जौनपुर। गोमती नदी, किला, शाही पुल और अनेक मध्यकालीन स्मारकों को अपने में समेटे जौनपुर की एक पहचान वहाँ की बजबजाती गंदगी भी है। बस अड्डे से लेकर जेसीज चौराहे और उसके चारों ओर के इलाकों में गंदे नालों और गड्ढों में सड़ते पानी की बदबू आने-जाने वालों का पीछा नहीं छोड़ती। इसे देखकर यह सोचना लाजिम है कि आखिर यहाँ के स्थायी बाशिंदे इस बदबू को कैसे झेलते होंगे?
इस स्टोरी को कवर करने के लिए जब मैं कुल्हनामऊ स्थित कूड़ा निस्तारण केंद्र पहुंचा तो और गेट का मुख्य द्वार खुला था। मैं और मेरे एक स्थानीय साथी, जो कि उस समय फोटोग्राफर की भूमिका में थे, अंदर जाकर स्थिति का जायजा ले ही रहे थे कि हम लोगों के पास चार लड़के आ गए। उनमें से एक ने, जो सुपरवाइजर के पद पर काम करता है, मुझसे पूछा- ‘आप कौन हैं और यहाँ किस काम से आए हैं?’ ‘मैं एक पत्रकार हूँ और कूड़े पर स्टोरी करने के लिए यहाँ आया हूँ।’ मेरा उत्तर ज्यों ही खत्म हुआ, उसने अगला सवाल दाग दिया, ‘किस प्रेस से हैं?’ मैंने कहा ‘गाँव के लोग डॉट कॉम’ से हूँ तो उन लोगों ने मेरा कार्ड देखा और कार्ड देखने के बाद ही अंदर की फोटो लेने की इजाजत दी।
अंदर जाकर जब हमने देखा तो अंदर का नजारा देखते ही बनता था। अंदर कूड़े का ढेर पड़ा हुआ है और लाखों की मशीनें, जो सालिड वेस्ट मैनेजमेंट के नाम पर खरीदी गईं हैं, आज यूं ही बेकार पड़ी धूल फाँक रही हैं। प्लांट के उदघाटन के बाद से इन्हें शायद ही कभी चलाया गया हो। ऐसा मशीनों की स्थिति देखकर लग रहा था। मेरी इस सोच को और पुख्ता कर दिया गाँव के विकेश ने, जो कि इस प्लांट में काम करता है- ‘जब से ये मशीनें खरीद कर आयी हैं एक दो बार ही चलीं। उसके बाद केवल तब दिखावे के लिए चलती हैं जब कोई टीम जांच के लिए बाहर से आती है।’
स्थानीय लोगों के मुताबिक, बहुजन समाज पार्टी के शासनकाल 2008 में यहाँ के किसानों की भूमि को सरकार ने कूड़ा निस्तारण के लिए लिया था। तत्कालीन सरकार की योजना यह थी कि शहर का कूड़ा यहाँ लाकर रिसाइकिल किया जाएगा। गीले कचरे से खाद बनाई जाएगी और प्लास्टिक को अलग से गलाकर उसका दूसरे कामों में उपयोग किया जाएगा। इसके बाद बीजेपी की सरकार प्रदेश में आई और उसने योजना को आगे बढ़ाया। 18 मार्च 2021 को तत्कालीन नगर विकास मंत्री आशुतोष टण्डन और आवास एवं शहरी नियोजन विभाग राज्यमंत्री गिरीश चन्द्र यादव ने बाकायदा इसका लोकार्पण किया।
कुल्हनामऊ कूड़ा निस्तारण केंद्र कुल 12.2 करोड़ रुपए से बनाकर तैयार हुआ। जौनपुर शहर, जिसकी आबादी तीन लाख से अधिक है, से प्रतिदिन 82 मीट्रिक टन कचरा इस निस्तारण केंद्र पर लाया जाता है। अगर यह सालिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट सही ढंग से काम शुरू कर देगा तो प्रतिदिन 100 मीट्रिक टन से अधिक कचरे का निस्तारण हो सकता है।
