प्रतीकों के सहारे शुरू होता दिख रहा है 2024 का चुनावी संघर्ष। लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, राजनीतिक गलियारे में उठा-पटक बढ़ती जा रही है। वन नेशन, वन इलेक्शन यानी एक देश, एक चुनाव का मामला अभी शुरू ही हुआ था कि देश के नाम को लेकर नया बवंडर शुरू होता दिख रहा है। दरअसल, विपक्ष ने एक ऐसे प्रतीक का बिजूका खड़ा कर दिया है कि भाजपा न उससे भाग पा रही है ना उस पर पूरी ताकत से हमला ही कर पा रही है। अगर हम राजनीति के इतिहास की तरफ देखें तब साफ दिखता है कि भाजपा हमेशा ही प्रतीकों की लड़ाई के सहारे आगे बढ़ती रही है और यह प्रतीक ही उसकी राजनीतिक ताकत हैं। लगातार नए-नए प्रतीक सामने रखकर उसने विपक्ष की राजनीति कों उखाड़ने की पूरी कोशिश भी। इस कोशिश में वह पूरी तरह से भले ही न सफल हुई हो पर अपने पक्ष में पूर्ण बहुमत जुटाने में वह सफल हो गई। 2014 में इसी ताकत के बल पर भाजपा सत्ता में आई थी। तब से अब तक भाजपा ऐसे ही प्रतीकों के सहारे लगातार विपक्ष कों घेरती रही है, जिनके वास्तविक सरोकार हमेशा झूठ के पुलिंदे ही साबित होते रहे हैं। इस सबके बावजूद भाजपा के प्रतीक इस देश की एक बड़ी आबादी को लुभाते रहे हैं और दोनों जमीनी मुद्दों से दूर एक-दूसरे के साथ आगे बढ़ते रहे हैं।
2023 में पहली बार विपक्ष ने भी प्रतीकों के बिजूके खड़े करने शुरू किए। कर्नाटक विधानसभा चुनाव, विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस के लिए पहली बड़ी प्रयोगशाला के रूप में सामने आया, जहाँ कांग्रेस के रचे हुए प्रतीक, भाजपा के प्रतीकों पर भारी पड़ गए और भाजपा को चुनावी मोर्चे पर करारी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस, इससे पहले हिमाचल प्रदेश में भी भाजपा से सत्ता छीन चुकी थी। फिलहाल, उस समय कांग्रेस को पंजाब में ‘आप’ और गुजरात में भाजपा से हार मिली थी, जिसकी वजह से हिमाचल प्रदेश की जीत पर ज्यादा चर्चा नहीं हो सकी थी, पर कर्नाटक जीतकर कांग्रेस ने विपक्ष को यह बता दिया कि भाजपा को हराया जा सकता है, बशर्ते कि भाजपा का आखेट उसी के हथियारों से किया जाए। यह बात जल्द ही पूरे देश के विपक्ष को समझ में आ गई, जिसकी वजह से भाजपा को हराने के मंसूबे बांध रहे तमाम राजनीतिक दल भी भविष्य के एक नए राजनीतिक साझे के लिए, साझे मंच की पक्षधरता करने लगे। जल्द ही बात बढ़ी और विपक्षी पार्टियों ने एक नए मोर्चे के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी। मोर्चे के निर्माण की प्रक्रिया में जब उसमें शामिल हुई पार्टियों ने नए मोर्चे के गठन की बुनियादी शर्ते पूरी करनी शुरू की तब उसका नामकरण हुआ इंडिया (I.N.D.I.A.) यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायंस। यह नाम सामने आते ही भाजपा के लिए मुसीबत बन गया। हमारे देश की जो वैश्विक पहचान है, वह भी इंडिया के रूप में है। अब भाजपा के सामने मुश्किल यह थी कि वह विपक्ष की संगठित एकता पर हमला करती है, तो एक ही नाम होने की वजह से विपक्ष भाजपा के हमले की नकारात्मकता को देश पर हमला बताकर कब-कहाँ-क्या मुसीबत खड़ी कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता है। वैसे भी हमारे देश में कहा जाता है कि प्रतिकूल समय में ऊंट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है और अनुकूल समय में मरा हुआ हाथी भी भगदत्त की जांघ पर टिक सकता है। भाजपा चुनाव के मामले में कभी भी अंतिम बॉल का इंतजार नहीं करती है और ऐसे समय में तो वह कतई रिस्क नहीं लेना चाहेगी, जब भाजपा की ब्रांड इमेज कहलाने वाले प्रधानमंत्री की ब्रांडिंग जीतने की गारंटी न रह गई हो।
