Thursday, November 21, 2024
Thursday, November 21, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमसंस्कृतिहिम्मत नगर के अच्छेलाल

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

हिम्मत नगर के अच्छेलाल

‘नमस्कार, चाचा। मैं हिम्मत नगर से अच्छेलाल बोल रहा हूँ।’ हर दूसरे-तीसरे महीने किसी रविवार की सुबह मोबाइल पर यह वाक्य सुनने को मिल ही जाता था। अच्छेलाल गाँव के पद से मेरा भतीजा लगता है। हाल-चाल के बाद हर बार अच्छेलाल यह निवेदन जरूर दुहराता कि चाचाजी कभी समय निकालकर हिम्मत नगर मेरे घर […]

‘नमस्कार, चाचा। मैं हिम्मत नगर से अच्छेलाल बोल रहा हूँ।’ हर दूसरे-तीसरे महीने किसी रविवार की सुबह मोबाइल पर यह वाक्य सुनने को मिल ही जाता था। अच्छेलाल गाँव के पद से मेरा भतीजा लगता है। हाल-चाल के बाद हर बार अच्छेलाल यह निवेदन जरूर दुहराता कि चाचाजी कभी समय निकालकर हिम्मत नगर मेरे घर भी आइए। साथ ही वह यह जोड़ना भी न भूलता कि हिम्मतनगर अहमदाबाद से ज्यादा दूर नहीं है। पिछले 10 सालों में उसने कई बार अपना अनुरोध दुहराया था किंतु अहमदाबाद या हिम्मत नगर जाने का मेरा योग नहीं बना तो नहीं बना। आखिर में यह योग बना फरवरी 2019 में जब कार्यालय दौरे पर मुझे अहमदाबाद जाने का मौका मिला। हमारे अहमदाबाद अंचल कार्यालय के प्रशिक्षण केंद्र में 08 फरवरी 2019 को एक दिन की कार्यशाला थी जहाँ दोपहर 12 बजे से शाम 05.30 बजे तक मेरा ही व्याख्यान (कुल 3) था। मैंने वापसी की एयर टिकट 10 फरवरी 2019 की शाम की बुक करवाई क्योंकि शनिवार, रविवार छुट्टी थी। मैं 9 फरवरी की सुबह ही हिम्मत नगर चला गया और दोपहर को अच्छेलाल के घर पहुँच गया।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों की भांति मेरे जौनपुर जिले से भी लाखों लोग प्रवसित होकर मुंबई, दिल्ली, सूरत, पुणे और वापी जैसे शहरों में जा बसे हैं। इन शहरों में रहकर वे अपनी योग्यता, कौशल, क्षमता और सामर्थ्य के अनुसार नौकरी-धंधा कर रहे हैं। कोई सूरत के साड़ी कारखाने में नौकरी कर रहा है तो कोई वापी की किसी फैक्टरी में मशीन चला रहा है। बहुत से लोग दूध या सब्जी बेचने का धंधा कर रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग ऑटो-टैक्सी चलाकर अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं। रोजी-रोटी की तलाश में अपने घर-गाँव से निकलकर कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, सूरत, पुणे जैसे शहरों में पलायन का सिलसिला देश की आजादी के पहले से ही शुरू हो गया था और यह आज भी जारी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति खेतों की जोत का आकार पहले भी कम था और अब आबादी बढ़ने तथा संयुक्त परिवार प्रणाली के बिखरते जाने से तो और भी कम होता जा रहा है। ट्रेक्टर से जुताई, महंगी खाद-बीज, बढ़ती मजदूरी और मौसम की मार के चलते खेती भी अब घाटे का सौदा ही साबित हो रही है। अतः कल के किसान प्रवसित होकर दूसरे शहरों में जाकर मजदूर बनने के लिए अभिशप्त हैं। ऐसे भाग्यशाली लोगों की संख्या बहुत कम है जिन्होंने अच्छी शिक्षा की बदौलत सरकारी या दूसरी कोई अच्छी नौकरी हासिल कर ली हो। हमारे क्षेत्र में बहुत कम ही ऐसे परिवार मिलेंगे जिनके यहाँ के लोग अन्य शहरों में जाकर अपनी रोजी-रोटी न कमा रहे हों।

