भारत के शासकों ने देश के अखबारों के जैसे अपनी परिभाषा बदल ली है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे इस देश के पुलिस थाने करते हैं। मतलब यह कि सीमा को लेकर आए दिन देश के आम लोग परेशान होते रहते हैं। कौन सा इलाका किस थाने में पड़ता है, जबतक यह जानकारी ना हो, तब तक आदमी थाने में जाकर अपनी रपट भी दर्ज नहीं करा सकता और यदि गलती से वह किसी दूसरे थाने में चला गया तब उसे उस थाने के कर्मियों से डांट सुनने को मिलती है। ऐसे हालात महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा वाले मामले में भी सामने आते हैं, जबकि जीरो एफआईआर की व्यवस्था है। इस व्यवस्था के अनुसार घटना चाहे कहीं भी हो, पीड़िता अपनी रपट किसी भी थाने में दर्ज करवा सकती है। अब यह पुलिस का काम है कि घटनास्थल का पता लगाकर संबंधित थाने को मामला सुपुर्द करे।
लेकिन भारत में कानून का राज केवल कागजों में होता है। कागजों में ही यह बात भी है कि इस देश के शीर्ष पदों पर काबिज आदमी पूरे देश के लिए होता है। वह केवल खास राज्यों के लिए नहीं होता। वह यह कहकर अपना पल्ला झाड़ नहीं सकता है कि फलाने राज्य में उसकी पार्टी की सरकार नहीं है तो वह उस राज्य में होनेवाली घटनाओं की जिम्मेदारी नहीं ले सकता है।
[bs-quote quote=”निर्मला सीतारमण ने लखीमपुर खीरी नरसंहार की आलोचना की। इस घटना को निंदनीय कहा और यह भी कि इस घटना में प्रधानमंत्री द्वारा कोई शोक व्यक्त नहीं किया जाना कहीं से गलत नहीं है। उनके मुताबिक यह बेहद सामान्य घटना थी और ऐसी घटनाएं देश के अलग-अलग हिस्से में होती रहती हैं। उन राज्यों में भी जहां भाजपा की सरकारें नहीं हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि ऐसा ही कहा है केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिका में जाकर। वह वहां हार्वर्ड केनेडी स्कूल में बोल रही थीं। वहां के छात्रों ने लखीमपुर खीरी नरसंहर का सवाल उठाया तो सीतारमण ने जवाब दिया है कि हर मामले में प्रधानमंत्री को नहीं घसीटा जाना चाहिए। भारत में और भी राज्य हैं, जहां ऐसी ही घटनाएं हो रही हैं, लेकिन उनके संबंध में सवाल नहीं उठाया जा रहा है। चूंकि उत्तर प्रदेश जहां यह घटना घटित हुई है, जो कि निंदनीय है, वहां हमारी पार्टी की सरकार है और इस मामले में हमारे कैबिनेट सहयोगी का बेटा मुश्किल में है, यह सवाल उठाया जा रहा है। सीतारमण ने सवाल को ही गलत बताते हुए कहा कि सवाल तथ्यों के आधार पर होने चाहिए ना कि पसंद अथवा नापसंद के आधार पर।
सीतारमण ने अमर्त्य सेन द्वारा केंद्र सरकार पर उठाए गए सवालों के जवाब में कहा कि वे भारत जाते रहते हैं और पूरी स्वतंत्रता से घूमते रहते हैं। उन्हें कोई रोक-टोक नहीं है। लेकिन वे अपनी पसंद और नापसंद के हिसाब से टिप्पणियां करते हैं। सीतारमण ने छात्रों को उदाहरण देते हुए कहा कि यदि कोई सचमुच नींद में है तो उसके कंधे पर हाथ मारकर कहा जा सकता है कि अब उठ जाओ। लेकिन यदि कोई सोने का अभिनय कर रहा है तो क्या वह हाथ मारने से भी उठेगा।
कुल मिलाकर यह कि निर्मला सीतारमण ने लखीमपुर खीरी नरसंहार की आलोचना की। इस घटना को निंदनीय कहा और यह भी कि इस घटना में प्रधानमंत्री द्वारा कोई शोक व्यक्त नहीं किया जाना कहीं से गलत नहीं है। उनके मुताबिक यह बेहद सामान्य घटना थी और ऐसी घटनाएं देश के अलग-अलग हिस्से में होती रहती हैं। उन राज्यों में भी जहां भाजपा की सरकारें नहीं हैं।
कल केंद्र सरकार के एक और कैबिनेट मंत्री राजनाथ सिंह का बयान देख रहा था। आश्चर्य यह है कि राजनाथ सिंह के बयान को किसी भी अखबार ने जगह नहीं दी है। हालांकि मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि मैंने केवल दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता और हिन्दुस्तान को देखा है। अंग्रेजी अखबारों में यदि राजनाथ सिंह को बयान आया हो, तो मैं नहीं कह सकता। वैसे भी अंग्रेजी अखबारों को मैं अल्पसंख्यकों का अखबार मानता हूं। मेरी नजर में अंग्रेजी जानने व पढ़ने वाले लोग इस देश में अल्पसंख्यक ही माने जाने चाहिए। तो अंग्रेजी अखबारों में क्या छापा जाता है, उससे इस देश के जनमानस पर कोई बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है।
