Friday, March 29, 2024
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क्या उत्तर प्रदेश चुनाव में चौंकाने वाला परिणाम आएगा

उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर देश के राजनीतिक पंडित और विश्लेषक भले ही, भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर बता रहे हैं, मगर राजनीतिक पंडित और विश्लेषक अभी भी परिणाम को लेकर शायद कश्मकश में हैं। चुनाव की घोषणा होने से पहले और चुनाव की घोषणा होने के बाद, राजनीतिक पंडितों और […]

उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर देश के राजनीतिक पंडित और विश्लेषक भले ही, भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर बता रहे हैं, मगर राजनीतिक पंडित और विश्लेषक अभी भी परिणाम को लेकर शायद कश्मकश में हैं।
चुनाव की घोषणा होने से पहले और चुनाव की घोषणा होने के बाद, राजनीतिक पंडितों और विश्लेषकों के आकलन को कई बार बदलते हुए देखा है। कभी विश्लेषकों का आकलन यह था कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की टक्कर में विपक्ष की कोई भी पार्टी नजर नहीं आ रही है। समय बदला और विश्लेषकों को धीरे-धीरे भाजपा के टक्कर में समाजवादी पार्टी नजर आने लगी और अब भाजपा और समाजवादी के बीच विश्लेषक कांटे की टक्कर बताने लगे। अब सवाल यह उठता है कि 10 मार्च को उत्तर प्रदेश में कौन सी पार्टी सरकार बनाएगी?

[bs-quote quote=”बंगाल की तरह उत्तर प्रदेश में ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की बंगाल के जैसी स्थिति तो कतई नहीं होगी बल्कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति पहले से बेहतर रहेगी वही बहुजन समाज पार्टी भी पहले से बेहतर करेगी। कांग्रेस ने चुनाव में जनता के जिस दर्द को छुआ है वह दर्द कांग्रेस को बेहतर परिणाम भी दे सकता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में चार प्रमुख पार्टियां मैदान में हैं भाजपा, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी। राजनीतिक पंडित और विश्लेषक उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा और समाजवादी पार्टी को फाइनल खेलते हुए देख रहे हैं जबकि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी को राजनीतिक पंडित और विश्लेषक शायद क्वार्टर फाइनल में भी नहीं देख रहे हैं, क्या फुटबॉल के खेल की तरह उत्तर प्रदेश चुनाव में भी उलटफेर होगा? क्योंकि बहुजन समाज पार्टी मौन है। बहुजन समाज पार्टी का मौन तो समझ में आता है मगर बहुजन समाज पार्टी पर भाजपा का मौन रहना समझ से बाहर है। उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा और उसके नेता समाजवादी पार्टी और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस पर तो सीधा हमला करते हुए दिखाई दे रहे हैं मगर भाजपा और उसके नेता बहुजन समाज पार्टी पर वैसा हमला करते हुए नहीं दिखाई दे रहे जैसा कि वह समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर कर रहे हैं।

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क्या उत्तर प्रदेश चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गृहमंत्री अमित शाह के लिए प्रतिष्ठा का चुनाव बन गया है? जिस प्रकार से अमित शाह और योगी आदित्यनाथ को प्रचार करते हुए देखा जा रहा है उससे लगता है उत्तर प्रदेश चुनाव भाजपा के दोनों नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है।
क्या भाजपा के धर्म के मुद्दे पर और समाजवादी पार्टी के जाति के मुद्दे पर बहुजन समाज पार्टी का मौन रहना और कांग्रेस का महिला और युवा मुद्दा अंततः भारी पड़ेगा ?
इस चुनाव में कांग्रेस फकीरी की तर्ज पर दिखाई दे रही है ‘हमारा क्या हम तो फकीर हैं, झोला उठाकर चल देंगे’ मगर बहुजन समाज पार्टी का मौन रहना क्या यह भी बहुजन समाज पार्टी की फकीरी की तरफ संकेत कर रहे हैं, जबकि बहुजन समाज पार्टी के झोली में उनका अपना बड़ा वोट बैंक है, क्या बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक भी बहुजन समाज पार्टी की तरह मौन है जो समय आने पर अपना मौन तोड़ेगा? एक और सवाल क्या उत्तर प्रदेश में भी बंगाल चुनाव की झलक देखने को मिलेगी? क्या उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस का सफाया हो जाएगा? क्या उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी? यदि बंगाल के संदर्भ में बात करें तो।

लेकिन बंगाल की तरह उत्तर प्रदेश में ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की बंगाल के जैसी स्थिति तो कतई नहीं होगी बल्कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति पहले से बेहतर रहेगी वही बहुजन समाज पार्टी भी पहले से बेहतर करेगी। कांग्रेस ने चुनाव में जनता के जिस दर्द को छुआ है वह दर्द कांग्रेस को बेहतर परिणाम भी दे सकता है।
महिला और युवा कांग्रेस के दोनों ऐसे मुद्दे हैं जो कांग्रेस को बड़ी कामयाबी भी दिला सकते हैं। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में महिला और युवाओं के दर्द को समझा ही नहीं है बल्कि बड़ी संख्या में महिला और युवाओं को पार्टी का प्रत्याशी बनाकर अपनेपन का एहसास भी कराया है।
इसलिए अभी यह कहना मुश्किल है कि उत्तर प्रदेश में किस पार्टी की सरकार बनेगी और किन-किन पार्टियों के बीच में कांटे की टक्कर है, क्योंकि मतदाताओं के दिल में क्या है इसका पता 10 मार्च को ही लगेगा।

देवेंद्र यादव कोटा स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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