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केंद्र और राज्य के बीच फंसी जनता, पेट्रोलियम कंपनियां ले रही हैं मजा

देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव भी चल रहे थे, लेकिन जैसे ही पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव समाप्त हुए उसी के साथ पेट्रोलियम कंपनियों ने डीजल और पेट्रोल के दाम बढ़ाने शुरू कर दिए। केंद्र सरकार ने जितनी एक्साइज ड्यूटी कम की थी उससे कहीं अधिक दाम पेट्रोलियम कंपनियों ने बढ़ा दिए।

केंद्र सरकार ने एक बार फिर से डीजल और पेट्रोल से एक्साइज ड्यूटी कम कर, गेंद राज्यों के पाले में फेंक अपील की है कि राज्य सरकारें भी अपना वैट कम करें। केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कम करने के बाद इस पर देश में राजनीति भी होने लगी है।

विपक्ष के नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान में भी पेट्रोल और डीजल पर वैट तो कम किया, लेकिन यह आरोप भी लगाया कि एक तरफ तो केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी कम कर रही है वहीं दूसरी तरफ पेट्रोलियम कंपनी तेल का दाम बढ़ा रही हैं। केंद्र सरकार के एक्साइज ड्यूटी कम करने के बाद पेट्रोलियम कंपनियों ने 71 पैसा प्रति लीटर दाम बढ़ा दिया है यह आरोप मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार पर लगाया है। पेट्रोलियम कंपनियां केंद्र सरकार के अधीन आती हैं? क्या अशोक गहलोत यह कह रहे हैं कि केंद्र सरकार इस हाथ दे रही है और उस हाथ से वापस ले रही है? क्योंकि पेट्रोलियम कंपनियां केंद्र सरकार के अधीन हैं इसलिए केंद्र सरकार को पेट्रोलियम कंपनियों को भी रोकना होगा कि कंपनियां पेट्रोलियम पदार्थों का दाम नहीं बढ़ाए, तभी जनता को असली राहत मिलेगी। दीपावली के दिनों में केंद्र सरकार ने डीजल और पेट्रोल से एक्साइज ड्यूटी कम की थी और लगभग 100 दिन से भी अधिक समय तक कंपनियों ने पेट्रोलियम पदार्थों के दाम नहीं बढ़ाए थे, तब देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव भी चल रहे थे, लेकिन जैसे ही पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव समाप्त हुए उसी के साथ पेट्रोलियम कंपनियों ने डीजल और पेट्रोल के दाम बढ़ाने शुरू कर दिए। केंद्र सरकार ने जितनी एक्साइज ड्यूटी कम की थी उससे कहीं अधिक दाम पेट्रोलियम कंपनियों ने बढ़ा दिए।

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अब एक बार फिर से केंद्र सरकार ने डीजल और पेट्रोल से एक्साइज ड्यूटी कम की है इससे जनता को 9 रूपया 55 पैसे का फायदा मिल रहा है, लेकिन केंद्र सरकार के एक्साइज ड्यूटी कम करने के बाद पेट्रोलियम कंपनियों ने 71 पैसा बढ़ा दिया !

इसी साल के अंत में देश के 2 राज्यों हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने हैं, जनता के मन में यह सवाल उठ रहा है कि भाजपा की केंद्र सरकार ने डीजल और पेट्रोल के दाम कहीं दो राज्यों के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर रखकर कम तो नहीं किए?

क्योंकि पूर्व में भी ऐसा हुआ था जब देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने थे तब केंद्र सरकार ने डीजल और पेट्रोल से एक्साइज ड्यूटी कुछ कम की थी और उस समय भी राजस्थान सरकार ने अपना वैट कम किया था। लेकिन पांच राज्यों के विधान चुनाव समाप्त होने के बाद कंपनियों ने पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाने शुरू कर दिए थे।

देश की जनता के मन में अब यही सवाल उठ रहा है कि क्या दो राज्यों के विधानसभा चुनाव तक डीजल और पेट्रोल के दाम नहीं बढ़ेंगे और जैसे ही चुनाव समाप्त होंगे? पहले की तरह इस बार भी पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने लगेंगे?

कुल मिलाकर बात वही है केंद्र और राज्यों के बीच फंसी जनता, मजा ले रही हैं पेट्रोल कंपनियां। केंद्र और राज्य दोनों ही अपना-अपना टैक्स घटा रही हैं तो वहीं पेट्रोलियम कंपनियां रेट बढ़ा रही हैं।

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जबतक पेट्रोलियम कंपनियां दाम नहीं घटाएंगी तबतक जनता को बड़ी राहत नहीं मिलेगी। पेट्रोलियम कंपनियां केंद्र सरकार के अधीन हैं इसलिए जैसे केंद्र सरकार ने अपनी एक्साइज ड्यूटी कम की है वैसे ही पेट्रोलियम कंपनियां भी पेट्रोल और डीजल पर दाम कम करें तब जनता को असली राहत मिलेगी।

वरना तो ‘तेल का खेल’ इस हाथ से दो और इस हाथ से लो का चलता रहेगा।

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