बिंब बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। हालांकि यह बात तब की है जब साहित्य से मेरा बस इतना ही लगाव था कि समय हुआ तो पढ़ लिया। तब तो मुझे साहित्य पढ़ना भी नहीं आता था। आज भी मैं साहित्य पढ़ना सीख ही रहा हूं। तो उन दिनों मैं केवल और केवल पत्रकार था। अखबार के संपादक एसाइनमेंट देने के अलावा कुछ खास खबरों की उम्मीद भी रखते थे। सो पूरा का पूरा दिन खबरों के चक्कर में निकल जाया करता था। उन दिनों ही बिहार विधानसभा के सत्रों की रिपोर्टिंग करने का आदेश भी रहता था। वैसे यह अच्छा ही होता था। मतलब यह कि विधानसभा व विधान परिषद की रिपोर्टिंग के दौरान चार-पांच खबरें तो हाथ लग ही जाया करती थीं।
एक बार की बात है। संभवत: वह 2013 का बजट सत्र रहा होगा। उस दिन विपक्ष हंगामे कर रहा था और सरकारी पक्ष अपने हिसाब से कुछ आवश्यक विधेयकाें को पारित करवाने की जिद किए बैठा था। नतीजतन हो यह रहा था कि अध्यक्ष चाहकर भी कार्यवाही स्थगित नहीं कर रहे थे। वे हर आधे घंटे पर सदन की कार्यवाही शुरू कर देते और विपक्ष वेल में आकर हंगामा करने लगता। तीन-चार बार के बाद अध्यक्ष ने दोपहर के भोजनाावकाश तक सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी।
[bs-quote quote=”नीतीश कुमार ने भी भाजपा के वार का इस्तेमाल करते हुए राजद को सत्ता से बेदखल कर दिया। हाल ही में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी करवा दिया और वह भी उनके द्वारा सपा की सदस्यता स्वीकार करने के एक दिन बाद ही। इसके पहले भाजपा ने सपा से जुड़े एक इत्र व्यवसायी के घर में हाथ डाला और इस चक्कर में अपने ही एक प्यादे पर हाथ डाल दिया। इसी कड़ी में अब अगला नंबर है चरणजीत सिंह चन्नी का, जो कि पंजाब के पहले ऐसे सीएम हैं जो दलित समुदाय से आते हैं। कल उनके एक रिश्तेदार के घर पर ईडी ने छापेमारी की। अब बताया जा रहा है कि उनके घर से चार करोड़ रुपए नकद मिले हैं। ” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
इस दौरान मैंने भी पत्रकारों के लिए बने कमरे में बैठकर सदन के कैंटीन द्वारा तैयार मटन-पराठे का आनंद लिया। बिहार विधानसभा का मटन-पराठा फेमस है। खाने के बाद लगा कि थोड़ी धूप का आनंद भी ले लिया जाय और लगे हाथ प्रदर्शन कर रहे विपक्षी नेताओं से भी मिल लिया जाय।
सब वैसा ही चल रहा था, जैसा मैं सोच रहा था। लेकिन अचानक मेरी नजर विधानसभा की छत पर गई। वहां कुछ प्रतीक चिन्ह बने हैं। यह प्रतीक चिन्ह शतरंज के मोहरों में शामिल राजा का मोहरा है। एक और प्रतीक चिन्ह पर नजर गई तो पाया कि मुख्य दरवाजे पर बने पोर्टिको के ठीक ऊपर एक पंछी है जिसे हरे रंग से पेंट किया गया है। वहीं विधान परिषद के मुख्य दरवाजे पर बने पोर्टिको के उपर पंक्षी को लाल रंग से रंगा गया है। फिर तो मेरा पत्रकारिक कीड़ा कुलबुलाने लगा। कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से पूछा तो उन्होंने कहा कि उनकी तो कभी नजर ही नहीं गई इन प्रतीकों पर।
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खैर, मैं यह देखकर हैरान था कि विधानमंडल की इमारत की छत पर राजा का मोहरा होने का मतलब क्या है। यह इमारत संभवत 1914-1917 के बीच बनाई गई। अंग्रेज वास्तुकारों ने बहुत खूबसूरत तरीके से इसे बनाया है। इसके अंदर की साज-सज्जा भी देखने योग्य है। लकड़ी की सीढ़ियां और उनके ऊपर कारीगरी अंग्रेजों की उच्च गुणवत्ता वाली सृजनशीलता का प्रमाण है।
