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भाजपा-आरएसएस की राजनीति हमेशा से ही दलित,पिछड़ा,अल्पसंख्यक विरोधी रही है

भाजपा और आरएसएस हमेशा से दलित,ओबीसी विरोधी रहे हैं। देश के संविधान को बदलने के लिए इस चुनाव में 400 पार का नारा दिया लेकिन संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने को लेकर जनता की तरफ से आ रहे विरोध को देखते हुए इन्होंने चुनाव का नेरेटिव बदल इनके शुभचिंतक होने की बात बार-बार दोहरा रहे हैं।

सोशल मीडिया के विविध माध्यम से इस प्रकार की खबरें मिल रही हैं कि जो भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव 2024 में 400 के पार से जीत हासिल करने की बात कर रही थी, अब वह ऐसी स्थिति आ गई है कि उसका लक्ष्य 250 बचाना है। लेकिन अनुमान यह सामने आ रहा है कि यदि  किसी तरह एनडीए भी 272 तक भी पहुंच जाए तो गनीमत होगी।

कुछ ऐसे मुद्दे सामने आए हैं कि बीजेपी अपने ही जाल में फंसती जा रही है और सबसे बड़ी बात यह है कि वह बार-बार अपनी शैली बदल रही है। इसकी वजह से पार्टी ने अपने ही लोगों को खो दिया है, जो उसके समर्पित मतदाता थे, जिन्होंने हमेशा उसे वोट दिया था। कुछ लोग तो पार्टी को लेकर इस असमंजस में हैं कि उनकी पार्टी की स्थिति कहीं न कहीं इतनी कमजोर है कि इधर गई  या उधर गई  स्थिति बनी हुई है। भगवान जाने उनकी यह सोच कहाँ तक सच और झूठ के झूले में झूल रही है? बीजेपी अपनी जीत को निश्चित करने के लिए एक-एक सीट पर नजरें गड़ाए हुए है। रिपो‌र्ट्स तो यहाँ तक है कि बीजेपी के बहुत से समर्थक तो यहाँ तक कहते सुने गए हैं कि जिस पार्टी के लिए हमने पूरी निष्ठा के साथ कम किया, उसे हमारी भावनाओं की परवाह तक नहीं है।

यह भी की पूरी बीजेपी ने 2024 में चुनाव जीतने के लिए भारत के संविधान को बदलने और समाज के कमजोर तबके को नौकरियों व शिक्षा में संविधान प्रदत्त आरक्षण को समाप्त करने के लिए विविध प्रकार से प्रचार-प्रसार करने में अग्रणीय होकर अपनी दलित-दमित विरोधी उसकी विचारधारा को नहीं छुपा पा रही है। मोदी की सोच एक आदमी की सरकार बनाने तक पर केंद्रित हो गयी है, ऐसा स्पष्ट दिखाई देता है। और संविधान को बदलने और समाज के कमजोर तबके को नौकरियों व शिक्षा में संविधान प्रदत्त आरक्षण को समाप्त करने की बीजेपी के अनेक वरिष्ठ नेताओं द्वारा अलग-अलग समय पर उठाया जा रहा है, उससे न केवल प्रभावित होने वाले वर्गों,  खासकर ऊंची जाति के लोग, अनारक्षित वर्ग के लोग, उनके लिए बड़ी समस्या खड़ी हो गयी है। कल मोहन भागवत का बयान आया। मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस शुरू से आरक्षण के खिलाफ नहीं है।

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मोदी का चुनाव के समय आरक्षण प्रेम का राज 

मोदी ने मोहन भागवत से मुलाकात के दौरान कहा कि आप आरक्षण के विरोध की बात करते रहते हैं। आप आर्थिक आरक्षण की बात करते रहते हैं। एक बार कह दो कि आरएसएस आरक्षण के ख़िलाफ़ नहीं है। ऐसा पहले भी एक बार हुआ था। मुझे नहीं पता कि भागवत साहब ने 2015 में बिहार चुनाव से पहले ऐसा बयान क्यों दिया था। इसी तरह, उन्होंने 2016 में यूपी चुनाव से पहले भी एक बयान दिया है। और वो आरक्षण के खिलाफ बयान देते हैं। लेकिन इस बार हालात कठिन हैं। दरअसल, बिहार में जो जाति व्यवस्था है, उसके मुताबिक भारत में 27 फीसदी पिछड़े हैं। लगभग 36% अत्यंत पिछड़े हैं। इन दोनों का योग लगभग 65% होता है। इसके अलावा लगभग 20% अनाधिकृत जाति के हैं। और इनके साथ ही लगभग 2% अनाधिकृत जाति के हैं। असुरक्षित लोग लगभग 15-16% हैं। जिन लोगों को आरक्षण नहीं मिल रहा है।

