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जब मैं भी एक ‘बागेश्वर बाबा’ के चंगुल में फँसते-फँसते बचा

सन 1978 नवम्बर-दिसम्बर का समय रहा होगा। मुम्बई में नौकरी करते समय, हमारे गांव के नजदीकी जान-पहचान के एक डाक्टर निगम साहब मुम्बई में फिल्म लाइन में काम करते थे। मुम्बई में भी उनसे अच्छी जान-पहचान हो गई थी, फिल्मी क्रेज के कारण फिल्म वालों के साथ भी मिलना जुलना बहुत रहता था। मिलने जुलने […]

सन 1978 नवम्बर-दिसम्बर का समय रहा होगा। मुम्बई में नौकरी करते समय, हमारे गांव के नजदीकी जान-पहचान के एक डाक्टर निगम साहब मुम्बई में फिल्म लाइन में काम करते थे। मुम्बई में भी उनसे अच्छी जान-पहचान हो गई थी, फिल्मी क्रेज के कारण फिल्म वालों के साथ भी मिलना जुलना बहुत रहता था। मिलने जुलने का एक और कारण था कि उस समय मुझे टेलिविजन रिपेयरिंग की अच्छी जानकारी थी और टीवी उस समय कुछ संभ्रांत लोगों के पास ही हुआ करती थी, सो ऐसे लोगों से मिलना-जुलना स्वाभाविक ही था। इसी सिलसिले में एक दिन उन्होंने एक फिल्म प्रोड्यूसर-डायरेक्टर गोपाल जी से उनकी महालक्ष्मी की आफिस में मुलाकात करवाई।
मुलाकात और बातचीत से एक अलग ही फिल्म लाइन से हटकर, विचित्र अनुभव मिला। उन्होंने हमें सच्ची कहानियां मैगजीन की एक दो प्रतियां भी दी, जिसमें चमत्कारी मियां जी के बारे में सच्ची कहानियां छपी थी। उन्होंने यह भी बताया कि हर इंसान के ऊपर भूत-प्रेत का साया रहता है। किसी का भला करता है तो किसी-किसी का नुक़सान कर देता है, लेकिन होता सभी पर है। उन्होंने यह भी बताया कि, यह मियां इतना चमत्कारी है कि आप के अन्दर के भूत को निकालकर आपके सामने खड़े कर देंगा और आप खुद सवाल-जबाव कर सकते हैं और आप के सामने ही इतना उसे प्रताड़ित करेंगा कि खुद ही मांफी मांगते हुए छोड़कर भाग जाएगा। विशेष बात यह कि, सभी फ्री में। मेरे स्वभाव के विपरीत ये सब बातें अटपटी लग रही थीं। उनकी खुद की टीवी खराब होने पर एक दो बार उसे ठीक भी किया था, सो पारिवारिक दोस्ती भी हो गई थी।

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चमत्कारी मियां जी की दो-तीन सच्ची कहानियां मैगजीन पढ़ी, और बहुत से संभ्रांत लोगों की आस्था देखी, सो थोड़ा विश्वास होने लगा और उस विश्वास में थोड़ा मिर्च-मसाला लगाने में एक कारण और भी सहायक हुआ। मैं उस समय मुम्बई में परिवार के साथ रहता था। भाड़े के मकान को बदलते रहने से भी बहुत दिक्कत होती थी। बाप का सबसे बड़ा व जिम्मेदार पुत्र होने के कारण, हर महीने मुझे परिवार के लिए भी पैसा भेजना पड़ता था, चाचा-भतीजा का पारिवारिक कलह भी चलता रहता था। युवा उम्र थी। कुछ कर गुजरने की तमन्ना होती थी। स्वाभाविक है, तनाव के साथ मनचाही सफलता नहीं मिलती थी, सो बहाने और कारण दिमाग में पैदा होने लगें।

