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बिहार

‘ढाई आखर प्रेम’ की यात्रा ने झारखंड में अलख जगाया

आज़ादी के पचहत्तरवें वर्ष में प्रवेश के साथ ही समूचे देश में नफरत की आँधी तेज़ की जा रही है। सामान्य जन अपने प्रजातांत्रिक मूल्यों को क्षति…
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 बोलो हुक्मरान– जमीन किसकी? (डायरी 19 फरवरी, 2022)

जमीन बहुत महत्वपूर्ण संसाधन है। यह बात वही समझ सकता है जिसके पास जमीन नहीं है। भारत में अभी भी बड़ी आबादी है जिसके पास जमीन नहीं है। हालांकि…
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राजनीतिक झुनझुना और बिहार डायरी (24 जनवरी, 2022)

 बाजदफा बचपन बहुत याद आता है। इस वजह से नहीं कि मेरा बचपन बहुत सुख में बीता अथवा दुख में। याद आने की वजह समयवश परिस्थितियां हैं।…
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 नीतीश कुमार ने फिर की आठ पिछड़ों की ‘हत्या’ (डायरी 16 जनवरी, 2022) 

आह‍‍! फिर आठ लोग मारे गए। जो मारे गए, वे पिछड़े समाज के थे। महत्वपूर्ण बात यह कि ऐसी घटनाओं में मरनेवाले सवर्ण नहीं होते। मेरे पास जो अपने…
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 अदालतों में भ्रष्टाचार (डायरी 9 जनवरी, 2022)

राष्ट्रवाद और राज्य अस्मिता दो ऐसे शब्द हैं, जिन्होंने क्रमश: भारत और बिहार के स्तर पर मुझे लिखने को बाध्य किया है। राष्ट्रवाद तो खैर वैसे…
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कानून जरूर बनाइए, लेकिन छलकाइए मत (डायरी 27 दिसंबर, 2021) 

बचपन एक लिहाज से अच्छा था। शिक्षकगण पढ़ाने से अधिक रटवाते थे। मन भी तब पढ़ता कहां था। रटने में ही दिन निकल जाता था। अच्छा तब यह सोचने का शऊर…
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सोवियत संघ के विघटन के बाद की दुनिया, मेरा देश और मेरा समाज  (डायरी 26 दिसंबर, 2021) 

कल दोपहर की बात है। पटना से एक परिचित का फोन आया। आए दिन ऐसा होता है कि पटना से कोई न कोई परिचित अपने इलाके में घटनेवाली घटना की जानकारी…
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बचाव के लिए रखा हथियार भी आदमी को हिंसक बनाती है ( डायरी 17 अक्टूबर, 2022)

हस्तीमल  हस्ती  का एक शेर है–बैठते जब हैं खिलौने वो बनाने के लिए, उन से बन जाते हैं हथियार ये किस्सा क्या है। यह कब पढ़ा और कहां पढ़ा, याद…
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सत्ता और जनसत्ता (डायरी, 13 अक्टूबर 2021)

जीवन को लेकर मेरी एक मान्यता है। यह मान्यता विज्ञान पर आधारित है। मेरी मान्यता है कि ब्रह्मांड में कुछ भी स्वतंत्र  नहीं है। इसे दूसरे रूप…
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