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सरकारी अतिक्रमण और बर्बरता की कहानी कहता बैरवन

वाराणसी। मोहनसराय ट्रांसपोर्ट नगर के लिए वाराणसी विकास प्राधिकरण (VDA) द्वारा गाँवों की ज़मीन जबरन कब्जा करने और घेराबंदी करने के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कुछ दिनों के लिए स्थगन आदेश दे दिया है लेकिन जिन बेकसूर स्त्री-पुरुषों पर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया गया उसकी भरपाई कौन करेगा? बुधवार की सुबह जब हम […]

वाराणसी। मोहनसराय ट्रांसपोर्ट नगर के लिए वाराणसी विकास प्राधिकरण (VDA) द्वारा गाँवों की ज़मीन जबरन कब्जा करने और घेराबंदी करने के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कुछ दिनों के लिए स्थगन आदेश दे दिया है लेकिन जिन बेकसूर स्त्री-पुरुषों पर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया गया उसकी भरपाई कौन करेगा? बुधवार की सुबह जब हम वहाँ पहुँचे तब बैरवन बड़ापुरा गाँव पूरी तरह सन्नाटे में डूबा हुआ था। लोग अपने घरों और मड़हे में दुबके हुये थे। रेलवे लाइन के बाएँ किनारे एक दुकान पर दो-तीन लोग बैठे थे। हमारे पहुँचने के बाद कुछ और लोग वहाँ आ गए। रेलवे लाइन के दाहिने किनारे गाँव में कई औरतें थीं, जो हमें उचककर देख रही थीं।

हमने दुकान पर मौजूद लोगों से पूछा कि कल क्या हुआ था? तो वहाँ मौजूद दो लोगों ने पत्थर की बेंच पर बैठे एक गुमसुम व्यक्ति की ओर इशारा किया- ‘कल पुलिस ने इनको बहुत मारा।’

दहशत का आलम यह था कि जब मैंने अपने मोबाइल में उस आदमी की बात को रिकार्ड करना चाहा था तो वह बेसाख्ता बोल पड़ा – ‘मुझसे कुछ मत पूछिए। मुझे कुछ नहीं पता। मैं मेंटल हूँ।’ फिर उसने इस बात से इंकार कर दिया कि मुझे मारा गया। हम लोग स्तब्ध रह गए।

लाठीचार्ज के बाद सहमे हुए अजय

छानबीन में पता चला कि इस गाँव के दर्जनों लोगों को पुलिस ने बुरी तरह पीटा लेकिन जिन लोगों को अंदरूनी चोटें आईं और जो भागने में सफल हो गए, वे सीधे-सीधे यह स्वीकारने को तैयार नहीं थे कि वे पीटे गए हैं। 17 तारीख की सुबह साढ़े सात बजे पुलिस ने गाँव में मार्च किया और लोगों को धमकी दी कि कोई भी अपने घरों से बाहर न निकले। इसी कारण दुकान पर मौजूद लोग पहले तो अपनी पिटाई से इंकार करते रहे लेकिन फिर उनका आक्रोश बाहर आ गया। दो युवकों ने कहा कि मेरे बूढ़े बाप को गिर जाने के बाद भी चार-पाँच पुलिसवालों ने लाठियों से पीटा। उनके हाथ-पाँव में काफी चोटें आईं हैं। उन्होंने बताया कि औरतों को भी बुरी तरह मारा। भारतीय सेना के एक जवान को भी नहीं बख्शा। थोड़ी देर में उस जवान के पिता भी वहाँ पहुँच गए, तब कुछ युवकों ने कहा कि ‘इनसे पूछिए। इनको भी मारा है।’ इस पर बुजुर्ग ने उन युवाओं को लताड़ लगाई कि ‘क्यों झूठ बोलते हो। मुझे कहाँ पीटा।’

“आठ थानों की पुलिस आई थी। ऐसे में क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि ग्रामीणों ने पहले कुछ किया होगा? पुलिस ने गालियों और पिटाई के दम पर जब उन पर अत्याचार शुरू किया तब ग्रामीणों ने उन्हें खदेड़ा है। न किसी के पास गैंती थी, न फावड़ा और न कोई लाठी-डंडा। लेकिन पुलिस और वीडीए के कर्मचारी झूठे मुकदमे को मजबूत बनाने के लिए फर्जी सबूत बना रहे हैं।”

इस गाँव के रहने वाले डॉ. विजय नारायण वर्मा, जिन्हें पूछते हुये हम बैरवन पहुँचे थे, ने कहा कि मुझे तहसील जाना पड़ेगा। वहाँ ग्यारह बजे से धरना है। फिर उन्होंने दो युवकों को हमें गाँव में लोगों से मिलाने को कहा और राजातालाब तहसील के लिए रवाना हो गए।

