कल का दिन भी बुखार के साथ ही बीता। हालांकि सुबह में इसका असर कम था। ऐसा शायद इस वजह से कि सुबह में परिजनों ने पारासिटामोल की अच्छी-खासी डोज दे दी थी। बुखार कम होते ही नींद आयी। फिर दोपहर में दवा का असर कम होने के बाद बुखार ने धर दबोचा।
दिन था तो डाक्टर के पास जाना मुमकिन था। अपने एक स्थानीय डाक्टर मित्र को फोन किया तो मालूम हुआ कि वे अभी बाहर हैं और दो दिन बाद लौटेंगे। ऐसे में नीम-हकीमों से इलाज कराना पड़ा। एक झोला-छाप डाक्टर ने 45 रुपए की दवा दी। हालांकि मैंने उनसे यह कहा कि मुझे सिंपल दवा दें ताकि बुखार धीरे-धीरे उतरे। शायद उन्होंने ऐसा ही किया। दवा लेने के बाद घर पहुंचा तो एक परिचित चिकित्सक घर पर इंतजार कर रहे थे। उनकी नजर में जो दवा झोला-छाप डाक्टर ने दी थी, वह समुचित नहीं थी। तो उन्होंने दो सूइयां और कुछ दवायें दे दी। इससे असर यह हुआ कि करीब आधे घंटे के अंदर बुखार 102 से 97 हो गया तथा सिर में दर्द जाता रहा।
ओह, मैं तो अपनी शरीर की पीड़ा में फंस गया। कल दिन में तीन-चार फोन आये। बीमार रहने की वजह से रिसीव नहीं कर सका। देर शाम कुछ सामान्य महसूस हुआ तो एक ने लगभग डांटते हुए कहा कि मैं आपको संवेदनशील पत्रकार समझता था, लेकिन आप भी सत्ता के दलाल निकले। मैंने परिचय पूछा तो उन्होंने स्वयं को रामविनय सिंह बताया। डांटने की वजह पूछने पर उन्होंने बताया कि ‘उनका घर जो कि पटना के राजीव नगर इलाके में था, उसे आज ही पटना जिला प्रशासन ने बुलडोजर से ढहवा दिया है और रहवासियों पर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागे। आपको फोन किया तो आपने फोन ही रिसीव नहीं किया।’
[bs-quote quote=”फोन करनेवाले तीसरे व्यक्ति भी राजीव नगर के इलाके के ही थे। उनका घर भी कल ढाह दिया गया था और वे कह रहे थे कि सुबह छह बजे ही जिला प्रशासन ने उनके घर को ढाह दिया। उनके परिवार में पांच सदस्य हैं और वे सभी बरसात के मौसम में घरविहीन हो गए हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
फोन करनेवाले दूसरे व्यक्ति पटना सिटी के मरांची गांव के एक वृद्ध सज्जन थे। उन्हें इतिहास में गहरी रुचि रहती है। करीब दो महीने पहले ही उन्होंने फेसबुक पर मुझसे नंबर मांगा था और पटना आने पर मुझसे मिलने की इच्छा व्यक्त की थी। हालांकि तब मैंने उन्हें स्वयं कहा था कि मौका मिला तो मैं खुद ही उनसे मिलने जाऊंगा। लेकिन मेरी अपनी जिम्मेदारियों ने मुझे व्यस्त ही रखा। उन वृद्ध सज्जन से माफी मांगी। हालांकि वह इससे खुश लगे कि मैंने उनको फोन किया।
फोन करनेवाले तीसरे व्यक्ति भी राजीव नगर के इलाके के ही थे। उनका घर भी कल ढाह दिया गया था और वे कह रहे थे कि सुबह छह बजे ही जिला प्रशासन ने उनके घर को ढाह दिया। उनके परिवार में पांच सदस्य हैं और वे सभी बरसात के मौसम में घरविहीन हो गए हैं।
दरअसल, अभी भी कई लोगों को लगता है कि मैं पटना में ही रहकर पत्रकारिता करता हूं। ठीक वैसे ही जब मैं आज अखबार के लिए पत्रकारिता करता था। उन दिनों तो मैंने दीघा इलाके के उन किसानों को लेकर लगातार एक महीने तक रिपोर्टिंग की थी, जिनकी जमीनें सहमति कम जबरिया अधिक छीन ली गई थीं। आज भी अनेक किसान आए दिन मुझे कहते रहते हैं कि उन्हें उनकी जमीन का मुआवजा नहीं मिला।
खैर, मैं अब पटना में रहकर पत्रकारिता नहीं करता। सोच रहा हूं कि यदि करता भी तो क्या कर पाता मैं? यही ना कि कुछेक खबरें लिखता। लेकिन होता क्या? तब भी नीतीश कुमार की आंख में लज्जा नहीं थी और आज भी नहीं है।
बहरहाल, कल शाम मेरी प्रेमिका ने एक शब्द दिया– परदेस। बुखार से निजात मिली तो कुछ पंक्तियां सूझीं।
आज फिर सांझ की बेला है
और मैं सोच रहा हूं
परदेस के बारे में
जो कि मेरा होकर भी
अपना नहीं है
गोया एक यूटोपिया है
अमरदेसवा के जैसे
या फिर बेगमपुरा
सचमुच कितना अलग है
देस और परदेस
जैसे बनारस और मगहर।
हां, मैं सोच रहा हूं
देस और परदेस
एक ही धरती के दो अलग-अलग हिस्से
और मैं हूं कि
रात और दिन के बीच
साम्यताएं तलाश रहा हूं।
मुहावरों और कहावतों में जाति