लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा कम सीटों से जीत दर्ज की।लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम से ऐसा लगता है कि आरएसएस अपने राजनीतिक वंशज यानी भाजपा की मदद के लिए आगे नहीं आया।आरएसएस की गहरी समझ यह है कि इस चुनाव में भाजपा की हार का मुख्य कारण दलित वोटों का भारत गठबंधन की ओर जाना है।आरएसएस के नेता पहले से ही भाजपा नेताओं के साथ लंबी बैठकें कर रहे हैं, ताकि चुनाव के नतीजों का विश्लेषण किया जा सके और भविष्य की रणनीति बनाई जा सके। भाजपा-आरएसएस किस रणनीति पर काम कर रहे हैं इस पर राम पुनियानी का लेख।
लोकसभा चुनाव 2024 में 400 के पार का नारा देने वाली भाजपा बहुमत भी नहीं ला सकी। इसके विपरीत कांग्रेस ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर जनता से सीधे जुड़ते हुए सामाजिक न्याय व समान भागीदारी पर सवाल खड़ा किया। कांग्रेस के घोषणा पत्र में वे सभी बिन्दु शामिल किए गए, जो पिछ्ले दस वर्षों में जनता की जरूरत थे। सवाल यह उठता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस किस तरह अपना वर्चस्व हासिल कर पाएगी।
दुनिया की आधी आबादी की हर क्षेत्र में समान भागीदारी की बातें होती हैं। हमारे देश में 18 सितंबर 2023 को नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया गया, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभा में महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक तिहाई याने 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान लागू किया गया। जिसके तहत लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटों पर महिला संसद के लिए हैं लेकिन लेकिन सवाल यह उठता है कि अधिनियम के आ जाने के बाद 2024 में संसद तक मात्र 74 महिलाएं ही पहुँच पाई हैं, जो पिछली लोकसभा से 1 प्रतिशत कम ही है।
लोकसभा 2024 के चुनाव हो चुके और परिणाम भी सामने आ चुके हैं। लेकिन किसी भी एक दल को बहुमत हासिल नहीं हुआ है। 400 पार का दावा करने वाली भाजपा को इस बार जनता ने सबक सिखा ही दिया, उसने मात्र 240 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की। वाराणसी संसदीय सीट से नरेंद्र मोदी के जीत का अंतर कम हुआ है। भाजपा की कम सीट आने पर भक्त दुखी जरूर हैं लेकिन यह कहकर मन को तसल्ली दे रहे हैं कि मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री बन रहे हैं। लेकिन सहयोगी दल समर्थन देने के लिए जिस तरह से मंत्री पदों की मांग कर रहे हैं, आने वाले दिनों में क्या स्थिति बनेगी, देखना होगा।
देश में आम जनता द्वारा चुनाव से पहले आने वाली बातचीत से ऐसा लग रहा था कि चुनावी नतीजों में भारी फेरबदल हो सकता है लेकिन गोदी मीडिया ने लोकसभा चुनाव के सात चरणों के चुनाव खत्म होते ही एक्ज़िट पोल से यह बता दिया कि भाजपा पूर्ण बहुमत से या कहें भारी बहुमत से सत्ता में आ रही है। इस तरह जब चुनाव की प्रक्रिया को प्रभावित करने, उसे पक्ष में लाने और जीत में बदल देने का प्रबंधन व्यवस्था काम करने लगे और यह सीधे बाजार और शासन पर नियंत्रण का हिस्सा बन जाए, तब वहां सिर्फ वोट देने वाला ही नहीं, पूरी प्रक्रिया ही प्रभावित होने लगती है।
चौथे चरण का वोट खत्म होते-होते राहुल गांधी एक आंधी में तब्दील हो गए। भीषण गर्मी की उपेक्षा कर इंडिया की सभाओं में जो भीड़ उमड़ी, वह अभूतपूर्व है। कई लोगों को संदेह है कि यह भीड़ शायद वोट में तब्दील न हो। लेकिन भीड़ के अन्दर जो जुनून देखा जा रहा है वह इंडिया गठबंधन की कामयाबी की पटकथा को व्यक्त कर रहा है।
वर्ष 2014 से केंद्र में आरएसएस पोषित भाजपा शासन कर रही है। अब वर्ष 2024 में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए मशक्कत कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड़ड़ा ने साफ़तौर पर यह कहा कि लोग अपने मन इस भ्रम को मिटा दें कि इस चुनाव में आरएसएस भाजपा को किसी तरह से कोई सपोर्ट नहीं कर रहा है।
नेता जनता को ठगने और बेवकूफ बनाने का काम हमेशा से करते आए हैं। जनता उनकी बातों पर भरोसा कर अंत में खुद को ठगा महसूस करती है। मिर्जापुर की ग्राम सभा गड़ौली के ग्रामीण यह बात समझ चुके हैं और आने वाले दिनों में अपनी मांगों को पूरा होता न देख चुनाव के बहिष्कार की घोषणा किए हैं। पढ़िये हरिश्चंद्र की यह ग्राउंड रिपोर्ट
विगत वर्षों के दौरान उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के उत्पीड़न और जानलेवा हमलों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। योगी आदित्यनाथ की सरकार के पहले कार्यकाल में राज्य में पत्रकारों के उत्पीड़न के 138 मामले दर्ज़ किए गए। दूसरे कार्यकाल में भी इसमें कमी नहीं आई है। विगत दिनों एक रैली की कवरेज के लिए गए पत्रकार पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने जानलेवा हमला किया और जौनपुर में सरे-बाज़ार एक पत्रकार को गोली मार दी गई।