इन 15% में आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण अलग से दिया गया है। तो दिक्कत यह है कि अगर आरएसएस अपनी विचारधारा पर कायम रही तो इस चुनाव में इन 15 फीसदी लोगों के अलावा बीजेपी को कोई पूछेगा ही क्यों? कोई उन्हें क्यों चाहेगा? 2015 में मोहन भागवत ने अपने भाषण में, जब पटेल आरक्षण आंदोलन चल रहा था, कहा था कि पूरी आरक्षण नीति की दोबारा समीक्षा होनी चाहिए। पटेल आंदोलन से सबसे अधिक प्रभावित कौन हो रहा था? मोदीजी का राज्य। वहां उनकी स्थिति सुधारने के लिए मोहन भागवत को आगे किया गया। इसी तरह अलग-अलग समय पर मोहन भागवत ने बयान दिया कि हमें ऐसे लोगों की एक कमेटी बनानी चाहिए जो आरक्षण के बारे में गंभीरता से सोचें कि इस देश में आरक्षण का भविष्य क्या होना चाहिए। इसमें आरक्षण लेने वाले लोग भी होने चाहिए और दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हों जो आरक्षणवादियों के बारे में भी सोचते हों। मुद्दा यह है कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए। इसके लिए एक कमेटी बनायी जाये। उनका बयान है कि आरक्षण समाज में भेदभाव पैदा करता है। यह समाज को बांटता है। और हमें इस बारे में दोबारा सोचना चाहिए। नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में जाति-आधारित आरक्षण को जल्द ही ख़त्म किया जाना चाहिए। सभी समान अवसर के पात्र हैं। सभी को समान अवसर चाहिए। सभी को समान अवसर का अधिकार है। आरक्षण समाज को दो भागों में बांटता है। और इसीलिए इसे ख़त्म किया जाना चाहिए।

जब-जब चुनाव में मामला उलझता है तो मोदी  मोहन भागवत को बुलाते हैं। जान लें कि मोहन भागवत  और मोदी जी अलग नहीं हैं। दोनों बचपन के दोस्त हैं। जब मोदी  संघ के प्रचारक बने तो मोहन भागवत के पिता ने उन्हें प्रशिक्षण दिया। वह काफी समय तक उनके साथ रहे। वह आरएसएस में गुजरात के प्रभारी थे। आडवाणी जी से पहले मोदी जी उनके शिष्य हुआ करते थे। उन्होंने ही मोदी जी को आडवाणी जी से मिलवाया था। वे कहते रहते हैं कि आरक्षण बदलना पड़ेगा। धर्मनिरपेक्षता में दिक्कत है। आरक्षण वगैरह की दिक्कत है। अब दिक्कत ये है कि 15 फीसदी की राजनीति करनी है। 15 प्रतिशत का अच्छा भी करना है। मन में भी वही है, क्योंकि सारी दृष्टि वही है। शुरू से लेकर अब तक आरएसएस में रज्जू भैया को छोड़कर जितने भी लोग ब्राह्मण रहे हैं, जो उनको शासित करते रहे हैं, उनमें से बड़ी संख्या में वे क्षत्रिय हैं। तो ये सब बातें तो हैं ही।

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आरक्षण विरोधी हैं मोदी

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी एक नेता हैं, उनका नाम है प्रमोद कृष्णम। उनका एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वे कह रहे हैं कि अगर इस बार कुंभ लगाया गया तो हम एक प्रस्ताव पारित करेंगे कि जातिगत आरक्षण को किसी भी हालत में खत्म किया जाना चाहिए, हम इस प्रस्ताव को पारित करेंगे। बता दूं कि जो प्रमोद कृष्णम कांग्रेस में रहते हुए बड़े ही समाज सुधारक और एक साधु की भूमिका में नजर आते थे,  वह भाजपा में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इतने प्रिय हो गए कि संविधान प्रदत्त आरक्षण के विरोध में खड़े हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आचार्य प्रमोद कृष्णम के निमंत्रण पर उनकी प्रमोद कृष्णम के बुलावे पर एक सभा में गए जहाँ एक मंदिर में पूजा होनी थी। उस समय आचार्य प्रमोद कृष्णम ने अपने भाषण में कहा कि आरक्षण ख़त्म करो जैसे योगी आदित्यनाथ ने ख़त्म कर दिया। प्रमोद कृष्णम को संविधान से नफरत है। कांग्रेस में रहते आचार्य प्रमोद कृष्णम जैसे लोगों ने अपना समाज विरोधी चेहरा कभी नहीं दिखाया था। इनका मानना है कि ये बाबा साहब डॉ. भीम राव अम्बेडकर की व्यवस्था है। ये लोग जब भी जैसे भी मौका मिलता है बाबा साहेब डॉ. भीम राव अंबेडकर का अपमान करते हैं। योगी आदित्यनाथ लॉग प्रमोशन में आरक्षण खत्म कर रहे हैं और नरेंद्र मोदी इस पर सहमति जता रहे हैं। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस व्यक्ति के प्रयासों की सराहना करते हैं जो आरक्षण को खत्म करने की कोशिश में शामिल होते हैं। बीजेपी नेताओं और नरेंद्र मोदी के करीबियों के बयानों से साफ हो गया है कि उनका मकसद संविधान को बदलकर देश के लोकतंत्र को खत्म करना है। दलित-पिछड़ा-आदिवासियों की देश चलाने में उनकी भागीदारी को अनदेखी कर रहे हैं।