[bs-quote quote=”हमारे इलाके में नवें दशक के शुरुआती कुछ वर्षों तक बाल-विवाह की प्रथा जारी थी। लड़के-लड़कियों की कम उम्र में ही शादी हो जाती थी और वे कम उम्र में ही माँ-बाप भी बन जाते थे। मेरा अनुमान है कि मृत्यु के समय जटाशंकर जी की उम्र 28-29 वर्ष की आसपास रही होगी।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

हमारे गाँव के श्री रामकिशोर जी के परिवार के युवक 1990 के आसपास रोजगार के लिए अपने एक रिश्तेदार का सहारा और प्रोत्साहन पाकर पहले गुजरात के बड़ौदा गए और फिर वहाँ से मेहसाणा में जाकर एक फाइनेंस कंपनी के लिए एजेंट का काम करने लगे। अपनी मेहनत, लगन और व्यवहार कुशलता से इस परिवार के लोग अब अच्छा पैसा कमा रहे हैं और गाँव में भी दुमंजिला पक्का मकान बना लिया है। इसी परिवार का नौजवान अच्छेलाल सन 2000 के आसपास गुजरात आकर साबरकांठा जिले के मुख्यालय हिम्मतनगर में बसेरा जमा लेता है। अच्छेलाल की उम्र करीब 43 वर्ष है। अच्छेलाल के पिता श्री जटाशंकर पढ़ने में बहुत अच्छे थे और अपनी बस्ती में सत्तर के दशक में अच्छे अंकों के साथ इंटर की परीक्षा पास करनेवाले पहले व्यक्ति थे। किंतु अर्थाभाव के कारण वे आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख सके। वे बहुत मिलनसार स्वभाव के व्यक्ति थे और पूरे गाँव में उनका सम्मान था। वे गाँव में रहकर खेती-बारी करते थे। उनके बड़े भाई केवलाशंकर मुंबई में दूध का कारोबार करते थे किंतु 1973 में रेल एक्सीडेंट में उनकी असमय मृत्यु हो गई। इनसे बड़े गौरीशंकर थे जो अंधेरी स्टेशन के पास सब्जी बेचते थे। दो और छोटे भाई क्रमशः फूलचन्द्र और रामचन्द्र थे जो पढ़ाई कर रहे थे। वर्ष 1985 में इस परिवार पर पुनः विपत्ति आई और जटाशंकर जी को रक्त क़ैसर ने जकड़ लिया। शुरू में कुछ महीने उन्होने गाँव में ही इधर-उधर कुछ इलाज कराया किंतु हालत जब और बिगड़ने लगी तो लोगों ने उन्हें मुंबई जाकर इलाज करने की सलाह दी। वे मुंबई आए किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उस समय रक्त कैंसर की बीमारी नाइलाज ही मानी जाती थी। आरंभिक जाँच के बाद इस बीमारी का पता चला और उन्हें मुंबई के नायर अस्पताल में भर्ती कराया गया। किंतु सातवें दिन यानी 31 मई 1985 को अस्पताल में ही उनका देहांत हो गया। नायर अस्पताल में जब वे भर्ती थे तो मैं 2 बार उन्हें देखने गया था। उनके देहांत के समय अच्छेलाल की उम्र मात्र 9 वर्ष थी और उसके पीछे 7 और 4 साल की 2 बहनें भी थीं।