[bs-quote quote=”एक बड़े कमरे को एकदम डार्करूम बनाया गया था। इतना अंधेरा कि लाइट बन्द करने के बाद, पास में खड़ा आदमी भी एक दूसरे को न देख सके। कुछ खास लोग कुर्सी पर बैठते और कुछ लोग खड़े रहते। मैं भी कुर्सी पर बैठ गया था। मरीज को जमीन पर बैठाकर कुछ पिलाया जाता, फिर दरवाजा और लाइट बंद कर दी जाती। अब मरीज को जोर से खांसने के लिए कहा जाता। उसके जोर से खांसते ही भूत उसके सामने चिल्लाते-दहाड़ते प्रकट हो जाता। अब सवाल जबाव शुरू। तुम कौन हो?, कहां पकड़े?, क्यों पकड़े?, क्या-क्या और किस रूप में तकलीफ दे रहे हो? भूत मरीज की जानकारी में एकदम सही सही बताता जाता।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

एक दिन गोपाल जी का फोन आया और उन्होंने बताया कि चमत्कारी मियां जी आज सांताक्रुज एयरपोर्ट पर आ रहे हैं। मैं एयरपोर्ट से सटे, पी&टी कालोनी सहार में रहता था और उस दिन छुट्टी भी थी, सो मैं भी रिसीव करने पहुंच गया। संभ्रांत लोगों की काफी भीड़ थी। सभी मियां जी के पैर छूते हुए गुलदस्तों से स्वागत कर रहे थे। मैं थोड़ी दूर से देखता रहा। थोड़ी देर में ही वे बाबा को गाड़ियों के काफिले के साथ मलाबार हिल के पॉश बंगले में लेकर चले गए और मैं अपने घर आ गया।
दूसरे दिन, डा.  निगम और कोचर साहब ने चमत्कारी मियां से मिलने के लिए पूछा और साथ चलने के लिए आग्रह किया, न चाहते हुए भी मैंने हां किया और शाम को हम लोग पहुंच गए। इन दोनों लोगों के ऊपर से एक-दो भूत निकाला था और कुछ निकालने बाकी थे।
वहाँ विचित्र नजारा था। संभ्रांत लोगों में नरगिस दत्त और उनका बेटा संजय दत्त भी था। पता चला नरगिस दत्त के ऊपर तीन भूत थे। एक निकाला जा चुका था और दूसरे-तीसरे के लिए वहां आई थीं।
एक बड़े कमरे को एकदम डार्करूम बनाया गया था। इतना अंधेरा कि लाइट बन्द करने के बाद, पास में खड़ा आदमी भी एक दूसरे को न देख सके। कुछ खास लोग कुर्सी पर बैठते और कुछ लोग खड़े रहते। मैं भी कुर्सी पर बैठ गया था। मरीज को जमीन पर बैठाकर कुछ पिलाया जाता, फिर दरवाजा और लाइट बंद कर दी जाती। अब मरीज को जोर से खांसने के लिए कहा जाता। उसके जोर से खांसते ही भूत उसके सामने चिल्लाते-दहाड़ते प्रकट हो जाता। अब सवाल जबाव शुरू। तुम कौन हो?, कहां पकड़े?, क्यों पकड़े?, क्या-क्या और किस रूप में तकलीफ दे रहे हो? भूत मरीज की जानकारी में एकदम सही सही बताता जाता। जहां भी भूत जबाब देने में आनाकानी करता, जबरदस्त तरीके से उसकी धुलाई शुरू हो जाती। स्वाभाविक है मरीज तो डर ही जाएगा। अब उसको पीछे आने की हिदायत दी जाती, जहां दीवार से सट कर कुछ लोग खड़े थे। उससे भी कहा जाता, तुम भी अपनी भाषा में सवाल जबाव करो? इसके बाद उस भूत की थर्ड डिग्री टार्चर, चिल्लाना, कंहरना, हाथ जोड़ना, माफी मांगना, थूक कर चाटना, फिर कभी नहीं वापस आने का वादा करना। लाइट चालू होते ही भूत गायब। मान्यता भी है कि भूत उजाले में नहीं दिखाई देगा। चमत्कारी मियां जी जहां दीवार से सटकर खड़े थे, वही खड़े मिले और मरीज को बाहर जाने का इशारा किया। मरीज बाहर आकर भूत निकल जाने की खुशी से काफी संतुष्ट दिखाई देता है। आश्चर्य करते कि भूत ने सभी बातें सही बताई।
अब मेरा नम्बर आया, कुछ पिलाया गया और दूसरों की तरह जोर से खांसने को कहा गया। दो-तीन बार खांसा। भूत नहीं निकला। कहा गया आप के ऊपर किसी भी प्रकार का भूत-प्रेत नहीं है। चमत्कारी मियां जी के सलाहकार और हमारे दोस्त ने भी कहा कि आपकी औरत पर भूत प्रेत की साया हो सकता है। जब मैंने घर आकर पत्नी को सभी बातें बताई तो उसे भी विश्वास नहीं हो रहा था। जाने में आना-कानी कर रही थी। मैंने कहा चलो इसी बहाने हैंगिंग गार्डन और कमला नेहरू पार्क में पिकनिक हो जाएगी और शाम को वहां का नजारा भी देखकर आ जाएंगे।
जिज्ञासा तो थी ही, सो, दूसरे दिन पहुंच गए। मिसेज को कुछ पिलाने के बाद खांसने को कहा गया। खांसते ही भूत अजीब सी आवाज करते हुए धड़ाम से सामने आया, सवाल-जबाव शुरू हुआ, सब सही बता रहा था। कहां पकड़ा? उत्तर था, बनारस में। मुझे भी कहा गया सवाल पूछने के लिए, सब चीजों को बता ही दिया था तो पूछने के लिए कुछ था ही नहीं। एक भूत निकाला था अभी और दो भूत निकालना बाकी था।

