सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं होने या आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के कारण नई पीढ़ी का इसे छोड़ना चिंता की बात है, क्योंकि यह न केवल अर्थव्यवस्था का मज़बूत स्तंभ है, बल्कि देश की आबादी के पेट भरने का माध्यम भी है। ऐसा नहीं है कि सरकार इस दिशा में प्रयास नहीं कर रही है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से इस समस्या का हल संभव है।
बायोमास संयंत्रों, पेपर मिलों और बॉयलर द्वारा पराली की बढ़ती मांग के कारण राज्य में कई किसान ‘बेलर’ खरीद रहे हैं। अक्टूबर और नवंबर महीने में पंजाब एवं हरियाणा में पराली जलाये जाने की वजह से राष्ट्रीय राजधानी में हाल के वर्षों में वायु प्रदुषण में काफी वृद्धि देखने को मिली है।
कृषि के अविष्कार में महिलाएं करीब से जुड़ी रही हैं। कई सामाजिक वैज्ञानिक तो यहां तक मानते हैं कि महिलाओं ने ही कृषि की खोज की होगी। लेकिन बाद के दौर में कृषि को केवल पुरुषों के पेशे के तौर पर प्रस्तुत किया गया। हालांकि खेतों में महिलाएं पुरुषों के बराबर ही काम करती हैं। विश्व में 40 करोड़ से अधिक महिलाएं कृषि के काम में लगी हुई हैं, लेकिन 90 से अधिक देशों में उनके पास भूमि के स्वामित्व में बराबरी का अधिकार नहीं हैं।
राजमार्ग के अगल-बगल की जमीनों का भाव 15 से 18 लाख रुपये बिस्वा चल रहा है। इसी भाव पर आजकल निजी तौर से जमीनों की खरीद-फरोख्त की जा रही है। सरकार हमें 50 हजार प्रति बिस्वा के सर्किल रेट से 4 गुणा बढ़ाकर यानी मात्र 2 लाख प्रति बिस्वा की दर से मुआवजा दे रही है। जो राष्ट्रीय राजमार्ग के लिंक मार्गों पर जमीनों के बाजार भाव से भी काफी कम है।
अचानक कैंसरग्रस्त माँ के समुचित इलाज के लिए उन्हें दुबई छोड़कर अपने गांव में ही रहने को मजबूर होना पड़ा। नौकरी छोड़ कर गांव में रहने के फैसले के बाद वीरेन्द्र ने खेती करने का फैसला किया। उन्होंने दस एकड़ जमीन 600 सौ रुपये सालाना के हिसाब से लेकर खेती की शुरुआत की। पहले पहल केला, कद्दू (लौकी) और सेम की खेती शुरू की, जिसमें उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन वीरेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी और एकबार फिर से दुगुना साहस और हौसले से 26 एकड़ जमीन लीज पर लेकर कम संसाधन में ही खेती शुरू की।
किसान और कृषि विभाग में तालमेल का अभाव है। किसानों का आरोप है कि पदाधिकारी जान-पहचान वाले लोगों को किसान बताकर किसान श्री सम्मान और अन्य कृषि लाभ देते रहते हैं। कागजी खानापूर्ति करके किसी तरह योजनाओं का बंदरबांट हो जाता है। दूसरी ओर, वास्तविक किसानों को मौसम की मार ओलावृष्टि, कभी बाढ़, कभी सुखाड़ की मार झेलनी पड़ती है। फसल भंडारण की कोई उचित व्यवस्था नहीं है।
किसान मजदूर 8 महीने से अधिक समय से धरने पर बैठे हैं। यह धरना तब शुरू हुआ जब 12-13 अक्टूबर को एसडीएम सगड़ी, कंधरापुर थानाध्यक्ष व अन्य राजस्वकर्मीयों द्वारा भारी पुलिस बल के साथ जबरन गांव में बिना किसी सूचना के सर्वे किया जाने लगा। गैरकानूनी कार्यवाई का ग्रामीणों ने विरोध किया तो महिलाओं, बुजुर्गों को बुरी तरह से मारा-पीटा गया और दलित महिलाओं को जाति सूचक गालियां दी गईं।
पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे अंडिका बाग में किसानों-मजदूरों के धरने ने पूरे किए एक महीने
अंडिका बाग, आजमगढ़। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे के...