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महाराष्ट्र में गोंडी बोलने और पिज़्ज़ा खाने की कीमत कैसे चुका रहे हैं आदिवासी
सरकार लगातार आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए बड़ी बड़ी योजनाएं और वादे कर रही है लेकिन महाराष्ट्र में पढ़ने वाले आदिवासी बच्चों के लिए जिस तरह के निर्णय लिए जा रहे हैं, उससे सरकार की मंशा पर सवाल उठना वाजिब है। जबकि संविधान में सभी समुदायों को सभी स्तरों पर, अपनी प्राचीन भाषा हो या आधुनिक खानपान, सबको समान न्याय और अधिकार मिले हुए हैं। महाराष्ट्र के एक आदिवासी गाँव में गोंडी भाषा पढ़ने वाले स्कूल को प्रतिदिन दस हज़ार रुपये जुर्माना भरने की सज़ा सुनाई गई है। इसी तरह नासिक क्षेत्र में पिछड़े वर्ग के छात्रावास में रहने वाली एक लड़की को पिज़्ज़ा खाने के कारण निलंबित कर दिया गया है। क्या ऐसा करना संविधान के खिलाफ नहीं है? लेखक प्रमोद मुनघाटे ने अपने इस लेख में इन्हीं सवालों को उठाया है।
दिल्ली चुनाव : एक मिथक का अंत और एक त्रासदी का और बड़ा होना
लोकसभा चुनाव के राज्यवार नतीजों के विश्लेषण से यह भी स्पष्ट था कि भाजपा को हराने के लिए राज्यों के स्तर पर संगठित विपक्ष को एकजुट रणनीति बनानी होगी। लोकसभा चुनाव के बाद जहां ऐसा कर पाए, वहां भाजपा को सत्ता से दूर रखने में सफल रहे। दिल्ली चुनाव के नतीजों से फिर साफ हो गया है कि जहां कहीं इस समझदारी का उल्लंघन होगा, भाजपा की राह आसान होगी।
दिल्ली चुनाव : क्यों हारे अरविंद केजरीवाल…
दिल्ली विधानसभा में हुई करारी शिकस्त ने आम आदमी पार्टी के भविष्य पर अनेक सवालिया निशान खड़े कर दिये हैं। अरविंद केजरीवाल की विचारहीन राजनीति और सामाजिक मुद्दों से परहेज ने पहले ही आम आदमी पार्टी की छवि भाजपा की बी टीम के रूप में बना दी थी। रही-सही कसर शराब घोटाले ने निकाल दी जिसके कारण अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को लंबे समय जेल में रहना पड़ा और आप का संगठन बिखराव तथा दिशाहीनता का शिकार होता गया। राजनीतिक विश्लेषक इन सभी हालात को लेकर कहने लगे हैं कि अरविंद केजरीवाल स्वयं अपने ही ताने-बाने में उलझकर रह गए। दिल्ली चुनाव के बहाने आम आदमी पार्टी और उसकी राजनीतिक संस्कृति का जायजा ले रहे हैं मनीष शर्मा।
मिल्कीपुर रेप काण्ड : राजनीतिक अश्लीलता के बीच दलित की बेटी को न्याय कैसे मिलेगा?
