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गंगा में लाशों का मंजर और हुकूमत का सच (डायरी 17 दिसंबर, 2021)

नदियां और समंदर शायद ही किसी को प्रिय न हों। मैं तो गंगा किनारे वाला हूं तो मुझे नदी से बहुत प्यार भी है। हालांकि एक और नदी है जिसका कि कर्जदार मैं हूं और वह है पुनपुन नदी। यह बहुत छोटी सी नदी है। यह नदी मेरे गांव के दक्षिण में बहती है और […]

नदियां और समंदर शायद ही किसी को प्रिय न हों। मैं तो गंगा किनारे वाला हूं तो मुझे नदी से बहुत प्यार भी है। हालांकि एक और नदी है जिसका कि कर्जदार मैं हूं और वह है पुनपुन नदी। यह बहुत छोटी सी नदी है। यह नदी मेरे गांव के दक्षिण में बहती है और गंगा उत्तर में। इस हिसाब से पटना में जहां मैं रहता हूं वह दोआबा का क्षेत्र है। दोआबा मतलब दो नदियों के बीच का क्षेत्र। इसका असर यह है कि मेरे इलाके में जमीन काफी ऊर्वर है। हालांकि अब दिन-ब-दिन खेती कम होती जा रही है। लेकिन यह अलग विषय है। खेती वैसे भी बीते तीन-चार दशकों से अपनी चमक खोती जा रही है। मैं तो सकल घरेलू उत्पाद में खेती की घटती हिस्सेदारी के आकलन के आधार पर कहता हूं कि यदि यही रफ्तार रही तो आने वाले 50 साल में प्राइमरी सेक्टर का यह घटक अपना महत्व ही खो देगा। एक समय था जब देश में 70 फीसदी से अधिक लोगों की रोजी-रोटी की जिम्मेदारी अकेले खेती ने ले रखी थी। अब यह घटकर 50 फीसदी से भी कम हो गयी है।
खैर, आज का सवाल गंगा है। बात कल की ही है। उत्तर प्रदेश के विधान परिषद में कांग्रेस के सदस्य दीपक कुमार सिंह ने उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल पूछा कि कोरोना की दूसरी लहर में कितने लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई। सवाल बेहद सामान्य था और जवाब लगभग हम सभी जानते हैं, क्योंकि गंगा में बहती लाशों का वह खौफनाक मंजर कौन भूल सकता है। अस्पतालों में ऑक्सीजन और दवाओं के बगैर मरते लोग और रोते-बिलखते उनके परिजन अब भी हम सबकी आंखों के सामने हैं। लेकिन सियासत में आंकड़े का महत्व अधिक है। लेकिन उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने अपने जवाब में कहा कि दूसरी लहर के दौरान किसी भी व्यक्ति की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं हुई।

[bs-quote quote=”उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल पूछा कि कोरोना की दूसरी लहर में कितने लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई। सवाल बेहद सामान्य था और जवाब लगभग हम सभी जानते हैं, क्योंकि गंगा में बहती लाशों का वह खौफनाक मंजर कौन भूल सकता है। अस्पतालों में ऑक्सीजन और दवाओं के बगैर मरते लोग और रोते-बिलखते उनके परिजन अब भी हम सबकी आंखों के सामने हैं। लेकिन सियासत में आंकड़े का महत्व अधिक है। लेकिन उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने अपने जवाब में कहा कि दूसरी लहर के दौरान किसी भी व्यक्ति की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं हुई।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