बांये से, अच्छेलाल उनकी बेटी और लेखक गुलाबचंद यादव

हमारे इलाके में नवें दशक के शुरुआती कुछ वर्षों तक बाल-विवाह की प्रथा जारी थी। लड़के-लड़कियों की कम उम्र में ही शादी हो जाती थी और वे कम उम्र में ही माँ-बाप भी बन जाते थे। मेरा अनुमान है कि मृत्यु के समय जटाशंकर जी की उम्र 28-29 वर्ष की आसपास रही होगी। इतनी कम उम्र में इस दुनिया से उनका चला जाना हम सबको बहुत दुखी कर गया। मैं गर्मी की छुट्टियों में हर साल गाँव जाता था और उनसे कई बार मुलाक़ात होती। वे मेरी पढ़ाई-लिखाई के बारे में विस्तार से पूछते और मुझे पढ़ाई पर पूरा ध्यान देने की सलाह देते। युवावस्था में ही विधवा हुई अच्छेलाल की माँ ने गरीबी और अभावों की मार झेलते हुए कैसे अपने बच्चों को पाला-पोसा और पढ़ाया होगा यह वही जानती होगी। अच्छेलाल स्वभाव और प्रतिभा के मामले में अपने पूरी तरह से अपने पिता पर गया है। उनकी तरह ही सुशील, विनम्र, वाक्पटु और व्यवहार कुशल। जो भी एक बार इससे मिल ले वह बार-बार मिलना चाहेगा। अच्छेलाल ने वर्ष 1998 में हिंदी और अर्थशास्त्र विषय के साथ बीए की पढ़ाई की पूरी की थी किंतु घर की माली हालत ठीक न होने के कारण आगे पढ़ाई जारी नहीं रख सका। वर्ष 1999 में वह अपने पिता के मामा के पास बड़ौदा आ गया और वर्ष 2000 में हिम्मत नगर में डेरा जमाया।

मुंबई से दिल्ली जानेवाले नेशनल हाइवे नंबर 8 से सटा और हाथमती नदी के किनारे बसा हिम्मत नगर शुरुआत में एक कस्बा जैसा ही था किंतु अब यह अच्छे-खासे शहर में तब्दील हो चुका है। गुजरात सल्तनत के अहमद शाह द्वारा सन 1426 में बसाया गया यह ऐतिहासिक शहर लंबे समय तक अहमद नगर के नाम से जाना जाता था। राजस्थान का प्रसिद्ध पर्वतीय स्थल माउंट आबू यहाँ से 151 किमी दूरी पर है। यह क्षेत्र सिरेमिक उद्योग का प्रमुख केंद्र है और यहाँ अनेक नामी सिरेमिक कंपनियों की मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयाँ स्थापित हैं। यहाँ हर प्रकार की उच्च स्तर तक की पढ़ाई के लिए कई अच्छे शैक्षणिक संस्थान और सर्व सुविधा संपन्न हिम्मत नगर मेडिकल कॉलेज भी है। आसपास के नवा जामबुड़ी, राजपुर, काकरोल जैसे 9 गाँव नगर पंचायत में शामिल कर लिए गए हैं। काकरोल गाँव में ही 22 एकड़ क्षेत्रफल में भव्य स्वामीनारायण मंदिर बना है जिसकी खूबसूरती और विशाल क्षेत्र में फैली हरियाली और फूल-पौधे मन मोह लेते हैं। शाम के समय और छुट्टियों के दिन बड़ी संख्या में लोग यहाँ आते हैं। शहर से कुछ किलोमीटर दूर बेरणा गाँव के पास भी एक बड़े परिसर में कई मंदिर हैं जहाँ कई देवी-देवताओं की ऊँची-ऊँची मूर्तिया स्थापित हैं। यहाँ भी काफी संख्या में लोग घूमने-दर्शन करने आते हैं।

[bs-quote quote=”हिम्मत नगर में अच्छेलाल काफी समय तक एक निजी फाइनेंस कंपनी के लिए काम करता रहा किंतु बाद में उसने जीवन बीमा की एजेंसी ले ली और अपना खुद का व्यवसाय भी शुरू किया। शुरू में उसे बहुत दिक्कतें और अभाव देखने पड़े किंतु अपने विनम्र व्यवहार, लगन, मेहनत और मधुरभाषिता से उसने स्थानीय समुदाय में गहरी पैठ बना ली।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