लेकिन दुखद यह है कि लोकार्पण के बाद से यह प्लांट कभी चला ही नहीं। मौका-बे-मौका चल जाता है तो वह भी तब जब कोई कोई टीम जांच के लिए आती है। स्थानीय निवासी विकेश यादव कहते हैं- ‘जब से इस प्लांट का उद्घाटन हुआ है तब से यह कभी-कभार ही चला होगा, वह भी तब चलता है, जब कोई जांच के लिए टीम बाहर से आती है। यह भी जानिए कि इसके लिए जनरेटर कि व्यवस्था की जाती है, तब जाकर ये मशीने चलती हैं।’
इस तरह देखा जाय तो प्लांट के सुचारु रूप से न चलने से एक तरफ जहां कूड़े का अंबार दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ कूड़े के ढेर से निकलने वाली दूषित वायु ने आस-पास के गाँव के लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। कुल्हनामऊ निवासी चिंता देवी कहती हैं- ‘का बताईं भइया, ई गंदी हवा से जियल मुस्किल हो गइल बाय। शाम के समय मक्खी बहुत भिनभिनानीहै। हर दिन घर में केहू न केहू बीमार रहय ला। दवा करत-करत हम त परेशान हो गयल हई’(क्या कहूँ बेटा, इस गंदी हवा से जीना मुश्किल हो गया है। शाम होते ही मक्खियाँ चारों तरफ भिनभिनाने लगती हैं । इस दूषित हवा के कारण आए दिन कोई-न-कोई बीमार रहता है। दवा करते-करते मैं तो एकदम से परेशान हो गयी हूँ।)
इसी गाँव के सुरेन्द्र यादव कहते है- ‘इस कूड़े की बदबू से जीवन जीना मुश्किल हो गया गया है। जब पश्चिम से हवा चलती है तो मन करता है कि कहीं चला जाऊ। इस बदबू से छुटकारा मिल जाएगा। लेकिन क्या करूँ घर, परिवार, बीवी और बाल बच्चों को छोड़कर कहाँ जाऊँ।’ सुरेन्द्र आगे आने वाले समय में इस कूड़े के दुष्प्रभावों और अपनी रणनीति का खुलासा करते हुए कहते हैं- ‘घर में कोई-न-कोई रोज बीमार रहता है। यही नहीं, इस कूड़े में तो अस्पतालों से लाए हुए कूड़े-कचरे भी होते हैं, जिसमें लोगों के कटे हाथ-पाँव भी आते हैं। ऐसे में आप खुद ही समझ सकते हैं कि इन कटे हाथ-पैरों से निकलने वाला खतरनाक तत्व रिसकर अंदर जमीन में जाता ही होगा। अंदर जाकर फिर वही पानी में मिलेगा और वही पानी हमारे लिए जानलेवा साबित होगा। जल्द ही अगर इस कूड़े का कोई समाधान नहीं हुआ तो इस गाँव को छोड़ने पर भी विचार कर सकता हूँ।’
कुल्हनामऊ के ही निवासी सभाजीत यादव कहते हैं- ‘आप लोगों से क्या बात करूँ। बहुत से टीवी वाले लोग आए बहुत से कैमरा वाले।लेकिन इसके बाद अखबार और टीवी में कहीं कुछ दिखता नहीं है। आप लोग भी लग रहा है, ऐसे ही लिखकर चले जाएंगे और कुछ होगा नहीं।’ मेरे बार-बार समझाने के बाद वे आगे बात करने के लिए तैयार हुए।। फिर थोड़ी देर बाद बोले- ‘इस प्लांट के कारण पूरा गाँव ही परेशान है। दिन भर कूड़े की गाड़ी आती रहती है। मेरे तीन बेटे हैं और उन तीनों के बच्चे हैं। उन्हें हर समय सर्दी-जुखाम-बुखार पकड़े रहता है। मैं तो दवा-दारू करने में ही परेशान रहता हूँ। मेरे बेटे, बच्चों की दवा करके परेशान हैं। क्या करूँ कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। आज के जमाने में एक तो इतनी महंगाई है, ऊपर से ये रोज-रोज बच्चों का इलाज, ऐसे में हम कैसे जीवन यापन करें आप ही बताएं।’
