Tuesday, March 19, 2024
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मनुवादी व्यवस्था पर करारी चोट

ब्राह्मणी नूपुर शर्मा को पूरे देश से मांफी मांगने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से भारतीय संविधान की अवहेलना नहीं, बल्कि मनुवादियों के मनुस्मृति संविधान का उल्लंघन हुआ है। इस घटनाक्रम पर मुझे राहत इन्दौरी की ग़ज़ल का वह शे’र याद आ गया जो उन्होंने विभाजन और साम्प्रदायिकता पर चुप्पी मारने वाले लोगों को इंगित […]

ब्राह्मणी नूपुर शर्मा को पूरे देश से मांफी मांगने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से भारतीय संविधान की अवहेलना नहीं, बल्कि मनुवादियों के मनुस्मृति संविधान का उल्लंघन हुआ है।

इस घटनाक्रम पर मुझे राहत इन्दौरी की ग़ज़ल का वह शे’र याद आ गया जो उन्होंने विभाजन और साम्प्रदायिकता पर चुप्पी मारने वाले लोगों को इंगित करते हुए कहा है –

लगेगी आग तो आएंगे कई घर ज़द में, गली में सिर्फ हमारा मकान थोड़े है।

इन पंक्तियों ने ही मुझे इस लेख को लिखने को प्रेरित किया। सुप्रीम कोर्ट के सम्माननीय जज ने पैगंबर मोहम्मद के ऊपर अपमानजनक टिप्पणी करने वाली नूपुर शर्मा की दलील सुनने से इनकार करते हुए, देश-विदेश में माहौल खराब होने के लिए उसे जिम्मेदार ठहराते हुए, उसको फटकार लगाई और पूरे देश से मांफी मांगने को कह दिया। अब क्या, कोर्ट द्वारा एक भाजपायी ब्राह्मणी को पूरे देश से मांफी मांगने का आदेश देते ही, मनुवादियों द्वारा ऐसी प्रतिक्रिया हो रही है, मानो मनुवाद की जड़ में भूचाल आ गया है।

नाराजगी इतनी कि, देश के मान-सम्मान का भी ख्याल नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट को ‘सुप्रीम कोठा’ लिखकर सोशल मीडिया में ट्रेन्ड चलाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के जज भी भौंचक हो गए हैं कि, ऐसे फैसले तो आए दिन देश के न्यायाधीश लोग देते ही रहते हैं। उन्हें भी समझ में नहीं आ रहा है कि जजमेंट देने में चूक कहां हो गई है? कहीं दूर लगी बस्ती की आग की चपेट में खुद आने पर समझ में तो आ गया है, तभी तो आज वे भारतीय संविधान की दुहाइयां दे रहे हैं।

मैं कहता हूँ जज साहब, यदि आप यही फरमान किसी शूद्र के लिए दिए होते तो यही सुप्रीम कोठा ट्रेन्ड चलाने वाले आप की तारीफ करते हुए, सोशल और नेशनल मीडिया पर सही न्याय देने वाले महान न्यायविद की उपाधि से नवाज देते। यही नहीं, नेशनल मीडिया पर डिबेट घंटों नहीं, बल्कि कई दिनों तक चलती रहती।

यदि किसी मुस्लिम महिला के लिए यह निर्णय दिए होते, तो हो सकता है रिटायरमेंट के बाद भविष्य में राज्यसभा की सीट भी सुरक्षित हो जाती।

जज साहब, आप इतना जल्दी कैसे भूल गए कि, इसी सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के साथ-साथ लोगों की आस्था का भी ख्याल रखते हुए बाबरी मस्जिद केस में बिना पर्याप्त सबूत के मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था और जज साहब को सम्मानित भी किया गया था।

[bs-quote quote=”पिछले साल करोनाकाल में संवैधानिक कानून का पालन करने वाले डीएम शैलेश यादव ने शादी कराने वाले एक ब्राह्मण पुरोहित को देर रात कानून का उल्लंघन करने पर, एक झापड़ जड़ दिया था, जो भारत में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए आम बात होती है। उस समय भी ऐसा ही भूचाल आया था कि एक यादव ने ब्राह्मण को थप्पड़ जड़ दिया। उस समय भी ऐसा ही सोशल मीडिया पर पक्ष और विपक्ष में ट्रेन्ड चला था लेकिन सभी जानते हैं कि वह यादव डीएम के खिलाफ चला था। यही डीएम यदि ब्राह्मण होता तो सिंघम बन जाता या इसी यादव डीएम ने किसी काजी को थप्पड़ जड़ा होता तो लोकसभा या विधानसभा का उसका टिकट कन्फर्म हो जाता।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

लेकिन यहां आप ने आस्था का ख्याल न रखते हुए, सिर्फ संविधान का पालन किया है और अनजाने में मनुस्मृति वाले ब्राह्मणी संविधान की अवहेलना हो गई है। यही चूक हुई है कि आप लोग जयपुर के हाईकोर्ट के प्रांगण में महान न्यायविद न्यायाधीश मनु महाराज की लगी मूर्ति को नज़रंदाज करते आ रहे हैं। इसलिए कुछ लोगों को नागवार गुजरा है।

सोचा, याद दिला दूं कि पिछले साल करोनाकाल में संवैधानिक कानून का पालन करने वाले डीएम शैलेश यादव ने शादी कराने वाले एक ब्राह्मण पुरोहित को देर रात कानून का उल्लंघन करने पर, एक झापड़ जड़ दिया था, जो भारत में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए आम बात होती है। उस समय भी ऐसा ही भूचाल आया था कि एक यादव ने ब्राह्मण को थप्पड़ जड़ दिया। उस समय भी ऐसा ही सोशल मीडिया पर पक्ष और विपक्ष में ट्रेन्ड चला था लेकिन सभी जानते हैं कि वह यादव डीएम के खिलाफ चला था। यही डीएम यदि ब्राह्मण होता तो सिंघम बन जाता या इसी यादव डीएम ने किसी काजी को थप्पड़ जड़ा होता तो लोकसभा या विधानसभा का उसका टिकट कन्फर्म हो जाता।

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आपको तो जानकारी होगी कि भारतीय इतिहास में एक ब्राह्मण को ब्रिटिश कानून के दायरे में पहली बार फांसी की सजा दी गई तो, इन्हीं कोठा ट्रेन्ड चलाने वालों के पूर्वजों ने ब्रिटेन के खिलाफ अंग्रेजों भारत छोड़ो का आन्दोलन शुरू कर दिया था। अफसोस! आने वाले दिनों में आपके साथ भी इसी टाइप का व्यवहार किया जा सकता है।

दु:ख आज इस बात का है कि 72 साल तक भारतीय संविधान लागू होने के बाद भी ऐसी असंवैधानिक घटनाएं क्यों हो रही हैं? इसका दोषी कौन है? आज सभी न्यायप्रिय नागरिकों और संवैधानिक कानून की रखवाली करने वाले महानुभावों को मंथन करने की ज़रुरत है। आपके समान दर्द का हमदर्द साथी!

लेखक शूद्र एकता मंच के संयोजक हैं और मुम्बई में रहते हैं।

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