Wednesday, October 22, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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अर्थव्यवस्था

राजस्थान : मिट्टी से भविष्य की फसल उगाते युवा

पिछले कई दशकों में युवा गांव में खेती-किसानी की जगह शहरी नौकरियों, मेट्रो-ज़िंदगी और शहरों की चमक-दमक की तरफ खिंचे चले आए हैं। लेकिन अब एक बार फिर से बदलाव नजर आने लगा है। कुछ युवा वापस गाँव और खेती की तरफ लौट रहे हैं या कम-से-कम खेती को एक सम्मानजनक, तकनीकी और लाभदायक करियर विकल्प के रूप में देखते हुए लाखों की आमदनी कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में बिजली दरों में वृद्धि : अमीरों को राहत लेकिन किसानों और गरीबों पर बढ़ेगा भार

छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की दरों में भारी वृद्धि की घोषणा की है। 100 यूनिट तक उपभोग करने वाले लोगों पर, जिनमें से एकल बत्ती कनेक्शन धारी और गरीबी रेखा के नीचे और कम आय वर्ग के लोग शामिल हैं, उन पर 20 पैसे प्रति यूनिट का अतिरिक्त भार डाला गया है। जबकि कृषि क्षेत्र के लिए प्रति यूनिट 50 पैसे वृद्धि की गई है।

 टैरिफ युद्ध : क्या हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?

डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को अमेरिका की मुक्ति का दिन घोषित किया है। इसी दिन ट्रंप ने पूरी दुनिया के खिलाफ टैरिफ युद्ध छेड़ा है,जो अब तक के बनाए तमाम पूंजीवादी नियमों और बंधनों को तोड़कर केवल अमेरिकी प्रभुत्व और नियंत्रण की इच्छा से संचालित होता है। यह प्रभुत्व और नियंत्रण की इच्छा न्याय की किसी भी भावना और अवधारणा को कुचलकर आगे बढ़ना चाहती है।

राजस्थान के लोहार समुदाय के अस्तित्व और संघर्ष की कहानी : जब बर्तन बिकेंगे, तब खाने का इंतजाम होगा

लोहे के बर्तन बनाना लोहार समुदाय के लिए केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि उनकी पहचान और अस्तित्व का प्रतीक है। लेकिन बदलते समय के साथ उनके लिए रोज़ी रोटी चलाना मुश्किल होता जा रहा है। नयी तकनीक, सस्ते विकल्प और बदलते उपभोक्ता व्यवहार ने उनके पारंपरिक काम को संकट में डाल दिया है।

दाल देख और दाल का पानी देख!

नेफेड और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता फेडरेशन (एनसीसीसीसी) बता रहा है कि सरकार के गोदाम में केवल 14.5 लाख टन दाल ही बची है, जो कि न्यूनतम आवश्यकता का केवल 40% ही है। इसमें तुअर दाल 35000 टन, उड़द 9000 टन, चना दाल 97000 टन ही है, जिसे लोग खाने में सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। इन दालों की जगह दूसरी दाल के इस्तेमाल के बारे में सोचें, तो मसूर दाल का स्टॉक भी केवल पांच लाख टन का ही बचा है। भारत के संभावित दाल संकट पर संजय पराते।

बजट 2025 : मध्यम वर्ग को बचत का सपना देकर अपनी झोली भरने की जुगत

मोदी सरकार घरेलू अर्थव्यवस्था में मांग पैदा कर रोजगार का संकट दूर करने तथा अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर निकालने के प्रति गंभीर होती, तो केंद्र सरकार में लाखों खाली पड़े पदों को भरने की घोषणा करती, मनरेगा के बजट आबंटन में पर्याप्त वृद्धि के साथ मजदूरी और काम के दिनों की संख्या को बढ़ाती, शहरी गरीबों के लिए रोजगार गारंटी की घोषणा करती, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए सम्मानपूर्ण आजीविका के लायक न्यूनतम वेतन/मजदूरी की घोषणा करती, किसानों को सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने और कर्ज़माफी की घोषणा करती और मजदूरों को बंधुआ दासता में धकेलने वाली श्रम संहिताओं को वापस लेने आदि की घोषणा करती। लेकिन बजट 2025 में ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई है।