जब मैं अहमदाबाद से बस से हिम्मत नगर आ रहा था तो मुझे बहुत सी जगहों पर एरंड (कैस्टर) के पेड़-पौधे की खेती के बड़े-बड़े प्लॉट नजर आए। भ्रम हुआ कि हो सकता है ये एरंड न होकर कोई और दलहन-तिलहन की प्रजाति के पेड़ हों। संकोचवश किसी सहयात्री से पूछने का साहस भी नहीं जुटा पाया। बाद में अच्छेलाल से पता लगा कि ये पेड़-पौधे एरंड (जिसे अंग्रेजी में कैस्टर और अवधी बोली में रेड़ कहा जाता है) के ही थे। उसने बताया कि इस इलाके में बड़े पैमाने पर एरंड की खेती होती है क्योंकि इसकी बुवाई-जोताई में बहुत कम लागत आती है और पानी की आवश्यकता भी बहुत कम पड़ती है यानी ‘हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा हो जाए’ वाली बात थी. किंतु इनकी उपज/बीजों को लेकर अब भी मन में संशय बना हुआ था। उसने बताया कि गुजरात और राजस्थान में एरंड के तेल की काफी खपत है। यहाँ लोग चावल-गेहूँ जैसे अनाजों और दालों को भंडारित रखने के लिए उनमें एरंड का तेल छिड़कते हैं ताकि उनमें घुन या कीड़े न लगें। साथ ही, चूँकि एरंड तेल में विरेचन गुण भी होता है, अतः यह पेट के लिए भी मुफीद होता है। औसतन 100 किलो अनाज या दाल में 1 लीटर एरंड तेल मिलाया जाता है। इस जिले में एरंड के अलावा कपास, गेहूँ, जीरा और सौंफ की खेती भी होती है और साल में दो बार आलू की फसल भी उगाई जाती है। गाँवों के पास से गुजरते हुए मुझे गाय-भैंसों के तबेले (खटाल) भी दिखे जिसमें तंदरुस्त और नई नस्लों की गाय-भैंसे मौजूद थीं। दुग्ध उत्पादन के मामले में भी यह इलाका बहुत ऊँची पायदान पर है।

बांये से अच्छेलाल, उनका बेटा और लेखक गुलाबचंद यादव

हिम्मत नगर में अच्छेलाल काफी समय तक एक निजी फाइनेंस कंपनी के लिए काम करता रहा किंतु बाद में उसने जीवन बीमा की एजेंसी ले ली और अपना खुद का व्यवसाय भी शुरू किया। शुरू में उसे बहुत दिक्कतें और अभाव देखने पड़े किंतु अपने विनम्र व्यवहार, लगन, मेहनत और मधुरभाषिता से उसने स्थानीय समुदाय में गहरी पैठ बना ली। अच्छेलाल, उसकी पत्नी और दोनों बच्चे बिटिया श्रद्धा (10 वीं की छात्रा) और बेटा गोविंद (6वीं का छात्र) सभी धाराप्रवाह गुजराती बोलते हैं। अच्छेलाल पहले किराए के मकान में रहता था किंतु अब उसने 1200 वर्गफुट का प्लाट खरीदकर उसपर 5 कमरों का सुंदर एवं सुविधापूर्ण मकान बनवा लिया है। आसपास के लोग भी मध्यमवर्गीय और  सहयोगी स्वभाव के हैं।

मैंने 8 फरवरी की शाम को अच्छेलाल से गांधीनगर स्थित स्वामीनारायण मंदिर देखने की अपनी इच्छा बता दी थी। उसने एक कार बुक कर दी और 9 फरवरी को अपराह्न 3.30 बजे हम गांधीनगर का स्वामीनारायण मंदिर और विशेषरूप से उनका देर शाम का वॉटर पार्क शो देखने निकल पड़े। गांधीनगर हिम्मत नगर से 68 किमी दूरी पर है। अक्षरधाम मंदिर में प्रवेश करने से पहले सभी के बैग/कैमरे/मोबाइल आदि जमा करा लिए जाते हैं। स्वामीनारायण संप्रदाय के अनुयायियों द्वारा बनवाया गया यह मंदिर 23 एकड़ के भूखंड पर फैला हुआ है और मंदिर की ऊंचाई 32 मीटर, लंबाई 73 मीटर और चौड़ाई 39 मीटर है। इस मंदिर के निर्माण में लगभग 6000 गुलाबी बलुआ पत्थरों का प्रयोग किया गया है। इस मंदिर के पहले तल्ले में स्थित ‘हरी मंडपम’ सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। मंदिर के परिसर में मौजूद बगीचे और फव्वारे बेहद आकर्षक दृश्य प्रस्तुत करते हैं। गांधीनगर आनेवाले यात्री इस स्मारक की भव्यता और मंदिर की अनूठी सुंदरता देखने से नहीं चूकते हैं। यह मंदिर दुखद रूप से पूरी दुनिया में उस समय चर्चित हुआ था जब 24 सितंबर 2002 को मानवता के दुश्मन आतंकवादियों ने स्वचालित हथियारों और ग्रेनेड से लैस होकर आत्मघाती हमला किया था। इस हमले में एक कांस्टेबल और तीन जांबांज कमांडो शहीद हो गए थे और 32 श्रद्धालुओं को अपनी जानें गंवानी पड़ी थी। इस घटना के बाद मंदिर की सुरक्षा अत्यंत कड़ी और अभेद्य बना दी गई है।

