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होमविचारबिहार : मुर्दा दलित-बहुजन, मुर्दा प्रदेश (डायरी 13 जनवरी, 2022) 

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बिहार : मुर्दा दलित-बहुजन, मुर्दा प्रदेश (डायरी 13 जनवरी, 2022) 

एक बार फिर बिहार की राजधानी पटना से प्रकाशित दो अखबारों हिन्दुस्तान और प्रभात खबर का ई-संस्करण मेरे सामने है। फीचर आलेखों को छोड़ दें तो इन दोनों अखबारों में अनेक खबरें कॉमन हैं। खबरों का स्थान दोनों अखबारों के संपादकों ने अपने-अपने हिसाब से जगह दिया है। मैं उन खबरों की तलाश कर रहा […]

एक बार फिर बिहार की राजधानी पटना से प्रकाशित दो अखबारों हिन्दुस्तान और प्रभात खबर का ई-संस्करण मेरे सामने है। फीचर आलेखों को छोड़ दें तो इन दोनों अखबारों में अनेक खबरें कॉमन हैं। खबरों का स्थान दोनों अखबारों के संपादकों ने अपने-अपने हिसाब से जगह दिया है। मैं उन खबरों की तलाश कर रहा हूं, जिनसे मुझे बिहार में अच्छे शासन के होने का प्रमाण मिले। दोनों अखबारों में खबरों को ऐसे पेश किया गया है जिनसे भले ही अच्छे शासन का प्रमाण ना मिलता हो, परंतु इसका ख्याल रखा गया है कि अच्छे शासन का भ्रम जो कि बिहार में बनाया जाता रहा है, उसे कोई नुकसान ना हो।

दोनों अखबारों के हिसाब से कल यानी 12 जनवरी को 9 लोगों की हत्याएं हुई हैं। बानगी के लिए सीवान के गाेरियाकोठी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक के एक करीबी जो कि पीडीएस दुकानदार था, उसकी हत्या उसके घर के ही बाहर कर दी गयी। इस खबर को दोनों अखबारों ने अंदर के पन्नों में जगह दिया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यदि वर्तमान में एनडीए यानी सवर्णों का राज नहीं होता तो अखबारों के लिए यह पहले पृष्ठ के लिए लीड खबर थी।

[bs-quote quote=”गणेश पासवान के पुत्र सुमंत पासवान की हत्याकर उसकी लाश को बांस से लटका दिया गया। वह इंटर का छात्र था। उसके उपर आरोप था कि उसने गांव के ही एक सामंती के खेत से मिट्टी काट लिया था। इसी आरोप में उसके साथ मारपीट की गयी और जब वह मर गया तो उसकी लाश को बांस से लटका दिया गया।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

एक खबर गया जिले से है। वहां एक युवक का अपहरण करने के बाद उसकी हत्या कर दी गयी। ऐसे ही एक और खबर है। यह तो ऐसी खबर है जो बिहार में सामंती उन्माद के पराकाष्ठा का द्योतक है।

खबर बिहार के बेगूसराय जिले (इसे भूमिहारों के वर्चस्व का जिला माना जाता है) के बरौनी थाने के निंगा पंचायत के मिर्जापुर चांद नामक गांव की बांसवाड़ी में गणेश पासवान के पुत्र सुमंत पासवान की हत्याकर उसकी लाश को बांस से लटका दिया गया। वह इंटर का छात्र था। उसके उपर आरोप था कि उसने गांव के ही एक सामंती के खेत से मिट्टी काट लिया था। इसी आरोप में उसके साथ मारपीट की गयी और जब वह मर गया तो उसकी लाश को बांस से लटका दिया गया।

अब यहां यह जानना जरूरी है कि एक आदमी यदि दूसरे के खेत से मिट्टी काटता है तो इसके मतलब क्या होते हैं। सामान्य तौर पर जो भूमिहीन होते हैं, वे अपने कच्चे घराें को लिपाई आदि के लिए मिट्टी काटते हैं। मुमकिन है कि गणेश पासवान भी भूमिहीन हो और उसका किशोर बेटा इसी उद्देश्य से मिट्टी लाने सामंतियों के खेत में गया होगा। वैसे भी उसने मिट्टी ही काटी थी। सिर्फ इसके लिए उसकी जान ले ली गयी तो समझा जा सकता है कि बिहार के भूमिहार व अन्य ऊंची जातियों के लोग कैसे अपने खानदानी वर्चस्व व दहशत को कायम रखना चाहते हैं।

 बेगूसराय पटना से बहुत दूर नहीं है। करीब 128 किलोमीटर की दूरी है और सड़क मार्ग से करीब चार घंटे में यह दूरी आराम से तय की जा सकती है। पटना से बेगूसराय जाने के क्रम में ही बाढ़-बख्तियारपुर के दर्शन होते हैं, जिसे नीतीश कुमार का इलाका माना जाता है। बेगूसराय में भी नीतीश कुमार का अच्छा सम्मान है।

मेरे सामने एक सवाल है। सवाल यह कि किन कारणों से भाजपा विधायक के करीबी की हत्या वाली खबर को चार कॉलम में जगह दी गयी है और सुमंत पासवान की नृशंस हत्या की खबर को सिंगल कॉलम (वह भी डेढ़ सौ शब्दों में) में प्रकाशित किया गया है?

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क्या इसकी कोई वजह नहीं है? इसकी वजह है और वह यह कि बिहार के अखबारों के लिए जाति बहुत महत्वपूर्ण है। गोरियाकोठी के विधायक ऊंची जाति के हैं और उनका करीबी जो कि कल मारा गया और वह भी अपने ही घर के बाहर, वह भी ऊंची जाति का ही था, इसलिए अखबारों ने उस खबर अधिक महत्व दिया। वहीं सुमंत की हत्या की खबर से ऊंची जातियों में व्याप्त सामंती उन्माद की जानकारी मिलती है तो उसे अति संक्षिप्त कर दिया गया।

खैर, सवाल यह है कि बिहार के दलित-पिछड़े सोए हुए क्यों हैं? मैं यह नहीं कह रहा कि वे हिंसात्मक तरीका अपनाएं, लेकिन उन्हें एकजुट तो होना ही चाहिए। कल ही एक कविता जेहन में आयी थी– मुर्दा कौम। मैं अपनी डायरी में कौम की जगह प्रांत व समुदाय रखना चाहता हूं।

मुर्दा कौमें

सचमुच मुर्दा नहीं होतीं

बस होता इतना ही है कि

हुक्मरान उन्हें रौंदता है

और वे प्रतिरोध नहीं करतीं।

प्रतिरोध करना ही

जिंदा होने का प्रमाण है

और क्या तुम इतनी सी बात भी नहीं समझते

पत्थरों को पूजनेवालों

अपनी कमाई ब्राह्मणों को दान देनेवालों

शोषकों का जुल्म सहकर भी 

जुबान बंद रखनेवालों?

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।

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