बर्बरता की गवाही देता गाँव

रेलवे लाइन पार कर जैसे ही हम गाँव में दाखिल हुये तो वहाँ कई घरों में ताले लगे थे। पूछने पर लोगों ने बताया कि सबेरे पुलिस ने फ्लैग मार्च किया और गालियाँ देते हुये लोगों को बाहर निकलने से मना किया। लोग बता रहे थे कि छोटकापुरा में चौरा मंदिर के पास पुलिस ने कैंप किया है और वे कभी भी आ सकते हैं।

हमें देखकर सुखदेई नाम की एक बुजुर्ग स्त्री पास आई और रोते हुये यह बताया कि उनके बेटे को घर के भीतर से खींचकर मारा और उठा ले गए। वह रोने लगीं और कहने लगीं कि मेरा बेटा मजदूरी करता है, लेकिन उसे बिना किसी कारण पीटा। वह अपने बच्चे को खिला रहा था। पुलिस वालों ने बच्चे को उठाकर फेंक दिया और बेटे को पीटने लगे। उस समय वह खाना भी नहीं खाया था। अभी पता नहीं कैसे होगा? पता नहीं कहाँ ले गए?’ वहाँ मौजूद लोगों ने कहा कि इनके पास खेत भी नहीं है। ये आबादी की ज़मीन में रहती हैं। मजदूरी करके जीवन चलाती हैं।

पुलिस की मार से टूटे दरवाजे के पास बैठी महिला और बर्बरता की चर्चा करते ग्रामीण

धीरे-धीरे अन्य महिलाएं भी अपने-अपने घरों से बाहर निकल आईं। हर महिला किसी न किसी रूप में पुलिस बर्बरता की शिकार थी। उन महिलाओं ने दो घर आगे के पड़ोस की ओर इशारा करते हुये बताया कि वहाँ दो लोगों की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हुई थी और अड़ोस-पड़ोस के सभी लोग वहाँ जमा थे। पुलिस वाले आए और वहाँ मौजूद हर व्यक्ति को बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया। गमी के माहौल में लोग पिटते रहे और यह बताने पर भी उन्हें नहीं छोड़ा गया कि इस घर में आज ही दो लोगों की मौत हो गई है।

इसी तरह एक परिवार में शादी थी। वहाँ मौजूद मेहमानों पर भी लाठीचार्ज किया गया जिसमें कइयों को गंभीर चोटें आईं। कई घरों और शौचालयों के दरवाजे लाठियों से तोड़ दिये गए थे। कई घरों के चूल्हे-रसोई घुसकर तोड़े गए थे। थोड़ा और आगे बढ़ने पर कुर्सी पर बैठे एक विकलांग व्यक्ति ने बताया कि मैं तो भाग भी नहीं सकता था, इसलिए मुझे जितनी लाठियाँ मार सकते थे उतना मारा और गालियाँ दीं। वहीं पर मौजूद साठ वर्षीय महेंद्र पटेल ने अपने टूटे हुये हाथ दिखाये और कहा कि ‘मेरे हाथों और पैरों पर तब तक लाठियाँ मारते रहे जब तक मैं गिरकर बेहोश नहीं हो गया।’

पुलिस ने घरों में घुसकर मचाया तोड़-फोड़

सँकरी गलियों वाले इस गाँव की बसावट ऐसी है कि रेलवे लाइन और गाँव के दक्षिण दिशा से घेर लिया जाय तो किसी को कहीं और भागने का रास्ता भी नहीं मिल सकता। लोगों ने बताया कि पुलिस ने दोनों ओर से हमला किया था इसलिए किसी के सामने घर में छिपकर दरवाजा बंद कर लेने के अलावा कोई चारा नहीं था। लेकिन यहाँ भी कोई बच नहीं सका। लाठियों से दरवाजे पीटे गए और टूट जाने पर घरों से खींचकर उन पर लाठियाँ बरसाई गईं।

एक महिला ने बताया कि दो दिन पहले मेरे घर में शादी थी। बेटी की बारात आई थी। सब लोग थके हुये थे और आराम कर रहे थे। जब पुलिस ने हमला किया तब मेरा बेटा और पति छत के ऊपर भागे लेकिन पुलिस वाले वहाँ से भी उनको पकड़ लाये और बुरी तरह मारा। मैं गिड़गिड़ाती रही, लेकिन पुलिस को दया न आई। दोनों को घसीटते हुये अपने साथ ले गए।

पुलिस की पिटाई के शिकार कल्लू पटेल की नाक पर पट्टी बँधी थी। उन्होंने बताया कि ‘करनाडांडी में लोग ज़मीन की घेराबंदी के लिए आए थे। वहाँ भी पुलिस ने भरसक लाठियाँ चलाईं, जिसके विरोध में गाँव वालों ने भी ढेले-पत्थर उठाकर फेंके। उसके बाद पुलिस इस गाँव में आई और लोगों को मारना-पीटना शुरू कर दिया। मुझे घर में घुसकर मारा। अभी मुझे सात टाँके लगे हैं।’

