पुलिस की हिरासत में पूर्व सांसद और पूर्व विधायक की हत्या से उत्तर प्रदेश में अपराध की सच्चाई और सुरक्षा के दावे बेनकाब
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की ओर से लगातार दावा किया जाता रहा है कि वह अपराध के खिलाफ ‘जीरो टालरेंस’ की नीति पर काम कर रहे हैं। इस प्रयास के तहत सरकार ने लंबे समय से न्यायपालिका के न्यायिक फैसले को ताक पर रख कर बुलडोजर नीति अपना रखी है। उत्तर प्रदेश में अपराधी के सजायाफ्ता होने से पूर्व ही उसके घर को ढहा देना, एक रोमांचक सुख देने वाला खेल बन चुका है। विपक्षी पार्टियां बार-बार यह आरोप लगाती रही हैं कि यह सब उस जातीय समाज के खिलाफ किया जा रहा है जो समाज जातीय तौर पर भाजपा के खिलाफ खड़ा है या जो लोग भाजपा या भाजपा के नेताओं के खिलाफ खड़े होने का दुस्साहस कर रहे हैं। फिलहाल इस दावे की सच्चाई की अभी हम कोई जांच नहीं कर रहे हैं। हमबात कर रहे हैं 15 अप्रैल को रात 10 बजकर 30 मिनट पर पुलिस की हिरासत में भारी सुरक्षा इंतजाम के बीच मेडिकल चेक-अप के लिए ले जाए जा रहे पूर्व सांसद अतीक अहमद और उसके भाई पूर्व विधायक अशरफ अहमद की हत्या की। अतीक के बारे में जिस तरह की आम धारणा रही है उस वजह से अतीक या उसके भाई के प्रति हमारी कोई सहानुभूति नहीं है किन्तु जिस तरह से पूरा प्रकरण घटा है और पुलिस के शिकार को भारी पुलिसिया इंतजामात के बावजूद तीन छुटभैये गुंडों ने पुलिस के हाथ से छीन कर कत्ल किया है वह सरकार और सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
अतीक अहमद सिर्फ नेता ही नहीं था बल्कि प्रयागराज का तथाकथित रूप से सबसे बड़ा माफिया भी था जिसका केंद्र भले ही प्रयागराज था पर उसकी तूती पूरे उत्तर प्रदेश में बोलती थी। अतीक पर 100 से ज्यादा मुकदमें दर्ज हैं। अतीक पर पहला मुकदमा गुलाम हत्याकांड में 1979 में दर्ज हुआ था।1985 के आस-पास इलाहाबाद के चर्चित भू माफिया ‘मौला भुक्खल’ को बीच चौराहे पर धमकी देकर अतीक ने अपने बाहुबल का जो नजारा पेश किया था उस पर फिर कभी लगाम नहीं लग सकी। अतीक ने अपने प्रतिद्वंदियों को ठिकाने लगाते हुए अपने साम्राज्य का बिस्तार करना शुरू कर दिया था। मुकदमों की लिस्ट और अतीक का रुतबा धीरे-धीरे बढ़ता रहा और 10 साल के समय अंतराल में अपराध के साथ उसने राजनीति में भी अपना कदम बढ़ा दिया और उस समय के बड़े माफिया और विधायक चाँद बाबा के खिलाफ 1989 में शहर पश्चिमी से चुनाव लड़ा और चुनाव परिणाम आने से पहले ही चाँद बाबा की हत्या भी हो गई। हत्या में अतीक का नाम आया पर इससे अतीक को कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि अतीक चुनाव जीत चुका था और पराजित चाँद बाबा मर चुका था। धीरे-धीरे चाँद बाबा गैंग के अन्य सदस्य भी मार दिए गए। इसके बाद तो अतीक का रसूख दिन दूना रात चौगुना के बेग से बढ़ता ही गया।
[bs-quote quote=”दिन-दहाड़े खुलेआम हुई इस हत्या से पूरे प्रदेश में सुरक्षा को लेकर सवाल खड़ा होने लगा। विपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने इस मामले को लेकर सरकार पर तेज हमला शुरू कर दिया। इस हमले को योगी आदित्यनाथ संभाल नहीं पाये और पूरे आवेश में विधान सभा में उन्होंने लगभग चिल्लाते हुए कहा कि “माफिया को मिट्टी में मिला देंगे”।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
