Sunday, May 19, 2024
होमसंस्कृतिसाहित्यअंधे कुएं में रोशनी की तलाश

ताज़ा ख़बरें

संबंधित खबरें

अंधे कुएं में रोशनी की तलाश

जनवादी लहक के सुपरिचित कवि, लेखक, संपादक हरे प्रकाश उपाध्याय के पहले कविता संग्रह खिलाड़ी दोस्त और अन्य कविताएं आने के लगभग बारह वर्ष उपरांत उनका दूसरा कविता संग्रह नया रास्ता के रूप में हमारे सामने है। हरेप्रकाश की कविताओं की संवेगात्मकता आम जन की पीड़ा विशेषतः हाशिये पर धकेल दिए जा रहे लोगों के दुःख […]

जनवादी लहक के सुपरिचित कवि, लेखक, संपादक हरे प्रकाश उपाध्याय के पहले कविता संग्रह खिलाड़ी दोस्त और अन्य कविताएं आने के लगभग बारह वर्ष उपरांत उनका दूसरा कविता संग्रह नया रास्ता के रूप में हमारे सामने है। हरेप्रकाश की कविताओं की संवेगात्मकता आम जन की पीड़ा विशेषतः हाशिये पर धकेल दिए जा रहे लोगों के दुःख दर्द एवं उनके संघर्षों को गहन भाव के साथ अभिव्यक्त करती है। इनकी कविताएं हमें खंडहर व्यवस्था के रंग-रोगन की परतों को उधेड़ती हुई वास्तविकता के दरपेश खड़ी करती है। अपने समय के यथार्थ व विह्वल हृदय से उपजी हरेप्रकाश की कविताएं न केवल हमें झकझोरती है, बल्कि पुराने रास्तों के बरक्स नए रास्ते पर चलने का आहवाहन भी करती हैं।

संग्रह की पहली ही कविता वर्तमान समय में देश के किसानों की बदस्थिति, उनकी पीड़ा, उनकी हताशा जिसकी परिणति अक्सर आत्महत्यायों में होती है का अत्यंत मार्मिक चित्र प्रस्तुत करती है।

यह भी पढ़ें…

हॉलीवुड डाइवर्सिटी रिपोर्ट 2021 और अमेरिकी जनगणना!

उदारीकरण के दौर में पूंजीवाद के बेलगाम घोड़ों ने प्रजातन्त्र की मुख्य धारा में शामिल, लेकिन अर्थतंत्र में हाशिये पर खड़े लोगों को अपने पैरों तले किस तरह रौंद दिया है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण किसान है। उपभोक्तवादी संस्कृति नें विज्ञापन माध्यमों के बदौलत सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपनी पैठ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन किसान आज भी अपनी कृषि उपज के उचित मूल्य के लिए दर-ब-दर है। इन पंक्तियों में किसानों की पीड़ा और कवि के द्वारा उसकी अभिव्यक्ति की झाँस महसूस होती है ।

अब यह देश

एक ऐसा अंधा कुआँ है

जिसमें जब भी झाँकिए

किसी किसान की लाश  तैरती हुई दिखती है

..

कुएं की जगत पर लोकतंत्र की घास उगी है

जो उदारीकरण के गोबर से लहलहाई है

जिसे आराम से चर रहे हैं वक्त के गधे

यह भी पढ़ें…

लाल रत्नाकर की कलाकृतियों में सामाजिक न्याय की अक्काशी

वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में जब हम देखते हैं तो पाते हैं कि ये जो लोकतंत्र की पीठ पर सवार वक्त के गदहे हैं, ये समाज के हर कोने में दृश्यमान है।  इससे न देश की राजनीति अछूती है और न समाज का प्रबुद्ध वर्ग। ये गदहे विडंबनाओं का ऐसा विचित्र विम्ब उपस्थित कर रहे हैं कि हर बात पाखंड के नकाब में अंदर कुछ और बाहर कुछ दृष्टिगोचर होती है। यह कवितांश देखिए :

जाति तोड़ो तोड़ो जाति

सब कहते हैं तोड़ो जाति

छोड़ो जाति

..

आया लोकतंत्र का महापर्व

जाति को गोलबंद करो

जाति तोड़ो

..

छोड़ो मुँह बंद करो

अपनी जाति का नेता खोजो

अपनी जाति की जनता खोजो

यही समाजवाद है

यही बहुजनवाद है

यही अभिजनवाद है

यही जनवाद है

बहुत गहरा घाव है भरा हुआ मवाद है

कुरेदो इस घाव को अपने धँसे हुए पाँव को ..