बुजुर्गों ने बताई पुलिस और VDA कर्मियों की हैवानियत

कल्लू ने बताया कि ‘करनाडांडी में लोगों ने पहले मुआवजा ले लिया था। यहाँ के किसानों ने नहीं लिया। वे 2013 के कानून के हिसाब से मुआवजा चाहते हैं। इसलिए अभी तक किसी बहकावे में नहीं आए हैं और आंदोलन कर रहे हैं। यह हमला दहशत पैदा करने के लिए किया गया है, ताकि किसान डरकर पुराने रेट पर अपनी ज़मीनें दे दें।’

आगे कैंप है अगर पुलिस ने देखा और दौड़ाया तो हम भाग जाएंगे

बैरवन बड़ापुरा से जब हम छोटकापुरा की ओर चलने लगे तो हमारे साथ चल रहे दोनों युवकों ने कहा कि आगे हम नहीं जाएंगे। आप लोग जाइए। आगे चौरा मंदिर पर पुलिस ने कैंप लगाया है। वे हमें देखते ही दौड़ा लेंगे। हमारे कहने पर कि रास्ता बता दीजिये तो उन्होंने कहा- ठीक है चलिये, मगर पुलिस ने हमें देखा और दौड़ाया तो हम भाग जाएंगे।’

निचाट दोपहरी में गाँव के सिवान में तीन जेसीबी से गड्ढे खोदे जा रहे थे। दर्जनों लोग वहाँ बाड़ (Fence) लगा रहे थे। पता चला कि वे वाराणसी विकास प्राधिकरण के कर्मचारी हैं। उस समय वहाँ पुलिस नहीं थी, इसलिए हमारे मार्गदर्शक दोनों युवा छोटकापुरा तक आए और वहाँ मौजूद दूसरे युवक से कहा कि इनको उन महिलाओं से मिलवा दीजिये जो घायल हुई हैं। फिर वे तुरंत ही वहाँ से लौट गए।

जमीन खो जाने के ग़म में मायूस बैठीं घायल महिलाएं

उस युवक ने बताया कि ‘दो घरों के बाद चौरा मंदिर है, जहां पुलिस का तम्बू है। ज़ोर से मत बोलिएगा नहीं तो वहाँ तक आवाज जाएगी।’ सामने एक कमरे के मकान के दरवाजे के प्लाई की ऊपरी परत कई जगह से टूटी हुई थी। पता चला पुलिस ने डंडों के प्रहार से इसे तोड़ा है। कमरे में एक युवती थी जो बुलाने पर आई। उसने बताया कि उसके भाई को कल पुलिस ने बेरहमी से मारा और उठा ले गई। अभी तक उसका कोई पता नहीं है।

उस युवती ने बताया कि ‘आज सुबह भोर में ही पुलिस ने दरवाजा पीटा और गालियाँ दी। मुझसे कहा कि ‘किससे मरवा रही हो? कहाँ गया तेरा भाई।’ गुस्से में युवती के आँसू निकल पड़े। उसने कहा- ‘बताइये, मैं अपने पिता के घर में हूँ और पुलिस के लोग यह क्या कह रहे हैं? आखिर हमारा कसूर क्या है?’

पुलिस की दहशत से मकानों में लग गए ताले

यहाँ भी इक्का-दुक्का लोगों के अलावा कोई नहीं था। मकानों के दरवाजों पर ताले लटक रहे थे। वहां मौजूद महिला ने कहा कि मेरा फोटो मत खींचो। वह दूर चली गई, पूछने पर नाम भी नहीं बताया। थोड़ी देर बाद कहने लगी कि गाँव में पुलिस आई तो सबको दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। घर में घुसकर औरतों से पूछ रहे थे कि साली, बताओ कहाँ गया तेरा आदमी। घर के बच्चे रात भर डर के मारे रोते रहे। सो नहीं पाये। आज सुबह उनको रिश्तेदारी में भेज दिया। यहाँ तो घर में चूल्हा भी नहीं जला है। क्या करते?

वहीं, मौजूद विजय कुमार पटेल ने बताया कि जिन किसानों ने ज़मीन का मुआवजा नहीं लिया है उनके भी खेतों पर जब कब्जा होने लगा तो उन सबने ऐतराज किया। आठ थानों की पुलिस आई थी। पुलिस तो डंडे के नशे में चूर थी और किसानों का ऐतराज उनको बर्दाश्त नहीं हुआ। पहले गालियाँ दी और धक्का-मुक्की की फिर गाँव वाले भी उनको भगाने पर उतर आए और ढेले मार-मार कर उनको भगा दिया।

खोदाई करने के बाद खड़ी जेसीबी

घटना के दिन के एक वीडियो फुटेज में भी यही दिख रहा है कि भारी संख्या में पुलिस बल और जेसीबी के साथ वीडीए के लोग आए और जेसीबी से जमीन की खोदाई करने लगे। इस बात का विरोध हुआ और थोड़ी ही देर में अनेक युवा खेतों के ढेले मारकर पुलिस और प्राधिकरण कर्मियों को खदेड़ने लगे। खून से लथपथ एक महिला ज़मीन पर गिरी हुई थी। जीटी रोड बाइपास के पास बुलडोजर के साथ पुलिस मौजूद है। इसके कुछ देर बाद पुलिस ने बैरवन छोटकापुरा और बड़ापुरा दोनों गाँवों में एक साथ हमला किया, जिससे किसी को बचने का मौका न मिल सके।