इस चुनाव में बीजेपी की हालत खराब है क्योंकि 85 फीसदी आबादी को उस पर भरोसा नहीं है। इस देश की 85% आबादी किसी न किसी तरह से आरक्षण का लाभ ले रही है, जिसमें 65% अति पिछड़ा है, उनका कहना है, इसमें अनुपत के भी आंकड़े हैं, कौन सी जाति ज्यादा है, वो आरक्षण बिल्कुल अलग होगा। इस देश में 85% जातियां आरक्षण लेने वाली हैं। इस बात के आलोक में, अब अमित शाह कहते हैं कि अगर संविधान में बदलाव हुआ तो मैं उसके विरोध में सबसे पहले खड़ा होऊंगा और संविधान को कभी ख़त्म नहीं होने देंगे। इसका कारण यह है कि आरक्षण का लाभ उठाने वाले  85% वोट, जिसे इस संविधान के कारण इस देश में सम्मान मिल रहा है। मनुस्मृति इसे साध नहीं सकती। संविधान से जो शक्ति 85% जनता को मिली है, उससे जाहिर है कि जो 15% लोग हैं, वे संकट में हैं।

स्मरण रहे कि भारत के इतिहास में सबसे पहले आरक्षण छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा 1922 में दिया गया था। इसके बाद गांधी जी ने उस आरक्षण पर प्रतिक्रिया व्यक्त की। आरक्षण भी अंग्रेजों से आया था। तब गांधी जी ने कहा, नहीं सर, यह तो जातियों आदि को बांटना है। तब डॉ. अम्बेडकर ने गांधी जी का विरोध किया। उसके बाद एक समझौता हुआ, जिसे पुणे पैक्ट के नाम से जाना जाता है, जिसमें यह स्वीकार किया गया कि अगर लोगों को समानता में लाना है, तो आरक्षण देना ही होगा। इसके बाद 1942 में अंग्रेजों ने आरक्षण पर दोबारा मुहर लगा दी। 1947 आया, नया संविधान बना। हमारे दूरदर्शी नेता भी पूरी दुनिया को देख रहे थे कि मानवता की क्या जरूरत थी? इसे समझा गया और  फिर आरक्षण आ गया।

आरक्षण प्राप्त दलित, पिछड़ों को अब बीजेपी पर भरोसा नहीं

आज बीजेपी और आरएसएस की मंशा को भाँपते हुए जो समूह आरक्षण का लाभ ले रहा है, उस समूह की बीजेपी के बारे में राय है कि वो संविधान बदलना चाहते हैं और संविधान के बदले मनुवादी संविधान लाना चाहते हैं। इसलिए उन पर भरोसा नहीं है। वहीं 85% को यकीन नहीं हुआ और सत्ताधारी अपनी जान बचाने के लिए बार-बार जो बयान बदल रहे हैं, 15% उन्हें भी शक की निगाह से देखने लगे हैं। ऐसे में चुनाव से ठीक पहले ऐसी बातें झूठी साबित हो रही हैं। तरह-तरह के फीडबैक, इंटरनल सर्वे समेत अन्य चीजें मिल रही हैं। और उस खतरे से बचने के लिए मोहन भागवत को बाहर आना पड़ा। उन्हें झूठा बहाना बनाना पड़ा। यह तीसरा मौका है जब मोहन भागवत ने आरक्षण के मुद्दे पर यू-टर्न लिया है। भागवत ने कहा कि आरएसएस को अपनी बैठक बुलानी चाहिए और संविधान के पक्ष में एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए कि अपने संविधान की तरह वह भारत के संविधान को भी नहीं बदलने का समर्थन करेगी।

