Friday, March 29, 2024
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यह भारत के कमंडलीकरण के खिलाफ मंडलीकरण को तेज करने का समय है

मैं बीपी मंडल को ओबीसी का महानायक और ओबीसी का संविधान निर्माता मानता हूँ और मंडलवाद को अपने अधिकारों की लड़ाई का सिद्धांत और व्यवहारिक दर्शन। जिस दिन भारत में मंडलवादी सोच और वैचरिकी जाग जाएगी और ओबीसी के अंदर वर्गीय संवेदना पैदा हो जायेगी, उसी दिन यह हिंदुत्ववादी सरकार औंधे मुंह गिर जाएगी और […]

मैं बीपी मंडल को ओबीसी का महानायक और ओबीसी का संविधान निर्माता मानता हूँ और मंडलवाद को अपने अधिकारों की लड़ाई का सिद्धांत और व्यवहारिक दर्शन। जिस दिन भारत में मंडलवादी सोच और वैचरिकी जाग जाएगी और ओबीसी के अंदर वर्गीय संवेदना पैदा हो जायेगी, उसी दिन यह हिंदुत्ववादी सरकार औंधे मुंह गिर जाएगी और इस राष्ट्र पर मंडलवादियों का राज हो जायेगा। इसी कारण मैं किसी भी स्थिति-परिस्थिति में सामाजिक न्याय व मण्डलवादी विचारधारा की हत्या नहीं होने दूंगा।

मंडलवादी बुद्धिजीवियों-नेताओं, प्रतिनिधियों से मेरा स्पस्ट आग्रह है कि वे भाजपा व आरएसएस के छल -कपट, झूठ-फरेब व मीडिया ट्रायल कराकर यादव व गैर यादव, चमार-गैर-चमार जातियों के मध्य जो नफरत की भावना पैदा किया है, उसको दूर कर वर्गीय चेतना व सद्भावना पैदा करने के लिए काम करने का आह्वान करें। हमें माइक्रो सोशल

लौटनराम निषाद

इंजीनियरिंग के तहत ओबीसी की एकजुटता के प्रयास में करना होगा। वर्गीय चेतना व संवेदना का परिचायक देना होगा। तभी भारत का मंडलीकरण हो सकेगा।

हम मंडललवादियों को एक होकर वर्गीय सोच के साथ लड़ना होगा। अतिपिछड़ों को यादवों, कुर्मियों, मौर्यों से लड़ने या घृणा करने की जरूरत नहीं है। बल्कि कश्यप, निषाद, बिन्द, मल्लाह, बढ़ई, लोहार, कुम्हार, तेली, तमोली,नाई, लोधी, राजभर, नोनिया, केवट, राजभर, चौहान, विश्वकर्मा, प्रजापति, बियार, सबिता आदि को उनके साथ हाथ से हाथ मिलाकर मनुवादियों से लड़ने की जरूरत है।  अन्यथा एक दिन ये सबको निगल जायेंगे। हमें ओबीसी, एससी उपवर्गीकरण को आरएसएस की फिरकापरस्त साज़िश को समझना होगा है।

अहीर, चमार – ‘आधी रोटी खाएंगे, बेटा-बेटी को पढ़ाएंगे’ आधुनिक सिद्धांत पर चल रहे हैं और अतिपिछड़ा समाज की जातियाँ भाग्य भरोसे बैठी रहीं। जो काम बाप करता रहा,उसी परम्परागत पेशे में उसकी सन्तान भी लग गईं। हम शिक्षा और अधिकार के चेतना की वैसे ही अलख जगानी है।  ऐसे ही अलावा कुर्मी, कोइरी जातियाँ भी प्रगतिशील हैं। अतिपिछड़ी जातियाँ यादव जाति से ईर्ष्या-जलन न करके प्रतिस्पर्धा करें, उनकी अच्छाइयों की नकल करें। सबका यही रोना रहा कि यादवों ने हमारा हक हिस्सा मार लिया।जिसमें हमे तो उनका आरोप बेबुनियाद व बकवास ही लगा।