सत्रह ग्रामीणों के ऊपर हत्या के प्रयास सहित दस धाराओं में मुकदमा

वीडीए के जूनियर इंजीनियर 56 वर्षीय जय प्रकाश गुप्ता ने इस घटना के बाद रोहनिया थाने में एक अज्ञात समेत सत्रह लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ कराई है, जिसमें रतन पटेल पुत्र दशरथ, जिऊत पटेल पुत्र महेंद्र, गौरीशंकर पुत्र मूलचंद, जय प्रकाश पुत्र रघुवर, जयशंकर पुत्र स्व. जगरनाथ, अजय पुत्र जयशंकर, दिलीप पटेल पुत्र शीतला प्रसाद, संदीप पटेल पुत्र श्यामजीत, बबलू पुत्र छानू लाल, राम दुलारी पत्नी गौरीशंकर, बिहारी लाल पुत्र छकौरी, अमलेश पटेल पुत्र तिलक, राजेश मिश्रा पुत्र ब्रह्मदेव उर्फ झगड़ू, अमलेश कुमार पुत्र छोटेलाल, मुन्ना लाल पुत्र शंकर, संजय पटेल पुत्र दयाराम शामिल हैं। इन सभी के ऊपर भा.द.वि. की धारा 147, 148, 149, 307, 323, 504, 506, 332, 353 और आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 1932 की धारा 7 लगाई गई है।

एफआईआर की कॉपी

एफआईआर में कहा गया है कि अभियुक्त दिनांक 16 मई को 8 बजे रोहनिया तथा आस-पास के थानों की पुलिस के साथ करनाडांडी में 48 हेक्टेयर भूमि की पैमाइश के लिए गए थे तभी उक्त व्यक्ति 100 से 120 अज्ञात लोगों के साथ लाठी, डंडे, लोहे की रॉड, गैंती, फावड़ा लेकर आए और गोलबंद होकर वीडीए कर्मी और पुलिस के ऊपर जानलेवा हमला कर दिया। इससे कई वीडीए कर्मी और पुलिस के जवान गंभीर रूप से घायल हो गए। कानून व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई। इसलिए शांति व्यवस्था बनाने के लिए उपरोक्त के खिलाफ विधिक कार्यवाही की जाय।

हालांकि मौके से प्राप्त उस दिन के वीडियो फुटेज में ढेलेबाजी जरूर दिख रही है लेकिन किसी के पास लाठी, डंडे, लोहे की रॉड, गैंती, फावड़ा जैसी कोई चीज नहीं दिख रही है। ढेलेबाजी भी किन कारणों से शुरू हुई, यह जांच का विषय है।

डॉ. विजय नारायण वर्मा कहते हैं कि आठ थानों की पुलिस आई थी। ऐसे में क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि ग्रामीणों ने पहले कुछ किया होगा? पुलिस ने गालियों और पिटाई के दम पर जब उन पर अत्याचार शुरू किया तब ग्रामीणों ने उन्हें खदेड़ा है। न किसी के पास गैंती थी, न फावड़ा और न कोई लाठी-डंडा। लेकिन पुलिस और वीडीए के कर्मचारी झूठे मुकदमे को मजबूत बनाने के लिए फर्जी सबूत बना रहे हैं।

कहाँ फंसा है पेंच

अपनी ही ज़मीन पर अपराधी बना दिये जाने वाले गाँववासियों के रक्तरंजित होने की इस कहानी की शुरुआत तो काफी पहले से हो गई थी लेकिन उसे अंजाम अब दिया गया है। यह ध्यान देने की बात है कि पूर्वांचल में जहाँ-जहाँ सरकारी योजनाओं के लिए ज़मीन ली जा रही है वहाँ यह कार्य ग्रामीणों की आम सहमति की बजाय ज़ोर-ज़बरदस्ती से किया जा रहा है। हर जगह किसान इसी बात का विरोध कर रहा है और हर जगह प्रशासन इसी तरह धूर्तता और बर्बरता से ज़मीन हड़प लेना चाहता है।

बैरवन में भी यही हुआ है। घायल कल्लू पटेल कहते हैं कि ज़मीन देने से मना कोई नहीं कर रहा है लेकिन सबको 2013 के अनुसार मुआवजा चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम लोग अपनी ज़मीन गँवाकर सड़क पर आ जाएंगे।

गाँव में फैला सन्नाटा

गौरतलब है कि ‘सन 2001 में बैरवन, मिल्‍कीचक, करनाडांडी और सरायमोहना नामक चार गांवों की 82 हेक्‍टेयर से ज्‍यादा जमीनों का अधिग्रहण शुरू हुआ था। इसकी जद में करीब 1200 किसान आ रहे थे। इनमें 771 किसानों को करीब 35 करोड़ का मुआवजा बांटा जा चुका है। इन किसानों की जमीनों पर 2003 में ही वीडीए का नाम दाखिल हो चुका था। कुल 413 किसानों ने अब तक जमीन का मुआवजा नहीं लिया है।

