बचपन में शब्दों को लेकर तरह-तरह के सवाल होते थे। मैं कोई अजूबा बच्चा नहीं था। ये सवाल मेरे मित्रों के मन में भी आते थे। खासकर प्रेमचंद गोस्वामी जो कि सातवीं कक्षा से मेरा सहपाठी था, उसके दिमाग में तो सवालों की लंबी सूची रहती थी। उसके पास अंग्रेजी के खूब सारे शब्द होते थे। मेरा ग्रामर ठीक-ठाक था। कुल मिलाकर हमदोनों की अंग्रेजी पूरी कक्षा में सबसे अधिक अच्छी थी। अंग्रेजी की शिक्षिका थीं– वीणा यादव। हम क्लास के दौरान तो उनसे अपने सवाल पूछ नहीं पाते थे, लेकिन दोपहर में जब खेलने-खाने का समय होता था, हमदोनों दोस्त पहुंच जाते थे वीणा मैम के पास। कई बार तो उन्हें खाते समय डिस्टर्ब किया। लेकिन वह खाती ही कहां थीं। बस दो छोटी-छोटी रोटियां और थोड़ी-सब्जी। जब हम जाते तब पांच मिनट में अपना खाना खत्म कर लेतीं और हमारे सवालों को सुनतीं और जवाब भी देतीं।
उन दिनों ही मैंने उनसे पूछा था कि धर्म को अंग्रेजी में रिलीजन कहते हैं। क्या इसका संबंध रियल या फिर रियलाइजेशन से है? मेरा सवाल सुनकर वह कुछ देर के लिए चुप रहीं। फिर खूब जोर से हंसीं। उनका कहना था कि रिलीजन का रियल या रियलाइजेशन से कोई संबंध नहीं है। अभी बस इतना ही समझो कि दुनिया के किसी भी धर्म में वास्तविकता जैसा कुछ नहीं होता है। फिर क्या होता है मैम? प्रेमचंद ने पूछा था।
वीणा मैम का कहना था कि धर्म एक तरह का सिस्टम है जो हमें समाज में रहने में मदद करता है। और इससे पहले कि हम कुछ और पूछते दोपहर के भोजन का समय खत्म हो चुका था। हमारे स्कूल के पिऊन विजय चाचा ने घंटी बजा दी थी। उस दिन मुझे उनपर बहुत गुस्सा भी आया था।
[bs-quote quote=”भगत सिंह और उनके साथियों ने माफी वाली याचिकाएं क्यों नहीं दायर की थीं? अच्छा, यदि गांधी के कहने पर ही सावरकार ने माफी मांगी व अंग्रेजों से पेंशन प्राप्त किया तो क्या गांधी ने भगत सिंह व उनके साथियों को भी माफी मांगकर वीर बनने की सलाह नही दी थी? नहीं दी थी तो क्यों नहीं दी?” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
खैर, वीणा मैम के उपरोक्त जवाब को आज भी सही पाता हूं। धर्म एक तरह का तंत्र ही है। फिर तंत्र के कुछ कायदे-कानून होते हैं। बिना कायदे-कानूनों के कोई तंत्र काम नहीं करता। सबसे महत्वपूर्ण यह कि हर तंत्र का एक मकसद होता है। बिना मकसद का कोई तंत्र नहीं। फिर हिंदू धर्म का मकसद क्या है? आज यही सोच रहा हूं। क्या हिंदू धर्म का मकसद है कि दुनिया के सारे लोग हिंदू हो जाएं? यदि यह मकसद भी है तो क्या हिंदू धर्म के ठेकेदार यह चाहते हैं कि पूरी दुनिया पर उनका कब्जा हो जाय? आखिर क्या चाहते हैं हिंदू धर्म के ठेकेदार?
