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ऐतिहासिक अशोक स्तंभ को विद्रूपित करने के पीछे की मंशा (डायरी 13 जुलाई, 2022)

देश में अराजकता की स्थितियां उत्पन्न की जा रही हैं। दुखद यह है कि ऐसा स्वयं सरकार कर रही है और देश के अखबार उसका समर्थन कर रहे हैं। कल लगभग सभी अखबारों ने नये संसद भवन के परिसर में विद्रूपित अशोक स्तंभ के अनावरण की तस्वीरें व खबरें प्रकाशित की। किसी भी अखबार ने […]

देश में अराजकता की स्थितियां उत्पन्न की जा रही हैं। दुखद यह है कि ऐसा स्वयं सरकार कर रही है और देश के अखबार उसका समर्थन कर रहे हैं। कल लगभग सभी अखबारों ने नये संसद भवन के परिसर में विद्रूपित अशोक स्तंभ के अनावरण की तस्वीरें व खबरें प्रकाशित की। किसी भी अखबार ने ऐतिहासिक अशोक स्तंभ के साथ विद्रूपित अशोक स्तंभ की तुलना नहीं की। दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता ने तो तस्वीर के नीचे कैप्शन में ‘अद्भूत’ लिखा। कल की डायरी में मैंने यह दर्ज किया कि कैसे कार्यपालिका प्रमुख यानी हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद तक को महत्वहीन बना रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि ऐतिहासिक अशोक स्तंभ के चारों सिंह शांत मुद्रा में हैं जबकि नरेंद मोदी ने नये प्रतीक में सिहों को दहाड़ते हुए दिखलाया है। गोया सिंह शिकार करने को तैयार हैं। या उनकी कोशिश यह संदेश देने की भी हो सकती है कि जिस संसद परिसर में यह प्रतीक स्थापित है, वह कार्यपालिका के सिंहों से डरे।
लेकिन बात केवल इतनी भर नहीं है कि नरेंद्र मोदी ऐसा कर रहे हैं। देश में लोकतंत्र है और इस कारण कोई भी व्यक्ति स्थायी शासक नहीं हो सकता। देश की जनता को जब जो निर्णय लेना होगा, वह लेगी। लेकिन यह जिम्मेदारी देश के अखबारों की है कि वह सच लोगों के सामने रखे। हालांकि आज के दौर में यह कहना ही अपने आप में हास्यास्पद है और बहुतों को लगेगा कि यह कहने की कोई बात ही नहीं है। दरअसल, यह कहने की बात है। अखबार हमारे संसाधनों में से एक हैं। उन पर देश की जनता का भी अधिकार बनता है। यह बात मैं इसलिए भी कह रहा हूं क्योंकि मैं स्वयं मीडिया का आदमी हूं और यह स्वीकार करता हूं कि मुझे जो कुछ भी मिलता है, वह इस देश का है। फिर चाहे वह सूचनाएं हों या फिर पारिश्रमिक।

[bs-quote quote=”ऐतिहासिक अशोक स्तंभ के चारों सिंह शांत मुद्रा में हैं जबकि नरेंद मोदी ने नये प्रतीक में सिहों को दहाड़ते हुए दिखलाया है। गोया सिंह शिकार करने को तैयार हैं। या उनकी कोशिश यह संदेश देने की भी हो सकती है कि जिस संसद परिसर में यह प्रतीक स्थापित है, वह कार्यपालिका के सिंहों से डरे।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