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हम दोनों घर पर भूत के बारे में तर्क-वितर्क करने लगे। पहला सवाल दिमाग में आया कि, तुम्हें बनारस का भूत-प्रेत कैसे पकड़ेगा? क्यों पकड़ेगा? तुम तो बनारस कभी गई नहीं। दूसरा सवाल दिमाग में यह आया कि, भूत की भोजपुरी भाषा हमलोगों की भाषा से अलग लगती थी और मुझे पूरी तरह समझ भी नहीं आ रहा था कि वह क्या बोल रहा है? इसलिए मैं सवाल नहीं पूछ पाया। फिर मिसेज को भी अंधेरे में एहसास हुआ कि उसके सामने कोई कूद कर आया, भूत ऐसे नहीं आ सकता है। तर्क-वितर्क से हम दोनों, उस भूत को अपना होने से नकारने लगे और दूसरे तीसरे को निकालने के बारे में शंकित हो गए।

[bs-quote quote=”अब मेरा नम्बर आया, कुछ पिलाया गया और दूसरों की तरह जोर से खांसने को कहा गया। दो-तीन बार खांसा। भूत नहीं निकला। कहा गया आप के ऊपर किसी भी प्रकार का भूत-प्रेत नहीं है। चमत्कारी मियां जी के सलाहकार और हमारे दोस्त ने भी कहा कि आपकी औरत पर भूत प्रेत की साया हो सकता है। जब मैंने घर आकर पत्नी को सभी बातें बताई तो उसे भी विश्वास नहीं हो रहा था। जाने में आना-कानी कर रही थी।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

