Sunday, December 21, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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Varanasi

छात्रों से किये वादे से मुकरा बीएचयू प्रशासन

 माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वाराणसी दौरा के अगले ही दिन मंगलवार यानी 26/10/2021 निम्नलिखित मांगों को लेकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र एकत्रित...

दूर-दूर से लाई गई किराये की भीड़ और बनारस के लोग नज़रबंद किये गए

चुनाव का प्रचार एवं रैली कितनी आवश्यक है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली के...

बातों-बातों में यह क्या कह गईं बेबी रानी मौर्य

बेबी रानी मौर्य के बयान ने अपने सरकार पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। एक ओर जहां बीजेपी कानून व्यवस्था के बारे में...

फासिस्ट सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए छालों की परवाह नहीं

दोलन कई सरकारी षडयंत्रों का निशाना बनाया गया है। लखीमपुर खीरी में निर्दोष किसानों पर गाड़ी चढ़ा दिया गया जिसमें चार किसान शहीद हुये। लेकिन लगता है आंदोलन की आंच अब पूरे देश में फैल रही है। ये लोग जो चंपारण से पदयात्रा करके यहाँ तक आए हैं वे अपने हिस्से का संघर्ष उन तमाम लोगों के बीच ले जाना चाहते हैं जिनके भीतर किसानों के लिए संवेदना है।

वह चला गया मुझे आधे रास्ते पर उतारकर ….

मैंने गौर किया कि जैकेट पहने लगभग 20-22 साल के उस युवक ने हेलमेट नहीं पहना था और वह तेज रफ्तार से बाइक चलाने का शौकीन था। बाइक कई बार कटाव-मुड़ाव और मनमर्जी से बने स्पीडब्रेकरों पर हिचकोले खा रही थी या जम्प कर रही थी। मन में विचार आया कि उससे कहूँ, 'भइया, मुझे चौरी बाजार ही जाना है, यमपुरी नहीं जाना है।' किंतु उसके बुरा मान जाने के डर से मैं खामोश ही रहा।

 बिरहा ही नहीं, चेतना का व्याकरण बदल देनेवाला बिरहा का आदिविद्रोही

बीसवीं शताब्दी के अंतिम चार दशक बिरहा गायन के स्वर्णकाल के रूप में जाने-जाते हैं जब बनारस और आसपास के जिलों में अनेक उद्भट बिरहिए सक्रिय थे। हीरालाल, बुल्लू यादव, रामदेव, पारस, रामकैलाश, हैदर अली जुगनू के अलावा सैकड़ों गायक इस लोकविधा को ऊंचाई दे रहे थे लेकिन ठीक इसी समय बनारस के एक गाँव से निकलनेवाले नसुड़ी यादव इन सबसे अलग और अद्भुत थे। वे बिरहा में कबीर बनकर उतरे थे और आजीवन अपने तेवर को बनाए रखा। पढ़िये विलक्षण बिरहा गायक नसुड़ी के जीवन-संघर्ष और सामाजिक योगदान के बारे में।

सरकार जनता से डरी हुई है इसलिए आंदोलनों को बेरहमी से कुचल देना चाहती है

बनारस में जातिगत जनगणना और किसान आन्दोलन जैसे विभिन्न मुद्दों को लेकर जाने-माने अधिवक्ता और सामाजिक चिंतक प्रेम प्रकाश सिंह यादव बहुत दिनों से...

समाज मेरा चेहरा नहीं बल्कि काम देख कर इकट्ठा हो रहा है

पिछले कई वर्षों से उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ी जाति में आने वाले कुम्हार समाज के ऊपर लगातार सामंतों और अपराधियों के हमले हो...

इस उपन्यास का कल्पनालोक समझने के लिए अपने दौर की समझ जरूरी है

लेख का दूसरा और अंतिम हिस्सा बहुत सारे आलोचक जार्ज ऑरवेल के उपन्यास 1984 में अतीत का वर्णन देखते हैं। बीसवीं शताब्दी के पहले...