योगी सरकार लगातार प्रचार कर रही है कि उत्तर प्रदेश में महिलाएं पूर्णत: सुरक्षित हैं, लेकिन यहाँ रोज ही बलात्कार की अनेक घटनाएं सामने आ रही हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 से 2020 तक दलित महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के मामलों में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में दलित महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ बलात्कार की 10 घटनाएं प्रतिदिन रिपोर्ट की जाती हैं। उत्तर प्रदेश राज्य लगातार उन राज्यों की एनसीआरबी सूची में शीर्ष पर है जहां दलित विरोधी घटनाएं प्रचलित हैं। उसके खिलाफ कानून जरूर बने हुए हैं लेकिन वे पर्याप्त नहीं है क्योंकि पुलिस-प्रशासन अक्सर ही अपराधी के खिलाफ मामला दर्ज करने की बजाए उन्हें संरक्षित करने का काम करती है। संविधान में भले ही समानता व धर्मनिरपेक्षता की बात कही गई है लेकिन यहाँ रहने वाले अधिकतर आज भी जातिवादी आधार पर काम कर रहे हैं। ।
समाज सुधारक नारायण गुरु : असमानता पर आधारित धर्म का विरोध करने पर आरएसएस ने उठाए सवाल
मंदिर हमारे सामुदायिक जीवन का भाग हैं। सामाजिक प्रतिमानों में परिवर्तन के साथ मंदिरों में वस्त्र-संबंधी मर्यादाओं में भी बदलाव आवश्यक है। इनका विरोध करना घड़ी की सुइयों को विपरीत दिशा में घुमाने जैसा होगा। धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति में प्रायः हमेशा सामाजिक बदलावों और राजनैतिक मूल्यों में परिवर्तन का विरोध होता है।
मुकेश चंद्राकर : एक और युवा पत्रकार भ्रष्ट तंत्र की पोल खोलने पर मारा गया
गोदी मीडिया काल में ग्रामीण पत्रकारिता के मजबूत स्तंभ मुकेश चंद्राकर की हत्या सचमुच कष्टप्रद और चिंताजनक है। वर्ष 2014 के बाद अभिव्यक्ति को लेकर जिस तरह से पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं, वह सभी के सामने है। पत्रकारों पर हमले करवाना और उनकी हत्या करवा देना सत्ताधीशों के लिए बहुत सामान्य बात है। बस्तर जंक्शन के मुकेश चंद्राकर की हत्या निडर पत्रकारिता करने वालों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़ा करती है। इस देश में अब विधायिका, कार्यपालिका न्यायपालिका और चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया पूरी तरह से फासीवाद के चपेट में है और इनका अस्तित्व नाममात्र का रह गया है।
सौ साल से अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ नफरत फैलाने की संघी कोशिशें अब फूल-फल रही हैं
अल्पसंख्यक समुदायों पर संघ और उसके आनुषंगिक संगठनों के हमले तेज हो चुके हैं जिसके शिकार हजारों लोग हुये हैं। आरएसएस द्वारा तैयार हिंदुवादी संगठनों को एक ही लक्ष्य दिया जाता है, कि वे अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक स्थलों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमला करें। आरएसएस के ट्रेनिंग संस्थानों में तैयार किए जा रहे युवक-युवतियों का ब्रेनवाश कर अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर भरने का काम अच्छी तरह से किया जा रहा है, जिसके बाद वे अपना दिमाग चलाना बंद कर देते हैं। आरएसएस के संस्थापकों में एक डॉ बी एस मुंजे की डायरी के हवाले से इस लेख में बताया गया है कि सौ साल पहले इसकी प्रेरणा आरएसएस को मुसोलिनी से मिली जब वे इटली गए थे।
देश में फैलाया जा रहा सांप्रदायिक जहर आने वाली पीढ़ियों को बर्बाद कर देगा – राम पुनियानी
इतिहासकार प्रो. राम पुनियानी ने छत्तीसगढ़ के सामाजिक संगठनों द्वारा आयोजित 'साम्प्रदायिक सद्भाव की विरासत और देश की वर्तमान परिस्थितियाँ' विषय पर आयोजित व्याख्यान व सम्मान समारोह में शामिल हुए। पुनियानी जी साहस के साथ सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ बोल और लिख रहे हैं। इनके लेख आरएसएस द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ फैलाई जा रही नफरती ताकतों और इतिहास बदलने की कार्यवाही पर केंद्रित होते हैं। रायपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में भी उन्होंने अपना वक्तव्य इसी बिन्दु को ध्यान में रखते हुए दिया।
डॉ आंबेडकर के प्रति हिकारत के पीछे संघ-भाजपा की राजनीति क्या है
एक तरफ डॉ अंबेडकर ने जहां संविधान में समानता, बंधुत्व, स्वतंत्रता को शामिल किया, वहीं आरएसएस ने देश में हिंदुत्व को बढ़ावा देते हुए फासीवाद और ब्रह्मणवाद मार्का पर काम कर रहा है, जिसके बाद अम्बेडकरवादी विचारधारा पर लगातार हमला हो रहा है।
सांसद प्रताप चंद्र सारंगी आरएसएस की विकृत परंपरा के वाहक हैँ
