किसी भी देश और समाज को समझना हो तो सबसे आसान तरीका उसके साहित्य को पढ़ना है। साहित्य से हमें लोगों के रहन-सहन, सामाजिक व्यवहार, परम्पराएँ, किसी भी विषय पर सोचने के तौर-तरीके आदि के बारे में जानकारियां मिल जाती हैं। यह मुझे अरविंद प्रसाद मालाकार सर ने तब समझाया था जब मैं छठी कक्षा का छात्र था। मालाकार सर नक्षत्र मालाकार हाईस्कूल के प्रिंसिपल थे और शिक्षक भी। अंग्रेजी, संस्कृत और हिंदी पढ़ाते थे। वैसे पढ़ाते तो वह विज्ञान भी थे, लेकिन हिंदी और संस्कृत पर उनकी पकड़ अच्छी थी।
वह हमेशा कहते थे कि हिंदू धर्म एक महान धर्म है। यह धर्म हमें किसी के मूल्यांकन के लिए एक कसौटी देता है। इसके लिए वह कुछ श्लोक भी सुनाते थे। तब बहुत गुस्सा भी आता था जब वे कहते थे एक दानव होते हैं और दूसरे मानव। एक बार मैंने उनसे पूछा कि मानव और दानव में फर्क क्या है? दोनों तो इंसान ही होते हैं। दोनों के पास समान तरह के अंग होते हैं। दोनों के पास सोचने-समझने की क्षमता होती है। इस तरह के सवाल-जवाब चलते रहते थे उन दिनों। अब तो अनेक सवाल और उनके जवाब याद भी नहीं।
अभी दो दिन पहले की ही तो यह घटना है कि सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार को सुप्रीम कोर्ट ने पांच लाख रुपए की जुर्माने की सजा दी है। जबकि हिमांशु कुमार ने 2009 में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासियों की हत्या का सवाल उठाया था। अब यह देखें कि हिमांशु कुमार और नुपूर शर्मा दोनों ऊंची जातियों के हैं। लेकिन जनसत्ता के संपादक के लिए नुपूर शर्मा महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वह इस देश की नवीनतम देवी हैं और हिमांशु कुमार देवता नहीं हैं।
खैर, अरविंद प्रसाद मालाकार सर के कारण कहिए या फिर मेरे निरक्षर माता-पिता की इच्छा कि मुझे बचपन में हिंदू धर्म के अनेक ग्रंथ पढ़ने पड़े। रामायण से लेकर महाभारत और गीता तक। सब पढ़ा। तब मुझे एक बात बहुत खटकती थी। वह यह कि जब कभी विष्णु का कोई अवतार धरती पर चमत्कार करता तो आसमान से देवता-मुनि सब फूल बरसाते थे। मैं कई बातें सोचता था। एक तो यह कि आसमान धरती से कितना ऊंचा है। यदि कोई आसमान से फूलों की वर्षा करे तो क्या गति के नियम फूलों की पंखुड़ियों पर लागू नहीं होंगे। और फिर आसमान में फूल आए कहां से? वहां क्या फूलों की खेती होती है? या फिर धरती से फूल भेजे जाते हैं?
तब कहां समझ में आता था कि यह सब काल्पनिक बातें हैं और लोगाें को भ्रमित रखने के लिए गढ़े गए हैं। फिर तैंतीस करोड़ देवी-देवता होने का फलसफा भी कुछ कम फलसफा नहीं है। किशोरावस्था तक मुझे भी यही लगता था कि इतने सारे देवी-देवता होंगे। कौन जाने, किसके वेश में देवता भेंटा जाय। मेरे अंदर इस भावना को बनाने में पापा की अहम भूमिका रही। वह आज भी हिंदू धर्म को माननेवाले व्यक्ति हैं। उन दिनों भी थे। जब कभी मुझे स्कूल छोड़ने जाते तो जहां-जहां मंदिर दिखता, खुद तो हाथ जोड़ते ही थे, मुझसे भी जुड़वाते थे। एक बार बधार के रास्ते से पापा के साथ जा रहा था। एक जगह रूककर उन्होंने पूजा की। मैं सोच रहा था कि यहां तो कोई मंदिर भी नहीं है, फिर पापा किसकी पूजा कर रहे हैं। पूछा तो उन्होंने कहा कि यह रूपलाली बाबा का स्थान है। अब यह रूपलाली बाबा कौन थे, इसकी कहानी जो पापा ने सुनाई वह बेहद दिलचस्प और लंबी है। संक्षेप में केवल इतना ही कि वह विष्णु के अवतारी नहीं थे। एक यादव परिवार में जन्मे थे और अपनी भैंस को बचाने के लिए शेर से लड़ गए थे।
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तो समाज में ऐसे ही देवी-देवताओं का निर्धारण किया गया होगा। दुर्गा की कहानी भी कुछ ऐसे ही रही होगी। कोई खूबसूरत महिला होगी, जो देवताओं की एजेंट रही होगी और महिषासुर के यहां साजिश के तहत भेजी गयी होगी। गणेश का किरदार भी पूरी नौटंकी में ऐसे ही गढ़ा गया होगा। शंकर और पार्वती का चरित्र तो मुझे किसी नौटंकी का वह हिस्सा प्रतीत होता है, जिसमें लोगों को खास तरह से मनोरंजन किया जाता है। आप चाहें तो किसी फिल्म का गीत समझ सकते हैं। फिल्मों में भी तो यही होता है कि कहानी चल रही होती है और फिल्मकार को लगता है कि दर्शक बोर हो जाएंगे तो वह समय देख कहानी में गीत जोड़ देता है। पता नहीं अब जो फिल्में आ रही हैं, उनमें हीरो-हीरोइन के अलावा दर्जनों सह-कलाकार नाचते हुए दिखते हैं या नहीं। पहले की फिल्मों में ऐसे दृश्य खूब होते थे।
