Monday, May 13, 2024
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मुफ्त की चाय कभी पी है आपने? (डायरी 16 जून, 2022)

लोकोक्तियों और मुहावरों का अपना ही महत्व होता है। फिर चाहे वह किसी भी भाषा या बोली के क्यों ना हों। बाजदफा तो ये इतने अलहदा होते हैं कि इनके अर्थ में असीम विस्तार होता है। अब एक कहावत है– हलवाई का कुत्ता सुगंध से ही मस्त रहता है। अब यह एक नायाब उदाहरण है। […]

लोकोक्तियों और मुहावरों का अपना ही महत्व होता है। फिर चाहे वह किसी भी भाषा या बोली के क्यों ना हों। बाजदफा तो ये इतने अलहदा होते हैं कि इनके अर्थ में असीम विस्तार होता है। अब एक कहावत है– हलवाई का कुत्ता सुगंध से ही मस्त रहता है। अब यह एक नायाब उदाहरण है। कुत्ता यहां बिंब है और देखिए तो कितनों का प्रतिनिधित्व करता है। हम चाहें तो इसे बेगार प्रथा से जोड़कर देख सकते हैं। मतलब यह कि भारतीय समाज का वह तबका, जो भूमिहीन है, उसके पास कोई विकल्प ही नहीं है। आप चाहें तो इस रूपक से भारत की आज की नौजवान पीढ़ी को समझ सकते हैं। सबको नचावत एक गोसाईं… वाली कहावत चरितार्थ होती दिखती ही है। फिर चाहे मसला कुछ भी हो।

ऐसे ही एक कहावत अंग्रेजी में है– नो फ्री लंचेज। अब हिंदी इसका मान्य अनुवाद है- मुफ्त की कोई चाय नहीं पिलाता। मतलब यह कि कारण का होना महत्वपूर्ण है। अकारण कुछ भी नहीं होता।

[bs-quote quote=”कमाल की बात यह कि नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार में गजब की समानता है। नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल के सदस्यों को भी उनसे मिलने के लिए अप्वाइंटमेंट लेना पड़ता है और नरेंद्र मोदी के कैबिनेट के सदस्यों को भी। ” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

खैर, मैं तो यह देखकर हैरान हूं कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह टांग डाल रहे हैं। यह सचमुच हैरान करनेवाली ही बात है।

दरअसल, राजनाथ सिंह द्वारा एक साल के अंदर कांट्रैक्ट पर 46 हजार नौजवानों को सैनिक के रूप में बहाली के ऐलान का पूरे देश में विरोध हो रहा है। खासकर बिहार में, जहां रोजगार के अवसर इतने कम हैं कि नौजवान अन्य प्रकार की नौकरियों के बदले सैनिक बनना अधिक पसंद करते हैं। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि बिहार के नौजवान बहुत बहादुर होते हैं। मैं यह भी नहीं कहूंगा कि वे बहुत बड़े देशभक्त होते हैं। मुझे तो बस एक ही बात समझ में आती है कि बिहार एक गरीब और बेरोजगार राज्य है। इसलिए चाहे वह सेना की नौकरी हो या फिर किसी और तरह का काम, बिहार के नौजवान मिलने पर करते ज़रूर हैं। करते इसलिए हैं क्योंकि उनके पास विकल्प नहीं है।

अब कल ही बिहार की राजधानी पटना, बक्सर और मुजफ्फरपुर में नौजवानों केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना का विरोध किया। उनका कहना है कि सरकार उनसे अब यह विकल्प भी छीन रही है और एक तरह से अंधकारमय भविष्य की ओर धकेल रही है।

