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पूर्वांचल का एम्स कहे जाने वाले बीएचयू की ऐसी दुर्दशा क्यों?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने बीएचयू अस्पताल को एम्स जैसी व्यवस्था के लिए करोड़ों रुपये दिए लेकिन यहां के प्रशासनिक पदों पर बैठे ऊंची जातियों के भ्रष्ट अधिकारियों ने कमीशनखोरी के चक्कर में केवल भवनों का निर्माण और सुंदरीकरण कराया और अपने चहेतों को फायदा पहुंचाया।

काशी हिन्दु विशवविद्यालय (BHU) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के गढ़ के रूप में जाना जाता है। बीएचयू अस्पताल इसी का हिस्सा है। केंद्र और राज्य में उसके राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने बीएचयू अस्पताल को एम्स जैसी व्यवस्था के लिए करोड़ों रुपये दिए लेकिन यहां के प्रशासनिक पदों पर बैठे ऊंची जातियों के भ्रष्ट अधिकारियों ने कमीशनखोरी के चक्कर में केवल भवनों का निर्माण और सुंदरीकरण कराया और अपने चहेतों को फायदा पहुंचाया। सरकार की निगरानी समिति के ऊंची जातियों के लोगों ने भी मोटी रकम लेकर जनता की शिकायतों को ठंडे बस्ते में डाल दिया। आम जनता के करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी आज तक कोई राहत नहीं मिली, बल्कि उन्हीं से और पैसे उगाहने के लिए ओपीडी की फीस बढ़ा दी गई।
अमर उजाला समाचारपत्र
कोरोना काल ने लोगों की कमाई को ठप कर रखा है, उन्हें कायदे से दो वक्त की रोटी नहीं मिल रही है लेकिन सरकार से लेकर निजी कंपनियों ने दैनिक उपयोग और सेवा की दरों में 50 प्रतिशत से लेकर 200 प्रतिशत तक दरें बढ़ा दी हैं। इसके बावजूद आरएसएस, भाजपा और उसकी सरकारों के आकाओं पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। ऐसा क्यों है? क्या आप जानते हैं?
आरएसएस, भाजपा और उनकी सरकारों को संचालित करने वालों की नीतियां ही यही हैं। उन्हें देश की 90 फीसदी से कोई मतलब नहीं है। वे केवल इस 90 फीसदी जनता पर राज करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने ऊंची जातियों (खासकर ब्राह्मण, ठाकुर और बनिया) के राज की रणनीति तैयार कर चुके हैं। ठाकुर और बनिया जाति की स्थिति यह है कि वह ब्राह्मण को सर्वश्रेष्ठ जाति के रूप में अपना चुका है और उसे उसके अनुसार चलने में कोई दिक्कत नहीं है।
भाजपा की अगुवाई वाली सरकारों में अधिकारियों की सूची और उनके द्वारा लागू की जा रही नीतिगत फैसलों को देखें तो यही स्थिति साफ तौर पर दिखाई देती है।

 

इसके लिए वे वंचित वर्गों (विशेष रूप से एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक) के संवैधानिक अधिकारों को गैरकानूनी नीतियां बनाकर छीन रहे हैं। उन्हें आर्थिक रूप से कंगाल बना रहे हैं। उनकी आवाज़ों को उठाने वाले पत्रकारों और माध्यमों को खत्म कर रहे हैं। नेताओं को जेल भेज रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त कर रहे हैं। अस्थायी नौकरी और संविदा आधारित नौकरी के नाम पर उन्हें डर के साये में जीने को मजबूर कर रहे हैं। आउटसोर्सिंग के नाम पर ऊंची जातियों के लोगों का उन्हें गुलाम बना रहे हैं। फर्जी मुकदमों में फंसाकर उन्हें आर्थिक और मानसिक रूप से कमजोर कर रहे हैं। इससे भी बात नहीं बनी तो अपने लंपटों की टोली से उन पर हमला करवा रहे हैं या धर्म और जाति के नाम पर मौत के घाट उतार दे रहे हैं। कुल मिलाकर 90 फीसदी जनता को हर तरफ से निरीह बनाकर उस पर 10 प्रतिशत ऊंची जाति के लोगों का राज स्थापित करना चाहते हैं।

इसके लिए वे लोगों के दिमाग में सरकारी संस्थाओं के खिलाफ घृणा और गुस्सा पैदा करना चाहते हैं ताकि उन्हें बेचा जा सके। बेचने से उसकी दलाली उन्हें मिल ही जाती है और वे और मजबूत होते हैं, जनता कमजोर। विद्युत विभाग इसका उदाहरण है। शिक्षा विभाग भी इसी ओर बढ़ गया है। अधिकतर लोग अपने बच्चों को निजी शिक्षण संस्थानों में पढ़ाकर आर्थिक रूप से कमजोर हुए जा रहे हैं। अब भाजपा सरकारों की नजर स्वास्थ्य सेवाओं पर है। बीएचयू में इसकी बानगी दिखी है। जनता के पैसे से बने नये स्वास्थ्य केंद्रों का संचालन पहले ही निजी हाथों में दे दिया जा रहा है। सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली में नये कई स्वास्थ्य केंद्रों का संचालन इस समय भूमिहारों के मालिकाना और प्रभाव वाला हेरिटेज ग्रुप चला रहा है।
वंचित वर्गों की कमाई का अधिकांश हिस्सा भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य ही है। ये पूरी जिंदगी इसी को सुनिश्चित करने में गुजार देता है। कंपनियों ने पहले ही दैनिक जरूरतों के सामानों की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि कर लोगों को पेट की भूख मिटाने में उलझा दिया है। जो बचे हैं, उन्हें निजी शिक्षा के रास्ते अधिक से अधिक रुपया कमाने में व्यस्त कर दिया है। इसके बावजूद आपने कुछ बचा लिया तो उसे बीमारी के दौरान निजी स्वास्थ्य सेवाओं से ऊंची समुदायों के पास पहुंचाकर उनसे अपना हिस्सा लेने की व्यवस्था कर रहा है। अब आपको तय करना है कि आप गुलाम बनना चाहते हैं या आज़ाद रहकर व्यवस्था में बदलाव करना चाहते हैं।

 

शिवदास जाने-माने स्वतंत्र युवा पत्रकार हैं। 

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