मैं जम्मू-कश्मीर में बिगड़ते हालात को देख रहा हूं। वहां 7 अगस्त, 2020 से मनोज सिन्हा उप-राज्यपाल हैं। ये उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल से आते हैं और मुझे नहीं लगता है कि उन्हें जम्मू-कश्मीर के बारे में समझ एक औसत पर्यटक से भी अधिक होगी। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं और जम्मू-कश्मीर में हालात बिगड़ रहे हैं और वह भी तब जबकि वहां के उपराज्यपाल उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। मेरी जेहन में एक सवाल उठ रहा है। सवाल यही कि यह सब किसी साजिश का हिस्सा तो नहीं?
मैं यह सवाल इसलिए कर रहा हूं क्योंकि जम्मू-कश्मीर में हालात हाल के दिनों में बिगड़े हैं। पहले कश्मीरी पंडितों के बारे में खबरें आयीं। खबरों में बताया गया कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी पंडितों को निशाना बना रहे हैं। फिर यह खबर भी आयी कि वहां से पंडित सब भाग रहे हैं। भागने वालों में कुछ वे पंडित भी शामिल बताए गए जो 5 अगस्त, 2019 को धारा 370 व 35ए के खात्मे के बाद इस विश्वास के साथ घाटी में वापस गए थे कि अब तो कश्मीर में ब्राह्मणों का राज स्थापित हो गया है।
[bs-quote quote=”आज दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता में मोहन भागवत का बयान भी छपा है। उनका यह बयान मेरी चिंताओं को बढ़ा रहा है। उनका कहना है कि ‘कश्मीर में डर पैदा करने के लिए आतंकी कर रहे हैं हत्याएं।'” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
अच्छा मैं यह सोच रहा हूं कि जब संसद में जम्मू-कश्मीर से एक पूर्ण राज्य का दर्जा छीनकर उसे दो केंद्र शासित राज्यों में बांटा जा रहा था तब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई वादे किए थे। उनका कहना था कि धारा 370 के हटने के बाद वहां बाहरी पूंजी निवेश को ब़ढ़ावा दिया जाएगा। चूंकि 35ए का प्रभावहीन हो गया है जो वहां किसी बाहरी के जमीन खरीदने पर रोक लगाती थी, अब वहां जमीनें खरीदी जा सकेंगीं। पूरा का पूरा जम्मू-कश्मीर एक खुशहाल राज्य बनेगा।
संसद के बाहर आरएसएस के गुंडे सोशल मीडिया पर तब गंध मचा रहे थे कि अब वे जम्मू-कश्मीर जाकर वहां महिलाओं से शादी रचाएंगे। अनेक ने तो भद्दी टिप्पणियां भी की थी। यह वह समय था जब पूरे के पूरे जम्मू-कश्मीर को केंद्र सरकार ने बंधक बनाया हुआ था। उन दिनों एक भी खबर ऐसी नहीं आती थी कि किसी आतंकवादी ने किसी घटना को अंजाम दिया हो। मालूम चलता था कि भारतीय सैनिकों के डर से सारे आतंकवादी अपने-अपने बिलों में घुस गए थे। लेकिन मेरी जेहन में एक घटना है। 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में आतंकियों ने हमला किया और सीआरपीएफ के 45 जवानों की जान चली गई थी। इस घटना का होना ही अपने आप में बेहद दिलचस्प था। वजह यह कि यह घटना लोकसभा चुनाव के ठीक पहले हुआ और इस घटना ने देश भर के लोगों को झकझोर दिया। राष्ट्रवाद के जहाज पर सवार भाजपा ने लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब रही।
खैर, मैं कोई भविष्यवक्ता नहीं हूं। पिछले पंद्रह दिनों से जम्मू-कश्मीर से मिल रही सूचनाओं को देख रहा हूं और इसके आधार पर इतना जरूर कह सकता हूं कि जम्मू-कश्मीर के बाशिंदों से जो वादे नरेंद्र मोदी हुकूमत ने 370 खत्म करने के समय किए थे, वे पूरे नहीं किए जा रहे हैं। या कहिए कि कोई प्रयास भी नहीं किया जा रहा है। वहीं कुछ साजिशें जरूर रची जा रही हैं ताकि घटनाएं तो जम्मू-कश्मीर में घटें और निशाने पर उत्तर प्रदेश के मुसलमान हों।
