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ग्राउंड रिपोर्ट

राहुल गाँधी को बच्चा कह देने से विपक्ष के मुद्दे कमजोर नहीं पड़ सकते

केंद्र की मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकाल संसद में विपक्ष के नेता के बिना ही चला और बीजेपी सरकार ने खूब मनमानी की। लेकिन अठारहवीं लोकसभा के चुनाव के बाद इस बार संसद में विपक्ष के नेता की बागडोर राहुल गांधी के जिम्मे है, और वे इस ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभा रहे हैं। इसे उन्होंने संसद के पहले सत्र में ही दिखा दिया। इस बार सत्ता पक्ष को संसद में उन सवालों से दो-चार होना ही पड़ेगा, जिनसे वह बचता आया था।

अठारहवीं लोकसभा का चुनाव हो जाने के बाद नई सरकार का गठन हुआ। इसके बाद 26 जून को संसद का पहला सत्र राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण से शुरू हुआ। 2 जुलाई को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बगैर नाम लिए कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और विपक्ष के नेता राहुल गांधी को बच्चा कहते हुए अनेक बातें व्यंग्यपूर्ण लहजे में कही। लेकिन राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के भाषण को बहुत ही धैर्य के साथ सुना और समझदारी का प्रमाण दिया। क्या ‘बच्चा’ अब समझदार हो गया है ?

राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण एक परिपक्व नेता की तरह खामोश रहकर बड़े ही धैर्य से सुना और प्रधानमंत्री की बातों पर किसी भी प्रकार की कोई भी प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की और न ही विरोध किया। राहुल गांधी ने सदन के भीतर और सदन के बाहर देश को अपनी राजनीतिक परिपक्वता और समझदारी का परिचय दिया।

प्रधानमंत्री जब भाषण दे रहे थे तब उसमें अनेक बार ऐसी बातें उन्होंने कही जो आपत्तिजनक थीं। ऐसे में यदि राहुल गांधी चाहते खड़े होकर विरोध दर्ज करवा सकते थे। जैसा कि 1 जुलाई, सोमवार के दिन  राहुल गांधी द्वारा दिये जा रहे भाषण के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद, गृहमंत्री अमित शाह रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जैसे वरिष्ठ और राजनीति करने में परिपक्व नेताओं ने खड़े होकर टोका था। वैसा ही राहुल गांधी भी प्रधानमंत्री की बातों पर एतराज कर सकते थे मगर राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया बल्कि अपनी परिपक्वता और समझदारी दिखाई। प्रधानमंत्री ने जब कांग्रेस को परजीवी कहा तब राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पलट कर जवाब दे सकते थे कि परजीवी कौन है?

प्रधानमंत्री ने अपनी राजनीतिक शैली में भाषण दिया और कांग्रेस को भ्रष्टाचार पर जमकर घेरा। राहुल गांधी का नाम लिए बगैर कांग्रेस और राहुल गांधी पर व्यंग्य कसते हुए अपनी बात कही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पिछले दस वर्षों के कार्यकाल में  किए गए विकास कार्यों की गाथा सुनाई। लेकिन एक बार भी मणिपुर का नाम नहीं लिया।

अगर देखा जाय तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के हर जरूरी मुद्दे पर बहस करने से भाग रहे हैं। अग्निवीर, नीट पेपरलीक, महँगाई, बेरोजगारी से लेकर सभी जरूरी मुद्दों पर उन्होंने चुप्पी साध रखी है। इसकी जगह व्यक्तिगत हमला उनकी रुचि का विषय बना हुआ है।

उन्होंने देश में चल रहे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर कोई बहस नहीं की केवल यह कहा कि नीट के दोषियों पर कार्यवाही हो रही है और सरकार दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देगी। इस बात को छोडकर उन्होंने मणिपुर और बेरोजगारी पर एक शब्द भी नहीं कहा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उनको इंडिया गठबंधन के किसी भी बड़े नेता ने नहीं टोका। बल्कि नारेबाजी के बीच डगमगाते आत्मविश्वास के साथ प्रधानमंत्री मोदी को विपक्ष ने धाराप्रवाह बोलने दिया। सोशल मीडिया ने उनकी भंगिमा को गाँव-गाँव तक पहुंचा दिया है। लोगों को उनका बेबस चेहरा देखकर उनके भीतर की हताशा का अंदाज़ा हो रहा है।

दरअसल वर्तमान भारत की स्थितियों की समझ और मुद्दों पर राहुल गांधी, अखिलेश यादव, महुआ मोइत्रा जैसे युवा नेताओं की पकड़ और उनकी आक्रामक अभिव्यक्ति शैली ने प्रधानमंत्री के भीतर बौखलाहट पैदा कर दिया है। दस सालों में अभी तक उनके सामने विपक्ष की कोई चुनौती नहीं रही है और ऐसे में वह अराजकता और मनमानेपन से काम ले रहे थे लेकिन पहली बार एक मजबूत और मुखर विपक्ष की चुनौती ने उन्हें अंदर से डरा दिया है।

इसके बावजूद वे इस बात से बच नहीं सकते कि विपक्ष जो मुद्दे उठा रहा है उनका जवाब देना ही होगा। वे मुद्दे बचकाने नहीं हैं बल्कि इस देश के सबसे ज्वलंत और जरूरी मुद्दे हैं। विपक्ष के नेता को बच्चा कहकर वे इससे पल्ला नहीं झाड़ सकते!

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