्मक सोच होती क्या है ये समझने को मिला। ये व्यवस्था महिलाओं को घर की मुर्गी ही समझती है।
छात्रा ने कहा कि यह व्यवस्था तो सदियों से चली आ रही है। इसमें बेटी बनकर,पत्नीबनकर, मां बनकर सभी महिलाएं इसी चक्की में खपने को ट्रेंड की जाती हैं। इससे निकलने का रास्ता क्या है? संवाद कार्यक्रम की ही सहभागी छात्रा ने कहा कि प्रश्न तो जटिल है लेकिन शायद शिक्षा और स्वावलम्बन कोई रास्ता निकाल सके जो भेदभाव हटाकर समतापूर्ण और शांतिमूलक समाज बनाने में मदद कर सके।
कार्यक्रम के अंत में काजल ने सभी प्रतिभागियों से सोशल मीडिया को फॉलो करने का निवेदन किया और कार्यक्रम में शामिल सहभागियों ने एक-दूसरे से यह वादा किया कि हम सभी मिलकर समाज के इन विषयों पर चर्चा करेंगे और जागरूक नजरिया अपनाएंगे।
महाविद्यालय में महिला मुद्दों को देखने के लिए बनी इंटरनल कम्प्लेन कमेटी (ICC) की इंचार्ज डॉ. रंजना के द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। विभाग की छात्राएं काफी संख्या में शामिल रहीं। कार्यक्रम का संचालन नीति ने किया। विषय प्रवेश विजेता ने और फ़िल्म पर चर्चा शालिनी ने कराया। कार्यक्रम में काजल की सक्रिय भागीदारी रही।
इसी क्रम में आज 16 दिसंबर, 2022 को काशी पत्रकार संघ वाराणसी में दख़ल संगठन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़े के समापन पर एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया। वार्ता में संगठन द्वारा चलाए जा रहे अभियान कार्यक्रम में विषय की जानकारी दी गयी। वार्ता में प्रमुख रूप से इंदु, विजेता और काजल रहीं।
प्रेस वार्ता में मैत्री ने अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़ा के विषय में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 1960 के दशक में डोमिनिकन रिपब्लिक के तानाशाह शासक के खिलाफ तीन बहनों- पेट्रिया, मिनरवा और मारिया (मीराबेल बहनें) ने आवाज़ उठाई। 25 नवम्बर को तीनों बहनों को जिन्दा जलाकर हत्या कर दी गयी। 1981 में नारीवादी समूहों ने इस दिन को महिलाओं पर होने वाली हिंसा के विरोध में अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। 1991 में 25 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक 16 दिवसीय अभियान मनाना शुरू किया गया और यह माना गया कि महिलाओं पर हिंसा उनके मानवाधिकार का हनन है। इसलिए 25 नवम्बर महिला हिंसा के विरोध में अंतरराष्ट्रीय दिवस से 10 दिसम्बर तक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस यानी इन 16 दिनों को जोड़ा गया। 1999 में संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा 25 नवम्बर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा निवारण दिवस के रूप में घोषित किया है। तभी से यह पखवाड़ा हर वर्ष महिलाओं पर हिंसा के विरोध में 16 दिवसीय अभियान के नाम से मनाया जाने लगा है। जिसमें देश, सरकार, संस्थाएं, संगठन, शिक्षण संस्थाएं एवं व्यक्ति इन 16 दिनों में लड़कियों-महिलाओं से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर सघन अभियान करते हैं।
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2012 में आज ही के दिन 23 साल की फिजियोथेरेपिस्ट निर्भया के साथ जघन्य सामूहिक बलात्कार करके निर्मम तरिके से उसकी हत्या की गयी थी। लम्बे समय तक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद 29 दिसंबर को निर्भया की मौत हो गयी थी। सभी आरोपी पकड़े गए थे और सभी को फांसी की सजा हुई। तभी से 16 दिसंबर को निर्भया की स्मृति में महिला हिंसा के प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है।
बनारस और आसपास के क्षेत्र में लैंगिक मुद्दों पर लगातार सक्रिय रह रहे संगठन दख़ल ने कुछ आयोजन किये हैं साथ ही एक अध्ययन भी किया है। आयोजन की जानकारी और अध्ययन की रपट जारी करने के लिए पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया।