मुमकिन है कि कुछ लोगों को यूपी सरकार द्वारा सदन में दिया गया यह जवाब अटपटा लगे। लेकिन मेरे लिए यह बिल्कुल भी अटपटा नहीं है। दरअसल, सरकारें ऐसे ही जवाब देती हैं। मसलन, 2008 में जब कुसहा तटबंध टूटा और कोसी के महाप्रलय में असंख्य लोग मारे गए तब बिहार में नीतीश कुमार की हुकूमत ने भी कुछ ऐसा ही कहा था। उस दिन तो मैं बिहार विधान परिषद के पत्रकार दीर्घा में मौजूद था। बिहार सरकार की ओर से जवाब देने की जिम्मेदारी बिजेंद्र यादव की थी। सुपौल निवासी बिजेंद्र यादव से मुझे उम्मीद थी कि वह झूठ तो नहीं ही बोलेंगे। लेकिन उन्होंने भी यही कहा था कि कोसी महाप्रलय में कितने लोग मारे गए, इसका आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। मतलब यह कि कोसी महाप्रलय में किसी की मौत नहीं हुई। बाद में जब सरकार द्वारा गठित जस्टिस राजेश वालिया आयोग ने अपनी रपट सरकार को दी तो उसने समस्त बिहारवासियों को चौंका दिया। चौंकाने वाली बात ही थी। रपट में कहा गया कि कुसहा तटबंध के टूटने के पीछे सरकारी अधिकारियों की लापरवाही नहीं थी, बल्कि चूहे जिम्मेदार थे, जिन्होंने तटबंध के अंदर अपना आशियाना बना रखा था।

तो यह बात इतिहास में दर्ज हो गयी। जबकि मेरे सामने 20 अगस्त, 2008 को कोसी नदी की धार में लोगों की लाशें बह रही थीं और मैं अपने एक मित्र के साथ रिपोर्टिंग कर रहा था। सचकुछ मेरे सामने हुआ और मैंने लिखा भी। लेकिन सरकारी जवाब का महत्व होता है। सरकार ने कह दिया तो कह दिया। अब इतिहास में यही बात लिखी जाएगी कि कोसी महाप्रलय के खलनायक चूहे थे और इस महाप्रलय में किसी भी व्यक्ति की जान नहीं गयी थी।
इसी तर्ज पर कल यूपी सरकार ने कहा है कि कोरोना की दूसरी लहर में किसी भी व्यक्ति की मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई। यूपी के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने तो यहां तक कहा कि यूपी के किसी भी अस्पताल में दवाओं की कमी नहीं थी और सरकार तत्परता से लोगों की जान बचा रही थी।
खैर, यूपी सरकार का बयान यूपी सरकार जाने। मैं तो गंगा के बारे में सोच रहा हूं जिसमें बीते दिनों देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डूबकी लगा रहे थे। मैं यह सोच रहा हूं कि जब वे डूबकी लगा रहे थे तो क्या उन्हें उन लाशों की याद नहीं आयी, जो कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हम सभी के सामने आए थे? यह सवाल अब मैं नरेंद्र मोदी से नहीं पूछ सकता तो जवाब का अनुमान भी खुद ही लगाता हूं। मुमकिन है कि वह यह कहें कि गंगा में कभी लाशें थी ही नहीं। वैसे भी गंगा मोक्षदायिनी है तो जितने भी लोगों की लाशें थीं, सब के सब मोक्ष प्राप्त कर गए। इसके लिए गंगा के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।
कहां मैं नरेंद्र मोदी के पीछे पड़ गया। इतिहास उन्हें हमेशा एक सनकी और अंधे शासक के रूप में याद रखेगा। मैं तो नदी के बारे में सोच रहा हूं।
रोज नजर आती है
मेरे सपने में एक नदी
मैं हर बार उससे सवाल करता हूं
वह सवाल सुन
पलभर के लिए ठिठकती है
मैं अपने पतवारों की गति तेज कर देता हूं।
नदी अपनी धार रोक लेती है
मैं दूर निकल जाता हूं
नदी मेरे साथ बहने लगती है
गोया नदी नदी न हो
समय बतलानेवाली घड़ी हो
जिसमें किसी ने भर दी है
अनंत तक चलने को चाबी
और मैं हूं कि नदी को साया मान बैठा हूं
जबकि वह तो मेरे अंदर है
मेरी रगों में बहती हुई
एक खूबसूरत नदी।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं। 
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2 COMMENTS
  1. बढ़िया। यथार्थ परक…कविता भी बहुत अच्छी लगी। बधाई।

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