बीस साल पहले की व्‍यवस्‍था यह थी कि दो करोड़ रुपये से ऊपर की किसी परियोजना के लिए जमीन राजस्‍व बोर्ड की मंजूरी से मिला करती थी। इसी के मद्देनजर 2008 में राजस्‍व बोर्ड को ट्रांसपोर्ट नगर का प्रस्‍ताव भेजा गया था। उसी साल राज्‍य सरकार ने भूमि अधिग्रहण के मानकों में संशोधन कर दिया, जिसके तहत अब 10 करोड़ रुपये तक की परियोजना के लिए जमीन को मंजूरी देने का अधिकार प्रखण्‍ड आयुक्‍त के पास आ गया। लिहाजा, यह मामला आयुक्‍त के पास चला गया।

इसके बावजूद परियोजना के लिए जमीन नहीं मिल सकी, क्‍योंकि किसानों ने दावा कर दिया कि उन्‍हें पुरानी दरों के हिसाब से मुआवजा मिला है। इसके बाद 2009 में यह तय हुआ कि जिलाधिकारी अपने स्‍तर पर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया चलाएं और यदि यह संभव न हो पाए तो मामला राज्‍य सरकार को भेजा जाए। आयुक्‍त के आदेश पर जिले के अफसर भारी पुलिसबल के साथ 2009 में मोहनसराय ज़मीन कब्‍जाने गए थे। किसानों के भारी विरोध के चलते वे बैरंग लौट आए थे। उस वक्‍त प्रशासन ने कहा था कि बचे हुए 400 किसानों में से 104 किसानों ने मुआवजा ले लिया है।

लाठीचार्ज के डर से पसरा सन्नाटा

2009 के बाद से मामला काफी लंबे समय तक शांत रहा। बचे हुए किसानों में से बैरवन के 267 किसानों ने उच्‍च न्‍यायालय में 2011 में एक याचिका दायर कर दी। फिर 2013 में नया पुनर्वास कानून आया। उसके बाद किसान नई दर से चार गुना मुआवजे की मांग करने लगे। चूंकि पुरानी दर पर 45 हेक्‍टेयर जमीन अर्जित की जा चुकी थी तो प्रशासन इस मसले पर फंस गया। इस मामले में बनारस की ही रिंग रोड परियोजना एक नज़ीर है, क्‍योंकि उसमें पुरानी दर को दरकिनार कर के नई दर पर जमीन ली गई थी। संयोग यह है कि बनारस में ट्रांसपोर्ट नगर और रिंग रोड की परियोजना एक ही समय में बनी थी।

बीते जनवरी माह में जब आयुक्‍त और जिलाधिकारी ने नए सिरे से परियोजना के लिए जमीन कब्‍जाने का आदेश जारी किया, तब जाकर किसान फिर से सक्रिय हुए। कचहरी पर इन किसानों ने आंबेडकर प्रतिमा के सामने किसान अदालत लगाई। यहां किसानों की ओर से यह जानकारी सामने आई कि वाराणसी विकास प्राधिकरण कागजात में 17 अप्रैल, 2003 से ही बैरवन की जमीनों पर अपना कब्जा दिखा रहा है, जबकि मौके पर स्थिति यह है कि बैरवन में बाकायदा खेती हो रही है। भूमि अर्जन एवं पुनर्वास कानून 2013 के खण्ड 24, धारा 5(1) और सेक्शन 101 के अनुसार अगर पांच बरस में कोई योजना विकसित होकर चालू नहीं होती है तो अपने आप निरस्त मानी जाएगी। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि यह स्थिति पुनर्वास कानून 2013 का खुला उल्लंघन है। स्रोत: द फॉलोअप स्टोरी, 16 मई 2023)’

पुलिस की लाठीचार्ज के बाद अपनी सलामती वास्ते घर बंद कर अन्यत्र चले गए लोग

हमारे ऊपर यह अत्याचार षड्यंत्र के तहत हुआ है

बैरवन गाँव फूलों की खेती के लिए जाना जाता है। कुर्मी बहुल इस गाँव में प्रायः छोटी और मध्यम जोत के किसान हैं। कम जोत होने के बावजूद फूलों की खेती से उनकी आजीविका चल जाती है। ट्रांसपोर्ट नगर योजना में ज़मीन चली जाने से न केवल उनकी आजीविका खत्म हो जाने वाली है बल्कि ज़मीन का मुआवजा कम होने से नई जगह पर घर बनवा पाना भी कठिन होगा।