महिला हिंसा के विभिन्न आयाम हैं। घरेलू से लेकर कामगार महिला तक जाति, धर्म, अमीरी, गरीबी की सीमा से परे सभी उम्र की महिलाओं पर भेदभाव और हिंसा की घटनाएँ होती हैं। ऐसे विषयों पर कानून के साथ-साथ समाज की अपनी जागरुकता और संवेदनशीलता भी जरूरी मांग है। इसको ध्यान में रखते हुए दख़ल संगठन ने जिले के स्कूल-कॉलेजों में जागरुकता संवाद का आयोजन किया। समाजकार्य विभाग काशी विद्यापीठ, हरिश्चंद्र पीजी कॉलेज मैदागिन, विद्यापीठ गंगापुर परिसर और वसंता कॉलेज राजघाट में पिछले दिनों लघु फ़िल्में दिखाकर छात्र छात्राओं के बीच चर्चा कराई गई।
रिपोर्ट को जारी करते हुए शालिनी ने बताया की अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़े के दौरान बनारस से प्रकाशित होने वाले प्रमुख पांच अखबारों और पांच ऑनलाइन पोर्टलों का दखल ने अध्ययन किया है। पिछले 15 दिन के समाचारों में देखा गया कि शहर और ग्रामीण इलाके की हर प्रकार के सामाजिक-आर्थिक ढाँचे में रहने वाली महिलाओं के साथ अपराध की घटनाएं हुई हैं। महिलाओं के खिलाफ प्रतिदिन औसत 4 से 5 हिंसा और अपराध की खबरें प्रकाश में आई हैं। ज्ञातव्य है कि रोजमर्रा के घरेलू भेदभाव और हिंसा की बहुतायत शिकायतें तो कभी सामने आ ही नहीं पाती। ये बातें दर्शाती हैं कि समाचार में सामने आयीं घटनाएं दस गुना होंगी। बनारस में होने वाले तमाम सरकारी, गैर सरकारी आयोजन के बीच 75 घटनाएँ समाचार का हिस्सा बनी हैं। इसमें से दहेज उत्पीड़न की तीन, यौनिक हिंसा की चार, शारीरिक हिंसा की बीस, चार साइबर अपराध और सात मानसिक उत्पीड़न की घटनाएँ दर्ज हुई है। सर्वाधिक मामले बच्चों के रहे। नाबालिग (पॉक्सो) की छब्बीस घटनाएँ खबरों में रहीं।
ये हाल तब है जब भारत में संरक्षण सुरक्षा हेतु कितने कानून बनाए गए हैं। उदाहरण के लिए-
- आईपीसी की धारा 294 अश्लील कार्य और गाने भारतीय दंड संहिता में महिलाओं के प्रति अश्लील गाने और कार्य करना दोनों दंडनीय अपराध हैं।
- आईएपीसी की धारा 354 स्त्री की लज्जा हेतु भारतीय दंड संहिता में प्रावधान।
- आईपीसी की धारा 376- इसके तहत बलात्कार अत्यंत जघन्य अपराध है।
- दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 और 1986 है।
- आईपीसी की धारा 494 पति या पत्नी के जीवित होते हुए विवाह करना दंडनीय अपराध है।
- हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत दूसरे विवाह को प्रतिबंधित किया गया है।
- घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 है।
- महिला आरोपी की दंड प्रक्रिया संहिता 1973 है।
- गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 है।
- भ्रूण लिंग चयन निषेध अधिनियम 1994 है।
- अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956 है।
- विशाखा दिशा निर्देश।
- कार्यस्थल पर महिलाओं के सम्मान की सुरक्षा के लिए वर्कप्लेस एक्ट 2012 है।
- POCSO अधिनियम आदि के माध्यम से विधिक संरक्षण प्राप्त है।
- मीडिया के विभिन्न संस्थान, स्कूल कॉलेज और गैर सरकारी संस्थानों आदि में अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़े के तहत आयोजनों की भरमार है। लेकिन जमीनी सच्चाई एकदम उलट है।
कम संसाधनों में बेहद साधारण-सा अध्ययन ऑंखें खोलने वाला है। अध्ययन बता रहा है कि स्थिति अलार्मिंग स्टेज पर है। एक समाज के तौर पर हमें आगे बढ़ना है तो इन विषयों पर बहुत सचेत होकर अपनी कार्यवाहियों को तय करना होगा। पखवाड़े के अंतर्गत लगातार हिंसा के केस का आना यह साबित करता है कि हम आज भी रुढ़िवादी सोच में जी रहे हैं। कानून बनते-बिगड़ते रहेंगे लेकिन पीढ़ियों से चली आ रही पितृसत्तात्मक सोच को बदलना पड़ेगा।
दुनिया भर में इस पखवाड़े के अंतर्गत लैंगिक भेदभाव और महिला हिंसा को रोकने के लिए हजारों तरीके का कार्यक्रम चलाया गया। दख़ल संगठन ने इसी उम्मीद से यह आयोजन किया कि अब लोग अपनी सोच बदलें और हिंसा को रोकने व समाप्त करने के लिए जागरूक भी होवें। हिंसा तभी समाप्त होगी जब लोगों के बीच से लैंगिक भेदभाव और पितृसत्तात्मक सोच में बदलाव आएगा।
आज के आयोजन बाद शाम अस्सी घाट पर निर्भया स्मृति दिवस पर निर्भया के साथ-साथ देश की तमाम बेटियों को याद किया गया। इस दौरान दख़ल ने ऐसी घटनाओं को झेल रही महिलाओं को अगाह किया कि अब चुप्पी तोड़ो, खुल कर बोलो, हिंसा रोको।
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