1989, 1991 और 1993 में निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद 1996 में वह मुलायम सिंह यादव का करीबी बना और समाजवादी पार्टी के टिकट पर चौथी बार विधान सभा में पँहुच गया । साल 1998 में सपा ने अतीक को बाहर का रास्ता दिखाया तो अतीक 1999 में प्रतापगढ़ से अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और हार गया पर 2002 के चुनाव में वह वापस शहर पश्चिमी से अपना दल के ही टिकट पर चुनाव जीतने में सफल हुआ। 2003 में वह वापस सपा में शामिल हुआ 2004 में उसे समाजवादी पार्टी ने फूलपुर सीट से संसदीय चुनाव का टिकट दे दिया और अतीक वह चुनाव जीतकर सांसद बन गया। अतीक के सांसद बन जाने की वजह से प्रयागराज (इलाहाबाद) पश्चिमी सीट खाली हो गई जहां से उपचुनाव में उसने अपने भाई अशरफ को चुनाव मैदान में उतार दिया पर इस चुनाव में अतीक के ही पूर्व सहयोगी राजू पाल ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर अशरफ को पराजित कर दिया। इस हार को अतीक बर्दाश्त नहीं कर सका और 25 जनवरी 2005 को धूमनगंज में खुली सड़क पर सरे आम राजू पाल की हत्या कर दी गई। राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने इस हत्या में सीधे तौर पर अतीक और अशरफ पर आरोप लगाया और केस भी दर्ज कराया। इस हत्या से अतीक को तात्कालिक तौर पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा पर पुलिस, सीबीसीआईडी के बाद आखिरी में सीबीआई ने जांच की और अतीक अशरफ समेत दस लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। इसी हत्या की वजह से 19 साल बाद अब अतीक और अतीक का सब कुछ खत्म हो गया। दरअसल राजू पाल हत्याकांड में कुछ चश्मदीद गवाह थे जो अतीक के तमाम खौफ के बाद भी पीछे हटने को तैयार नहीं थे। उन्हीं गवाहों में से एक थे उमेश पाल जो हर दबाव के बावजूद राजू पाल हत्या की कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। उमेश पाल को इस केस से दूर रहने के लिए अतीक और उसके गुर्गे लगातार दबाव बना रहे थे। इसी दबाव को बढ़ाने के लिए और उमेश पाल को इस केस दूर रखने के लिए अतीक ने उमेश पाल का अपहरण करवाया और इतना टार्चर किया कि उमेश पाल ने अपने अपहरण की रिपोर्ट भी नहीं दर्ज कराई पर बाद में बसपा की सरकार बनने पर मायावती की हौसला अफजाई से उमेश पाल ने अपने अपहरण में अतीक को अभियुक्त बनाया और दमदारी से केस की पैरवी करने लगे। जल्द ही इस केस का फैसला आने वाला था। इस फैसले की सुनवाई की तारीख नजदीक आ रही थी और उमेश पाल की गवाही अतीक और उसके गुर्गों के लिए गले की फांस बनती जा रही थी। अतीक सजा से घबराया हुआ था। अतीक की इस घबराहट को उसका परिवार भी महसूस कर रहा था और 24 फरवरी 2023 को उमेश पाल के घर के पास ही गाड़ी से उतरते समय उमेश पाल और उसके दो अंगरक्षकों की गोली और बम मारकर हत्या कर दी गई। अतीक अहमद और उसके परिवार का दुर्भाग्य की हमले की यह पूरी घटना सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई और अतीक के बेटे असद अहमद के साथ सात और हमलावरों की पहचान हो गई।