बिरहा के बेजोड़ कवि-गायक लक्ष्मी नारायण यादव

बिरहा लोकगायकी की एक विशिष्ट विधा है। भोजपुरी बोलने वाले इलाक़ों में इसकी लोकप्रियता ज़बरदस्त रही है। कुछ दशक पहले तक बिरहा गायन की...

क्या महत्वपूर्ण मुद्दों पर बैठकें दिशाहीन हो चुकी हैं

पूर्वांचल में किसानों की समस्याएं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की समस्याओं से कहीं ज्यादा हैं लेकिन उनका कोई मुकम्मल संगठन नहीं होने की वजह से उनका गुस्सा और उनकी तकलीफें उनके और उनके परिवार तक सीमित हो गई हैं। पूर्वांचल में किसान संगठनों के नाम पर राजनीतिक पार्टियों के आनुषांगिक संगठन ही केवल काम कर रहे हैं, इसलिए किसानों का झुकाव भी इन संगठनों के प्रति अपनापन का नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा की पूर्वांचल इकाई की संरचना भी कुछ ऐसी ही दिखाई दे रही है। शायद इस वजह से पूर्वांचल में कोई बड़ा किसान आंदोलन खड़ा नहीं हो पा रहा है। 

बालों के रंग से चाचाजी बनाम दादाजी

इधर कुछ वर्षों से मैंने हर साल दीपावली के बाद छुट्टी लेकर गाँव जाने का क्रम सा बना लिया क्योंकि इस समय गुलाबी ठंड...

मेरी लड़ाई जनता की लड़ाई है

आज से 8 साल पहले की बात है जब मैंने फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट नई दिल्ली को छोड़कर बीएचयू, वाराणसी में आकर काम करने...

बाबू जगदेव प्रसाद प्रतिमा स्थल दीनापुर चिरईगांव में जातिगत जनगणना संवाद संपन्न

दिनांक 18 अगस्त दिन में 3:00 बजे से बाबू जगदेव प्रसाद प्रतिमा स्थल दीनापुर चिरईगांव में वाराणसी  पर जातिगत जनगणना जन संवाद कार्यक्रम संपन्न...

एक किलो राशन चूहे खा जाते हैं इसलिए बीस नहीं उन्नीस किलो लीजिये

एक किस्सा बनारस के हुकुलगंज इलाके में सामने आया है। एक वायरल वीडियों में दुकानदार पूरी दबंगई से कह रहा है कि बीस किलो में एक किलो राशन चूहे खा जाते हैं इसलिए अनाज एक किलो कम देते हैं। इससे यह समझना कोई मुश्किल नहीं रह जाता कि जनता के अधिकारों को सरकारी गल्ले के दुकानदार खैरात समझते हैं और खुलेआम खाद्य सुरक्षा अधिनियम का मज़ाक उड़ाते हैं।

एक मिनट का मौन

एमानुएल ओर्तीज़ (17 मई 1974) मेक्सिको-पुएर्तो रीको मूल के युवा अमरीकी कवि हैं। वह एक कवि-संगठनकर्ता हैं और आदि-अमरीकी बाशिन्दों, विभिन्न प्रवासी समुदायों और...

लोक-कहावतों में जातीयता

(दूसरी किस्त) कहावत अर्थात ऐसा कहा जाता है। तात्पर्य है परम्परागत रूप से कही जाने वाली बात। कहावतों को अनुभूत सत्य माना जाता है।...

पंडित नेहरू और शेख अब्दुल्ला के कारण ही कश्मीर बन सका भारत का हिस्सा

भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समेत कई व्यक्ति व संगठन जवाहरलाल नेहरू को कश्मीर समस्या के लिए जिम्मेदार मानते हैं। परंतु इसके...

याँ तक मिटे कि आप ही अपनी कसम हुये !

कभी हिंदी साहित्य और कविता में एक वाम शिविर हुआ करता था। इसके ऊपर प्रगतिशील लेखक संघ का झंडा लहराता था। समस्त साहित्य-परिक्षेत्र में...

लोकतंत्र की पुनर्स्थापना : जनता के सामने विकल्प

आज के भारत की तुलना एक दशक पहले के भारत से करने पर हैरानी होती है। लोकसभा (2014) में भाजपा के बहुमत हासिल करने...

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