इस प्लांट के स्थापित होने से सुरेन्द्र यादव आज दोहरी मार को झेल रहे हैं। वे बताते हैं- ‘जब शुरू-शुरू में इस प्लांट के लिए सरकार जमीन अधिग्रहित कर रही थी, उस समय मुझे सरकार ने जमीन के बदले ग्राम समाज की जमीन दी। जब इस प्लांट की बाउंड्री बनने लगी तो उसमें मेरी जमीन का कुछ हिस्सा चला गया जिसका न तो मुझे मुआवजा मिला और न ही जमीन के बदले जमीन। यही नहीं, जब हम लोगों ने जमीन अधिग्रहण का विरोध किया तो सरकार की तरफ से ये वादा किया गया कि इस प्लांट में जिसकी-जिसकी जमीन गयी है, उसके घर के एक सदस्य को इसमें नौकरी दी जाएगी। इन अधिकारियों ने नौकरी तो दी मेरे भतीजे विकेश को लेकिन आज तक उसे सैलेरी एक महीने की भी नहीं मिली।’
सुरेन्द्र बताते हैं- ‘जमीन की खरीद में भी काफी घोटाला हुआ है। यह जमीन जिस पर यह कूड़ा दिख रहा है, इसमें कुछ जमीन ग्राम समाज की भी थी, जिसे कैलाशनाथ मिश्रा नमक व्यक्ति ने अपने नाम करा लिया और फिर उस आदमी ने यह जमीन नगर पालिका को बेच दी। जबकि हाईकोर्ट इसे ग्राम समाज की जमीन घोषित कर चुका था। यह जांच का विषय है और इसकी जांच होनी भी चाहिए।’
कुल्हनामऊ से हो कर जब मै शहर में गंदगी देखने निकला तो रास्ते में जगह-जगह कूड़े का ढेर दिखाई दिया। कहीं-कहीं पर तो जलते हुए कूड़े भी दिखाई दिए। जैसे ही मेरी गाड़ी जेसीज चौराहा पहुंची तो वहाँ पर सफाईकर्मी ही नाले के पास मुख्य मार्ग पर कूड़ा गिराता नजर आया। बगल में खड़े टैंपो चालक अंकित प्रजापति से मैंने इस तरह से कूड़ा गिराए जाने के बारे में पूछा। अंकित ने बताया- ‘यहाँ तो यह काम रोज ही होता है। ये सफाईकर्मी जगह-जगह का कूड़ा लाकर जहां-तहां ऐसे ही फेक देते हैं। न कोई पूछने वाला न जाँचने वाला। आपको नहीं पता, इसी कूड़े में से बजबजाते हुए कीड़े निकलते हैं, जिसे देखकर मन खिन्न हो जाता है। लेकिन क्या किया जाय। कहने से कोई फायदा नहीं। मीडिया के लोग भी खूब फोटो ले जाते हैं लेकिन कुछ नहीं होता। सफाई का हाल यहाँ बुरा है।’
अंकित सड़क पर चल रही गाड़ियों से उड़ रही धूल की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं- ‘देखिए जौनपुर शहर की साफ-सफाई। लोग इन हवाओं से दमा के मरीज बन जाएंगे। टीबी जैसी बीमारियाँ हो जाएंगी। यही गंदगी उड़कर दुकानों में बनने वाली खाद्य सामाग्री पर बैठेगी और उसे खाकर लोग बीमार होंगे। पूरे शहर में आप घूम आइए। थोड़ी-थोड़ी दूर पर आपको कूड़े का ढेर मिल जाएगा। हमें लगता है जिले में स्वस्थ्यकर्मियों की भी कमी है। यहाँ जिस गली में एक दिन झाडू लग जाता है तो फिर पाँच दिन बाद ही दुबारा नंबर आता है।’
जौनपुर जैसे शहर में कूड़े के निस्तारण की समुचित व्यवस्था का अभाव फिलहाल तो बना ही हुआ है जैसा कि देखने में भी आया। जौनपुर के वरिष्ठ पत्रकार आशीष श्रीवास्तव कहते हैं- ‘मुझे भी कूड़े का प्रबंधन यहाँ पर ठीक-ठाक नहीं लग रहा है। शहर में आप चले जाइए तो आपको दिख जाएगा कि बहुत सी जगह पर शहर से निकालने वाले कूड़े से ही अपने घरों के गड्ढों को पटवा ले रहे हैं। जहां जिसको जरूरत होती है वो नगर पालिका से कूड़ा अपने यहाँ गिरवा लेता है। हालांकि कई बार मीटिंग में मैंने