बहरहाल, आज के संदर्भ में बात करूं तो नुपूर शर्मा को भी देवी बनाने की कवायद चल रही है। भाजपा की इस नेता ने न्यूज चैनल पर एक डिबेट के दौरान इस्लाम के पवर्तक/ पैगंबर मुहम्मद पर टिप्पणी कर दी थी कि मुहम्मद साहब ने तेरह साल की लड़की से शादी की और उसे गर्भवती बना दिया। अच्छा एक बात और कि इस तरह की कहानियां अन्य धर्मों में भी मिल जाती है। बाइबिल में भी है और हिंदू धर्म में भी। हिंदू धर्म में तो ब्रह्मा और सरस्वती की कहानी है। सरस्वती को ब्रह्मा की मानस पुत्री कहा जाता है और जीवनसंगिनी भी। वैसे ब्रह्मा की एक पत्नी और थी, जिसका नाम सविता था।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने हाल ही में अपने एक फैसले में नुपूर शर्मा को लेकर सख्त टिप्पणी की थी। उनके मुताबिक, नुपूर शर्मा के कारण देशभर में माहौल खराब हुआ। रांची में गोलियां चलीं, प्रयागराज में पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा, उदयपुर में एक दर्जी की हत्या हो गई। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशद्वय ने दिल्ली पुलिस को नुपूर शर्मा को गिरफ्तार नहीं करने के लिए भी डांटा।
लेकिन कमाल की बात यह कि आजतक नुपूर शर्मा को गिरफ्तार नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त न्यायाधीशद्वय की उपरोक्त टिप्पणी के खिलाफ देश के कुछ मानिंद लोगों ने खुला पत्र लिखा और सुप्रीम कोर्ट की यह कहकर आलोचना की कि उसने लक्ष्मण रेखा को लांघ दिया है। इनमें दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसएन ढींगरा आदि शामिल रहे। कायदे से यह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मामला बनता है। लेकिन देश के अर्टानी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करनेवाले सभी लोगों के उपर अवमानना का मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी है। हालांकि मुझे इस बात का इंतजार है कि स्वयं सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में कुछ कहता है अथवा नहीं।
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अब आसमान से फूल कैसे बरसाये जाते हैं, इसका राज उजागर हो रहा है। दरअसल, फूल बरसाने का मतलब समर्थन करना है। ठीक वैसे ही जैसे भाजपा के सांसद जयंत सिन्हा ने हजारीबाग में तबरेज अंसारी के हत्यारे का सम्मान फूल-माला से किया था। या फिर आज के जनसत्ता के संपादकीय में केके वेणुगोपाल के कदम की सराहना की गयी है और एक तरह से उनका समर्थन किया गया है जो कि असल में नुपूर शर्मा का सम्मान करना है। जनसत्ता के संपादक का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को लेकर अब अनेक लोग अनेक बातें कर रहे हैं।अब किस किस के खिलाफ अवमाननावाद का मुकदमा दर्ज किया जाएगा।
ऐसे में यह सोचने की आवश्यकता है कि यदि केंद्र में नुपूर शर्मा ना होतीं तो क्या होता? अभी दो दिन पहले की ही तो यह घटना है कि सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार को सुप्रीम कोर्ट ने पांच लाख रुपए की जुर्माने की सजा दी है। जबकि हिमांशु कुमार ने 2009 में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासियों की हत्या का सवाल उठाया था। अब यह देखें कि हिमांशु कुमार और नुपूर शर्मा दोनों ऊंची जातियों के हैं। लेकिन जनसत्ता के संपादक के लिए नुपूर शर्मा महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वह इस देश की नवीनतम देवी हैं और हिमांशु कुमार देवता नहीं हैं। वैसे भी आदिवासियों की बात करनेवाला, दलितों की बात करनेवाला, पिछड़े वर्गों की बात करनेवाला देवता कैसे हो सकता है?
नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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