उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल पूछा कि कोरोना की दूसरी लहर में कितने लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई। सवाल बेहद सामान्य था और जवाब लगभग हम सभी जानते हैं, क्योंकि गंगा में बहती लाशों का वह खौफनाक मंजर कौन भूल सकता है। अस्पतालों में ऑक्सीजन और दवाओं के बगैर मरते लोग और रोते-बिलखते उनके परिजन अब भी हम सबकी आंखों के सामने हैं। लेकिन सियासत में आंकड़े का महत्व अधिक है। लेकिन उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने अपने जवाब में कहा कि दूसरी लहर के दौरान किसी भी व्यक्ति की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं हुई।
मुमकिन है कि कुछ लोगों को यूपी सरकार द्वारा सदन में दिया गया यह जवाब अटपटा लगे। लेकिन मेरे लिए यह बिल्कुल भी अटपटा नहीं है। दरअसल, सरकारें ऐसे ही जवाब देती हैं। मसलन, 2008 में जब कुसहा तटबंध टूटा और कोसी के महाप्रलय में असंख्य लोग मारे गए तब बिहार में नीतीश कुमार की हुकूमत ने भी कुछ ऐसा ही कहा था। उस दिन तो मैं बिहार विधान परिषद के पत्रकार दीर्घा में मौजूद था। बिहार सरकार की ओर से जवाब देने की जिम्मेदारी बिजेंद्र यादव की थी। सुपौल निवासी बिजेंद्र यादव से मुझे उम्मीद थी कि वह झूठ तो नहीं ही बोलेंगे। लेकिन उन्होंने भी यही कहा था कि कोसी महाप्रलय में कितने लोग मारे गए, इसका आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। मतलब यह कि कोसी महाप्रलय में किसी की मौत नहीं हुई। बाद में जब सरकार द्वारा गठित जस्टिस राजेश वालिया आयोग ने अपनी रपट सरकार को दी तो उसने समस्त बिहारवासियों को चौंका दिया। चौंकाने वाली बात ही थी। रपट में कहा गया कि कुसहा तटबंध के टूटने के पीछे सरकारी अधिकारियों की लापरवाही नहीं थी, बल्कि चूहे जिम्मेदार थे, जिन्होंने तटबंध के अंदर अपना आशियाना बना रखा था।

बढ़िया। यथार्थ परक…कविता भी बहुत अच्छी लगी। बधाई।
[…] गंगा में लाशों का मंजर और हुकूमत का सच (… […]