संसद के शीतकालीन अधिवेशन में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा अंबेडकर पर की गई टिप्पणी के विरोध में प्रदर्शन के दौरान तथाकथित राहुल गांधी द्वारा दिए गए धक्के से घायल बालासोर के सांसद प्रताप चंद्र सारंगी का इतिहास पहले से ही धब्बेदार रहा है। वर्ष 1999 में फादर ग्राहम स्टेंस और उनके दो बच्चों को गाड़ी में जला देने का काम इनके विहिप के प्रदेश अध्यक्ष रहने के समय हुई थी। वैसे भी आरएसएस लगातार अल्पसंख्यकों पर हमले करने का काम आज का नहीं बल्कि 1925 के बाद से जारी है। गुजरात का गोधरा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वर्ष 2014 के बाद सत्ता में आने के बाद संविधान विरोधी कामों को बढ़ावा देने का काम कर हिन्दुत्ववादी संगठनों को मजबूत कर इसी तरह का काम करवाने की सुविधा मुहैया करा रही है।
मानवाधिकार दिवस : सौ वर्षों से मानवाधिकार के उल्लंघन का रिकॉर्ड बनाता आरएसएस
वर्ष 2014 के बाद मानवाधिकार पर लगातार हमले हो रहे हैं। आरएसएस लगातार हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की कवायद में मुस्लिमों पर खुले आम हमला कर रहा है। बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने के बाद संघ ने अन्य मस्जिदों का सर्वे कर मंदिर होने का दावा कर रही है। मुद्दों पर विचार न कर धार्मिक हमलों में मुस्लिमों को आरोपी बनाकर जेल में डाला जा रहा है। ऐसी घटनाएं एक या दो नहीं बल्कि अनेक हैं। मानवाधिकार दिवस पर संघ की कारास्तानी की पोल खोलता डॉ सुरेश खैरनार का यह लेख
लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई संसद से ज्यादा सड़क पर लड़नी पड़ेगी
आजादी के बाद की पीढिय़ां इस दायित्व का निर्वाह ईमानदारी से नहीं कर पाई हैं। इसीलिए संविधान विरोधी और देश विरोधी विचार और राजनीति आज संवैधानिक सत्ता पर काबिज है। उसका मुकाबला तभी हो सकता है जब हम संविधान की भाषा को जनता के मुहावरे और जनता के सरोकार से जोड़ें।
पूजा स्थल विवाद : आरएसएस और भाजपा पूजा स्थल अधिनियम 1991 का खुला उल्लंघन कर रहे हैं
क्या कारण है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 के पारित के बाद भी अभी हाल के समय में अनेक मस्जिद व दरगाहों के सर्वे के दावे सामने आने लगे, और इसके बाद सेवा निवृत हुए मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड लगातार निशाने पर हैं क्योंकि उन्होंने वाराणसी के ज्ञानवापी में सर्वे की अनुमति देने के बाद कहा था कि पूजा स्थल अधिनियम की धारा 3 में पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने पर कोई रोक नहीं है, उनका यही बयान मस्जिदों के सर्वे की याचिकाकर्ताओं के साथ है जबकि इसी अधिनियम की धारा 4, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों के स्वरूप को बदलने पर रोक लगाती है। मस्जिदों और दरगाहों के सर्वे की अनुमति साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ने की साजिश के अलावा कुछ और नहीं है।
डॉग व्हिसल के माध्यम से अल्पसंख्यकों पर निशाना साधते भाजपा नेता
वर्ष 2014 के बाद अल्पसंख्यकों को लेकर देश की कुर्सी संभालने वाले जिस तरह की भाषा का प्रयोग लगातार कर नफरत फैला रहे हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि ध्रुवीकरण की राजनीति तेज हुई और जिसका सीधा असर मतदान पैटर्न पर दिखाई दिया। सामाजिक धारणायें भी इससे अछूती नहीं रहीं। आज हर हिंदू परिवारों के हजारों व्हाट्सएप ग्रुप और ड्राइंग रूम चैट में मुसलमानों को गुनहगार बनाकर नफरत फैलाई जा रही है। लेकिन इस विभाजनकारी भावना से कैसे निपटा जाए? लोगों के बीच वैकल्पिक आख्यान को विकसित करने की आवश्यकता है
75 की दहलीज पर हमारा संविधान
भारत एक अभूतपूर्व स्थिति का सामना कर रहा है, जहां संविधान के नाम पर सत्ता में चुने गए और पद ग्रहण करने वाले लोग ऐसी नीतियों का पालन कर रहे हैं, जिससे धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और संघवाद के स्तंभों पर टिका संविधान का बुनियादी ढांचा धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है।
इलाहाबाद विवि : छात्रसंघ बहाली की मांग करते हुए दीक्षांत समारोह में योगी के आगमन का कर रहे हैं विरोध
वर्ष 2014 के बाद पूरे देश में सांप्रदायिक ताकतों के साथ भगवाकरण की राजनीति ने जोर पकड़ा है। देश के बड़े विवि से लेकर विद्यालयों तक में इसका असर देखने को मिल रहा है। इन संस्थानों में नियुक्ति से लेकर पाठ्यक्रम तक का खुल कर भगवाकरण किया जा रहा है। जो इस रंग में नहीं रंगे उन्हें देशद्रोही और अर्बन नक्सली कह जेल में डाल दिया गया। यही स्थिति पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाला इलाहाबाद केन्द्रीय विवि की है, जहां 27 नवंबर को होने वाले दीक्षांत समारोह में विवि की रेक्टर माननीया आनंदी बेन पटेल को आमंत्रित न कर सांप्रदायिक बयान देने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आमंत्रित किया गया है। जिसका सभी छात्र दल विरोध कर रहे हैं।
क्या हमारे देश में डेमोक्रेसी को करोड़पतियों ने हाइजैक कर लिया है?