मैं राजा के मोहरे की बात कर रहा था। अंग्रेजों ने इसे यूं ही नहीं बनाया था। दरअसल, सारी शक्तियां राजा में ही निहित हैं। फिर चाहे वह कोई भी तंत्र हो। यहां तक कि लोकतंत्र भी। तो विधानसभा में भी राजा की ही चलती है। देश के स्तर पर बात करें तो प्रधानमंत्री की। ये ही हमारे समय के राजा हैं।
शतरंज में भी राजा ही सबसे महत्वपूर्ण होता है। सबसे दिलचस्प यह कि शतरंज के खेल में राजा मारा नहीं जाता है। उसे घेरा जाता है और उसे लाचार बना दिया जाता है। ठीक ऐसा ही होता है वास्तविक राजनीति में। यहां भी राजा को मारा नहीं जाता। उसे लाचार बनाया जाता है।
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हाल के वर्षों में तो एक नयी टेक्नोलॉजी आयी है। यह टेक्नोलॉजी है चुनाव के ठीक पहले राजा को बदनाम करने की। बिहार में लालू प्रसाद और उनके परिवार को बदनाम करने की पूरी कोशिश की गयी। यह एक हदतक सफल कोशिश थी। नीतीश कुमार ने भी भाजपा के वार का इस्तेमाल करते हुए राजद को सत्ता से बेदखल कर दिया। हाल ही में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी करवा दिया और वह भी उनके द्वारा सपा की सदस्यता स्वीकार करने के एक दिन बाद ही। इसके पहले भाजपा ने सपा से जुड़े एक इत्र व्यवसायी के घर में हाथ डाला और इस चक्कर में अपने ही एक प्यादे पर हाथ डाल दिया। इसी कड़ी में अब अगला नंबर है चरणजीत सिंह चन्नी का, जो कि पंजाब के पहले ऐसे सीएम हैं जो दलित समुदाय से आते हैं। कल उनके एक रिश्तेदार के घर पर ईडी ने छापेमारी की। अब बताया जा रहा है कि उनके घर से चार करोड़ रुपए नकद मिले हैं।
दरअसल, यह बहुत कारगर तकनीक है लोकतंत्र में कि जो सबसे मजबूत है, उसे जनता में बदनाम कर दिया जाय। वैसे भी लोकतंत्र में कोई धन या ताकत से मजबूत नहीं होता है। लोकतंत्र में मजबूती का पैमाना जनसमर्थन और लोकप्रियता है। चरणजीत सिंह चन्नी इन दिनों पंजाब में बहुत लोकप्रिय हैं और एक तरह से कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अपवादों को छोड़ दें तो भाजपा सरकार ने किसी सवर्ण के ऊपर इस तरह की कार्यवाहियां नहीं की है। इसका भी एक खास मकसद है। दरअसल, भारतीय संविधान में प्रावधानों के तहत राजा अब किसी रानी के रज और राजा के वीर्य के कारण पैदा नहीं होता। जनता राजा को राजा बनाती है। तो अब हुआ यह है कि देश भर में दलित और ओबीसी अपनी हिस्सेदारी लेने लगे हैं। सवर्णों का एकाधिकार टूटा है। तो सवर्ण वर्ग हर बार दलित-ओबीसी नेताओं पर हमले करता है और उसे बदनाम करने की कोशिशें करता है ताकि वह यह साबित कर सके कि राज करना दलित-ओबीसी का काम नहीं है। उन्हें तो राज करना भी नहीं आता है। राजा बनने पर वे केवल भ्रष्टाचार ही करेंगे।
बहरहाल, चरणजीत सिंह चन्नी के ऊपर हाथ डालकर भाजपा सरकार ने फिर अपनी पुरानी ही रणनीति को अंजाम दिया है। देखना है कि पंजाब की जनता क्या फैसला लेती है। इसके पहले नरेंद्र मोदी के बैरंग वापस लौटने वाले प्रकरण में भी नरेंद्र मोदी ने चरणजीत सिंह चन्नी के शासन को अराजक शासन साबित करने की असफल कोशिश की। तो इस लिहाज से कल की छापेमारी पूर्व के प्रयास की अगली कड़ी है।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।