दिन-दहाड़े खुलेआम हुई इस हत्या से पूरे प्रदेश में सुरक्षा को लेकर सवाल खड़ा होने लगा। विपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने इस मामले को लेकर सरकार पर तेज हमला शुरू कर दिया। इस हमले को योगी आदित्यनाथ संभाल नहीं पाये और पूरे आवेश में विधान सभा में उन्होंने लगभग चिल्लाते हुए कहा कि “माफिया को मिट्टी में मिला देंगे”। योगी के इस तेवर के बाद पुलिस के साथ एसटीएफ ने भी मोर्चा संभाल लिया।
दूसरी तरफ एक और हाई वोल्टेज ड्रामे की स्क्रिप्ट लिखी जा रही थी। प्रयागराज से पुलिस का एक बड़ा लाव-लश्कर साबरमती गुजरात के लिए रवाना हो चुका था। उमेश पाल अपहरण केस में सुनवाई के लिए अतीक को साबरमती जेल से प्रयागराज लाना था। यह वह यात्रा थी जिसने अतीक को एक शहर के बाहुबली से राष्ट्रीय माफिया के रूप में पूरे देश में पहचान दे दी थी।
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एक तरफ उमेश पाल मर्डर में शामिल अभियुक्तों के घर पर बुलडोजर चल रहा था तो दूसरी ओर अतीक का काफिला गुजरात से प्रयागराज के लिए निकल पड़ा था। कम से कम पिछले 10 सालों में किसी माफिया को राष्ट्रीय स्तर के न्यूज चैनलों पर इतनी फुटेज नहीं मिली थी। हो ना हो देश भर के तमाम बड़े अपराधी और माफिया जो अब तक खुद को ताकतवर महसूस कर रहे थे उस दिन सब अपने को अतीक अहमद के सामने बौना महसूस करने लगे थे। मीडिया दरअसल इस उम्मीद के साथ पूरे रास्ते अतीक के साथ लगा हुआ था कि शायद रास्ते में गाड़ी पलटने जैसा कोई ड्रामा देखने को मिल जाए। दरअसल, कानपुर के माफिया विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद से गाड़ी पलटना पुलिसिया खेल का नया आइटम नंबर बन चुका है। अतीक ने भी मीडिया के सामने इस यात्रा को यही एंगल दे दिया था कि पुलिस उसका एनकाउंटर करना चाहती है। मीडिया इस एनकाउंटर को अपने कैमरे में कैद करने की बेचैनी के साथ पुलिस के पीछे-पीछे लगा था। अब अगर पुलिस का गाड़ी पलटाने वाला स्टंट करने का कोई इरादा था भी तो वह मीडिया के सामने इस खेल को अंजाम देने की हिम्मत नहीं कर सकती थी, क्योंकि अतीक का आपराधिक ही नहीं सामाजिक कद और राजनीतिक रसूख भी विकास दूबे से बहुत ऊंचा था जिस वजह से कोई भी पुलिस अधिकारी अपनी गर्दन में अपने हाथ से फंदा डालने कि हिम्मत नहीं जुटा सकता था। फिलहाल इस पूरी यात्रा में मीडिया की ताकत और पुलिस की कमजोरी से अतीक 24 घंटे के अंदर सुरक्षित प्रयागराज पँहुच गया। रातभर उसे नैनी जेल में रखने के बाद अगले दिन कोर्ट में पेश किया गया। 30 साल के आपराधिक जीवन में 100 से अधिक आपराधिक मुकदमे होने के बावजूद पहली बार अतीक को सजा हुई। अतीक और उसके दो और सहयोगियों को उम्रकैद की सजा हुई और इस केस में सहअभियुक्त के रूप में दर्ज अतीक का भाई अशरफ बरी हो गया। फैसले के बाद अतीक को वापस उसी ताम-झाम के साथ साबरमती गुजरात ले जाया गया।
[bs-quote quote=”कम से कम पिछले 10 सालों में किसी माफिया को राष्ट्रीय स्तर के न्यूज चैनलों पर इतनी फुटेज नहीं मिली थी। हो ना हो देश भर के तमाम बड़े अपराधी और माफिया जो अब तक खुद को ताकतवर महसूस कर रहे थे उस दिन सब अपने को अतीक अहमद के सामने बौना महसूस करने लगे थे। मीडिया दरअसल इस उम्मीद के साथ पूरे रास्ते अतीक के साथ लगा हुआ था कि शायद रास्ते में गाड़ी पलटने जैसा कोई ड्रामा देखने को मिल जाए।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
