भारतीय अदालतों की साख रोज-ब-रोज गिरती जा रही है। यह चिंतनीय स्थिति है। खासतौर पर उनके लिए जो इस देश से प्यार करते हैं और अमन-चैन के आकांक्षी हैं। हालत यह हो गई है कि अब लोग सरेआम कहने लगे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का जज भी नरेंद्र मोदी के इशारे पर काम करता है। यह बात कल ही दफ्तर से अपने किराए के घर में लौटने के दरमियान मेट्रो में एक व्यक्ति ने कही। उसने यह वाक्य क्यों कहा, मैं नहीं जानता। वजह यह कि वह व्यक्ति फोन पर बात कर रहा था। मुमकिन है कि वह कोई सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता हो या फिर कोई और। मेरे लिए तो उसके द्वारा कहा गया यह वाक्य ही महत्वपूर्ण है कि ‘सुप्रीम कोर्ट का जज भी नरेंद्र मोदी के इशारे पर काम करता है।’
अभी पिछले एक महीने से हिंदी अखबारों के रूख में बदलाव देख रहा हूं। बदलाव यह कि अखबारों में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण को जगह नहीं दी जा रही है। याद करिए एक महीने पहले किस तरह मुख्य न्यायाधीश के बयान प्रमुखता से छापे जाते थे। मैं यह भी सोच रहा हूं कि आखिर सुप्रीम कोर्ट इस बात का रोना क्यों रोता है कि उसके पास बड़ी संख्या में मुकदमे लंबित हैं? और यह भी कि उसके पास उन मामलों की सुनवाई के लिए समय की कमी क्यों नहीं होती है जो शासक के हित से जुड़ी हैं।
[bs-quote quote=”2002 में धन शोधन रोकथाम कानून के बनाए जाने के बाद अबतक कुल 4700 मामलों की जांच ईडी ने की है। इन मामलों के तहत 313 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और विभिन्न अदालतों द्वारा पारित अंतरिम आदेशों के जरिए करीब 67000 करोड़ रुपए की वसूली की गयी है। कल ही भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी कि नीरव मोदी और मेहुल चौकसी से संबंधित मामलों में अब तक 18 हजार करोड़ रुपए वसूले गए हैं। मजे की बात यह कि कल जब भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट में खड़े होकर अपनी पीठ खुद थपथपा रही थी तब जजों की खंडपीठ ने यह सवाल भी पूछा कि 20 सालों में केवल 313 गिरफ्तारियां?” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
अभी कल की ही बात करता हूं। कल महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया। अखबारों में ईडी के हवाले से जो खबर सरकारी तंत्र द्वारा छपवायी गयी है, उसके अनुसार नवाब मलिक का संबंध दाऊद इब्राहिम आदि से रहा है। यह अत्यंत ही दिलचस्प है कि चुनाव उत्तर प्रदेश में हो रहे हैं और खेल महराष्ट्र में खेला जा रहा है। वैसे सियासत की पढ़ाई करनेवालों के लिए यह अच्छा विषय है कि सत्ता किस तरह का व्यवहार कर सकती है। कल ही राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की सांसद सुप्रिया सुले ने अपने बयान में कहा कि केंद्र सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए जीवन एक चक्र है। वहीं शिवसेना के नेता संजय राऊत ने कहा कि भाजपा के नेतागण 2024 तक इंतजार करें, उसके बाद उनके गड़े मुर्दे भी उखाड़े जाएंगे।
इस पूरे घटनाक्रम में भारतीय मुसलमानों ने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की है। भारतीय मुसलमानों का व्यवहार तब भी सामान्य बना रहा जब कर्नाटक में राज्य संपोषित उपद्रवियों ने हिजाब का बखेड़ा खड़ा किया और मुस्लिम छात्राओं का अपमान किया। जबकि कर्नाटक हाईकोर्ट का व्यवहार कोर्ट के जैसा नहीं रहा है। कल ही इस मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अवस्थी, न्यायाधीश जेएम खाजी और न्यायाधीश एस दीक्षित की खंडपीठ ने सीएफआई (कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया) का उल्लेख किया और राज्य सरकार से पूछा कि यह क्या बला है। पीठ के सवाल का जवाब देते हुए राज्य सरकार के पक्षकार ने कहा कि यह संगठन छात्राओं के पक्ष में काम कर रहा है।
दरअसल, हाईकोर्ट हो सुप्रीम कोर्ट सभी की हालत एक जैसी है। एक उदाहरण यह भी देखिए कि कल नवाब मलिक को ईडी ने गिरफ्तार किया और कल ही सुप्रीम कोर्ट में ईडी से संबंधित एक मामले की सुनवाई जस्टिस ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने की। वैसे यह संयोग भी हो सकता है, लेकिन कल ही दोनों घटनाएं हुईं, तो इसे अजीबोगरीब संयोग कहा जाना चाहिए। दरअसल पत्रकारिता के लिहाज से घटनाओं का होना महत्वपूर्ण है। मतलब यह कि घटनाएं होंगी तभी खबर बनायी जा सकती है। तो यह मुमकिन है कि दोनों घटनाओं को इसी उद्देश्य के साथ अंजाम दिया गया हो। यानी यह कि पहले नवाब मलिक की गिरफ्तारी हो और फिर लोग ईडी पर सवाल ना कर सकें, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार को ईडी के पक्ष में घोषणाएं करने का मौका मिले। यह बिल्कुल अंसभव नहीं है।
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बहरहाल, कल केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जस्टिएस एम एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ से कहा कि वर्ष 2002 में धन शोधन रोकथाम कानून के बनाए जाने के बाद अबतक कुल 4700 मामलों की जांच ईडी ने की है। इन मामलों के तहत 313 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और विभिन्न अदालतों द्वारा पारित अंतरिम आदेशों के जरिए करीब 67000 करोड़ रुपए की वसूली की गयी है। कल ही भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी कि नीरव मोदी और मेहुल चौकसी से संबंधित मामलों में अब तक 18 हजार करोड़ रुपए वसूले गए हैं। मजे की बात यह कि कल जब भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट में खड़े होकर अपनी पीठ खुद थपथपा रही थी तब जजों की खंडपीठ ने यह सवाल भी पूछा कि 20 सालों में केवल 313 गिरफ्तारियां? जवाब में सरकार ने कहा कि देश में लोगों को अत्यंत ही कठोर सांविधिक सुरक्षा प्राप्त है।
बहरहाल, अदालतों को यह खुद तय करना चाहिए कि उनकी साख रोज-ब-रोज क्यों गिरती जा रही है। मुझ जैसे पत्रकार को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए। कल एक कविता सूझी। इसके केंद्र में मेरी प्रेमिका भी है और अदालतें भी।
रकीब हैं तुम्हारी आंखें,
फिर लगती क्यों हबीब हैं?
बीत गयी सुहानी शाम,
अंधियारा मेरे करीब है।
दूर पहाड़ पर हैं देवदार,
यहां जर्द पत्ते बेतरतीब हैं।
ख्वाब के जैसी हो तुम,
यथार्थ अब मेरा नसीब है।
होती है खलिश सीने में,
जीने की खूब तरकीब है।
मिलता नहीं सब कुछ यहां,
दुनिया की खूब तहजीब है।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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