यूपी के संदर्भ में तो पूरे उत्तर प्रदेश में इस वक्त संविधान बदलने का मुद्दा सबसे अहम मुद्दा बन गया है। और 85% को यकीन नहीं हो रहा कि बीजेपी वास्तव ‘400 के पार’ इसलिए मांग रहे हैं क्योंकि वे संविधान बदलना चाहते हैं। ये फीडबैक बीजेपी और आरएसएस को भी मिल रहा है। इसीलिए दूसरे दौर के बाद 400 पार का नारा अब बंद हो गया है। समझलें कि संविधान को बदलने और आरक्षण को समाप्त करने के सवाल पूरे एससी, एसटी, ओबीसी समुदाय तक जागरूकता के साथ या एक ही रूप में नहीं पहुंच पाया है। ये कहना सही नहीं होगा। क्योंकि सबसे पहले तो डर है। डर वायरल हो जाता है, दूर तक पहुंच जाता है। तार्किक ढंग से सोचना और समझना अलग बात है। चाहे चुनावी एंट्री का सवाल हो, 13 प्वाइंट रोस्टर का सवाल हो या फिर एससी, एसटी, ओबीसी के आरक्षण का सवाल। ओबीसी समेत आज भी पूरे देश में संविधान के प्रति यदि कोई चेतना अनुसूचित जाति समुदाय में है तो वह अनुसूचित जाति समुदाय में है।

एक बात तो आप बिना किसी संदेह के कह सकते हैं कि जो लोग नहीं जानते कि संविधान क्या है, वहां तक ​​संविधान पहुंचा ही नहीं है, चुनौती तो है ही। जिस दिन मजदूर जनता संविधान में खुद को देखने लगेगी, उस दिन वह पाँच किलो राशन पर वोट नहीं देगी। वैसे भी बार-बार के ताने सुनकर उनका भाजपा से पूरा मोह भंग हो गया है। यह बात आरएसएस और बीजेपी को जल्द से जल्द समझ में आ गई है। इसीलिए उन्होंने यह कहकर शुरुआत की कि वे मुसलमानों के लिए मंगल सूत्र और संपत्ति ले जायेंगे।

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ठीक एक दिन बाद आया कि वे संविधान के खिलाफ जाकर एससी, एसटी, ओबीसी का आरक्षण हटाकर मुसलमानों में बांट देंगे। पहली बात तो यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शायद यह बात मालूम नहीं होगी कि चूंकि आपका सरोकार आरक्षण से नहीं रहा, क्योंकि आप मंडल विरोधी, कमंडल आंदोलन के सदस्य थे। एक जगह पीएम मोदी ने कहा कि मैं जन्मजात ओबीसी हूं। किंतु  उनका जन्म ओबीसी में नहीं हुआ है। यही कारण है कि वे इस दर्द को बिल्कुल भी नहीं समझते जो ओबीसी वर्ग ने सदियों से झेला है। हमें इस बारे में सोचना चाहिए, इसका सम्मान करना चाहिए। कौन संविधान का समर्थक है, कौन लोकतंत्र का, कौन समानता का समर्थक है, कौन न्याय का समर्थक है। सभी जानते हैं कि न्यायपालिका की स्थिति क्या है। आरक्षण शब्द को ख़त्म कर देंगे। इसीलिए नरेंद्र मोदी कोई रास्ता निकालने के लिए एससी, एसटी, ओबीसी को मुसलमानों का डर दिखा रहे हैं। लेकिन अब वह डर जायज़ नहीं है। ओबीसी में मुसलमानों का आरक्षण पहले से ही उपलब्ध है। यह मंडल आयोग की रिपोर्ट से मिलता है। उन 3743 जातियों में मुसलमान फकीर, सैफी, दुनिया, अंसारी हैं। इसमें सभी जातियां शामिल हैं। एक बात तो यह है कि प्रधानमंत्री यहां असफल रहे।

प्रधानमंत्री की इस ड्रामेबाजी ने सामाजिक न्याय में विश्वास रखने वाले लोगों को सोशल मीडिया के जरिए एक साथ लाने का काम किया है। अब यह लगने लगा है कि यदि आने वाले चुनाव में सब कुछ निष्पक्ष रहा। तब हमें एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। अनुसूचित/ अनुसूचित जन जातियों, पिछ्ड़ों, किसानों और अल्पसंखयकों की 2024 के आम चुनाव में प्रमुख भूमिका रहने वाली है।

तेजपाल सिंह 'तेज'
तेजपाल सिंह 'तेज'
लेखक हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार तथा साहित्यकार सम्मान से सम्मानित हैं और 2009 में स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त हो स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।

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