 अतिपिछडों की शिकायत है कि सपा सरकार में जो निषाद, कश्यप, राजभर, प्रजाति आदि….. पुलिस, पीएसी में भर्ती होने गया, उसे उसकी जाति पूछकर निकाल दिया गया और यादव को नौकरी दे दी गयी। मैंने उनसे पूछा-कितने लोगों की जाति पूछकर निकाला गया,तो लोगों ने कहा-बहुत से लड़कों को।जब मैंने कहा कि 2-4 बच्चों को मेरे पास लाइये तो किसी को पेश नहीं कर पाए।यह सब भाजपा के आनुषांगिक संगठनों का सपा,बसपा के विरुद्ध अतिपिछड़ों को झुठा भड़काना रहा कि यादव और चमार मलाई खा गए जब कि सच्चाई यह है कि अतिपिछड़ों को मुर्ख बनाकर सवर्ण इनका हक मार रहे हैं। इनके साथ वही हो रहा है कि कौआ तेरा कान ले गया, तो अतिपिछड़े अपना कान न देख पेड़ की डाल पर कौआ को देखते हैं।

यह वही भाजपा है न जिसने पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने वाले मण्डल कमीशन का विरोध किया, पूरे देश में कोहराम मचा दिया,बड़ा उत्पात व आगजनी, तोडफ़ोड़ आदि किया। उस समय मैंने देखा कि यही बेवकूफ अतिपिछड़े सवर्णों के कहने पर चक्का जाम, धरना-प्रदर्शन में शामिल रहे,इन्हें पता ही नहीं था कि मण्डल कमीशन किसके हक व भलाई के लिए था?आज भी 90-95% अतिपिछड़े मण्डल कमीशन के बारे में नहीं जानते हैं।

एक और महत्वपूर्ण बात कि ओबीसी की हिरावल जाति यादव से ओबीसी की अन्य जातियों को घृणा करने की जरूरत नहीं है। ऐसा करना मनुवादी चाल का शिकार होना है। अपनी ऐतिहासिक लड़ाई को कमजोर करना है।  हमें यादव आदि साहसिक ओबीसी जातियों के साथ मिलकर मनुवादियों से लड़ना है। अपना 52% अधिकार लेना है। इन्हीं  से अतिपिछड़ी व दलित जातियों का सामंती उत्पीड़न से मुक्ति व इज़्ज़त से उठने-बैठने का साहस मिला। एक यादव समाज ही था कि सामन्तों का सामना किया, बड़े भाई की भूमिका निभाया। पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव ने पिछड़ों को उप्र में 1977 में अपने मुख्यमंत्री कोटे के विशेषाधिकार से आरक्षण दिए। व मुलायम सिंह यादव ने मंडल आरक्षण को लागु करते हुए – पिछड़ों, दलितों को पंचायतों, स्थानीय निकायों व नगर निकायों में आरक्षण दिया।

“अहीर, चमार – ‘आधी रोटी खाएंगे, बेटा-बेटी को पढ़ाएंगे’ आधुनिक सिद्धांत पर चल रहे हैं और अतिपिछड़ा समाज की जातियाँ भाग्य भरोसे बैठी रहीं। जो काम बाप करता रहा,उसी परम्परागत पेशे में उसकी सन्तान भी लग गईं। हम शिक्षा और अधिकार के चेतना की वैसे ही अलख जगानी है।”

अतिपिछड़े इतने नासमझ हैं कि दोस्त व दुश्मन की पहचान नहीं कर पाते। भाजपा ब्राह्मणवादियों, मनुवादियों, फिरकापरस्तों, तुच्छ जातिवादियों की पार्टी है जो पिछड़ों-दलितों-आदिवासियों को गुलाम बनाकर रखना चाहती है।

 सरकारी संस्थानों व उपक्रमों का निजीकरण ओबीसी,एससी, एसटी आरक्षण को खत्म करने की संघीय साज़िश है।उन्होंने बीपी मंडल द्वारा मंडल आयोग में की गई निजिक्षेत्र में ओबीसी को 27% की अनुशंसा को एकजुट होकर लड़कर लेने की जरूरत है। आरक्षण बैसाखी व भीख नहीं, प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का संवैधानिक व्यवस्था है।

 न्यायालय की आड़ लेकर भाजपा सरकार संघ के इशारे पर ओबीसी,एससी आरक्षण का उपवर्गीकरण करने के षड्यंत्र में जुटी हुई है,जो आरक्षण को निष्प्रभावी करने की साज़िश है। मण्डल विरोधी भाजपा पिछडों, वंचितों की हितैषी नहीं हो सकती।जो पिछड़े निजस्वार्थ में भाजपा की मदद कर रहे हैं, वे कौम के दुश्मन हैं, उनका ज़मीर मर चुका है। निजस्वार्थ में वे अंधे व अपाहिज हो गए हैं।

