रक्षा विशेषज्ञ सेवानिवृत्त मेजर जनरल यश मोर के अनुसार जिस दिन सैनिकों की भर्ती में आर्थिक बचत हमारी प्राथमिकता बन जाएगी वह दिन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा। रिटायर्ड मेजर जनरल बी एस धनोवा कहते हैं कि पेशेवर सेनाएं रोजगार कार्यक्रम नहीं चलाया करतीं। इन पूर्व सैन्य अधिकारियों ने अनेक गंभीर प्रश्न उठाए हैं जो अब तक अनुत्तरित हैं। यद्यपि सरकार के कहने पर सेवारत थ्री स्टार कमांडर्स को उनके संबंधित सर्विस मुख्यालयों द्वारा यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे असंतुष्ट सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों से संपर्क करें और उन्हें अग्निवीर योजना के लाभों के विषय में जानकारी दें ताकि इस योजना के प्रति उनकी राय बदल सके। किंतु अनेक बुनियादी सवालों का जवाब न तो सरकार के पास है और न ही उसमें यह विनम्रता दिखाई देती है कि वह अपने कदम पीछे खींचे एवं कोई नई अधिक तर्कपूर्ण और व्यावहारिक पहल करे।
क्या इन नए नवेले अग्निवीरों को गुप्त मिशनों पर भेजा जा सकता है? क्या इन्हें गोपनीय उत्तरदायित्व दिए जा सकते हैं? जिन 75 प्रतिशत अग्निवीरों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा क्या उनसे यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे ऐसे गोपनीय अभियानों के रहस्यों और खुफिया जानकारियों को स्वयं तक सीमित रखेंगे और उनका दुरुपयोग नहीं करेंगे? ऐसे कम उम्र युवा वैसे भी जरा से अपमान और उपेक्षा से आहत हो जाते हैं और यहां तो उन्हें अयोग्य मान कर सेवा से बाहर निकाला गया है।
रक्षा विशेषज्ञों और पूर्व सैन्य अधिकारियों की आपत्तियां अनेक हैं। इतनी अल्प अवधि में किन 25 प्रतिशत अग्निवीरों को आगे की सेवा के लिए रखना है और किन 75 प्रतिशत अग्निवीरों को बाहर का रास्ता दिखाना है यह तय करना असंभव है। उनकी योग्यता और क्षमता के आकलन के लिए यह अवधि बड़ी छोटी है।
लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश कटोच के अनुसार सरकार सेना के उस अद्वितीय रेजीमेंटल सिस्टम को मिटा देना चाहती है जो वास्तविक युद्ध में जमीनी लड़ाकों के आपसी तालमेल की आधारशिला है। सरकार 'सबका साथ सबका विकास' के घातक अनुप्रयोगों द्वारा 'नाम, नमक और निशान' की समय सिद्ध सैन्य परिपाटी को समाप्त कर देना चाहती है जिसके बलबूते पर हमने युद्ध लड़े और जीते हैं।
रिटायरमेंट के बाद महज बारह लाख रुपये में नौजवान क्या कर सकता है?
डॉ. राजू पाण्डेय लेखक हैं और रायगढ़ में रहते हैं।
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