इन्हीं आशंकाओं को लेकर किसानों ने आंदोलन शुरू किया और यह लंबे समय से चल रहा है। किसानों की बुनियादी मांग है कि संसद और संविधान द्वारा बनाई गई भूमि अधिग्रहण नीति के तहत उनकी ज़मीनें ली जाएँ। 28 फरवरी, 2023 वीडीए उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में जिले के प्रशासनिक महकमा और ट्रान्सपोर्ट नगर योजना से प्रभावित किसानों के हक अधिकार के लिये संघर्षरत मोहनसराय किसान संघर्ष समिति के संरक्षक विनय शंकर राय ‘मुन्ना’ के नेतृत्व में किसानों की वार्ता विकास प्राधिकरण स्थित सभागार में दोपहर एक बजे से तीन बजे तक चली, जिसमें सर्वसम्मति से निर्णय हुआ कि भू-अर्जन एवं पुनर्वास कानून 2013 का पालन किसान एवं जिला प्रशासन दोनों करेंगे। किसानों ने कहा कि अगर वाराणसी विकास प्राधिकरण एवं जिला प्रशासन सहित सरकार भू-अर्जन एवं पुनर्वास कानून 2013 की प्रक्रिया के तहत सरकार और प्रशासन वैधानिक प्रक्रिया के साथ वार्ता करेंगे तो किसान विकास में बाधक नहीं बनेंगे। लेकिन वीडीए किसानों के साथ पूर्ववर्ती सरकारों एवं प्रशासन की तरह धोखा और साजिश करेगा तो किसान अब आर-पार की लड़ाई लड़ने हेतु कृतसंकल्पित हो चुके हैं। किसानों ने एकस्वर में वीडीए उपाध्यक्ष एवं सचिव से धरातल पर स्थिति का मुआयना करने एवं भू-अर्जन तथा पुनर्वास कानून के तहत प्रक्रिया अपनाने का आग्रह किया है। ट्रान्सपोर्ट नगर योजना से प्रभावित किसानों ने एक स्वर में भूमि अर्जन एवं पुनर्वास कानून 2013 का पालन करने की प्रतिबद्धता दिखायी और मांग की कि प्रशासन एवं सरकार भी उक्त कानून का पालन करे। किसानों ने कहा कि हम विकास में बाधक नहीं बनना चाहते हैं लेकिन प्रशासन और शासन को भी कानून के तहत ही कोई प्रक्रिया अपनानी होगी। भूमि अर्जन कानून 2013 कहता है कि योजना रद्द हो तो रद्द करिये। भूमि अर्जन कानून कहता है कि भौतिक कब्जा वर्तमान सर्किल दर या उच्च दर से वर्तमान बिकी हुई जमीन का चार गुना मुआवजा देकर ही लेना है, तो चार गुना मुआवजा दीजिये। साथ ही पुनर्वास हेतु मकान, पंपिग सेट, व्यवसायिक प्रतिष्ठान, पेड़ इत्यादि का कानून के अनुसार प्रतिकर देना है, तो सबका कानूनन मुआवजा निर्धारित करते हुये 2013 कानून के आधार पर योजना हेतु प्रक्रिया अपनायी जाए। (गाँव के लोग डॉट कॉम, 28 फरवरी 2023)।

लाठीचार्ज के दौरान पुलिस ने खूब मचाया तांडव

बैरवन गाँव के किसान कहते हैं कि हम तो जायज़ मांग कर रहे हैं क्योंकि ज़मीन चली जाने के बाद हम तो पंगु हो जाएंगे। अगर हमारा पुनर्वास ठीक से नहीं हुआ तो हम क्यों दर-दर की ठोकरें खाने को तैयार हों? इसका जवाब प्रशासन के पास नहीं है।

भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन के उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम

भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन के उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 को 26 सितंबर, 2013 राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त हुई। इस अधिनियम का विस्तार जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में है।

इस अधिनयम के तहत जब सरकार अपने स्वयं के उपयोग, अधिकार और नियंत्रण के लिए (जिसमें पब्लिक सेक्टर उपक्रम और लोक प्रयोजन शामिल है) यदि ज़मीन का अधिग्रहण करेगी तब उसे उस ज़मीन पर पहले से रह रहे लोगों के पुनर्वास और फिर से व्यवस्थित होने तक के लिए मुआवजा देना होगा।

इस नीति के तहत थलसेना, नौसेना और वायुसेना तथा केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल, राज्य पुलिस अथवा जनसाधारण की सुरक्षा के महत्वपूर्ण किसी कार्य के लिए ज़मीन लेने पर विस्थापित लोगों के पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन के लिए पारदर्शिता के साथ उचित मुआवजा देना होगा।

यह नीति भारत सरकार के आर्थिक कार्य विभाग (अवसंरचना अनुभाग) की तारीख 27 मार्च 2012 की अधिसूचना संख्या 13/6/2009 आईएनएफ में सूचीबद्ध सभी क्रिया-कलापों और मदों पर लागू है। निजी अस्पतालों, निजी शिक्षण संस्थानों और निजी होटलों को इससे बाहर रखा है और वे अपने उपयोग के लिए बाज़ार रेट से ज़मीन खरीदने के लिए स्वतंत्र हैं।