देखा कि वर्तमान जिलाधिकारी अनुज कुमार झा कुल्हनामऊ के प्लांट को चलाने और शहर की गंदगी को दूर करन का बहुत प्रयास किए लेकिन अभी तक वह इसमें सफल नहीं हो पाए हैं। वेस्ट मैनेजमेंट के लिए कूड़ा की छटाई ही नहीं हो पा रही है। जेसी चौराहे से लेकर वाजीदपुर तिराहे और वहाँ से लेकर पचहटिया तक आप देखेंगे अधिकांश लोगों ने कूड़ा पटवा लिया है। ऐसे में जब कभी वहाँ आग लग जाती है तो बहुत देर तक यह आग जलती रहती है। इसके कारण सांस के मरीजों को बहुत दिक्कत होती है। आस-पास के मुहल्ले के लोग परेशान रहते हैं।’
शहर में सफाई का एक नमूना कचहरी के ठीक पीछे कांशीराम निराश्रित आश्रय स्थल के पास भी देखने को मिला, जहां पर गरीब व्यक्ति कम पैसा खर्च करके अपने बच्चों का शादी-ब्याह करवा सकता है। मजेदार बात तो यह है कि यहीं से थोड़ी दूरी पर यानी कचहरी में डीएम साहब रोज बैठक भी करते हैं। निराश्रित आश्रय स्थल देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे यहाँ का कूड़ा हफ्तों पहले उठाया गया हो।
जौनपुर शहर अपने अंदर कई खूबियों, विशेषताओं और ऐतिहासिकता के लिए जाना जाता है। जैसे शाही पुल, जामा मस्जिद, शाही किला, अटाला मस्जिद, झझरी मस्जिद, जौनपुर की मूली, माधोपट्टी नामक वह गाँव, जिसकी चर्चा पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने की थी । पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जौनपुर की प्रशंसा में कहा था- ‘पूरे प्रदेश की शान है जौनपुर जिला । इसी जिले के माधोपट्टी नामक गाँव ने सबसे ज्यादा आइएएस और पीसीएस अफसर दिए। हमें ऐसे जिले पर नाज है।’
बंद पड़े कुल्हनामऊ प्लांट और शहर की साफ-सफाई के सवाल पर जौनपुर के जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने कहा- ‘संबन्धित संस्था को चिन्हित कर ब्लैक लिस्टेड किया जा रहा है। शहर में जल्द ही साफ-सफाई की समुचित व्यवस्था की जाएगी।’
‘मनुष्य को जीने के लिए हवा और पानी एक बुनियादी जरूरत है। इसके साथ ही यह सवाल उठता है कि क्या हमारे आस-पास ये दोनों चीजें हैं? बेशक यह एक जटिल और गंभीर सवाल है क्योंकि इसका उत्तर खोजने की कोशिश करने के लिए जैसे ही हम गंभीरतापूर्वक विचार करते हैं तब पता चलता है कि वास्तव में ये दोनों चीजें बहुत बुरे खतरों से घिर चुकी हैं। न केवल ये खतरे में पड़ी हैं बल्कि इनके खतरे में पड़ने से हमारा श्वसन तंत्र और रक्त वाहिनियाँ भी खतरे में हैं और धीरे-धीरे इसका खामियाजा भी हम झेल रहे हैं। जो हवा और पानी है उसे कॉर्पोरेट लालच, लूट और सांस्थानिक अनैतिकता ने इस हद तक दूषित कर दिया है कि उन्हें अपने शरीर के अनुकूल बनाते-बनाते हमारा श्वसन तंत्र और रक्त वाहिनियाँ लंबे समय तक हमें स्वस्थ रहने देने की योग्यता खो रही हैं।
