साल 2012 में दिल्ली में एक रेप हुआ था। इस रेप की भयावहता ने पूरे देश में एक आन्दोलन खड़ा कर दिया। उस समय केंद्र के साथ दिल्ली राज्य में भी कांग्रेस की सरकार थी। दिल्ली की इस घटना को लेकर देश भर में प्रदर्शन किये गए। कांग्रेस सरकार की जमकर किरकिरी हुई। इस मामले को लेकर कांग्रेस को घेरने और उसके खिलाफ माहौल बनाने में विपक्ष की पार्टी भाजपा को बड़ी मदद मिली। इस आन्दोलन ने पूरे देश में कांग्रेस को जहाँ कटघरे में खड़ा किया वहीं भाजपा के लिए जमीन भी तैयार की। इसके बाद भाजपा और उसके समर्थक कांग्रेस को तमाम मुद्दों के साथ महिला सुरक्षा के मुद्दे पर भी लगातार घेरते रहे। सन 2014 में लोक सभा का चुनाव हुआ और इस तरह के आंदोलनों ने भाजपा को सत्ता में पंहुचा दिया। देश को उम्मीद थी लगातार महिला मुद्दों पर कांग्रेस को घेरने वाली भाजपा के सरकार में आने के बाद देश में महिला असुरक्षा का खतरा ख़त्म होगा । अब जबकि इस घटना के दस साल पूरे हो चुके हैं तब जरूरी हो जाता है कि बीते दस सालों की रेप की घटनाओं का मूल्कयांकन करें।
16 दिसम्बर, 2012 यानी निर्भया सामूहिक यौन हिंसा केस। जब राजधानी दिल्ली की सड़कें आन्दोलनकारियों से भर गई थीं। इसी केस के बाद तत्कालीन यूपीए-2 सरकार ने जस्टिस वर्मा कमेटी गठित की और उनके सुझावों को क़ानून का शक्ल दिया, बावजूद इसके इस केस के कारण तत्कालीन सरकार सत्ता से बेदख़ल हो गई। इसके बाद लोगों को लगा की क़ानून बदल गए, सरकार बदल गई तो महिलाओं के ख़िलाफ़ हालात भी बदल गए होंगे। लेकिन सच यह है कि इसके बाद सिर्फ़ दो चीजें हुई हैं। महिलाओं को ख़िलाफ़ यौन हिंसा की क्रूरता और संख्या दोनों बढ़े हैं। वहीं, पिछले 9 सालों में सरकार यौन हिंसा मामलों पर या तो चुप है या फिर खुलकर बलात्कारियों के साथ खड़ी नज़र आई है।
कुछ आंकड़े
जिस साल निर्भया केस हुआ था, उस दौरान राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ़ यौन-हिंसा के रोज़ाना 68 मामले दर्ज़ किए जा रहे थे। जबकि नरेंद्र मोदी के पहले शासन के आखिरी साल यानी 2018 तक यौन हिंसा मामले बढ़कर रोज़ाना 90 केस हो गए। साल 2012 में जहां कुल 24,923 मामले दर्ज़ हुए वहीं साल 2018 में 33% बढ़ोत्तरी के साथ 33,356 मामले दर्ज़ किये गए। कोरोनाकाल में इनमें थोड़ी कमी दर्ज़ की गई। पूरे देश में साल 2020 में यौन हिंसा के रोजाना औसतन 77 मामले दर्ज़ किए गए और कुल 28,046 मामले सामने आए। 2021 में देश में रेप के 31,677 मामले दर्ज़ किए गए। इसका मतलब है औसतन 86 मामले रोज़। लेकिन यह असल आंकड़े नहीं हैं।
[bs-quote quote=”यह विश्वास हिंदू पुरुषों के लिए मुस्लिम स्त्री वर्ग को उनके अत्याचार के लिए सजा देने के लिए एक बाधा बन गया। सावरकरवादी (हिंदुत्ववादी) विचारधारा के अनुसार केवल उन नैतिक संहिताओं का पालन किया जाना चाहिए, जो हिंदुओं को मुसलमानों पर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सक्षम बनाती हैं। इस प्रकार सावरकर के तर्क के मुताबिक आज दंगों में मुस्लिम महिलाओं का बलात्कार करना उचित है, क्योंकि यह मध्ययुगीन काल में मुसलमानों की बर्बरता का बदला है, चाहे सिद्ध हो या अन्यथा। आखिरकार, आज के दंगे ऐतिहासिक संघर्ष की अभिव्यक्ति हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
अपराध के वर्गीकरण का विवादित नियम
