कल भारत में जनतंत्र दिवस दिवस मनाया गया। कायदा तो यह होना चाहिए था कि इस मौके पर भारतीय संविधान को याद किया जाता कि कैसे डॉ. आंबेडकर द्वारा लिखित इस संविधान ने देश को समतामूलक बनाने की दिशा में आगे बढ़ाया, हुआ यह कि जनतंत्र दिवस केंद्रीय हुकूमत की झूठी शान की भेंट चढ़ गया।
राजपथ पर भारतीय संविधान की मूल अवधारणा की धज्जियां उड़ाई गईं। यह पहला मौका रहा जब राजपथ पर जो झांकियां प्रस्तुत की गयीं, उनमें केवल ब्राह्मणों के धर्म से जुड़े प्रतीकों को ही दिखाया गया। जो संविधान विज्ञान को महत्व देता है, उसी के लागू होने की वर्षगांठ पर कपोल–कल्पित वेदों का प्रदर्शन किया गया।
[bs-quote quote=”भाजपा हुकूमत ने पूरे देश को ही नौटंकी समझ लिया है। उसके लिए न तो संविधान का कोई महत्व है और ना ही देशवासियों का। अब कल की ही बात है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पश्चिमी यूपी में जाटों से मिलते हैं और कहते हैं कि उनका और जाटों का छह सौ सालों से संंबंध है। जाटों ने मुगलों से लड़ाई की थी, अब वह यानी अमित शाह भी मुगलों से लड़ रहे हैं। क्या केंद्रीय गृह मंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसी बात कहनी चाहिए जिससे देश में तनाव बढ़े? मैं तो सुप्रीम कोर्ट से पूछता हूं कि वह क्या केंद्रीय चुनाव आयोग की तरह अंधा और बहरा हो चुका है?” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
स्वयं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री से अधिक एक प्रचार मंत्री के रूप में नजर आए। उन्होंने अपने माथे पर उत्तराखंड की टोपी लगा रखी थी और गले में मणिपुरी लेंग्यान गमछा था। टोपी पर कमल का निशान था। इन दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं।
दरअसल, भाजपा हुकूमत ने पूरे देश को ही नौटंकी समझ लिया है। उसके लिए न तो संविधान का कोई महत्व है और ना ही देशवासियों का। अब कल की ही बात है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पश्चिमी यूपी में जाटों से मिलते हैं और कहते हैं कि उनका और जाटों का छह सौ सालों से संंबंध है। जाटों ने मुगलों से लड़ाई की थी, अब वह यानी अमित शाह भी मुगलों से लड़ रहे हैं। क्या केंद्रीय गृह मंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसी बात कहनी चाहिए जिससे देश में तनाव बढ़े? मैं तो सुप्रीम कोर्ट से पूछता हूं कि वह क्या केंद्रीय चुनाव आयोग की तरह अंधा और बहरा हो चुका है?
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खैर, हुकूमत के पास अपरंपार ताकत होती है। वह चाहे तो आग में पेशाब करे, कौन रोक सकता है?
लेकिन विरोध तो किया ही जा सकता है। ठीक वैसे ही जैसे पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और वहां के कलाकारों ने पद्म सम्मानों को अस्वीकार कर किया है। कितना अद्भूत है तीनों का यह साहस। ये दो कलाकार हैं प्रसिद्ध बांग्ला गायिका संध्या मुखर्जी और प्राख्यात तबला वादक अनिंद्य चटर्जी। इन तीनों का विरोध एक नजीर है कि हर आदमी गुलाम नहीं होता और हर कोई बिकाऊ नहीं होता।
वैसे इस घटना का एक दूसरा पक्ष भी है। दरअसल, यह बात समझने की है कि आखिर किन कारणों से पश्चिम बंगाल के उपरोक्त तीनों महानुभावों ने पद्मश्री सम्मान लेने से इन्कार किया। जबकि इस बार केंद्र ने सुभाष चंद्र बोस को लेकर कुछ ज्यादा ही उछलकूद मचाया है। इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति को बुझा दिया गया है और कहा गया है कि उसे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्योति से मिला दिया गया है। जिस जगह पर अमर जवान ज्योति जलती थी, वहीं पर बोस की प्रतिमा स्थापित होगी।
फिर भी पश्चिम बंगाल के तीन प्राख्यात लोगों ने भारत सरकार के पद्मश्री को ठुकरा दिया। यह प्रमाण है कि संघीय व्यवस्था जिसकी बुनियाद भारतीय संविधान में है, वह चरमराने लगी है। प्रांतों और केंद्र के बीच के रिश्ते उत्तरोत्तर बिगड़ते जा रहे हैं। हुकूमत भारत की एकता को अक्षुण्ण बनाए रखने में नाकाम है। उसके ऊपर से लोगों का विश्वास खत्म हो रहा है।
खैर, भारतीय संविधान में उल्लेखित प्रस्तावना को अपना आधार मानने वाले भारतीयों के लिए यह विषमतम दौर है। उम्मीद करनी चाहिए कि यह दौर भी जल्द खत्म होगा और एक ऐसे शासक का खात्मा होगा जो न केवल भारतीय संविधान की धज्जियां उड़ा रहा है, बल्कि सत्ता के लिए आपसी भाईचारे को खत्म कर रहा है।
बहरहाल, कल ही एक कविता जेहन में आयी थी।
मैं आज जहां हूं
वह इस मुल्क की राजधानी है
और मैं राजपथ को निहार रहा हूं।
यहां दिख रहा है एक भारत
जो दिखता नहीं
हिन्दुस्तान में कहीं।
यहां नाचते-गाते कलाकार हैं
मिलिट्री बैंड की गूंज है
और यह देखिए
हवा में कलाबाजियां करते जहाज।
मेरा दावा है कि
आपने भी देखा नहीं होगा
एक ऐसा भारत
और आप कभी देखेंगे भी नहीं क्योंकि
आपको देखने नहीं दिया जाएगा
इसके लिए आपको चटाया जाएगा
धर्म रूपी अफीम
या खिलायी जाएगी भांग की गोली
पिलायी जाएगी नफरती शराब
और अगर करेंगे इंकार तब
आपकी आंखें फोड़ी जा सकती हैं
या फिर आपको अर्बन नक्सली कह
जेल में बंद किया जा सकता है।
हां, मैं आज जहां हूं
वह इस मुल्क की राजधानी है
और मैं राजपथ को निहार रहा हूं।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।