परंतु, तकलीफ तब होती है जब अखबार अपना काम नहीं करते। हालांकि इस हालात के लिए अखबार ही जिम्मेदार नहीं हैं। मैं तो सबसे अधिक कसूरवार इस देश की जनता को मानता हूं। जनता सवाल नहीं उठाती है और विरोध नहीं करती है। सब यही सोचते हैं कि अगर कोई अखबार गलत खबर छाप रहा है तो इसमें हम क्या कर सकते हैं। लेकिन इसका रास्ता है। इस संदर्भ में राजनीतिक दलों और नेताओं को भी शामिल किया जाना चाहिए।
मुझे एक घटना याद आ रही है। तब मैं पटना में दैनिक ‘आज’ में पत्रकार था। पटना के गांधी मैदान में गांधी की गगनचुंबी प्रतिमा स्थापित की जा रही थी। सरकार ने इसके लिए समिति का गठन किया था। इसमें गांधी संग्रहालय के निदेशक डॉ. रजी अहमद भी शामिल थे। तब मैं अक्सर ही संग्रहालय जाता था और एक दिन डॉ. रजी अहमद ने यह जानकारी दी कि गांधी मैदान में जो प्रतिमा लगायी जाएगी, वह कैसी होगी। उन्होंने राम सुतार जी के बारे में बताया जो कि मूर्तिकार थे। इसके साथ ही उन्होंने संग्रहालय परिसर में स्थापित वह प्रतिमा भी दिखायी, जिसकी वृहद प्रतिकृति गांधी मैदान में स्थापित की जानी थी। मैंने यह पूरी खबर अपने संपादक को दी और उन्होंने इसे प्रकाशित किया।
करीब पंद्रह दिनों के बाद जब मैं गांधी संग्रहालय पहुंचा तब डॉ. रजी अहमद ने जानकारी दी कि प्रतिमा में कुछ बदलाव किये जा रहे हैं। दरअसल, 1980 के आसपास राम सुतार जी द्वारा बनायी गयी प्रतिमा में गांधी एक छोटा लड़का और छोटी लड़की के साथ खड़े हैं। लड़के के बदन पर बनियान जैसा कपड़ा है और लड़की ने फ्रॉक पहना हुआ है। इस प्रतिमा में बदलाव नीतीश कुमार द्वारा कराया गया। उन्होंने लड़का और लड़की के कपड़ों को बदलवा दिया और यहां तक कि मूल प्रतिमा में जो गांधी गंभीर मुद्रा में खड़े हैं, उसकी जगह नीतीश कुमार ने उन्हें बेढंगी हंसी हंसते हुए दिखाने का फरमान दिया था। मैंने यह खबर भी लिखी।
हालांकि मेरे लिखने से नीतीश कुमार पर कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन, खबर लिखने की जिम्मेदारी मेरी थी। बिहार की जनता को आज यदि बेढंगी हंसी हंसते हुए गांधी अच्छे लग रहे हैं तो यह बिहार की जनता की समझ है। यह हमें सच लिखने से हतोत्साहित नहीं करती।

बद्री नारायण की बदमाशी (डायरी, 10 जुलाई, 2022) 

बहरहाल नरेंद्र मोदी नीतीश कुमार की नकल करते फिर रहे हैं। बिहार में भी विधानमंडल परिसर में नीतीश कुमार ने भव्य इमारत बनवाया और उसके शिलालेख में अपना नाम अमर करा लिया। इसी तर्ज पर नरेंद्र मोदी पुराने संसद भवन के आगे नया संसद भवन बनवा रहे हैं। अमर होने की चाहत इनकी भी जाग चुकी है। हालांकि नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार दोनों का नाम इतिहास में दर्ज तो पहले से ही है।
खुद को अमर बनाने ख्वाहिश भी गजब की ख्वाहिश होती है। कल मेरी प्रेमिका ने शब्द दिया– हुकूमत। एक कविता सूझी।
हुकूमत जानती है
गालिब के लिखे का मतलब
मीर तकी मीर के पदों का भावार्थ
वह फैज़ अहमद फैज़ को भी
बखूबी पढ़ती-समझती है
ठीक वैसे ही जैसे
वह समझती है गोर्की की मां को
या फिर प्रेमचंद की भुनगी कौन थी
वह सब जानती है
मंटो के टोबा टेक सिंह से भी
हुकूमत अपरिचित नहीं।
हुकूमत सब जानती है
और समझती है कि
हुकूमत कैसे की जाती है
और यही बात
न प्रेमचंद ने समझा था
और ना ही आज के…

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

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