जंगल सफारी में फोटो और उनके लिए बनाई गयी मुद्राओं पर चुटकी लेने वाले, स्थापना दिवस के समारोह में अपने अध्यक्ष के भाषण में भी बिना पलक झपकाए लगातार कैमरे में बने रहने के लिए उनका मखौल बनाने वाले भूल जाते हैं कि यह सिर्फ आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा बताया जाने वाला, सभ्य समाज में नार्सिसिज्म के रूप में परिभाषित किये जाने वाला मनोरोग नहीं है। यह एक बड़े, बहुत बड़े देश के सबसे प्रमुख पद पर बैठे व्यक्ति का सोच-समझ कर किया जाना वाला आचरण है।
मंडल के बाद वर्ग शत्रु बहुजनों को शेष करने के मकसद से मोदी राज में जो बहुजन विरोधी नीतियां ग्रहण की गईं, उसके फलस्वरूप आज अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी भारत की स्थिति निहायत ही शर्मनाक हो गयी है। विश्व असमानता रिपोर्ट, ऑक्सफाम रिपोर्ट, ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट और हंगर ग्लोबल इंडेक्स, वर्ल्ड पावर्टी क्लॉक इत्यादि से पता चलता है कि भारत के नीचे की 50-60 प्रतिशत आबादी महज 5-6 प्रतिशत नेशनल वेल्थ पर जीवन निर्वाह करने के लिए अभिशप्त है, जबकि देश की आधी आबादी अर्थात 65 करोड़ महिलाओं को आर्थिक रूप से पुरुषों के बराबर आने में 257 साल लगेंगे।
त्रिपुरा में वामपंथविरोधी हिंसा का सिलसिला तो 2018 के चुनाव में जीत के बाद ही शुरू हो गया था। भाजपा के राज के पांच साल में राज्य में एक भी चुनाव स्वतंत्र व निष्पक्ष तरीके से नहीं होने दिया गया था। इसी के चलते, आम लोगों के बीच इसकी भारी आशंकाएं थीं कि क्या इस बार उन्हें मर्जी से अपना वोट डालने दिया जाएगा? इन्हीं आशंकाओं के दबाव में, चुनाव आयोग के कुछ कदमों से किसी हद तक लोगों का विश्वास जमा और धीरे-धीरे लोग वोट करने के लिए बाहर भी निकले।
तृणमूल 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी और उनकी पार्टी किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। कहने की जरूरत नहीं कि एक बच्चा भी बता देगा कि 2 मार्च को आये तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों ने मोदी को इतना ताकतवर बना दिया है कि उनके खिलाफ लगातार ताल ठोकने वाली ममता सरेंडर की मुद्रा में आ गयी हैं और उनके रास्ते का अनुसरण अन्य कई आग मार्का विपक्षी नेता भी कर सकते हैं,यह सोचकर ही 2024 में मोदी-मुक्त भारत का सपना देखने वाले सदमे में आ गए हैं।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग भर्ती परीक्षा-2011 के तहत 14 अगस्त, 2013 को उत्तर प्रदेश संयुक्त राज्य/ अधीनस्थ सेवा (मुख्य) परीक्षा-2011 का परिणाम घोषित किया गया। जिसके तहत कुल 389 पदों में सिर्फ 30 पद एसडीएम व 26 पद पीपीएस/ डीएसपी के थे।उन्होंने कहा कि एसडीएम पद के 86 स्थान ही विज्ञापित नहीं थे तो 86 में 56 यादव एसडीएम कहाँ से हो गए? उन्होंने कहा कि 1951 से 2017 तक कभी एसडीएम के 86 पदों की भर्ती ही नहीं हुई तो 86 में 56 यादव कैसे? उन्होंने कहा कि यदि मुख्यमंत्री 86 में 56 यादव एसडीएम की सूची सार्वजनिक कर देंगे तो हम 5 कालिदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास पर स्वीपर का काम करूँगा।