उमेश पाल की हत्या मे शामिल अभियुक्तों तक पँहुचने के लिए एस टी एफ, जी जान से जुटी हुई थी। जल्द ही पुलिस ने दो अभियुक्तों को एनकाउंटर में मार गिराया था। गुड्डू मुस्लिम और अतीक के बेटे असद तथा अतीक की पत्नी शाइस्ता तक पँहुचना पुलिस के लिए चुनौती साबित हो रहा था।
उमेश पाल की हत्या के 49वें दिन अतीक को उमेश पाल की हत्या केस में सुनवाई के लिए एक बार फिर से प्रयागराज लाया गया था। सुनवाई चल ही रही थी कि हर मोबाइल पर एक मैसेज आना शुरू हो गया। एक आदमी ने जाकर अतीक के कान में कुछ बताया और अतीक के हाथ- पाँव ठंडे पड़ गए। वह रोते हुए बैठ गया। दरअसल यह खबर थी उसके बेटे असद और अतीक के शूटर गुलाम मोहम्मद के एनकाउंटर की। अतीक की रिमांड एसटीएफ को मिल गई थी। बेटे को आखरी बार देख लेने कि पीड़ा लिए हुए अतीक कोर्ट से धूमनगंज थाने लाया गया। जहाँ उससे लगभग 200 सवाल पूछे गए। बेटे की मौत से टूटे अतीक ने कुछ सवालों के जवाब दिए। कुछ पर चुप्पी साध ली। इस सवाल-जवाब में अतीक ने कई राज़ से पर्दाफाश किया। कई नाम भी जोड़े जो अतीक के माध्यम से करोड़ों में खेल रहे थे। अतीक के आई एस आई और पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से जुड़े होने की बात भी सामने आई। इन बातों में कितनी सच्चाई थी, उससे अब कभी भी पर्दा नहीं हटेगा।
[bs-quote quote=”अतीक की मौत से मोदी जी की पसमान्दा मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने की कवायद पर भी फिलहाल योगी जी की पुलिस ने पानी फेर दिया है, 2024 में अगर सब कुछ सही नहीं रहा तो दिल्ली की कटार उत्तर प्रदेश के हित पर हमलावर होने में संकोच नहीं करेगी। फिलहाल प्रयागराज की धरती अभी बमबाजों से खाली नहीं हुई है।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
अतीक ने इस बीच बेटे का एनकाउंटर करने वाले पुलिसकर्मियों को देख लेने की धमकी भी दी तो दूसरी ओर पुलिस के सामने मिन्नतें भी कि उसे बेटे के जनाजे में शामिल होने दिया जाए। फिलहाल अंबेडकर जयंती की छुट्टी होने की वजह से अतीक को बेटे के जनाजे में शामिल होने के मामले की सुनवाई नहीं हो सकी और 15 अप्रैल को कोर्ट खुलने से पहले ही पुलिस ने भारी पुलिस फोर्स के बीच असद को दफन करवा दिया। 15 अप्रैल को अतीक की निशानदेही पर कसारी-मसारी के जंगल से कुछ हथियार भी पुलिस ने बरामद किये और देर रात कोर्ट के आदेशानुसार पुलिस हथकड़ी पहनाकर अतीक और अशरफ को स्वास्थ्य जांच के लिए काल्विन हास्पिटल ले गई। पुलिस के हास्पिटल पँहुचने के साथ ही भारी संख्या में मीडिया भी हास्पिटल पँहुच चुकी थी और अतीक से सवाल करना शुरू कर दिया। इसी बीच मीडिया की आईडी के साथ तीन छुटभैया गुंडे भी अतीक तक पँहुच गए और अतीक की कनपटी पर पिस्टल सटाकर फायर कर दिया। पुलिस तमाशा देखती रही और तीनों मीडिया के कैमरे के सामने ही अतीक और अशरफ पर ताबड़तोड़ फायरिंग करते रहे। कुछ पुलिस के वीर-बहादुर तो मीडियाकर्मियों से भी तेज घटनास्थल से भाग खड़े हुए और तब वापस निकले जब हमलावरों को इस बात का यकीन हो गया कि अतीक और अशरफ ढेर हो चुके हैं और वह इस खुशी में ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के बाद हाथ उठाकर पुलिस के सामने सरेंडर करते दिखे। उत्तर प्रदेश पुलिस की आँखों के सामने लगभग 13 राउंड का फायर हो चुका था, पर हमारी पुलिस के जवान अब तक अपनी कार्बाइन और एलएमजी की नली भी हमलावरों की ओर नहीं मोड़ सके थे। इस मामले से पहले तक यही पुलिस एनकाउंटर-वीर के रूप में ख्याति दर्ज कराती रही थी।