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विपक्ष की इस साझी ताकत को बिखेरने के लिए सत्ता ने सबसे पहले जो काम किया वह एक देश एक चुनाव के रूप में सामने आया। सत्ता को उम्मीद थी कि इस मुद्दे के सामने आते ही विपक्ष राज्य के चुनावी चक्कर में फंस जाएगा और आपस में ही एक-दूसरे के खिलाफ तलवार खींच लेगा। यह असंभव भी नहीं कि एक ही जगह पर दो अलग-अलग चुनाव चिन्हों पर वोट नहीं मांगा जा सकता और यह भी संभव नहीं कि गठबंधन में शामिल पार्टियां किसी लोकसभा की हर सीटों पर एक ही पार्टी के उम्मीदवार उतार दें। उसकी और भी बहुत दिक्कतें हो सकती हैं, पर उन बातों की परवाह किए बगैर विपक्ष ने सत्ता के इस हमले पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दर्ज कराई। सत्ता को विपक्ष से ऐसी उम्मीद नहीं थी। भाजपा और एनडीए को विपक्ष की इस चुप्पी ने परेशानी में डाल दिया। शायद इसी वजह से सत्ता ने विपक्ष पर अगला हमला करने के लिए राष्ट्रपति के पद का सहारा लिया। जी20 के अतिथियों के लिए 9 सितंबर को राष्ट्रपति की तरफ से आयोजित किए जा रहे रात्रिभोज के आमंत्रण पत्र में अचानक एक ऐसा परिवर्तन कर दिया गया, जिसने एक नई चर्चा शुरू कर दी। दरअसल, भारत के राष्ट्रपति को अंग्रेजी में हमेशा ही President Of India (प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया) के रूप में उल्लेखित किया जाता था, पर पहली बार राष्ट्रपति की तरफ से जारी किए गए इस आमंत्रण पत्र में President Of Bharat के रूप में उल्लेखित किया गया।
इस पत्र के सामने आते ही देश के साथ विदेश में भी इस बदलाव की चर्चा शुरू हो गई। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की पहचान भारत कम INDIA के रूप में ज्यादा है। विपक्ष के इस नाम का प्रयोग करने से सत्ता को ससम्मान इंडिया शब्द के उच्चारण करने में परेशानी होना वाजिब है। सत्ता देश से न तो इंडिया को जिताने की अपील कर सकती है ना हराने की। ऐसे में स्पष्ट है कि इंडिया शब्द को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करके विपक्ष ने भाजपा को उलझा दिया है।
सोशल मीडिया में यह बात भी फैल गई है कि सरकार देश को अब सिर्फ भारत के रूप में पहचान दिलाना चाहती है।
INDIA का नाम बदलकर भारत करने की बात चलने लगी। विपक्ष के विरोध पर सत्ता के समर्थकों ने समाजवादी के दिवंगत नेता मुलायम सिंह यादव द्वारा 19 साल पहले का वह मसविदा भी पेश कर दिया गया कि जब उन्होंने एक देश, एक नाम का प्रस्ताव रखते हुये इंडिया की जगह सिर्फ भारत करने की बात की थी।
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सरकार के कैबिनेट मंत्री अनुराग ठाकुर ने ‘नाम बदलने की बात को कोरी अफवाह बताया है। उन्होंने कहा कि संसद के विशेष सत्र में ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है, जी20 के लोगो में ‘इंडिया’ और ‘भारत’ दोनों लिखा हुआ है, तो फिर बेवजह की अफवाह क्यों फैलाई जा रही है? उन्होंने कहा, ‘आखिर भारत शब्द से किसी को क्या दिक्कत हो सकती है। यह उनकी मानसिकता को दर्शाता है, जिनके मन में भारत को लेकर विरोध है।’
यह परिवर्तन किसी भी कारण से हुआ हो पर इसने विपक्ष को यह गुमान करने का मौका तो दे ही दिया है कि सत्ता अब इस खेल में किसी पिछलग्गू की तरह हो चुकी है, जो विपक्ष की पिच पर खेल रही है।