लंबे समय के बाद घर में समारोह का आयोजन हो रहा है। रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया है। इसके साथ ही हर रिश्तेदार के साथ जुड़ी पुरानी यादें भी जेहन में शोर मचाने लगी हैं। लिखने को बहुत कुछ है और मजबूरी यह कि समय अत्यंत ही सीमित है। दरअसल, यादों को हम प्राथमिकताओं की सूची में नहीं डाल सकते। हर याद अपने आप में महत्वपूर्ण है। फिर चाहे वह छोटी हो या बड़ी हो। बाजदफा लगता है कि हर छोटी यादें ही ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। छोटी यादों की खासियत यह कि ऐसी अधिकांश यादें सुकूनदायक होती हैं।
एक याद कल जेहन में आयी। दरअसल, भैया ने कहा कि हमदोनों भाई एक ही तरह का कपड़ा पहनेंगे। भैया की खासियत यह है कि वह भले ही ब्राह्मणवादी बेड़ियों में जकड़ा है और पितृसत्ता को महत्वपूर्ण मानता है, इसके बावजूद बेटी और बेटे में उतना फर्क नहीं करता, जितने की मेरे अन्य रिश्तेदार। चूंकि कल हमारी बेटी (मेरी भतीजी) की शादी है तो भैया ने कहा कि हमदोनों भाई किसी भी मामले कोई भेद नहीं करेंगे। आगामी 13 दिसंबर को भैया को बेटे की शादी है और उसके लिए भी भैया के पास खास योजनाएं हैं। हालांकि मैं तब पटना में रहूंगा या नहीं रहूंगा, इसका फैसला नहीं कर सका हूं। पूछने की हिम्मत भी नहीं हो रही भैया से।
खैर, कल हमदोनों भाई एक दर्जी के पास गए। बड़े भाई की भूमिका निभाते हुए भैया ने दर्जी से कहा कि पहले नवल की माप ले लो। दर्जी ने उसके कहे का पालन किया। फिर जब उसकी बारी आयी तो उसने कहा कि मेरा भी माप यही रख लो। हमदोनों एक समान हैं। दर्जी ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है। माप जरूरी है। भैया ने हंसते हुए कहा– यकीन नहीं है तो माप ले लो। दर्जी ने मापना शुरू किया तो सारे माप एक समान।
[bs-quote quote=”हमदोनों भाईयों के बीच कई बातें समान हैं और जितनी बातें समान हैं, उससे कई गुणा अधिक असमानताएं। मुझे सबसे अधिक संतोष इसलिए मिलता है कि भैया ने बिजनेस मैन बनने का सपना देखा था और उसे उसने बखूबी हासिल किया है। रही बात मेरी तो मेरे सपने अलहदा हैं और फिलहाल तो कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं है। ऐसे में मेरे पास रास्ते भी अनेक हैं और मंजिलें भी अनेक। भैया को मेरी बात अजीब सी लगती है। लेकिन कल यह जानकर अच्छा लगा कि वह मुझे पढ़ता रहता है। मेरी कविताएं सुनता है। कई बातों पर वह मेरा विरोध भी करना चाहता है। लेकिन कल उसने बताया कि विरोध करने के लिए उसके पास तथ्य कम हैं और अभी उसके पास केवल बिजनेस का समय है। ” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
तो इसीके साथ एक याद जेहन में आयी। तब भैया और मेरा दाखिला नक्षत्र मालाकार हाईस्कूल में हुआ था। भैया का तब पहली कक्षा का छात्र था और मैं यूकेजी का। मतलब यह कि एक साल का अंतर था। उम्र के हिसाब से हमदोनों के बीच चार साल का अंतर। स्कूल में खास तरह का ड्र्रेस था। पापा हमदोनों को लेकर फुलवारी गए और वहां सीधे बांबे डाइंग के शोरूम में। वहां से हमारे लिए कपड़े खरीदकर वह हमें बद्दू मियां (एक दर्जी) की दुकान पर ले गए। वहां भी सबसे पहले मेरी माप ले ली गयी और बाद में भैया की। अंतर यह रहा कि सीने की माप के मामले में मैं भैया से चार इंच अधिक था।
इसका कारण भी था। भैया तब बहुत स्लिम था। वह खाना भी हिसाब से खाता था और कई बार तो मां के हाथ से मार भी। मेरे मामले में मां हमेशा परेशान रहती कि मैं इतना खाता क्यों हूं और मुझे इसके लिए मार पड़ती कि मैं हर समय खाने की जिद करता था।
हमदोनों भाईयों के बीच कई बातें समान हैं और जितनी बातें समान हैं, उससे कई गुणा अधिक असमानताएं। मुझे सबसे अधिक संतोष इसलिए मिलता है कि भैया ने बिजनेस मैन बनने का सपना देखा था और उसे उसने बखूबी हासिल किया है। रही बात मेरी तो मेरे सपने अलहदा हैं और फिलहाल तो कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं है। ऐसे में मेरे पास रास्ते भी अनेक हैं और मंजिलें भी अनेक। भैया को मेरी बात अजीब सी लगती है। लेकिन कल यह जानकर अच्छा लगा कि वह मुझे पढ़ता रहता है। मेरी कविताएं सुनता है। कई बातों पर वह मेरा विरोध भी करना चाहता है। लेकिन कल उसने बताया कि विरोध करने के लिए उसके पास तथ्य कम हैं और अभी उसके पास केवल बिजनेस का समय है।
हमदोनों के मन में बस इतनी ही खलिश है कि आज हमारे घर में समारोह है और हमारे माता-पिता दोनों लाचार हैं। कितना अच्छा होता यदि पापा स्वस्थ होते!
बहरहाल, यह सब जीवन के अनुभव हैं। भैया जो कि कभी मेरा भाई, मेरा दोस्त और कभी पिता के रूप में मेरे साथ रहता है, वह खुश है और मुझे उसकी खुशी में शामिल होकर खुशी मिल रही है। पीड़ा बस इतनी कि भैया के पास मौका था कि वह ब्राह्मणवाद पर करारा प्रहार कर सकता था। यदि करता तो मेरा हौसला बढ़ता।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।