वैसे देखें तो उनका विरोध सही है। वर्तमान में सेना में बहाल होनेवाले नौजवानों के पास एक सुरक्षित भविष्य होता है। पेंशन की सुविधा मिलती है। दूसरा यह कि सामाजिक रूतबा भी होता है। अब सोचिए कि यदि कोई चार साल के लिए सैनिक बनेगा तो उसका रूतबा क्या होगा? मैं तो उनके मनोबल के बारे में सोच रहा हूं। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब मैं यह बात सोच रहा हूं। इसके पहले भी बिहार में नियोजित शिक्षकों के मामले में अपनी रपटों में इसका उल्लेख कर चुका हूं। एक घटना याद आ रही है। यह दारोगा प्रसाद राय हाईस्कूल, चितकोहरा, पटना से जुड़ी है। पटना का यह वही स्कूल है, जहां से मैंने मैट्रिक तक की पढ़ाई की। तीन साल पहले जब पटना गया था एक सप्ताह के लिए तो अपने स्कूल का हाल देखने चला गया। वहां शिक्षकों से मिला। सारे शिक्षक नये थे। कुछेक पुराने शिक्षकों का निधन होने की जानकारी भी वहीं से मिली। केवल एक शिक्षिका थीं, जिन्होंने मुझे संस्कृत पढ़ाया था। नाम था- शोभा मैम।

शोभा मैम से बातचीत हुई। उन्होंने अपना दुख भी व्यक्त किया कि वह सबसे वरिष्ठ हैं और इसके बावजूद उन्हें प्रिंसिपल नहीं बनाया गया है। इसके अलावा उनका एक दुख और सामने आया जब उन्होंने अपने बच्चों के बारे में जानकारी दी। उनका कहना है कि उनका एक बेटा नियोजित शिक्षक है। उसकी पगार बहुत कम है। उनका कहना था कि एक ही तरह के काम के लिए मुझे उससे पांच गुणा अधिक वेतन मिलता है। आगे उसकी नौकरी रहेगी या नहीं, यह चिंता अलग है।

खैर, कांट्रैक्ट पर सैनिकों की बहाली के मामले में अमित शाह का कल का बयान एक साथ कई तरह के संकेत देता है। एक तो यही कि शाह की हैसियत नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में राजनाथ सिंह की तुलना में बहुत अधिक है। यदि ऐसा नहीं होता तो शाह उनके मामले में टांग डालने की सोच भी नहीं सकते थे।

दरअसल, आरएसएस ने यही किया है। भाजपा के उन नेताओं को अपमानजनक तरीके से हाशिए पर कर दिया है, जिन्होंने भाजपा को राजनीतिक पार्टी के रूप में स्थापित किया। फिर चाहे वह लालकृष्ण आडवाणी हों या राजनाथ सिंह। नीतिन गडकरी की हैसियत भी बहुत अधिक नहीं है।

कमाल की बात यह कि नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार में गजब की समानता है। नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल के सदस्यों को भी उनसे मिलने के लिए अप्वाइंटमेंट लेना पड़ता है और नरेंद्र मोदी के कैबिनेट के सदस्यों को भी।

रामविलास पासवान अब इस दुनिया में नहीं हैं। एक बार उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त की थी। उनका कहना था कि वे अनेक प्रधानमंत्रियों के कैबिनेट में रहे। लेकिन नरेंद्र मोदी को छोड़ अन्य सभी से मिलने के लिए कभी अप्वाइंटमेंट नहीं लेना पड़ता था। बस ज़रूरत होती तो फोन पर सूचना दे देता था। कई बार बिना सूचना दिये भी चला जाता। मनमोहन सिंह सबसे खास थे।

जैसे नरेंद्र मोदी के लिए अमित शाह हैं, वैसे ही नीतीश कुमार के लिए भी दो-ढाई मंत्री हैं। इन्हें नीतीश कुमार के बेडरूम तक बिना दरवाजा खटखटाए जाने का अधिकार हासिल है।

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खैर, अमित शाह ने अग्निपथ योजना मामले में राजनाथ सिंह को किनारे करते हुए एलान किया कि अग्निवीरों को चार साल के बाद सेवानिवृत्ति के उपरांत असम राइफल्स और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल में बहाली में वरीयता दी जाएगी। साथ ही उन्होंने यह जोर देते हुए कहा कि सेवानिवृत्ति के उपरांत नौजवानों को करीब ग्यारह लाख रुपए मिलेंगे। उन्होंने इसे दुहराते हुए कहा- ग्यारह लाख रुपए। मतलब यह कि देयर आर नो फ्री लंचेज

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

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