जिस तरह की डेमोक्रेसी आज हमारे देश में चल रही है, उसे करोड़ोक्रेसी कहना ज्यादा सही होगा। अब कल महाराष्ट में भाजपा के सांसद और महाराष्ट्र के महासचिव ने मतदान के एक दिन पहले जिस तरह करोड़ों रूपये बांटते हुए पकडे गए, उससे चुनाव आयोग को लेकर निश्चय ही अति अविश्वास की स्थिति पैदा हुई है। यदि चुनाव आयोग के हाथ में कुछ भी नहीं रह गया है तो इसे खत्म कर देना चाहिए और यह जिम्मेदारी सत्तारूढ़ पार्टी के हाथों में खुलकर दे देनी चाहिए, जैसा कि अभी है।
हमारी आँखों पर पड़े परदे को हटाने के लिये धन्यवाद माननीय
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की सेवानिवृति के पूर्व की गई स्वीकोरोक्तियाँ तथा उनके कार्यकाल का आकलन लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिये चेतावनी है कि किस तरह उच्चतम स्तर पर न्यायिक घोषणाओं में संवैधानिक प्रावधानों, विधि और न्याय की स्थापित परंपराओं से हटकर बहुसंख्यकवादी भावनाएं प्रतिबिम्बित हो रही हैं। लोकतंत्र के वर्त्तमान भारतीय स्वरूप में विश्वास करने वालों को मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रचूड़ जी को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने न केवल न्याय की देवी की आँखों पर बंधी पट्टी हटाई है, हमारी आँखों पर पड़ा परदा भी हटाया है और कुल मिलाकर जाते जाते यह स्पष्ट कर दिया है कि मोदी सरकार ने उच्च न्यायपालिका में घुसपैठ करने में आरएसएस की कितनी मदद की है।
मणिपुर : लगातार उलझती जा रही समस्या का कब निकलेगा समाधान
मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के विरोध में पिछले डेढ़ वर्षों से लगातार आदिवासी समूहों में संघर्ष चल रहा है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी आज तक मणिपुर नहीं गए, न ही समस्या के हल के लिए कभी कोई चर्चा ही की। इस प्रदेश में नागा एवं कुकी मैतेई द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई एवं नागा कुकी के अलग प्रशासन की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई वृहत्तर नागालिम की मांग के खिलाफ हैं। सवाल उठता है कि कैसे और कब इस समस्या का कोई हल निकलेगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की नीतियों में गरीब कहाँ हैं?
भाजपा की मातृ संस्था आरएसएस देश की राजनीति की रणनीति तैयार करती है। उसकी रणनीति में पिछड़े-दलित का वोट लेना शामिल होता है लेकिन कल्याणकारी नीतियों में पूरी तरीके से उपेक्षित कर दिए जाते हैं। कहने का मतलब है कि भाजपा के समर्थकों में सवर्णों के साथ भले ही पिछड़ी जातियों का एक बड़ा हिस्सा शामिल है लेकिन भाजपा की नीतियों में उनके लिए कोई स्थान नहीं है। जातिवाद की राजनीति करने में सबसे आगे हैं, चाहे वह नौकरी में आरक्षण का मामला हो या राजनैतिक मामला हो या शिक्षा का मामला हो, हर जगह उनके लिए आगे बढ़ने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं।