नन्दा भैया बनारस के एक मोची हैं। पहले वह बनारसी साड़ी की बुनाई करते थे लेकिन अब कई वर्षों से मोची का काम कर रहे हैं। वह कहते हैं कि हमारा समाज उंच-नीच की भावना से इतना ग्रस्त है कि वह मेहनत करनेवालों को कभी भी इज्जत नहीं देता।
दिनांक 25 नवम्बर को 16 दिवसीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़े की शुरुआत 25 नवम्बर को भारतीय शिक्षा निकेतन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, मुबारकपुर, बेनीपुर वाराणसी...
बुनकर को जो मजदूरी मिलती है उसी में घर की स्त्री की मेहनत का मूल्य भी होता है लेकिन वह उसे कभी अलग से नहीं मिलता। अमूर्त रूप से उसका मूल्य उसके भोजन में मिला होता है। अगर बुनकर के जीवन में परिश्रम और गरीबी को देखें तो यह निस्संदेह सहानुभूति पैदा करने वाला काम है जो अर्थव्यवस्था के नकारात्मक विस्तार के कारण दयनीयता और लाचारी के चरम पर है लेकिन स्त्री इस हालत में भी पुरुषसत्ता का शिकार है।
आज दिनांक 09 अक्टूबर 2022 को नदेसर स्थित विश्व ज्योति जनसंचार केंद्र स्थित साझा संस्कृति मंच कार्यालय में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विवि के प्रोफेसर प्रख्यात...
सामान्य शहर में रहने वाले व्यक्ति का मुंबई जाकर सरवाइव करना मुश्किल होता है। एक तो वहाँ की भागती-दौड़ती ज़िंदगी, लोकल ट्रेन का सफर और बेतहाशा भीड़, जहां स्वयं को देख पाने की याद और फुरसत दोनों नहीं मिलती। ऐसे में घर से गया अकेला आदमी अक्सर घबरा जाता है और जल्द ही वापस अपने घर आने की सोचता है।
बातचीत में माओ नाम के एक व्यक्ति ने अपने स्मृतियों को विस्तार से साझा किया। उन्होंने कहा कि नदी हम लोगों के लिए प्राणदायिनी थी। इसके बिना हमारे जीवन का कोई अस्तित्व न था। आज से 25 बरस पहले हम लोग न सिर्फ इसमें नहाते थे बल्कि कहीं से थके-हारे हुए आते थे तो इसमें का पानी भी पी लेते थे। हमारे दादा-परदादा का जीवन-बसर नदी के सहारे हुआ। किंतु आज यह पानी जानवर भी नहीं पीते, नदी के ऐसी हालत देखकर हम लोग बहुत दुखी हैं।
नदी में सीवर और ड्रेनेज खुलेआम बहते देखा जा सकता है। लोहता, कोटवा क्षेत्र से मल और घातक रसायन सीधे नदी में बहाये जा रहे हैं। नदी यात्रा के दौरान ही लगभग छह नाले सीधे नदी में गिर रहे थे। वही शहरी क्षेत्र में लगभग 137 नाले प्रत्यक्षत: वरुणा में मल और गंदगी गिराते देखे जा सकते है।