दरअसल, निर्भया केस के बाद क़ानून ज़्यादा सख़्त हुए हैं। नतीजा यह हुआ कि यौन हिंसा के साथ हत्या के मामले काफी ज़्यादा बढ़ गए हैं। जबकि एनसीआरबी की रिपोर्ट को प्रधान अपराध नियम के तहत बांटकर प्रकाशित किया जाता है। प्रधान अपराध नियम कहता है कि ऐसे मामले में जहां एक साथ कई अपराध दर्ज़ किए गए हों, गिनती के समय केवल ‘सबसे जघन्य अपराध’, जिसमें सबसे कड़ी सजा होती है, उसी पर विचार किया जाएगा। उदाहरण के लिए ‘मर्डर विद रेप’ को केवल ‘मर्डर’ के रूप में गिना जाता है। इससे रेप की गणना कम हो जाती है। एनसीआरबी खुद भी मानता है कि उनके आंकड़ों की सीमाएं हैं। एनसीआरबी रिपोर्ट में शामिल अपराध का डेटा स्थानीय, जिला और राज्य स्तर से होते हुए अंत में एनसीआरबी तक पहुंचता है। ऐसे में डेटा की क्षमता पर संदेह होता है, क्योंकि स्थानीय स्तर पर पुलिस अधिकारियों की कमी डेटा संग्रह में बड़ी बाधा है। इसके अलावा एनसीआरबी के पास स्थानीय स्तर से जो डेटा भेजा जाता है वह वास्तविक अपराध के बजाय पंजीकृत अपराध की घटनाओं का रिकॉर्ड होता है।
जब बलात्कारी खुद सत्ता में हो या सत्ता उनके साथ हो
जनवरी 2018 में कठुआ में 8 साल की बच्ची आसिफ़ा के साथ मंदिर में एक सप्ताह तक सामूहिक यौन-हिंसा के बाद हत्या करके फेंक दिया गया था। कठुआ के वकीलों ने आरोप पत्र दाख़िल करने से रोकने के लिए अदालत के बाहर हंगामा किया। वकीलों के समर्थन में निकाली एक रैली में भाजपा विधायक राजीव जसरोटिया और दूसरे नेता भी शामिल हुए। इतना ही नहीं तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार में भाजपा के दो मंत्री चौधरी लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा ने बलात्कारियों के समर्थन में हिंदू एकता मंच के तिरंगा यात्रा में शामिल हुए था।
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साल 2017-18 में उन्नाव जिले के बांगरमऊ से भाजपा विधायक और उनके भाई ने एक लड़की के साथ सामूहिक यौन हिंसा किया। फर्जी केस लगाकर पुलिस लड़की के पिता को ही थाने ले गई। वहां पुलिस कस्टडी में उसे इतना पीटा गया कि उनकी मौत हो गई। लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी विधायक गिरफ्तार नहीं किया गया। तब लड़की और उसकी माँ आत्मदाह करने मुख्यमंत्री आवास पहुंचे। बाद में सुप्रीमकोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर भाजपा विधायक गिरफ्तार हुआ।
भाजपा सांसद चिन्मयानंद पर अपनी शिष्या से बलात्कार का केस मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वापस ले लिया। बाद में चिन्मयानंद का नंगे होकर छात्रा से मालिश कराने का वीडियो वायरल हुआ, तो पीड़ित छात्रा पर ही ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाकर पुलिस ने उसे गिरफ़्तार कर लिया। इस मामले में चिन्मयानंद का बाल भी बांका न हुआ।
हाथरस केस तो सबके सामने ही है। जहां पीड़िता के परिजनों को उनके घर में ही कैद करके पुलिसवालों ने आधी रात में लड़की का दाह संस्कार कर दिया। सवर्ण बलात्कारियों को बचाने के लिए शासन-प्रशासन ने पूरा दम झोंक दिया। मीडिया को बैन कर दिया गया। नेताओं पर लाठीचार्ज किए गए।
भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने भारतीय पहलवान संघ का अध्यक्ष रहते हुए सैंकड़ों महिला पहलवानों का यौन शोषण किया। इसके ख़िलाफ़ महिला पहलवान पिछले दो महीने से दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरनारत थीं, आज भी पुलिस उन पर हमले कर रही है। सरकार एकदम चुप्प है। आरोपी बृजभूषण सिंह मीडिया में रोज़-ब-रोज़ अनाप-शनाप बयान दे रहा है।