आज दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता में मोहन भागवत का बयान भी छपा है। उनका यह बयान मेरी चिंताओं को बढ़ा रहा है। उनका कहना है कि ‘कश्मीर में डर पैदा करने के लिए आतंकी कर रहे हैं हत्याएं।’
खैर, एक पत्रकार के रूप में मेरे लिए यह देखना दिलचस्प होगा कि अब आगे क्या होगा। फिलहाल तो मैं यह देख रहा हूं कि मोहन भागवत इस देश के सुपर पीएम हैं। नरेंद्र मोदी तो महज कठपुतली साबित हो रहे हैं। आज ही जनसत्ता ने मोहन भागवत का एक बयान पहले पन्ने पर प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि देश में जनसंख्या नीति की समीक्षा हो।
अंग्रेजों से माफी मांगने वाले कायर सावरकार को ‘वीर’ साबित करने का अभियान अभी कुछ दिन और चलेगा। मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि नरेंद्र मोदी सरकार सावरकर को भारत रत्न का सम्मान मरणोपरांत दे दे। ऐसे भी भारत रत्न का सम्मान एक-दो को छोड़कर कहा किसी वाजिब शख्सियतों को दिया गया है। अटलबिहारी वाजपेयी और सचिन तेंदुलकर जैसे लोग भी जब भारत रत्न कहे जा सकते हैं तो मेरा मानना है कि सावरकार को भी दे ही दिया जाय। इतना तो सच है ही कि उसने कालापानी की सजा कुछ दिन ही सही सेल्यूलर जेल में भोगी तो थी ही। और फिर जैसा कि राजनाथ सिंह ने कहा है कि जमानत के लिए माफीनामा की याचिका दायर करना कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है।
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दिल्ली दंगा और यादव बनाम ब्राह्मण जज ( डायरी 15 अक्टूबर, 2021)
मैं सोच रहा हूं कि भगत सिंह और उनके साथियों ने माफी वाली याचिकाएं क्यों नहीं दायर की थीं? अच्छा, यदि गांधी के कहने पर ही सावरकार ने माफी मांगी व अंग्रेजों से पेंशन प्राप्त किया तो क्या गांधी ने भगत सिंह व उनके साथियों को भी माफी मांगकर वीर बनने की सलाह नही दी थी? नहीं दी थी तो क्यों नहीं दी?
फिलहाल में जम्मू-कश्मीर में बढ़ती हिंसा और उत्तर प्रदेश में होनेवाले चुनाव को देख रहा हूं। और जो मैं देख रहा हूं, वह बहुत नकारात्मक है। काश कि भारत के हुक्मरान यह समझ पाते कि धर्म का मकसद केवल सत्ता पाना नहीं है, इसका एक मकसद लोगों के जीवन को खुशहाल बनाना भी है।
कल एक कविता जेहन में आयी थी, जिसका शीर्षक रखा– सावरकर और मोदी में नहीं है कोई फर्क ‘नवल’
मुल्क में लगी है आग, तू अपनी जुबान बंद रख,
बेमौत मारे जा रहे हैं लोग, तू अपनी जुबान बंद रख।
संसद पर लटका है ताला और गूंगी हुई अदालतें,
सबके सब बेसुध पड़े हैं, तू अपनी जुबान बंद रख।
इंसान अब इंसान नहीं, हिंदू और मुसलमान है ,
मजे से दाल-रोटी खा, तू अपनी जुबान बंद रख।
नीलाम हो रही मुल्क की संपत्तियां बाजार में,
खरीद सके तो खरीद, वर्ना तू अपनी जुबान बंद रख।
इतिहास के पन्ने भी गवाही देंगे और मुर्दे भी,
राजा बड़ा महान है, तू अपनी जुबान बंद रख।
कलम से काटते हैं गला निरीहों की कलमकसाई,
चुपचाप अखबार पढ़, तू अपनी जुबान बंद रख।
सावरकर और मोदी में नहीं है कोई फर्क ‘नवल’,
समझना है तो समझ, वर्ना तू अपनी जुबान बंद रख।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।