बजट 2025 : दिशाहीनता का गट्ठर

हर वर्ष के मार्च महीने में देश का आम बजट प्रस्तुत किया जाता है। बड़े जोर शोर से तैयारी होती है लेकिन बजट प्रस्तुत होने के बाद आम जनता के लिए कुछ ख़ास नहीं होता लेकिन न समझने वाला भी बजट में जिक्र की गई बातों का ऐसे बख़ानता है कि बस उसे सब कुछ समझ आ गया है और इस बजट से उसे बहुत फायदा होने वाला है। पढ़िए, मनीष शर्मा का बजट 2025 पर एक विश्लेषणपरक आलेख।

उत्तर प्रदेश में निवेश : सपने और ज़मीन की लूट की हक़ीकत को जागकर देखने की जरूरत है

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में तीस लाख करोड़ के निवेश को दावे को पेड मीडिया ने जितने जोर-शोर से प्रचारित करना शुरू किया उतनी शिद्दत से इस निवेश के कारण किसानों की ज़मीनों की लूट और हड़प की मंशा पर विचार नहीं किया गया लेकिन अयोध्या में हुई ज़मीनों की लूट और प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में विभिन्न योजनाओं के लिए कि सानों की ज़मीन औने-पौने में हथिया लेने की चालाकियों ने लोगों के कान खड़े कर दिए हैं। इस निवेश की सचाई बहुत भयावह है। उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी स्थितियों और गतिविधियों पर मनीष शर्मा की यह खोजपूर्ण रिपोर्ट।

राजस्थान : ग्रामीणों को मिल रहा आगनबाड़ी केंद्रों का लाभ

राजस्थान में आईसीडीएस योजना के तहत संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों से शिशुओं और गर्भवती महिलाओं को काफी लाभ मिल रहा है। इन आंगनबाड़ी केंद्रों का सफलतापूर्वक संचालन इन्हीं कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के माध्यम से मुमकिन होता है। जो विषम परिस्थितियों में भी गर्भवती महिलाओं और बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में अपना विशेष योगदान दे रही हैं। जिसके कारण बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएं और बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं और उन्हें कुपोषण मुक्त बनाया जा रहा है।

वंचित समुदायों की किशोरियों का भविष्य शिक्षा और स्वास्थ्य से कोसों दूर

आज भी वंचित समुदायों की किशोरियों का भविष्य वंचनाओं से ग्रस्त है। इन समुदायों के कुछ परिवार स्थायी रूप से कुछ ही स्थानों पर आबाद होते हैं और कुछ मौसम के अनुरूप पलायन करते रहते हैं। इसका सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव किशोरियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसके साथ ही उन्हें बोझ और पराया धन समझने की प्रवृत्ति भी किशोरियों के समग्र विकास में बाधा बनती है। इससे न केवल उनकी शिक्षा बल्कि शारीरिक और मानसिक विकास भी रुक जाता है। इस तरह उन्हें सबसे पहले शिक्षा से वंचित कर दिया जाता हैं।

पूर्वांचल और पूर्वी अवध की नहरों में पानी नहीं, धान की फसल संकट में

पूर्वांचल के लगभग हर जिले में नहरें सूखी हुई हैं। धान की फसल निजी सिंचाई के साधनों से संभाली जा रही है। यही हाल पूर्वी अवध का भी है। नहरों में बालू जमा है तो माइनरों में घासें उगी हुई हैं। स्थानीय किसानों से बात करने पर पता चला कि उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। नेताओं के यहाँ जाइए तो वे इस आधार पर हमसे मिलते हैं हैं कि हम उनके वोटर हैं कि नहीं। नहर विभाग से आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिलता।
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