वह दिन कब आएगा जब महिलाओं को बर्दाश्त करने से आजादी मिलेगी? (डायरी 24 अक्टूबर, 2021)
नवल किशोर कुमार
मुझे स्मरण है कि पटना हाईकोर्ट में एक समय मुख्य न्यायाधीश थीं रेखा एम. दोशित। उन्होंने एक बार यह सवाल उठाया था। शायद किसी ने जनहित याचिका दायर की थी। तब उन्होंने अपनी टिप्पणी में कहा था कि कहां शहर में सार्वजनिक शौचालयों की बात कर रहे हैं, यहां अदालतों में ही महिलाओं के लिए इंतजाम नहीं हैं।
वर्तमान के बारे में नहीं जानता कि पटना में कितना कुछ बदला है। जब कभी घर जाता हूं तो सड़कों के किनारे देखते हुए चलता हूं कि महिलाओं के लिए बिहार सरकार ने शौचालयों का निर्माण करवाया है या नहीं।
यथार्थपरक विश्लेषण। महिलाओं की सेहत और सम्मान से जुड़ी यह बेहद गंभीर समस्या है किंतु पुरुषवादी सोच के प्रशासकों, नेताओं और सरकारी निकायों आदि की इस दिशा में कोई फिक्र या संवेदना ही नहीं है। कोई भी स्त्री या कन्या किसी की मां, बहन, बेटी या बहू होती है। क्या उनके लिए मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था का न हो पाना राष्ट्रीय शर्म का विषय नहीं होना चाहिए। कब जागेंगे हमारे नीति नियंता, राजनेता और नौकरशाह। सच पूछा जाए तो इस दिशा में युद्ध स्तर पर कार्य होना चाहिए।