जब भी हम किसी गाँव में चुनाव की ग्राउंड रिपोर्ट के लिए जाते हैं तो कुछ लोग राममन्दिर, देश की सुरक्षा और धारा 370 की बात करते हैं। ऐसे लोगों की बात से दूसरे लोग भी भ्रमित और प्रभावित होते हैं। कुछ देर बात करने के बाद ही लोगों की वास्तविक समस्याएँ सामने आती हैं। मिर्ज़ापुर जिले के सिंधोरा गाँव के लोगों में भी आर्थिक स्तर पर कई धड़े हैं जिनकी अपनी ऐसी समस्याएँ हैं कि उनका हल दूर-दूर तक निकलता नहीं दिखता। अब देखना यह है कि जिंदगी की बुनियादी चुनौतियों से जूझ रहे लोग लोकसभा चुनाव में बदलाव लाना चाहेंगे या पुराने प्रतिनिधि पर ही भरोसा कायम करेंगे।
भाजपा सरकार की नीतियाँ हमेशा से जन विरोधी रही हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा उन्हीं में से एक है। यह पूरी तरह मजदूर, किसान एवं आम जनता के बच्चों के लिए शिक्षा से बेदखली का दस्तावेज है।
चुनावी दौर में पूर्वाञ्चल के गांवों के किसान अपनी समस्याओं को लेकर खदबदा रहे हैं और पिछले दस वर्षों से सत्ता पर काबिज भाजपा सरकार के खिलाफ गुस्से से भरे हैं। विगत वर्षों में किसानों ने अपनी समस्याओं को लेकर देशव्यापी आंदोलन चलाया लेकिन सरकार से कोई ठोस आश्वासन मिलने की बजाय उनका दमन ही किया गया। इन बातों से किसानों के भीतर एक आक्रोश जमा हुआ है और उन्होंने सत्ता परिवर्तन का मन बना लिया है।
कुछ समय पहले तक आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ओबीसी आरक्षण के सख्त खिलाफ थे और आरक्षण को लेकर लगातार विरोध में बयान दिया करते थे लेकिन चुनाव आते ही उनके सुर बदल गए क्योंकि देश में ओबीसी का बड़ा वोट बैंक हैं।
उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जिला सोनभद्र, देश के चार राज्यों मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, बिहार और झारखंड की सीमाओं से घिरा हुआ है। खनिज और प्राकृतिक संपदाओं से सम्पन्न इस जिले के बहुत से गाँव के निवासी पानी, सड़क, बिजली जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। हर घर नल और नल में जल का दावा करने वाली डबल इंजन की सरकार की वास्तविकता यहाँ पहुँचने पर मालूम हुई। सोनभद्र जिले के सुकृत और उसके आसपास के गांवों में पानी को लेकर ग्रामीणों की स्थिति क्या है? पढिए हरिश्चंद्र की ग्राउन्ड रिपोर्ट
पांचवें चरण के नामांकन के आखिरी दिन आज अमेठी और रायबरेली से कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर अपने पत्ते खोल दिये। उत्तर प्रदेश के हॉट सीटों में रायबरेली और अमेठी का नाम आता है। लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में इन दोनों सीटों पर राहुल गांधी और किशोरीलाल शर्मा ने अपना नामांकन भर दिया है।
वोट किसी को दिया और वीवीपीएटी में वोट किसी दूसरी पार्टी को गया, ऐसी अनेक शिकायतें ईवीएम द्वारा वोट देने पर सामने आ रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने 26 अप्रैल को मतपत्रों से होने वाले चुनावों की दिक्कतें बताते हुए ईवीएम से ही चुनाव कराये जाने का फैसला सुनाया। न्यायालय ने भले यह कहा हो लेकिन जनता का एक बड़ा तबका मतपत्रों के माध्यम से ही चुनाव कराये जाने के पक्ष में है।
लोकसभा चुनावी भाषणों में अराक्षण और संविधान को लेकर मोदी और संघ के सुर इधर बदले हुए सुनाई दे रहे हैं लेकिन वास्तविकता यही है कि आरएसएस और भाजपा का निर्माण हिंदुत्ववादी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए हुआ। इस कारण संघ अपने जन्मकाल से लेकर आज तक लोकतंत्र, संविधान, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता का स्वाभाविक हिमायती न बन सका। आज भी 400 सीट पाने का मुख्य उद्देश्य आसानी से संविधान में बदलाव करते हुए आरक्षण को पूरी तरह से खत्म करना है।
पिछले दस वर्षों में सत्ता में बैठे लोगों ने जनता के लिए क्या काम किया? इस बात को जनता भली-भांति समझ चुकी है। चुनाव में खड़े प्रत्याशियों को कहीं काले झंडे दिखाये जा रहे हैं तो कहीं उन्हें गाँव में घुसने नहीं दिया जा रहा है। लेकिन कहीं-कहीं जनता वोट न डाल अपनी गुस्सा जाहिर कर रही है। इसी वजह से इस बार वोट का प्रतिशत पिछले चुनाव के बनिस्बत कम है।
पिछले दस वर्षों में शिक्षा का स्तर जितना गिरा है उतना पहले कभी नही। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी संस्थानों में विज्ञान और तर्क को दरकिनार कर धर्म को केंद्र में रखा गया। 2024 के लोकसभा चुनाव
में शिक्षा जैसा महत्त्वपूर्ण मुद्दा जनता की नजर में क्यों नहीं है?
लोकसभा के दो चरणों के चुनाव हो चुके हैं लेकिन कुल उम्मीदवारों में महिलाएँ केवल आठ प्रतिशत हैं। यह नारी शक्ति वंदन मंशा और सामाजिक न्याय की अवधारणा के लिए गंभीर संकेत है।