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मक्खलि गोशाल और बुद्ध  डायरी (31 जुलाई, 2021)

जीवन में प्रश्नों की महत्वपूर्ण भूमिका है। बाजदफा तो लगता है कि प्रश्न और जीवन दोनों एक-दूसरे के पर्याय हैं। प्रश्नों को यदि प्राणवायु...

अमरदेसवा में बेखौफ आंखें ( डायरी जुलाई, 2021)  

पत्रकार के रूप में मेरे प्रारंभिक दिन कमाल के थे। तब हर खबर से रोमांच होता था। खासकर उन खबरों से जिनमें मेरा नाम...

पेरियार ने ब्राह्मणवादी वर्चस्व के खिलाफ सांस्कृतिक मोर्चा खोला जो आज भी जरूरी है

द्रविड़ कझगम के अध्यक्ष थिरु के वीरामणि से सामाजिक कार्यकर्ता विद्या भूषण रावत की बातचीत यह साक्षात्कार एक नवम्बर 2019 में द्रविड कड़गम के मुख्यालय...

किसलय जी की लाजवाब ड्रायविंग और मुंह को आता मेरा कलेजा

दूसरा हिस्सा बसंता जी और घर के अन्य लोग बारात के विदा होने की तैयारी और अन्य रस्मों में व्यस्त हो गए थे और...

इस कार्पोरेट समय में प्रेमचंद

मई 1925 के प्रभा के अंतिम अंक में गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रेमचंद के उपन्यास रंगभूमि की समीक्षा लिखी थी, उसकी कुछ पंक्तियाँ आज...

धंधे में ईमानदारी  डायरी (29 जुलाई, 2021)

पत्रकार होने का एक बड़ा फायदा यह है कि आप किसी एक विचारधारा में बंधे नहीं रहते। मेरे लिए तो खबर ही महत्वपूर्ण है।...

जब तक मैं कोई चीज सोचता हूँ आर डी आनंद उसको लिख चुके होते हैं- स्वप्निल श्रीवास्तव

सर्वप्रथम, वरिष्ठ मार्क्सवादी-आम्बेडकरवादी चिंतक, आलोचक एवं कवि कॉमरेड आर डी आनंद के कविता-संग्रह 'नीला कोट लाल टाई' का लोकार्पण हुआ जनमोर्चा सभागार, फैजाबाद। प्रगतिशील लेखक...

ब्राह्मण वर्ग के गले में हांडी  डायरी (27 जुलाई, 2021)

भारतीय समाज को लेकर मेरी समझ हिंदी भाषी प्रदेशों के समाज तक सीमित है। इधर हाल के दस वर्षों में मेरा परिचय गैर-हिंदी भाषी...

इतनी खूबसूरत यात्रा के खत्म होने से मन उदास हो जाता है

अंतिम कड़ी अब रात के ग्यारह बजे इतनी ठण्ड में क्या होगा, पंचर बनेगा या रात यहीं गुजारनी पड़ेगी इसकी चिंता सबको सताने लगी।...

हमने मण्डल से कमंडल को मात देने की कोशिश की तो कमंडल और चौड़ा हुआ

पुरानी बात है। 2014 में एकदिन अचानक कवि रामकुमार कृषक का फोन आया कि वे अगस्त में रानीगंज आना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि...

चम्बा के रास्ते में आधी रात को गाड़ी पंचर ….

हिमाचल की हरी-भरी वादियां और वहां की ताज़गी मुझको हमेशा अपनी तरफ आकर्षित करती थी। मैं पिछली बार लगभग 15 साल पहले गया था...

बेपेंदी का लोटा बनते जा रहे हैं दलित-बहुजन डायरी (24 जुलाई, 2021)

हम मनुष्यों की एक सीमा होती है। मुमकिन है कि अन्य पशुओं में भी ऐसा होता होगा। अब चूंकि उनकी भाषा हमें समझ में...

अभी बहुत दूर है साहित्य पर शानदार फिल्में बनाने का बालीवुडीय सपना

जब तक बॉलीवुड भारतीय समाज की सही समझ नहीं विकसित करता और जातीय और साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं होता तब तक वह साहित्यिक...

सवाल केवल दैनिक भास्कर का नहीं है डायरी (23 जुलाई, 2021)

प्रारंभिक दिनों में कंप्यूटर साइंस के पीछे की यह अवधारणा बेहद सटीक लगती थी कि कंप्यूटर ही वह यंत्र है जो दुनिया को बदल...

जनसंख्या नियंत्रण : क्या ज़ोर-ज़बरदस्ती से कुछ होगा?

असम सरकार द्वारा कुछ समय पूर्व लागू की गई जनसंख्या नियंत्रण नीति के अंतर्गत दो से अधिक संतानों वाले अभिवावक, स्थानीय संस्थाओं के चुनाव...

सभ्यता के इस पारामीटर को आप कितना महत्व देते हैं? ( 22 जुलाई, 2021 की डायरी )

कोई भी समाज कितना सभ्य है, इसका निर्धारण कैसे किया जा सकता है? जाहिर तौर पर कोई एक पारामीटर नहीं हो सकता। अनेक मानक...

ज़्यादातर लेखक संघ एक तरह से वृद्धाश्रम होकर रह गए हैं

बातचीत का चौथा और अंतिम हिस्सा भालचन्द्र नेमाडे को ज्ञानपीठ सम्मान देने के लिए आयोजित समारोह के मुख्य अतिथि नरेन्द्र मोदी थे, जिसकी अध्यक्षता...

जो कभी शहर के सन्नाटे को तोड़ता था

 मेरे मित्रों में उमेश प्रसाद सिंह एक ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने साहित्य की सर्वाधिक विधाओं में काम किया है अर्थात लेखन। लेकिन उनकी छवि...

देश को कैसे गींजा जाता है, यह नरेंद्र मोदी खूब जानते हैं   (20 जुलाई, 2021 की डायरी )

आंचलिक भाषाएं बहुत सुंदर होती हैं। उनकी सुंदरता का आकलन करने का मानदंड नियत नहीं हो सकता। मुमकिन है कि जो आंचलिक शब्द मुझे...

बीपी मंडल के नाम पर सम्मान मिलना मेरे लिए गौरव की बात है       

हिन्दी दलित साहित्य में सुशीला टाकभौरे एक जाना-पहचाना नाम है। कविता, कहानी,  उपन्यास के साथ ही आलोचना की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।...

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