मालेगांव विस्फोट का मामला महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते के पास था। वर्ष 2011 में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने इस मामले को अपने हाथ में लिया। अदालत ने पाया कि अभियुक्तों के शामिल होने का प्रबल संदेह है, लेकिन अभियोजन पक्ष इसे संदेह से परे साबित नहीं कर पाया, इसलिए सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया गया। सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया, जो पीड़ितों के लिए एक बड़ा झटका और हिंदुत्व खेमे के लिए जश्न का विषय था।
आए दिन ईसाई धर्म के लोगों के साथ-साथ उनके चर्च, नन और पादरियों पर धर्मांतरण के आरोप लगाकर हिंसक हमला कर उत्पीड़ित किया जा रहा है। भारत में ईसाइयों के उत्पीड़न का मुख्य स्रोत संघ परिवार है, जो हिंदू चरमपंथियों का एक संगठन है, जिसमें आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) नामक प्रभावशाली अर्धसैनिक और रणनीतिक समूह, भाजपा, प्रमुख राजनीतिक दल और बजरंग दल, एक हिंसक युवा शाखा शामिल है।
फिलहाल सिस्टर प्रीति मैरी, वंदना फ्रांसिस और आदिवासी युवक सुखमई को जमानत मिल गई है। इस प्रकरण में पूरे देश में हुए हंगामे के बाद एनआईए अदालत से आरोपियों को जमानत मिलने का एक ही अर्थ है कि सरकार के प्रथम दृष्टया सबूतों को अदालत ने खारिज कर दिया है।
जब खुद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ कांवड़ियों के सत्कार में लगे हों, पुलिस के आला अफसरों की ड्यूटी उन पर फूल बरसाने की हो, थानों में पदस्थ अधिकारी और पुलिस के जवान महिला, पुरुष दोनों – कांवड़ियों के पाँव दबाने और पंजे सहलाने के काम में लगाये गए हों, ऐसा करते हुए उनके फोटो वीडियो सार्वजनिक किये जा रहे हों और इस तरह कोतवाल खुद मालिशिए हुए पड़े हों, तो फिर कांवरियों को किसका डर। डर तो दुकानदारों, होटल वालों और पैदल व गाड़ी पर चलने वाले लोगों को हो रहा है।
कॉमरेड वी.एस. अच्युतानंदन का कम्युनिस्ट नेता, विधान सभा के सदस्य, विपक्ष के नेता और मुख्यमंत्री के रूप में दिया गया योगदान अविस्मरणीय है। वे पुन्नप्रा-वायलार संघर्ष के पर्याय बन गए थे। राजनीति की सीमाओं को लांघकर, उन्होंने पर्यावरण, मानवाधिकार और महिला समानता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भी काम किया। इसी प्रक्रिया में, पार्टी नेता रहते हुए भी उन्हें जनता की स्वीकृति मिली। उन्होंने सामाजिक महत्व के अन्य मुद्दों को मुख्यधारा के राजनीतिक मुद्दों से जोड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पिछले एक माह से आमरण अनशन पर बैठे बोद्ध भिक्षुओं का सरकार से अनुरोध है कि बोधगया महाविहार को ब्राह्मणों के मुक्त करा बौद्धों को सौंप दिया जाए। बोधगया महाविहार अधिनियम 1949, जिसके तहत महाविहार प्रबंधन में ब्राह्मणों को सदस्य नियुक्त किया गया था, को निरस्त किया जाए। भगवान बुद्ध ने जहां ज्ञान प्राप्त किया, वह स्थान बौद्धों के हाथ में नहीं है। विदित हो की हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अक्सर दुनिया के सामने कहते हैं कि वे बुद्ध की धरती से आए हैं। ऐसे में क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं कि वे बौद्धों के सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण महाविहार को बौद्धों को सौंप देने की दिशा में आवश्यक कदम उठाएं। क्या बिहार और केंद्र सरकार को आमरण अनशन पर बैठे बौद्धों की सुध नहीं लेनी चाहिए? और उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए तुरंत इस मसले का हल निकालना चाहिए।
देश भर के बीमा अभिकर्ता आंदोलन पर हैं। उनका कहना है की जीवन बीमा अभिकर्ता अधिनियम 1972 भारतीय जीवन बीमा अभिकर्ता (संशोधन) अधिनियम 2017 अभिकर्ताओं के हितों के अनुकूल नहीं हैं। ये दोनों अधिनियम अभिकर्ताओं के अधिकारों को खत्म करने और उनके दमन का रास्ता साफ करने के औज़ार हैं। उनका कहना है कि 1 अक्तूबर 2024 को लाये गए निर्णय में निगम ने कई ऐसे नियम लागू किए जो अभिकर्ताओं और पालिसीधारकों दोनों के लिए खतरनाक हैं। अभिकर्ता संगठनों द्वारा इसका विरोध किया गया लेकिन प्रबंधन ने उनकी कोई बात नहीं मानी। अंततः 24 मार्च से वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए।
विगत दिनों कृषि संकट के साथ ही दूसरे ज्वलंत मुद्दों पर बरगढ़ में राज्य भर से भारी संख्या में आए किसानों की महापंचायत हुई। महापंचायत में आए किसान नेताओं ने किसानों से अपने अधिकारों और आत्मरक्षा के लिए बड़े संघर्ष के लिए तैयार रहने का आह्वान किया है।
फिल्म छावा प्रदर्शित होने के बाद औरंगजेब को कब्र से निकालकर पुन: मारने की साजिश में सांप्रदायिक दंगों को हथियार बनाया जा रहा है। सवाल न भी उठाया जाए तब भी सभी जानते हैं कि इस साजिश को योजनाबद्ध तरीके से करने में किसका हाथ है। संघी हिंदू राष्ट्र का सपना देखते हुए इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत कर युवाओं का ब्रेन वाश कर रहे हैं। यही कारण है कि युवा साहस के साथ गुंडागर्दी करने में सबसे आगे हैं। इस तरह की स्थिति सोचने को विवश करती है कि आखिर यह देश कहाँ पहुँच गया है?
खराब कानून गरीब लोगों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं, क्योंकि वे पुलिस और छोटी अदालतों की शक्ति के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं। भारतीय न्यायिक व्यवस्था में न्याय प्रणाली का लंबे समय तक अटके रहने के कारण ध्वस्त होती नज़र आ रही हैं। साथ ही अपराधों की परिभाषा में स्पष्टता नहीं होना, सजा में असमानता, पीड़ितों को उपेक्षित करने के कारण विश्वसीनयता में कमी आई है। लेकिन केंद्र सरकार के स्तर पर हाल ही में घोषित जनविश्वास विधेयक 2, जिसके बाद जल्द ही विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जनविश्वास 3 विधेयक पेश किए जाने पर क्या बदलाव होंगे, यह तो आने वाला समय बताएगा।
वर्ष 2014 के बाद भारत की धर्ननिरपेक्षता पर लगातार हमला हुआ है। देश में हिंदुत्ववादी विचारधारा ने लगातार सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश की है। रोजाना एक-दो खबरें सुनाई दे रही हैं। केवल पुलिस-प्रशासन ही नहीं बल्कि जनप्रतिनिधि भी गैर जिम्मेदाराना बयान दे आग भड़का रहे हैं।