अतीक और अशरफ मर चुके थे और तीन अपराधी इसलिए गिरफ्तार हो चुके थे क्योंकि उन्होंने भागने का कोई प्रयास नहीं किया था और खुद को हमारी वीर पुलिस के हाथों में सौंप दिया था।
अतीक की कहानी खत्म हो गई पर असली कहानी अब शुरू हुई है कि आखिर अतीक को मारने के पीछे किसका हाथ था? क्या यह मुख्यमंत्री के उस दंभनाद का हिस्सा था कि ‘माफिया को मिट्टी में मिला देंगे’ या लचर सुरक्षा इंतज़ामात की हकीकत? या फिर उन गर्दनों को बचा ले जाने का यत्न जिनमें अतीक के खुलासे रस्सी डालने वाले थे?
अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन और उमेश पाल हत्या का आरोपी गुड्डू मुस्लिम अब तक फरार हैं। पुलिस उन्हें अब तक गिरफ्तार नहीं कर सकी है। ऐसे में अपनी नाकामी छुपाने के लिए दोनों के बीच आभासी तौर पर अवैध रिश्तों का पुल भी तैयार किया जा रहा है। 51 दिन में इस पूरे मामले में 9 लोग मारे जा चुके हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू, निराला, महादेवी वर्मा और तमाम कवियों, लेखकों, कलाकारों, नेताओं का शहर प्रयागराज अपनी बौद्धिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक पहचान खोकर एक नई आपराधिक पहचान कायम कर रहा है।
फिलहाल अभी सबूत मिटाने और सबूत जुटाने का खेल चल रहा है। जो सत्ता के साथ होंगे वह बच जाएंगे। जो सत्ता के खिलाफ होंगे वे मारे जाएंगे। न्यायालय नहीं, अब सरकार तय करेगी कि किसका घर गिराना है और किसका घर बचाना है।
चाँद बाबा, जवाहर यादव ‘पंडित’, राजू पाल और अब अतीक-अशरफ (फिलहाल इस लिस्ट में शामिल होते-होते बच गए, नन्द गोपाल गुप्ता नंदी जो एक बम धमाके में अप्रत्याशित रूप से बचने में कामयाब हो गए थे) के बाद किसका नंबर लगेगा यह तो पता नहीं पर यह तय है कि प्रयागराज की जमीन पर अभी और खून बहेगा, मौत का आदेश सरकारी हो या गैर सरकारी। अतीक की मौत से मोदी जी की पसमान्दा मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने की कवायद पर भी फिलहाल योगी जी की पुलिस ने पानी फेर दिया है, 2024 में अगर सब कुछ सही नहीं रहा तो दिल्ली की कटार उत्तर प्रदेश के हित पर हमलावर होने में संकोच नहीं करेगी। फिलहाल प्रयागराज की धरती अभी बमबाजों से खाली नहीं हुई है। अभिलाषा गुप्ता का मेयर पद का टिकट कट चुका है और नंदी के खिलाफ समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने वाले शुक्ला जी नए तेवर के साथ भाजपा में शामिल हो चुके हैं। अतीक की हत्या के बाद प्रयागराज के यह राजनीतिक बदलाव बेवजह नहीं हो रहे हैं। पुलिस की हिरासत में पूर्व सांसद और पूर्व विधायक की हत्या से उत्तर प्रदेश में अपराध की सच्चाई और सुरक्षा के दावे बेनकाब हो चुके हैं और मुख्यमंत्री के मिट्टी में मिला देने के दंभनाद के समनांतर हत्या, हथियार और अपराध के भय में उत्तर प्रदेश थरथरा रहा है।
कुमार विजय गाँव के लोग के मुख्य संवाददाता हैं।