मैंने गोपाल जी से इस बारे में बात की तो,उन्होंने बताया कि जो दो भूत बाकी हैं वे तरह-तरह के दिमाग में शंका पैदा करते हैं और रोगी को, डर के कारण, खुद को  मियां जी के पास आने से रोकते हैं। आप आ जाओ, खुद मियां जी से मैं आपकी बात करा दूंगा। अब मै अगले दिन,अकेले ही कुछ हकीकत पता लगाने के उद्देश्य से गया। मैं प्रबन्धक का खास आदमी था, सो मुझे कोई रोक-टोक या किसी तरह की कोई पाबन्दी नहीं थी। आंख और दिमाग खुला रखते हुए, पूरी षड्यंत्र की जानकारी लेकर, खुद आश्वस्त होकर घर लौट आया।
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 मिंया जी का एक दलाल रोगी सेबातचीत करके सब जानकारी ले लेता था और उसे मियां जी से साझा करता था। मैंने पूछताछ में पहले ही कह दिया था कि मैं इन सब चीजों में विश्वास नहीं करता हूं तो मुझे कह दिया कि आप पर कोई भूत-प्रेत का साया नहीं है। मैंने अपना परिचय बनारस के निवासी का दिया था, इसलिए उसने मिसेज को भी बनारस का ही समझ लिया, जबकि मिसेज बिहार की रहने वाली थी और कभी बनारस नहीं गई थी।
अब दिमाग में इसका भंडाफोड़ करने की सोच पैदा होने लगी। एक दो लोगों से चर्चा भी किया। यदि अचानक टार्च जला दिया जाय तो भूत का भेद खुल जाएगा, लेकिन यह संभव नहीं था। यदि भूत को हिम्मत से पकड़ लिया जाए तो असलियत का पता लग सकता था लेकिन इसमें बहुत बड़ा खतरा दिखता था, क्योंकि उसके पास तलवार रहती हैं, मार देगा और दोष भूत पर मढ़ देगा।
बड़ी हिम्मत करते हुए, एक दिन मैं खुद गोपाल जी से इस विषय पर बात करने लगा। वह किसी भी तरह से बात मानने को तैयार नहीं। वही बहाना कि आपकी औरत के उपर का भूत-प्रेत ऐसी भ्रांतियां दिमाग में पैदा करता है।
जब मैं समझ गया कि वह सच्चाई स्वीकार नहीं करेंगे और मुझे दृढ़विश्वास हो गया था कि, चमत्कारी मियां ही खुद भूत बनता है। तब मैंने भी तिकड़म किया और कहा कि हमारी औरत बहुत गुस्से में है। वह सही हकीकत जान गई है, क्योंकि जब मियां पीछे से आगे भूत बनकर आया तो वह थोड़ी गलती कर बैठा। वह मिसेज के हाथ को टच करते हुए सामने आया।
अब क्या! उसके चेहरे की रौनक ही उतर गई। हाथ जोड़ लिया और कहा कि यह बात अपने तक ही सीमित रखना। लेकिन जो इस मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं, वे लोग सही में सामने भूत निकला देखकर एक दम चंगा हो जाते हैं और मियां जी के परमभक्त बन जाते हैं।

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कहा जाता है कि ऐसे ढोंगी बाबा भक्तों से कुछ नहीं लेते। लेकिन सवाल उठता है कि जब कुछ लेते नहीं है तो इतना बड़ा साम्राज्य कैसे चलाते हैं? इस पर उनका कहना था कि जो लोग ठीक हो जाते हैं, वे ही लोग स्वेच्छा से दान देते हैं। निगम जी ने उसकी एक और आमदनी का जरिया बताया। एक बार मुझे, अपने साथ वर्ली के एक पॉश बंगले में ले गए, जो भूत बंगला के नाम से जाना जाता था। उन्होंने कहा कि मियां जी जब इस  बंगले का भूत-प्रेत निकाल देंगे, तब इसकी कीमत डबल हो जाएगी। यह सब दिखाने और बताने का यही मकसद था कि, मैं भी इस कारोबार में उनका सहभागी बन जाऊं। लेकिन कमबख्त मेरा व्यक्तित्व ही कुछ हटकर है। गलत लोगों का साथ देना तो दूर, कभी-कभी उन्हें सबक सिखाने की भी ठान लेता हूं.
एक दो महीने के बाद, उसी सच्ची कहानियां मैगजीन में पूरे विस्तार के साथ लेख आया था कि बहेड़ी मियां खुद भूत है और आज जेल की सलाखों में कैद हो गया है।
विचित्र मानसिक रोग है, डाक्टर खुद रोगी के दिमाग में रोग पैदा करता है, निदान भी वही करता है, ठीक हो जाने पर वही रोगी, उसी डाक्टर को भगवान भी मानने लगता है।
 इसी तरह ढोंगी और पाखंडी लोग भी सभी जन-मानस के दिमाग में धार्मिकता की एक मानसिक बिमारी पूर्वजों की धरोहर और सदियों से चली आ रही परम्परा का हवाला देते हुए, जिन्दगी भर पैदा करता रहता है और निदान का रास्ता भी दिखाते हुए, पूज्यनीय गुरु मरते दम तक बना रहता है। आज कल सोशल मीडिया में ऐसे रोगियों को मानसिक गुलाम या अंधभक्त कहा जाता है।

आपके समान दर्द का हमदर्द साथी!

गूगल@ शूद्र शिवशंकर सिंह यादव

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