फिल्मों के बारे में मोदी जी की टिप्पणी के पीछे भी सदभाव या कला के प्रति उदारता नहीं, व्यवसाय और इसकी अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता है। फिल्म उद्योग में अम्बानी सहित भारत के धन्नासेठों और अमरीकी घरानों का पैसा लगा है। इस इंडस्ट्री का भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। इसके द्वारा सृजित किये जाने वाले विविध रोजगार अकसर अगर आंतरिक अर्थव्यवस्था के हिसाब से महत्व के हैं, तो अकेले अमरीकी मनोरंजन उद्योग में सबसे ज्यादा निर्यात करने और उसके माध्यम से विदेशी मुद्रा लाने वाला जरिया भी है।
आखिर कब तक बुनकर सामान्य नागरिक सुविधाओं से वंचित किए जाते रहेंगे?
गौरतलब है कि मोदी जी कहने से मना कर रहे हैं, करने से नहीं। उनका रिकॉर्ड है कि अपने पूरे कार्यकाल में घटी जघन्य और विचलित कर देने वाली घटनाओं पर उन्होंने कभी कुछ नहीं बोला। मजबूरी में कभी बोलना भी पड़ा, तो 'दिल से कभी माफ़ नहीं करूंगा' जैसा ही बोला।
अभाव और बदहाली में जीने वाले कोई पहले कलाकार नहीं हैं गोविंदराम झारा
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