अगोरा प्रकाशन की किताबें अब किन्डल पर भी…

वाकई जातिवाद का घाव इतना गहरा है कि उसमें मवाद भर गया है । प्रगतिशीलता के बड़े-बड़े नारों एवं चमकीले इंडो के साये तले जातिवाद की सड़ांध हर तरफ महसूस की जा सकती है।  यह भी  कैसी विडंबना है, कैसा विरोधाभास है कि जो लोग जाति व्यवस्था के सबसे बड़े विरोधी हैं वे भी कहीं न कहीं अपने लाभ के लिए जाति के पैरोकार बने दिखते हैं। जो काम सैकड़ों सालों से ब्राह्मणवादी व्यवस्था कर रही थी, अवसर पाकर वही काम वे भी करने लगते हैं, जो इस व्यवस्था के पीड़ित हैं।

अगोरा प्रकाशन की किताबें अब किन्डल पर भी…

सामान्य रूप से जब दमित , शोषित एवं हाशिये के लोगों की बात होती है तो मजदूर एवं छोटे किसानों तक ही यह चर्चा सीमित होती है लेकिन उदारीकरण के बाद से इस देश में एक तबका ऐसा भी उभर कर आया है जो उपरोक्त किसी भी खांचे में  फिट नहीं बैठता है, लेकिन जिनकी स्थिति एक मजदूर या  एक किसान से कहीं से भी बेहतर नहीं है। यह वर्ग है बड़े शहरों में छोटी सैलरी के साथ प्राइवेट नौकरी करने वालों का। लेकिन  हरे प्रकाश की कविताओं की संवेदना की विस्तृत छाँव में इन्हें भी स्वर मिलता है, जब कवि कहता है :

इनकी जिंदगी में

थोड़ा सा कर्ज, थोड़ा सा बैंक बैलन्स

थोड़ा सा मंजन, घिसा हुआ ब्रश है

बगैर साबुन के साफ कमीज है

पैंट  है , टाइ  है

ऑटो मेट्रो, लोकल ट्रेन और उनक घिसा हुआ पास है

सुबह का दस है शाम का दस है

बाकी सब धूल है,

जो पैर से उड़कर सिर पर

सिर से उड़ कर पैर पर बैठती रहती है

और पूरा शरीर उस उड़ान की बीट  से पटा रहता  है।

कम वेतन में नौकरी करती युवा पीढ़ी दो वक्त के खाने और एक कमरे का इंतजाम करते हुए कब बूढ़ी हो जा रही है, उन्हें इसका भास ही नहीं होता। आज लाखों की संख्या में हरेक वर्ष निकल रही  इंजीनियरों की फौज देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गुलामी करने के लिए बाध्य है। दिल्ली, बंगलोर जैसे बड़े नगरों में शोषित होकर भी शोषित नहीं दिखने की कोशिश में इन युवाओं की जिंदगी आज की सबसे बड़ी त्रासदी व विडंबना है। हरेप्रकाश की कविता अत्यंत संजीदगी से हमारा ध्यान इस ओर आकृष्ट करती है ।

हरेप्रकाश की कविताओं में अंतर्निहित सामाजिक चेतना, खुशियों एवं दुखों का भाव संसार, मनोजगत का भूगोल  अत्यंत ही आकर्षक रूप से अभिव्यंजित होते हैं। वे अपनी कविताओं में समकालीन युगबोध की जाँच -परख , उसका उद्घाटन अपने जीवनुभवों के आधार पर तार्किक एवं अन्वितिपूर्ण रूप से करते हुए प्रतीत होते हैं।

अगोरा प्रकाशन की किताबें अब किन्डल पर भी…

हरेप्रकाश की कविताएँ  मुख्यधारा की ऐसी कविताएं हैं जो बहुत ही सबल रूप से हाशिये की बात करती है :

पूरे पृष्ठ में कोरा

अलग से दिखता है हाशिया

मगर हाशिये को कोई नहीं देखता

कोई नहीं पढ़ता हाशिये का मौन

हाशिये के बाहर

फैले तमाम महान विचार

लोगों को खींच लेते हैं

खींच नहीं पाती हाशिये की रिक्ति

किसी को ..

कवि सच ही तो कहता है,  हाशिये का मौन कौन पढ़ता है और यही हाशिया जब मुख्य पृष्ठ की ओर हर्फ़ दर हर्फ़ बढ़ता है तो समाज उसे अतिक्रमण मान कर उसपर आक्रामक हो उठता है। ऐसे में यह कविता की जिम्मेवारी है कि वह हाशिये की आवाज बने और उसे हर्फ़ दर हर्फ़ अपनी कविताओं में दर्ज करे। हम पाते हैं कि हरे प्रकाश और उनकी कविताई इस मामले में अपनी जिम्मेवारियों का सफलतापूर्वक निर्वहन करती है।

महानगरों के वातानुकूलित कक्षों में लिखी जाने वाली डिजाइनर कविताओं के विपरीत हरेप्रकाश की कविताएं खेतों और मेड़ों की बात करती है, जिसमें डिजाइन भले ही कम हो लेकिन चिंता वाजिब और ठोस है। इसीलिए शायद हरेप्रकाश अपनी कविता “कविता क्या है” में कहते हैं :

दरअसल वह किसी किसान के माथे की बूंद है,

जो फसलों की जड़ों की ओर लौटना चाहती है।

किताब का नाम : नया रास्ता

प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन नई दिल्ली

मूल्य : दो सौ रुपये

सुपरिचित समीक्षक नीरज नीर रांची में रहते हैं। 

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट की यथासंभव मदद करें।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

लोकप्रिय खबरें