बिहार के अधिकतर किसान परंपरागत खेती करते हैं। धान, गेहूं, मक्के और सब्जी की खेती के अलावा कुछ हिस्सों में मखाना, मसाले की भी खेती होती है। हालांकि महंगे बिजली, पानी, खाद-खल्ली एवं खेतिहर मजदूरों की कमी के कारण परंपरागत खेती करना उतना फायदेमंद नहीं रहा कि किसान अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला सकें।
इंदिरा आवास योजना का उद्देश्य यह है कि आर्थिक रूप से कमजोर लोग, जिनके पास रहने के लिए घर नहीं है और वह अपनी जिंदगी झुग्गियों-बस्तियों में रहकर गुजारा करते हैं। इसके अंतर्गत जिनके पास घर खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते हैं, ऐसे लोगों को पक्के मकान उपलब्ध कराना होता है।
किसान मजदूर 8 महीने से अधिक समय से धरने पर बैठे हैं। यह धरना तब शुरू हुआ जब 12-13 अक्टूबर को एसडीएम सगड़ी, कंधरापुर थानाध्यक्ष व अन्य राजस्वकर्मीयों द्वारा भारी पुलिस बल के साथ जबरन गांव में बिना किसी सूचना के सर्वे किया जाने लगा। गैरकानूनी कार्यवाई का ग्रामीणों ने विरोध किया तो महिलाओं, बुजुर्गों को बुरी तरह से मारा-पीटा गया और दलित महिलाओं को जाति सूचक गालियां दी गईं।
पक्के रास्ते धीरे-धीरे कच्चे और उबड़-खाबड़ होते जा रहे थे। कुछ ही समय में हम उस बाँस के पुल के पास पहुँच गए जिसे पहली यात्रा में नदी के उस पार से देखा था। पिछली बार की तरह ही लोग यहाँ नहान कर रहे थे। एक आदमी अपनी बड़ी-सी नाव पर अलकतरा लगा रहा था। वहाँ पहुँचे एक ग्रामीण ने उसकी फिरकी लेते हुए कहा- 'घबरा मत, तू अब जेल जईबा।' यहाँ नदी में नाव चलाने के लिए लाइसेंस बनवाना पड़ता है, शायद इसीलिए यह मजाक किया गया था।
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