नड्डा मोदी के काम से इतने खुश और उत्साहित हैं कि वे अपने दल के अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ सीधे एयरपोर्ट पहुंचे हैं और प्रधानमंत्री का शानदार इस्तकबाल किया है। मैं इस तस्वीर के बारे में सोच रहा हूं और इस इवेंट के बारे में भी। मैं इतना कह सकता हूं कि बाइडेन प्रशासन ने नरेंद्र मोदी के अमरीकी दौरे को तरजीह नहीं दी और उसकी कसर दिल्ली में पूरी की जा रही है, जो कि बनावटी है।
तीसरा दृश्य – वापस लक्ष्मीनगर मेट्रो स्टेशन। समय करीब सात बजे। मेट्रो स्टेशन की सीढ़ी पर एक अधेड़ महिला एक अबोध बच्चे को लेकर भीख मांग रही है। यह महिला मुझे रोज दिख जाती है। आए दिन उसके पास का बच्चा बदल जाता है। लेकिन एक चीज हमेशा रहती है। बच्चे के शरीर पर कपड़ा नहीं होता। अक्सर वह नींद में रहता है। आज मैं सोच रहा हूं कि क्या कोई रैकेट है जो दिल्ली में भीख मंगवाने का काम करता है? आखिर इस महिला के पास बच्चे आते कहां से हैं? हर सप्ताह दूसरा बच्चा। या यह भी हो सकता है कि उसके पास तीन-चार बच्चे हों जो कि उसके ना हों, और वह बदल-बदलकर उनका उपयोग भीख मांगने के लिए करती हो। मेरे पास कोई जवाब नहीं है। मैं पत्रकार हूं, कोई जांच एजेंसी नहीं। चूंकि मैं दिल्ली में किसी अखबार में नहीं हूं, इसलिए मैं चाहूं भी तो इस विषय पर एक खोजी रपट नहीं तैयार कर सकता। यदि मैं यहां किसी अखबार में होता तो कोशिश जरूर करता। लेकिन अन्य क्यों नहीं कर रहे? क्या उन्हें यह सब नजर नहीं आ रहा? क्या दिल्ली पुलिस को इसकी भनक नहीं है? रही बात भिखारियों की तो मेरी नजर में भारत सरकार के स्तर पर दो योजनाएं हैं, जिनके जरिए भिखारियों का पुनर्वास किया जा सकता है। तो क्या सरकारी तंत्र इन योजनाओं को लागू नहीं करना चाहता है? आखिर क्यों दिख जाते हैं ऐसे दृश्य?
मैं सोच रहा हूं कि देश में जातिगत जनगणना की मांग कर रहे लोग रो क्यों रहे हैं? कल ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मुद्दे पर रोते हुए नजर आए। हालांकि उन्होंने इतना जरूर कहा कि वे जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं। वहीं देश के कई और राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जातिगत जनगणना की मांग की है। लेकिन एक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन को छोड़कर अन्य याचक की भूमिका में हैं। आखिर इस देश के बहुजन अपने लिए महत्वपूर्ण सवाल को लेकर याचना क्यों कर रहे हैं?