मंडल साहब ने हमारी निष्ठा व संघर्षशीलता की भावना पिछड़े-दलित-पसमांदा समाज के संवैधानिक अधिकारों, लोकतंत्र व संविधान की रक्षा के लिए और प्रबल हुई है। मण्डल विरोधी भाजपा कभी पिछड़ावर्ग की हितैषी नहीं हो सकती। मण्डल के विरोध में ही कमण्डल राजनीति शुरू हुई। खेद है कि पिछड़ावर्ग विरोधी भाजपा को खाद, पानी देकर पिछड़े ही मजबूत किये हैं। कुर्मी, निषाद, लोधी, कुशवाहा, मौर्य, पाल, चौहान आदि अपनी अपनी जाति का मुख्यमंत्री बनाने के चक्कर में आरक्षण, संविधान व सामाजिक न्याय विरोधी भाजपा को आगे कर अपने पैर में कुल्हाड़ी मार लिए।

बीपी मण्डल साहब ने मण्डल आयोग में अनुशंसा की है कि ओबीसी कि जाति जनगणना करना कर ओबीसी को उसकी जनसंख्या 52% के अनुपात में आरक्षण दिया जाना चाहिए। कास्ट सेन्सस-1931 की जातिगत जनगणना के अनुसार ओबीसी की 52% आबादी थी।1999 के बाद तमाम जातियों को इस सूची में जोड़ने से यह संख्या और अधिक हो गयी है। भाजपा सरकार के समय गठित उत्तर प्रदेश सामाजिक न्याय समिति-2001 की रिपोर्ट के अनुसार ओबीसी की संख्या 54.05% थी। सामान्य वर्ग की जातियों की संख्या-20.94% थी, जिसमें मुस्लिम सामान्य वर्ग (शेख, सैय्यद, पठान, मुगल, मिल्की आदि) की जातियाँ भी शामिल थीं। अविभाजित उत्तर की कुल जनसंख्या में सवर्ण-20.50 (ब्राह्मण-9.2%, राजपूत-7.2%, वैश्य-2.5%, कायस्थ-1.0%, भूमिहार-0.04%, खत्री-0.1%, त्यागी-0.1%) थे।अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों की संयुक्त संख्या-21.34% थी। इस दृष्टि से ओबीसी की संख्या 58.16% थी। उत्तराखंड के अलग होने से जहाँ उत्तर प्रदेश में ओबीसी व एससी की संख्या बढ़ गयी होगी, वही एसटी व सवर्ण की घट गई होगी। 1999 में जाट व कलवार को ओबीसी में शामिल करने से ओबीसी की संख्या 60% से अधिक हो गयी है। उन्होंने कहा कि यही कारण हैं कि केन्द्र की कांग्रेस सरकार वादा कर 2011 में जातिगत जनगणना नहीं कराई और सेन्सस-2021 में ओबीसी की जातिगत जनगणना कराने का वादा करने के बाद भाजपा सरकार भी पीछे हट गई है। जो अवैधानिक है। आखिर ओबीसी की जातिगत जनगणना कराने से कौन-सी राष्ट्रीय क्षति हो जाएगी। चिड़ियों, सूअर, दिव्यांग व ट्रांसजेंडर की जनसंख्या की घोषणा कर दी गयी। पर, ओबीसी की जनसंख्या की गणना और घोषित क्यों नहीं हो रही है।

पेरियार सामाजिक परिवर्तन के महानायक व युग महापुरुष थे।  उनके ऐतिहासिक आत्मसम्मान आंदोलन और तमिलराष्ट्र की मांग से डर कर हिन्दुत्ववादियों ने संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया। और आगे केन्द्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-15 व 16 में संशोधन कर क्लाज-4 जोड़ा,जिसे 15(4) व 16(4) कहते हैं। सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़ी हुई जातियों को आरक्षण देने की व्यवस्था सुनिश्चित की गई।

अनुच्छेद-15(4),16(4) के अनुसार आरक्षण संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को शिक्षा, सेवायोजन व विधायिका में जनसंख्या अनुपाती आरक्षण है, वही लगभग 60 प्रतिशत ओबीसी को शिक्षा व सेवायोजन में मात्र 27 प्रतिशत कोटा है,जो न्यायसंगत नहीं है।

प्रस्तुति: धर्मवीर गगन

लौटनराम निषाद
लेखक मंडलवादी सामाजिक न्याय चिन्तक व वीपी सिंह से प्रभावित सोशल एक्टिविस्ट है।

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