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एक दिहाड़ी मजदूर का जीवन

सरकार द्वारा स्थापित कृषि प्रसंस्करण, कृषि में निवेशों के प्रदाय, गोदाम, वेयर हाउस, कोल्ड स्टोरेज, डेयरी, मछली पालन, मांस उद्योग, औद्योगिक कॉरीडोर, खदान, निर्माण परियोजनाएं, सिंचाई परियोजनाएं, जलशोधन संयंत्र, अनुसंधान परियोजनाएं, अस्पताल, खेल के मैदान, पर्यटन, बस अड्डा, ट्रांसपोर्ट परियोजनाएं, अन्तरिक्ष कार्यक्रम आदि के लिए अधिग्रहित भूमि से विस्थापित होने वाले परिवारों के पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन के लिए यह अधिनियम प्रतिबद्ध है।

ऐसी योजनाओं और परियोजनाओं से प्रभावित कुटुम्बों के पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन का दायित्व सरकार अथवा परियोजनाओं के निर्माण एवं संचालन के लिए उत्तरदायी संस्था का है और इसमें किसी तरह की हीलाहवाली भारतीय संसद, संविधान और भारत के राष्ट्रपति के आदेशों का उल्लंघन अथवा अतिक्रमण है।

“बेशक बैरवन गाँव में पसरा सन्नाटा और अचानक होने वाले पुलिसिया हमले से आशंकित युवा गाँव में रहने की बजाय इधर-उधर बिखर गए हों लेकिन यहाँ की महिलाओं के मनोबल को तोड़ना आसान नहीं है। जो गाँव में रह गई हैं उनसे कहीं अधिक संख्या में वे राजातालाब तहसील में चल रहे धरनास्थल पर पहुँच गई हैं। अपने हाथों में तख्तियाँ लिए उन्होंने कल मिली दर्दनाक चोटों को भी भुला दिया है और जब इंकलाब का नारा उठता है तो वे बेसाख्ता ज़िंदाबाद कहती हैं।”

भारत सरकार द्वारा विशिष्ट श्रेणी में नामित किए गए परिवारों के विस्थापन की स्थिति में सरकार अथवा उत्तरदायी संस्था का दायित्व है कि वह उन परिवारों को घर बनाकर दे।

इस यह अधिनियम की धारा 3 के खंड (ग) के उपखंड (1) और (5) में स्पष्ट कहा गया है कि प्राइवेट कंपनियों के लिए ज़मीन लेने के लिए उपरोक्त परिभाषा के तहत प्रभावित परिवारों के कम से कम अस्सी प्रतिशत लोगों की सहमति आवश्यक है।

इसी तरह पीपीपी अर्थात पब्लिक प्राइवेट भागीदारी परियोजनाओं के लिए ज़मीन लेने के लिए कम से कम 70 प्रतिशत परिवारों की सहमति अनिवार्य है। ऐसे परिवार जिनकी ज़मीन अथवा घर का अधिग्रहण किया गया हो, ऐसे परिवार जिनके पास किसी भूमि का स्वामित्व न हो लेकिन उस भूमि पर भूमि अर्जन से तीन वर्ष पहले से बटाईदारी अथवा ठेके पर खेतीबारी अथवा दुकान करते हों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों, वन के निवासियों, भूमि अर्जन से तीन वर्ष पहले से जंगलों और तालाबों पर निर्भर परिवार, वनोपज इकट्ठा करने वाले परिवार, आखेटक और मछली पकड़ने वाले परिवार सरकार द्वारा पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन के लिए अधिकृत हैं।

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इस अधिनियम के तहत मुआवजे की रकम न्यायालय द्वारा निर्देशित सर्किल रेट के हिसाब से तय होगी। इसमें खड़ी फसलों, रिहायशी मकानों तथा पेड़ों के हुये नुकसान की भरपाई अलग से होगी। भूमि अर्जन से जिन लोगों की आजीविका प्रभावित होगी उनको उचित भरपाई करनी होगी।

यह अधिनियम भूमि अर्जन से पहले उन सामाजिक प्रभावों और जनता के हितों का अध्ययन करने पर बल देता है जो भूमि अर्जन से संभावित हैं। इसका तात्पर्य यह है कि भूमि अर्जन की अधिसूचना जारी होने के पहले यह जान लेना आवश्यक है कि शुरू होने वाली परियोजना से जनता के कितने हितों की पूर्ति होती है तथा इस परियोजना का सामाजिक प्रभाव क्या होगा? सांस्कृतिक रूप से इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? क्योंकि पुनर्वास केवल लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ठेल देना नहीं है। यह मानव समाज के एक हिस्से के भविष्य का भी सवाल है।

यह अध्ययन एकतरफा नहीं होगा बल्कि पंचायत, ग्राम सभा, नगर पालिका अथवा नगर निगम का पर्याप्त प्रतिनिधित्व होना चाहिए। इस अध्ययन को शुरू करने से पहले ग्राम पंचायत, ग्राम सभा, नगर पालिका, नगर निगम, जिला कलेक्टर, एसडीएम और तहसील कार्यालय में एक अधिसूचना उपलब्ध कराई जाएगी। यह अधिसूचना स्थानीय भाषा में होगी ताकि प्रभावित होने वाले लोग इसके निहितार्थ अच्छी तरह समझ सकें।