ताजा मामला बस्ती का है, जहाँ भाजपा के तीन स्थानीय नेताओं ने मिलकर एक लड़की के साथ सामूहिक यौन हिंसा करके उसकी हत्या कर दी और उसकी लाश घसीटकर बाहर फेंक दिया।
हिन्दू पुरुष की सोच में बलात्कारी मानसिकता पैदा करने वाला सावरकर
द्विराष्ट्र सिद्धांत के जनक और हिन्दू राष्ट्र के पैरोकार विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने और उनके जन्मदिन पर नए संसद का उद्घाटन करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके कितने बड़े अनुयाई हैं। सावरकर ने यौन-हिंसा को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के विचार को न्यायसंगत ठहराया है। सावरकर ने अपनी किताब भारतीय इतिहास के छह वैभवशाली युग में यौन-हिंसा के विचार को एक राजनीतिक उपकरण के रूप में पेश किया है। सावरकर लिखते हैं कि शत्रु समहू की जनसंख्या को प्रभावित करने के लिए उनकी स्त्रियों का अपहरण, बलात्कार और धर्म परिवर्तन कराना समाज के हित में है। इसके लिए वो अफ्रीकी जनजातियों और भारतीय नागा जनजातियों और मुस्लिम शासकों का उदाहरण देते हैं।
इसके लिए सावरकर ने अपनी पुस्तक सिक्स ग्लोरियस एपोक्स ऑफ इण्डियन हिस्ट्री में ‘हिंदू सदाचार’ के विचार को फिर से परिभाषित किया है। सावरकर रावण को उद्धृत करते हुए कहते हैं, जब रावण के शुभचिंतकों ने उसे सलाह दी कि वे अपहृत सीता को राम के पास लौटा दें, क्योंकि सीता का अपहरण करना बेहद अधार्मिक था। तब रावण ने कहा, ‘शत्रु की स्त्री का अपहरण और बलात्कार करना परोधर्म है, सबसे बड़ा कर्तव्य। उन्होंने अपनी किताब के आठवें अध्याय, ‘गुणों की विकृत अवधारणा’ में नैतिकता के अपने दर्शन को उजागर करते हुए लिखते हैं- ‘वास्तव में गुण और अवगुण केवल सापेक्ष शब्द हैं।’ सावरकर ने कहते हैं कि सद्गुण या अवगुण क्या है, यह निर्धारित करने की कसौटी। यह जांचना है कि क्या समाज, विशेष रूप से हिंदू हितों की सेवा करता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि परिस्थितियां बदलती हैं, समाज हमेशा प्रवाह में रहता है। अतीत में जिसे पुण्य माना जाता था, वह वर्तमान में पाप बन सकता है यद्यपि यह मानव जाति के लिए हानिकारक है।
सावरकर ने शिवाजी पर अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा है कि शिवाजी की वीरता विकृत थी, क्योंकि यह हिंदू समाज के लिए अत्यधिक हानिकारक साबित हुई थी। यह वीरता ‘आत्मघाती’ थी, क्योंकि इसने ‘मुस्लिम महिलाओं को (सिर्फ़ इसलिए कि वे महिलाएं थीं) हिंदू महिलाओं के खिलाफ़ अवर्णनीय गंभीर अपराध करने की भारी सजा से बचाया। सावरकर ने अपनी किताब में अपने विजय अभियान के दौरान पकड़ी गयी मुस्लिम महिलाओं के प्रति शिवाजी की मानवीय और उदार रवैये की आलोचना की है। सावरकर ने इतिहास का बदला वर्तमान महिलाओं से लेने की बात करते हुए लिखा है कि छत्रपति शिवाजी और चिमाजी अप्पा द्वारा मुस्लिम गवर्नर की बहू और बेसिन के पुर्तगाली गवर्नर की पत्नी को सम्मानपूर्वक वापस भेज दिया गया। लेकिन क्या यह अजीब नहीं है कि जब उन्होंने ऐसा किया तो न शिवाजी और न ही चिमाजी अप्पा को महमूद गजनी, मुहम्मद गोरी, अलाउदीन खिलज़ी और अन्य द्वारा हजारों लोगों पर किए गए अत्याचार को याद रखना चाहिए। सावरकर ने आगे लिखा है कि हिन्दू देवियों और लड़कियों की… लाखों पीड़ित हिन्दू महिलाओं की करुण चीखें और दयनीय विलाप, जो पूरे देश में गूंज रहे थे, क्या शिवाजी महाराज और चिमाजी अप्पा के कानों तक नहीं पहुंचे।’
सावरकर ने आगे लिखा है कि’ उन लाखों पीड़ित महिलाओं की आत्मा ने शायद कहा होगा- ‘मत भूलो, महाराज छत्रपति शिवाजी और हे! महामहिम चिमाजी अप्पा, सुल्तानों और मुस्लिम रईसों और हजारों अन्य, बड़े और छोटे लोगों द्वारा हम पर किए गए अकथनीय अत्याचार और उत्पीड़न और आक्रोश।
सावरकर यौन हिंसा के राजनीतिक इस्तेमाल की बात करते हुए लिखते हैं कि यदि हिन्दू शासकों ने पहली दो या तीन शताब्दियों में ऐसा डर बनाया होता तो लाखों-करोड़ों भाग्यहीन हिंदू महिलाओं को उनके सभी अपमानों, अपने स्वयं के धर्म की हानि, बलात्कार, तोड़-फोड़ और अन्य अकल्पनीय उत्पीड़न से बचा लिया गया होता।
सावरकर ने बलात्कार को धर्म कार्य बताया
सावरकर ने हिन्दुओं से नाखुशी जताते हुए अपनी किताब में लिखा है कि हिंदुओं के बीच मूर्खतापूर्ण धारणा थी कि ‘मुस्लिम महिला के साथ किसी भी तरह के संबंध का मतलब इस्लाम में उनका खुद का धर्मांतरण था।’ यह विश्वास हिंदू पुरुषों के लिए मुस्लिम स्त्री वर्ग को उनके अत्याचार के लिए सजा देने के लिए एक बाधा बन गया। सावरकरवादी (हिंदुत्ववादी) विचारधारा के अनुसार केवल उन नैतिक संहिताओं का पालन किया जाना चाहिए, जो हिंदुओं को मुसलमानों पर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सक्षम बनाती हैं। इस प्रकार सावरकर के तर्क के मुताबिक आज दंगों में मुस्लिम महिलाओं का बलात्कार करना उचित है, क्योंकि यह मध्ययुगीन काल में मुसलमानों की बर्बरता का बदला है, चाहे सिद्ध हो या अन्यथा। आखिरकार, आज के दंगे ऐतिहासिक संघर्ष की अभिव्यक्ति हैं।
[bs-quote quote=”भाजपा सासंद, आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के नेता लगातार हिन्दू स्त्रियों को चार बच्चे, आठ बच्चे, 12 बच्चे पैदा करने की सलाह देते आ रहे हैं। ये सब हवा में नहीं दे रहे हैं, बयान सबके निहितार्थ हैं। प्रधानमंत्री समय के पहिये को पीछे धकेल रहे हैं। नए संसद में राजदंड और राजसत्ता के प्रतीक सेंगोल को स्थापित किया जा चुका है। स्त्रियां चूल्हा-चौका छोड़कर पहलवानी कर रही हैं। जबकि सामंतवादी समाज में पहलवानी तो मर्दों का शगल रहा है। बृजभूषण शरण सिंह ने तो मोदी के मुहिम में अमूल्य योगदान किया है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
प्रधानमंत्री बनने के बाद यौन हिंसा पर मोदी की चुप्पी
भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने निर्भया केस के बाद दिल्ली की एक चुनावी सभा में दिल्ली को रेप कैपिटल कहा था। उन्होंने 2 दिसम्बर, 2013 को एक चुनावी जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा था कि ‘इस (दिल्ली) ने रेप कैपिटल के रूप में बदनामी अर्जित की है। जब आप वोट दें तो इसे न भूलें। थोड़ी देर के लिए निर्भया को याद करें। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने यौन-हिंसा की एक भी घटना पर एक शब्द भी नहीं बोला है। इस देश में पिछले 9 साल में बहुत-सी यौन शोषण की घटनाएं हुईं, पर किसी एक पर भी नरेंद्र मोदी ने आज तक कुछ नहीं बोला।
दूसरी बात, प्रधानमंत्री मोदी अपने ही भाई-बंधु, संगठन और सरकार के लोगों के ख़िलाफ़ क्यों बोले? जबकि भगवा गिरोह द्वारा यौन शोषण का इतिहास रहा है। एक सप्ताह पहले की ख़बर है हमीरपुर जिले में कक्षा 9 के छात्र के साथ कुकर्म और उसकी हत्या के साल 2007 के एक मामले में आरएसएस के जिला प्रचारक हरनाम सिंह सेंगर को कोर्ट ने दोषी करार दिया है। साल 2013 में नरेंद्र मोदी जब भाजपा के प्रधानमंत्री प्रत्याशी नहीं बने थे, तब उनकी एक महिला के साथ सीडी को लेकर ख़ूब बवाल मचा था। खोजी वेबसाइट गुलेल ने एक महिला आर्किटेक्ट के साथ मोदी की तस्वीर ज़ारी की थी। नरेंद्र मोदी ने उक्त महिला की ज़ासूसी में दो राज्यों की पुलिस और खुफिया एंजेंसी को लगा रखा था। इसी महिला के साथ नरेंद्र मोदी की सीडी बनाने के शक़ में गुजरात की मोदी सरकार ने कच्छ के जिलाधिकारी प्रदीप शर्मा पर गबन का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया था। खुद नरेंद्र मोदी ने पार्टी में अपने प्रतिद्वंदी संजय जोशी को किनारे लगाने के लिए उनकी सीडी का इस्तेमाल किया था। कहने का मतलब यह कि सब के सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं, तो चुप क्यों न रहें? चुप्पी का केवल एक मतलब होता है सहमति और समर्थन।
यह चुप्पी एक सांस्कृतिक-राजनीतिक निहितार्थ में है। संस्कृति की लैंगिक राजनीति को समझने की ज़रूरत है। भगवा राजनीति की लिंग संस्कृति को समझने की ज़रूरत है। महिलाओं की अधीनता को मोटे तौर पर स्त्री-पुरुष के बीच जैविक फर्क के आधार पर ही सही ठहराया जाता है। ऐसे दार्शनिक तर्क मौजूद हैं, जो तमाम तरह के उत्पीड़नों को कुदरती या प्राकृतिक कहकर जायज ठहराते हैं। इस तर्क के साथ जो कुदरती है, वो अपरिवर्तनीय भी है, लिहाजा जायज है। ऐसे तर्क को जैविक निर्धारणवाद (biological determinism) कहा जाता है। और दुनिया का लगभग हर धर्म इसी धारणा पर आधारित है। जाति व्यवस्था और नस्लवाद इस प्रवृत्ति के दो सटीक उदाहरण हैं। क्योंकि दोनों विचारधाराएं इसी मान्यता पर आधारित है कि व्यक्तियों का कुछ समूह पैदाइशी तौर पर श्रेष्ठ है। और उनकी बौद्धिक क्षमता और निपुणताएं शेष लोगों से अधिक विकसित हैं। इसलिए समाज में इनकी उच्चतर हैसियत और सत्ता जायज़ है। जैविक निर्धारणवाद ही महिला उत्पीड़न को भी सदियों से वैधता प्रदान करता आ रहा है, लेकिन महिलाएं पहलवानी करके न सिर्फ़ जैव निर्धारणवाद की अवधारणा को चुनौती दे रही हैं. बल्कि धर्म को भी चुनौती दे रही है और पितृसत्ता को भी तुनौती दे रही है।
ऐसे में सबसे कारगर हथियार है यौन हिंसा, लड़कियों-महिलाओं को देहरी के भीतर धकेलने, उन्हें बच्चा पैदा करने की मशीन बनाने का। भाजपा सासंद, आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के नेता लगातार हिन्दू स्त्रियों को चार बच्चे, आठ बच्चे, 12 बच्चे पैदा करने की सलाह देते आ रहे हैं। ये सब हवा में नहीं दे रहे हैं, बयान सबके निहितार्थ हैं। प्रधानमंत्री समय के पहिये को पीछे धकेल रहे हैं। नए संसद में राजदंड और राजसत्ता के प्रतीक सेंगोल को स्थापित किया जा चुका है। स्त्रियां चूल्हा-चौका छोड़कर पहलवानी कर रही हैं। जबकि सामंतवादी समाज में पहलवानी तो मर्दों का शगल रहा है। बृजभूषण शरण सिंह ने तो मोदी के मुहिम में अमूल्य योगदान किया है। फिर मोदी चुप न रहें तो क्या करें? बलात्कार एक सांस्कृतिक हथियार रहा है। पुराणों में जिक्र है कि विष्णु ने जलंधर को मारने से पहले धर्म रक्षा हेतु उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग (यौन शोषण) किया। तो यौनशोषण धर्म कार्य है। सारे भाजपाई, आरएसएस, विहिप और बजरंगदल के लोग धर्म बचाने के कार्य में ही तो लगे हुए हैं। फिर धर्म भी तो कहता है- ‘वीर भोग्या वसुंधरा’। ऐसे में नरेंद्र मोदी की चुप्पी तोड़ने से धर्मकार्य में बाधा उत्पन्न होगी। रही बात महिला पहलवानों के न्याय की लड़ाई की, तो उसे इस देश की जनता को लड़ना होगा।
सुशील मानव प्रयागराज स्थित गाँव के लोग डॉट कॉम के संवाददाता हैं।