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यहाँ पैर फिसला तो गली में नहीं, सीवर में चले जाएँगे

सांस्कृतिक संकुल स्थित टंकी की पानी को लेकर भी लोगों में काफी रोष है। बदबूदार पानी सप्लाई के कारण लोग आरओ मशीन से खरीदकर पानी पीते हैं। इस पानी के लिए प्रत्येक परिवार को आठ से नौ सौ रुपये वहन करने पड़ते हैं। गलियों के ऊपर सरकारी पानी की पाइप लाइन दौड़ाई गई है, जिसमें कई जगह छेद भी हो चुके हैं।

उपेक्षा की ज़िंदगी झेल रहे हुकूलगंज में रतन जैसल और कौड़िया शाह बाबा के सामने वाली गली के लोग

वाराणसी। मरम्मत का इंतजार करते-करते हुकूलगंज यानी वॉर्ड 11 स्थित रतन जैसल और कौड़िया शाह बाबा के सामने वाली गली अब दुर्दशा का दंश झेल रही है। स्थिति ऐसी है कि गली में जाने से पहले अगर आपका पैर फिसला तो आप गहरे सीवर में गिर सकते हैं। गली के दोनों तरफ सीवर के बड़े-बड़े ढक्कन खुले हुए हैं। वहीं, इन गलियों के चौके-पत्थर अधिकतर स्थानों पर टूट चुके हैं। सीवर आए दिन जाम हो जाते हैं। साफ-सफाई की उचित व्यवस्था नहीं है। जगह-जगह कूड़े लगे हुए हैं। दुर्गंध के कारण कहीं-कहीं तो नाक दबाकर जाना पड़ता है। बिजली के खम्भे नीचे से जर्जर हो गए हैं। उसके आसपास मिट्टी की मोटी शिल्ट जम गई है। दूसरी तरफ, पेयजल की सप्लाई पर रोष जताते हुए स्थानीय बाशिंदे कहते हैं कि पानी से आए दिन बदबू आती है। स्थानीय हैंडपम्प भी सूख चुके हैं। लोगों की मानें तो विकास सिर्फ सड़क तक ही सीमित रह गया है। गलियों का हाल लेने वाला कोई नहीं है। स्थानीय पार्षद से समस्या की शिकायत करने पर समाधान तो हो जाता है लेकिन कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं हो रही है। वहीं, निवर्तमान पार्षद बृजेश श्रीवास्तव के अनुसार, दोनों गलियों में कुछ हफ्ते पहले सफाई के लिए निगम के कर्मचारियों को बुलाया गया था लेकिन कुछ लोगों के विरोध के चलते काम अधूरा रह गया।

टेढ़े-मेढ़े इन पत्थरों पर चलना है मुश्किल

डगमग रास्तों पर चलना है मुश्किल

रतन जैसल और कौड़िया शाह बाबा के सामने वाली गली के रास्ते ज्यादा खराब हैं। मेन सड़क से यह गली लगभग पाँच से सात फीट नीचे है। ढलान से जब बारिश का पानी गली में आता है तो कुछ लोगों के घरों में घुस जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार, इस गली में लगभग 20 वर्ष पहले चौका-पत्थर का काम हुआ था। उसके बाद साल-दो साल में कुछ जगहों पर सिर्फ मरम्मत का काम हो जाता है। काम भी ऐसा होता है कि पत्थर पर लगे मसाले एक बारिश के बाद ही बह जाते हैं। गली के पत्थर अब मिट्टी के सहारे चिपके हुए हैं। गली में पानी का बहाव भी खराब हो चुका है। जगह-जगह पानी रूक जाती है। उससे भी गलियों को नुकसान पहुँच रहा है।

सीवर की नहीं है उचित व्यवस्था

स्थानीय लोगों के अनुसार, सीवर लाइन को भी बने लगभग डेढ़ दशक से ज्यादा हो चुके हैं। अब कहीं-कहीं सीवर की पाइप अंदर से ध्वस्त हो गई है। सीवर जाम की समस्या का प्रमुख कारण यही होता है। शिकायत पर निगमकर्मी सिर्फ सीवर सफाई कर चले जाते हैं। पाइप की मुकम्मल व्यवस्था नहीं होने से गलियों में सीवर का पानी भी जम जाता है। इस गली में एक जगह काफी पुराना कुआँ भी है। स्थानीय रामलखन बताते हैं कि सीवर का पानी रीसकर कुएँ में गिर रहा है। हादसे के भय से कुएँ को ढकवा दिया गया है। अगर नगर निगम इस कुएँ की सफाई करवाकर अगल-बगल दीवाल उठाकर मरम्मत करवा दे तो पानी की समस्या का कुछ हद तक समाधान हो सकता है।

पेयजल की पाइप लाइन भी हो चुकी है जर्जर

बदबूदार पानी के कारण मजबूरत खरीदते हैं आरओ वॉटर

सांस्कृतिक संकुल स्थित टंकी की पानी को लेकर भी लोगों में काफी रोष है। बदबूदार पानी सप्लाई के कारण लोग आरओ मशीन से खरीदकर पानी पीते हैं। इस पानी के लिए प्रत्येक परिवार को आठ से नौ सौ रुपये वहन करने पड़ते हैं। गलियों के ऊपर सरकारी पानी की पाइप लाइन दौड़ाई गई है, जिसमें कई जगह छेद भी हो चुके हैं। पानी टूटने के कारण गलियों में भी पानी गिरता है। स्थानीय लोगों की मानें तो पेयजल की गंदगी की शिकायत सम्बंधित लोगों से की गई लेकिन अभी तक समाधान नहीं हुआ है।

बिजली के खम्भों की नहीं है उचित व्यवस्था

इन गलियों में बिजली के तार भी मनमाने तरीके से लगाए गए हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, बिजली के खम्भे काफी जर्जर हो चुके हैं। इसी कारण लोग अपने-अपने मकान पर लोहे की रॉड लगाकर तार को सहारा दिए हुए हैं। बारिश के समय हादसे का भय भी बन जाता है।

अधूरे काम का हाल है जलजमाव
सूख चूका हैं हैंडपंप

सुनें निवर्तमान पार्षद की

निवर्तमान पार्षद बृजेश श्रीवास्तव ने इन समस्याओं के संदर्भ में बताया कि ‘क्षेत्र की कई समस्याएँ बरसों पुरानी है जिनका समाधान किया जाना है। ऐसा नहीं है कि क्षेत्र की गलियों में काम नहीं हुआ है। रतन जैसल और कौड़िया शाह बाबा के सामने वाली गली में सीवर-चौका सहित सफाई का काम भी जल्द करवाया जाएगा। जहाँ तक पानी में बदबू की समस्या है उसके लिए विभाग में को सूचना दे दी गई है।’

 

अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा गाँव के लोग के सहायक संपादक हैं।

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