यह अध्ययन छह महीने में पूरा होना ज़रूरी है और इसके निष्कर्ष और रिपोर्ट को धारा 6 के अंतर्गत जनसाधारण को उपलब्ध कराना आवश्यक है। यह गहन अध्ययन का विषय है कि मोहनसराय ट्रांसपोर्ट नगर परियोजना के लिए ज़मीन लिए जाने की प्रक्रिया में इनमें से कितने मानकों का उपयोग किया गया है।

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बनारस में कुछेक पिछड़े और दूरदराज के इलाकों को छोड़कर लगभग सभी जगहों पर ज़मीन का रेट 20-30 लाख रुपये प्रति बिस्वा है जबकि वीडीए बैरवन, मिलकीचक और करनाडांडी के किसानों को एक लाख रुपये प्रति बिस्वा की दर से मुआवजा देने पर अड़ा है। जिन किसानों ने पहले मुआवजा ले लिया था लेकिन जिनकी ज़मीन लंबे समय तक अधिग्रहित नहीं की गई थी, अब वे भी चाहते हैं कि उन्हें 2013 के कानून के हिसाब से मुआवजा मिले। जीटी रोड पर सैयद मज़ार के पास चाय-पान की दुकान चलाने वाली गंगा देवी बताती हैं कि उनके पास चार बिस्वा ज़मीन थी और काफी पहले उनको उसका चार लाख मुआवजा मिला था।

लाठीचार्ज एक षड्यंत्र है

जिन किसानों ने मुआवजा नहीं लिया उनमें से बैरवन गाँव के 267 किसानों ने 2009 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी और अपनी ज़मीन बचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। मामले का कोई भी संतोषजनक हल नहीं निकल पाया है। बैरवन के किसानों के प्रतिरोध के आगे वीडीए की मनमानी नहीं चलने पायी। किसान नेता योगीराज पटेल कहते हैं कि ‘किसानों के प्रतिरोध को कुचलने के लिए सुनियोजित तरीके से लाठीचार्ज किया गया। यह एक षड्यंत्र है जिससे लोगों का मनोबल टूट जाए और वे दहशत में आ जाएँ।’

बेशक बैरवन गाँव में पसरा सन्नाटा और अचानक होने वाले पुलिसिया हमले से आशंकित युवा गाँव में रहने की बजाय इधर-उधर बिखर गए हों लेकिन यहाँ की महिलाओं के मनोबल को तोड़ना आसान नहीं है। जो गाँव में रह गई हैं उनसे कहीं अधिक संख्या में वे राजातालाब तहसील में चल रहे धरनास्थल पर पहुँच गई हैं। अपने हाथों में तख्तियाँ लिए उन्होंने कल मिली दर्दनाक चोटों को भी भुला दिया है और जब इंकलाब का नारा उठता है तो वे बेसाख्ता ज़िंदाबाद कहती हैं।

मोहनसराय किसान संघर्ष समिति के बैनर तले धरनारत ग्रामीण

मंच पर वक्ताओं की भीड़ है। मोहनसराय किसान संघर्ष समिति के संरक्षक विनय शंकर मुन्ना इधर-उधर घूमकर व्यवस्था देख रहे हैं। वे आक्रोश से भरे हुये हैं और कहते हैं कि ‘मोदी को बनारस के किसानों ने संसद में भेजा लेकिन मोदी के कार्यकाल में ही किसानों की ज़मीन लूटी जा रही है। वही किसान अब मोदी को गर्त में मिलाएंगे और उनके चेहरे पर थूकेंगे। यह सब गुजरात के व्यवसायियों के लिए किया जा रहा है। किसान इसके खिलाफ खड़ा हो चुका है और उच्च न्यायालय ने भी आज इस पर मुहर लगा दी है।’

चंदौली के पूर्व सांसद रामकिशुन भी मौजूद हैं। वह कहते हैं कि ‘एक तो किसान जब अपनी ज़मीन देना नहीं चाहते तो कैसे ली जा सकती है? दूसरे बहुत ही सस्ती दर से ज़बरदस्ती कब्जा करने का जो प्रयास किया है, उसी के चलते बेकसूर महिलाओं, नौजवानों, बूढ़ों और बच्चों पर बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज किया गया है। यह निंदनीय है। जिले में इसके खिलाफ एक बड़ा आंदोलन किया जाएगा।’

फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्थगन आदेश दे दिया है लेकिन यह वक्फ़ा बहुत लंबा नहीं है!

गाँव के लोग
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1 COMMENT
  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति
    तर्क पूर्ण विश्लेषण
    दुनिया के मजदूरों एक हो
    देश के ओबीसी किसान मजदूर एक हो

    सादर

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