विभिन्न राजनीतिक घटकों द्वारा नदियों की सफाई अभियान के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती हैं और इनके विकास के नाम पर खूब धन उगाही होती है। दूसरी तरफ, आज सैकड़ों छोटी-छोटी नदियों का अस्तित्व संकट में हैं। बची-खुची नदियों में पानी बहुत कम रह गया है और जो है वह बहुत ही दूषित है। यह बड़ी नदियों के लिए भी नुकसानदेह है। यह स्थिति पेड़, पहाड़ और जंगल के लिए भी खतरनाक है। अभी हाल ही में येल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल लॉ एंड पॉलिसी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इनफार्मेशन नेटवर्क द्वारा प्रकाशित 2022 पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) में भारत 180 देशों में सबसे निचले पायदान पर रहा, जो कि चिंताजनक है। इस सूचकांक में डेनमार्क प्रथम, ब्रिटिश द्वितीय और फिनलैंड तृतीय स्थान पर रहा। भारत की यह स्थिति पर्यावरण के संकट पर सोचने और उसे बचाने के लिए ध्यान आकर्षित करता है।
पर्यावरण की स्थिति में कैसे परिवर्तन लाया जाए, इसे लेकर गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट द्वारा 12 जून, 2022 को बनारस के चमाँव गाँव से नदी एवं पर्यावरण संचेतना विषय पर वरुणा नदी के किनारे एक लंबी पदयात्रा निकाली गई। जिसका उद्देश्य गांव-गिराँव के आम जनमानस को नदी एवं पर्यावरण के महत्व को समझाते हुए उसे क्षतिग्रस्त होने से कैसे बचाया जाए, का संदेश पहुंचाना था। यात्रा करते हुए नदी की वास्तविक स्थिति से सब परिचित भी हुए। इस दौरान देखा गया कि वरुणा नदी में पानी बहुत कम है, जो है वह जानवरों के भी पीने लायक नहीं है। नदी बिलकुल छिछली व ठहरी हुई है। उसके किनारे काफी गंदगी है। सरकार के तमाम सफाई अभियान का यहाँ कोई असर नहीं दिखाई देता।

इस यात्रा में गांव के लोग पत्रिका के संपादक रामजी यादव, कार्यकारी संपादक अपर्णा, किसान नेता रामजनम, संतोष कुमार, सुरेन्द्र कुमार सिंह, गोकुल दलित, लालजी यादव, श्यामजीत यादव, अमन विश्वकर्मा, दीपक शर्मा, सुजीत कुमार, रामधनी आदि लोग शामिल रहे। साथ ही गांव के जो लोग सुबह खेतों में काम कर रहे थे या भैंस, बकरी चरा रहे थे, वे लोग भी इस यात्रा में शामिल हुए। यात्रा संपन्न होने के बाद गाँव के आम लोगों के साथ महजिदिया घाट पर एक बेल के पेड़ के नीचे बैठकर नदी एवं पर्यावरण संचेतना विषय पर एक वैचारिक गोष्ठी की गई। इस गोष्ठी में विद्वानों की अतिरिक्त गांव के आम लोगों ने भी अपने निजी अनुभव के साथ अपनी बात रखी। गोष्ठी में सबसे पहले रामजनम ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमारी सभ्यता का विकास नदियों के द्वारा हुआ है। जिसका अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है। हमें इस यात्रा में शामिल होकर बहुत खुशी हुई और ऐसी पदयात्रा बार-बार निकाले जाने की आवश्यकता है। संतोष कुमार ने कहा कि नदियों एवं पहाड़ों का विलुप्त होना पर्यावरण के लिए आने वाले दिनों का संकट हैं, हम इसी तरह का मुहिम चलाकर ही इसे बचा सकते हैं।
दीपक शर्मा ने कहा कि शहरों में दिखावे के लिए नदियों के लिए विभिन्न राजनीतिक घटक द्वारा तमाम योजनाएं बनाई जाती है किंतु नदियों का सबसे ज्यादा हिस्सा गांव में है। जिस पर किसी राजनीतिक दल का ध्यान नहीं जाता है। गांव में इस तरह की यह पहली यात्रा है, इसमें शामिल होकर मैं खुद को सौभाग्यशाली समझता हूँ।
कहानीकार संतोष कुमार ने टेम्स नदी का उदाहरण देते हुए बताया कि एक समय टेम्स नदी में इतना मल बहता था कि ब्रिटिश पार्लियामेंट की बैठकें भी नहीं हो पाती थीं लेकिन लोगों ने अपनी इच्छाशक्ति और कर्मठता से आज उसे एक शानदार नदी में बदल दिया। भारत की नदियों की दशा बहुत ख़राब है। नदियों को प्रदूषित करनेवालों के खिलाफ कोई सख्ती या नियम कानून नहीं हैं। लेकिन यह सब मानव जीवन के लिए खतरनाक है। अगर हम मानव सभ्यता के प्रति संवेदनशील रहना चाहते हैं तो हमें नदियों के प्रति भी संवेदनशील होना पड़ेगा।
सामाजिक कार्यकर्ता गोकुल दलित ने भी पर्यावरण और नदियों के कवि के रूप में प्रसिद्ध कवि राकेश कबीर के कविता संकलन नदियाँ ही राह बतायेंगी से कुछ कविताएँ पढ़ते हुए कहा कि विकास का पूंजीवादी मॉडल प्रकृति को तबाही कि ओर ले जा रहा है। समय रहते इस पर सचेत होना पड़ेगा।
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ग्राम्य संस्थान के सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि नदियों को बचाना आज सबसे बड़ी चुनौती है। मुझे गाँव के लोग ट्रस्ट के इस आयोजन में आकर ख़ुशी हो रही है कि यह मुहिम एक नदी को लेकर जनता में जाग्रति फैलाएगी। मैं इसके साथ हूँ।
गोष्ठी में चमांव गांव के कई बुजुर्ग एवं युवा लोगों ने भी अपनी बातें रखी। उन्होंने पर्यावरण एवं नदी में परिवर्तन को लेकर विस्तार से अपने निजी अनुभव साझा किए। कार्यक्रम का संचालन गांव के लोग पत्रिका के संपादक रामजी यादव ने किया। धन्यवाद ज्ञापन लालजी यादव ने दिया।
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