जब तक दिल्ली का अक्षरधाम नहीं बना था तब तक स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा निर्मित यही मंदिर सबसे दर्शनीय और महत्वपूर्ण माना जाता था। खैर, यह अब भी दर्शनीय है। अक्षरधाम की टैग लाइन है-‘यह वह स्थान है जहाँ कला चिरयुवा है, संस्कृति असीमित है और मूल्य कालातीत हैं।’  यहाँ का एक और प्रमुख आकर्षण है शाम 7.15 बजे और 8.15 बजे दिखाया जाने वाला 45 मिनट का वाटर पार्क शो- ‘सत.. चित्त… आनंद।’ लेजर शो, नाट्यविधा, एनिमेशन,  बेहतरीन साउंड सिस्टम के योग से जो प्रस्तुति पेश की जाती है उसे 5 साल के बच्चे से लेकर सौ साल के बूढ़े भी देखें तो यही कहेंगे, वाह….. अद्भुत।

मैं जितने समय हिम्मत नगर रहा अच्छेलाल, उसकी पत्नी और बच्चे पूरे मनोयोग से मेरी आवभगत करते रहे। बच्चों ने मुझसे बेझिझक खुलकर बातें कीं मानों वे मुझे लंबे समय से जानते-पहचानते रहे हों जबकि मैं उनसे पहली बार मिला था। उनका अपनापन, बेतकल्लुफ़ी और सरलता अविस्मरणीय थी। मैं सोच रहा था कि काश! मैं यहाँ दो-तीन दिन और रुक पाता। इन बच्चों के साथ खूब बोलता-बतियाता और आसपास की और जगहें देख पाता। किंतु मुझे लौटना था उनके साथ बिताए गए समय की सुखद यादों के साथ….उनके आतिथ्य की मधुर स्मृतियों के साथ। ‘चच्चा, फिर मिलई अऊब न।’ उसने पूछा था। ‘हाँ, बचऊ… जरूर आऊब।’ मैंने तुरंत हामी भारी थी। अहमदाबाद एयरपोर्ट जाने के लिए जब मैं टैक्सी में बैठा और अच्छेलाल के हाथों को पकड़कर उसे आशीर्वाद दिया तो देखा कि उसकी आँखें भी सजल हो गई थीं जैसी कि मेरी। चलते-चलते मैंने उसे फिर आश्वासन दिया कि अगली बार तुम्हारी चाची को साथ लेकर हिम्मत नगर आऊँगा। उससे कह तो आया हूँ कि फिर आऊँगा लेकिन…. क्या यह संभव हो पाएगा? यह तो समय ही बता पाएगा।

गुलाबचंद यादव बैंक में सेवारत हैं और फिलहाल मुंबई में रहते हैं ।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।
2 COMMENTS
  1. सर हम बहुत डिस्टर्ब थे कुछ दिन दुर्गा पूजा वाली वीडियो की वजह से इस लिए यह पूरा नहीं पढ़ पाए थे आज इसे पढ़े आप से निवेदन है कि कभी हमारे बच्चों के बीच में भीं आए हमारा संघर्ष गरीब बच्चों को खोज कर निःशुल्क शिक्षित करने का जारी है जारी रहेगा ? मनोज यादव समाजसेवी वाराणसी ALL N.9451044285

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here