[bs-quote quote=”मोहन भागवत महाराष्ट्र का चितपावन ब्राह्मण है और राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश का राजपूत। इन दोनों जातियों में संघर्ष लंबा रहा है। इसके कई प्रमाण हैं। ब्राह्मणों द्वारा इस बात की कोशिश हमेशा की जाती रही है कि वे बौद्धिक के साथ ही भौगोलिक साम्राज्य पर पर अधिकार हासिल करें। और जब-जब उन्होंने ऐसा किया है, उनका विरोध राजपूतों ने किया है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
तो मैं राजनाथ सिंह के बयान की बात कर रहा था, जिसमें उन्हेंने कहा है कि महात्मा गांधी के कहने पर ही सावरकार ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी। यह बेहद महत्वपूर्ण बयान हे क्योंकि इसके एक दिन पहले यानी परसों देहरादून में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि सावरकार को तभी से बदनाम किया जा रहा है जब से यह देश आजाद हुआ था।
अब यहां ध्यान देने योग्य दो बातें हैं। पहला तो यह मोहन भागवत महाराष्ट्र का चितपावन ब्राह्मण है और राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश का राजपूत। इन दोनों जातियों में संघर्ष लंबा रहा है। इसके कई प्रमाण हैं। ब्राह्मणों द्वारा इस बात की कोशिश हमेशा की जाती रही है कि वे बौद्धिक के साथ ही भौगोलिक साम्राज्य पर पर अधिकार हासिल करें। और जब-जब उन्होंने ऐसा किया है, उनका विरोध राजपूतों ने किया है।
खैर, महत्वपूर्ण यह है कि राजनाथ सिंह ने यह कहकर मोहन भागवत की पोल पट्टी खोल दी है कि सावरकार ने माफी मांगी थी। कल ही एक राष्ट्रीय स्तरीय निजी न्यूज चैनल के द्वारा सावरकार का गुणगाण किया जा रहा था। यह बताया जा रहा था कि सावरकर ने बहादुरी के कौन-कौन से काम किये। यह सब राजनाथ सिंह के बयान को दबाने के लिए किया गया था कि सावरकार ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी।
बहरहाल, देश की राजनीति बहुत दिलचस्प दौर में है। हालांकि मैं जिस वजह से दिलचस्प कह रहा हूं, वह देश में सांस्कृतिक और सामाजिक स्तरों पर हो रहे बदलावों के मद्देनजर है। निर्मला सीतारमण भी ब्राह्मण समाज की हैं। उन्होंने हार्वर्ड केनेडी स्कूल में जो बयान दिया है, उसे ब्राहमण बनाम अन्य के दृष्टिकोण से देखें तो यह बात समझ में आती है कि वह भारत के संघीय व्यवस्था पर हमले क्यों कर रही हैं। हालांकि मुझे नहीं लगता है कि जब वह भारत लौटकर आएंगीं तो मोहन भागवत को छोड़ कोई और उनके कथन को अपना समर्थन देगा। उत्तर प्रदेश के राजपूत तो उन्हें लानत ही भेजेंगे। नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया क्या होगी, कहना मुश्किल है। वजह यह कि वे तो बनिया हैं और बनिया के खून में केवल व्यापार होता है। यह वे पहले कबूल भी कर चुके हैं। ऐसे में राजपूत और ब्राह्मण यदि आपस में लड़ते हैं तो इससे उनका कोई नुकसान नहीं होनेवाला। ठीक वैसे ही जैसे यदि दलित और ओबीसी के लोग आपस में लड़ें या फिर ओबीसी की एक जाति ओबीसी की दूसरी जाति से लड़े तब भी आधुनिक युग के बनिया को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वैसे भी नरेंद्र मोदी तो खास तरह के बनिया हैं, जिन्हें सियासत और तिजारत में कोई अंतर दिखायी नहीं देता। उनके लिए तो गुजरात दंगे में मारे गए लोग किसी कार के नीचे आ जाने वाले कुत्ते के पिल्ले के समान हैं।
नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।
वित्तमंत्री ने जिस आसानी से कहा है कि भारत में ऐसी घटनाएं घटती रहती है वह इस विद्रूप व्यवस्था की पोल खोलने काफी है!लोकतंत्र नहीं बल्कि देश की ऐसी वित्त मंत्री हो गई हैं जो हकीकत के प्रति बेपरवाह बयान दे सकती हैं!