‘नगर पालिकाओं द्वारा इकट्ठा किए जाने वाला कचरा विभिन्न क्षेत्रों का मिश्रित कचरा है और इसलिए उचित प्रबंधन के लिए इसका पृथक्करण अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि मिश्रित कचरे का उपयोग कचरा प्रबंधन के लिए प्रस्तावित ऊर्जा संयंत्रों, जैव खाद, कचरे से पैदा होनेवाले ईंधन और अन्य प्रक्रियाओं के लिए नहीं किया जा सकता है। कचरे को खुले में डंप करने से न केवल मानव स्वास्थ्य पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है, बल्कि पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। डंपिंग ग्राउंड में मिश्रित कचरे से निकलने वाला रिसाव मिट्टी और पानी की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करता है।
लैंडफिल ठोस कचरा प्रबंधन के लिए अंतिम और सबसे कम पसंदीदा विकल्प है। अधिकांश नगर पालिकाएं अक्सर अवैज्ञानिक तरीके से कचरे को लैंडफिल में डंप करती हैं, कचरे के अनुचित या अनियमित डंपिंग से विभिन्न समस्याएं हो सकती हैं जैसे कि भूमि की मिट्टी की गुणवत्ता, हवा की गुणवत्ता और कचरे से लीचेट के रिसाव के कारण पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है। यह लीचेट अत्यंत खतरनाक होता है और इसके उचित उपचार की आवश्यकता होती है। इसके खतरनाक प्रभावों को रोकने के लिए कचरे का डंपिंग को वैज्ञानिक तरीके से करना जरूरी है।
मैनेजमेंट ऑफ सॉलिड वेस्ट (MSW) 2016 के नियमों के अनुसार, गीले और सूखे कचरे का अलग-अलग संग्रह होना चाहिए। इसके लिए फलों और सब्जियों के छिलके आदि जैसे गीले कचरे के लिए हरे कूड़ेदान का उपयोग और कागज, प्लास्टिक, कांच और धातु आदि जैसे सूखे कचरे के लिए नीले कूड़ेदान का उपयोग करना अनिवार्य बना दिया गया। इन दो तरीकों से अपशिष्ट संग्रह करने में कई तरह की सहूलियतें होती हैं, मसलन, इन्हें आसानी से जलाया और रिसायकिल किया जा सकता है। इसी तरह से गीले कचरे का उपयोग खाद बनाने, वर्मी कम्पोस्ट बनाने, बायोमेथेनाइजेशन आदि के लिए किया जा सकता है। लेकिन प्रायः ऐसा होना एक अत्यंत कठिन लक्ष्य बन गया है, क्योंकि नगरपालिका सूखे और गीले कचरे के संग्रह के लिए अलग-अलग वाहनों का उपयोग नहीं करती है और कचरा संग्रह के लिए एकल वाहनों के उपयोग के कारण, भले ही लोगों ने कचरे को अलग कर दिया हो, अंततः यह मिश्रित अपशिष्ट के रूप में निकलता है और पृथक्करण का पूरा उद्देश्य ही बेकार हो जाता है। इस मिश्रित कचरे से अच्छी खाद बनाना मुश्किल हो जाता है और अन्य घटकों का कुशल उपयोग भी प्रभावित होता है।’
(प्रस्तुत संदर्भ पर्यावरण सूक्ष्म जैवतंत्र की अध्येता पूजा यादव के लेख (मुंबई : कूड़ा जो उड़ता और रिसता हुआ फैल रहा है साँसों और धमनियों तक) से लिए गए हैं।)
बहरहाल, जो भी हो एक तरफ जहां कूड़े से निकलती महक ने कुल्हनामऊ के लोगों के जीवन को नर्क बना दिया है। लोग आए दिन स्वस्थ्य संबंधी दिक्कतों से दो-चार हो रहे हैं और जिला प्रशासन के कानों पर जू तक नहीं रेंगती है। वहीं शहरी क्षेत्र में भी लोग साफ-सफाई और बजबजाते कूड़े से त्रस्त नजर आ रहे हैं। देखना अभी बाकी है कि कूड़े की यह बदबू प्रदेश सरकार के मंत्रियों और जिले के अफसरों की नाक को कब अपनी सड़ांध से झकझोरती है?
राहुल यादव गाँव के लोग डॉट कॉम के उप-संपादक हैं।