जो इश्क करना नहीं जानते, उनके लिए यह वाकई में कोई अनोखी बात होगी। लेकिन जो करते हैं, उनके लिए तो यह बिल्कुल अलहदा है। वैसे इश्क होता भी अलग तरह का ही है। इसका कोई एक रूप नहीं है और ना ही करने का कोई एक निश्चित तरीका है। वजह यह कि इश्क उन अहसासों का समुच्चय है, जो किसी के हृदय में किसी के प्रति अकृत्रिम तरीके से उत्पन्न होते हैं। अहसासों को कृत्रिम तरीके से उत्पन्न किया भी नहीं जा सकता।
दरअसल, मैं आज इश्क की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि कल रात मैं एक खास तरह के इश्क को समझने की कोशिश कर रहा था। और मुझे यह मौका प्रदान किया पटना के मेरे मित्र अनंत की नवीनतम कृति दो गुलफामों की तीसरी कसम ने। अनंत लेखक भी हैं और प्रकाशक भी। ये कीकट प्रकाशन, पटना के मालिक भी हैं। अभी दो दिन पहले अनंत मिलने मेरे अस्थायी आवास पर आए थे।
[bs-quote quote=”रेणु इश्कबाज आदमी थे। लेकिन वे अपनी कहानी मारे गए गुलफाम के नायक हिरामन की तरह इश्कबज नहीं थे। मैं यह तो नहीं कह सकता कि हीराबाई से हिरामन का इश्क एक तरह का पाखंड था। मैं पाखंड इसलिए कह रहा हूं क्योंकि यदि आप अपने इश्क को अभिव्यक्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब साफ है कि आप जिम्मेदारी से भाग रहे हैं। इश्क मनुष्य को जिम्मेदारियां देता है। हिरामन अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहा था। मैं हीराबाई को कटघरे में इसलिए नहीं खड़ा करता क्योंकि वह तो हिरामन के साथ जीना चाहती थी। लेकिन कैसे जीती जब हिरामन के मुंह में शब्द ही नहीं थे।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
तो अनंत ने अपनी किताब में रेणु की एक और प्रेम कहानी का जिक्र किया है। उनके मुताबिक यह कहानी तब शुरू हुई जब तीसरी कसम की शूटिंग चल रही थी। वहीदा रहमान जो कि फिल्म में हीराबाई का किरदार निभा रही थीं, की बहन साईदा रहमान उनकी जुल्फों का ख्याल रखती थीं। ख्याल रखने का मतलब केश विन्यास और उन्हें सुंदर बनाना। अब रेणु भी लंबी जुल्फों के स्वामी थे। चेहरा तो आकर्षक था ही। साईदा जी को लगा कि रेणु भी फिल्म में अभिनय करेंगे और इसलिए जुल्फें बढ़ा रखी हैं। लेकिन रेणु तो शूटिंग स्थल पर निर्माता शैलेंद्र और निर्देशक बासु भट्टाचार्य आदि के साथ दिन-दिन भर बैठे रहते। एक दिन साईदा जी ने उनसे पूछ ही लिया। अनंत ने रेणु-साईदा की बातचीत को रेणु की आत्मकथात्मक शैली में प्रस्तुत किया है। अब कुछ पलों की बातचीत का असर तो होना ही था। रेणु और साईदा करीब आए और इतने करीब आए कि लोगों की नजर में ‘नाइस पेयर’ बन गए।
[bs-quote quote=”रेणु भी लंबी जुल्फों के स्वामी थे। चेहरा तो आकर्षक था ही। साईदा जी को लगा कि रेणु भी फिल्म में अभिनय करेंगे और इसलिए जुल्फें बढ़ा रखी हैं। लेकिन रेणु तो शूटिंग स्थल पर निर्माता शैलेंद्र और निर्देशक बासु भट्टाचार्य आदि के साथ दिन-दिन भर बैठे रहते। एक दिन साईदा जी ने उनसे पूछ ही लिया। अनंत ने रेणु-साईदा की बातचीत को रेणु की आत्मकथात्मक शैली में प्रस्तुत किया है। अब कुछ पलों की बातचीत का असर तो होना ही था। रेणु और साईदा करीब आए और इतने करीब आए कि लोगों की नजर में ‘नाइस पेयर’ बन गए। ” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
बहरहाल, अनंत की नई किताब में कुछेक खामियां हैं। एक तो किताब आवरण पृष्ठ और बेहतर हो सकता था। दूसरी खामी वर्तनी आदि की त्रुटियां हैं। तीसरी बात हालांकि कोई खामी नहीं है, लेकिन यदि इस किताब के प्रारंभ में कहीं जिक्र होता कि यह किताब रेणु की जयंती के सौवें वर्ष में लिखी गई है तो इसका एक खास महत्व भी होता। फिर भी उनकी किताब खोजपरक है। शैलेंद्र के इश्क के बारे में फिर लिखूंगा। फिलहाल मेरा अपना इश्क, जिसे कुछ ऐसे दर्ज किया।
नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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[…] इश्क ना बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाए…… […]