मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के विरोध में पिछले डेढ़ वर्षों से लगातार आदिवासी समूहों में संघर्ष चल रहा है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी आज तक मणिपुर नहीं गए, न ही समस्या के हल के लिए कभी कोई चर्चा ही की। इस प्रदेश में नागा एवं कुकी मैतेई द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई एवं नागा कुकी के अलग प्रशासन की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई वृहत्तर नागालिम की मांग के खिलाफ हैं। सवाल उठता है कि कैसे और कब इस समस्या का कोई हल निकलेगा।
राष्ट्रीय सेवक संघ अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। हिन्दू राष्ट्र के अपने झूठे संकल्प को पूरा करने के लिए संघ हिन्दू-मुस्लिम का खेल लगातार खेल रहा है। वर्ष 2002 में गुजरात में प्रायोजित गोधरा दंगों के बाद भाजपा ज्यादा मजबूती से ध्रुवीकरण करने में सफल रही है। लगातार अल्पसंख्यक समुदायों, किसानों, आदिवासियों और महिलाओं पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष हमले करवाकर उन्हें भयभीत कर रही है। बोलने वालों को जेल और अपने साथ खड़े होने वालों को ऊंचा पद दे सम्मानित कर रही है। 'सबका साथ सबका विकास' की जगह ' सबका साथ अपना विकास' का नारा मजबूत हो रहा है। संघ और भाजपा ने इन सौ वर्षों में और क्या कुछ किया, इसके आकलन के लिए पढ़िए डॉ सुरेश खैरनार का विश्लेषणपरक लेख।
पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर की ‘सम्पूर्ण दलित आन्दोलन : पसमान्दा तसव्वुर’ किताब में दलित मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं राजनीतिक स्थिति की जमीनी पड़ताल की गई है और साथ ही साथ लेखक ने इन स्थितियों में सुधार के संवैधानिक एवं राजनैतिक उपाय भी सुझाया है।
7 राज्यों में 13 सीटों पर हुए उपचुनाव में इंडिया गठबंधन ने 10 सीटों पर चुनाव जीत लिया। भाजपा को कुल 2 सीटों पर जीत हासिल हुई। इससे एक बात स्पष्ट हो गई कि जनता भी अब जायज़ मुद्दे पर ही चुनाव में प्रतिनिधि का चुनाव करेगी। जनता हिंदुतव और धर्म के मुद्दे से ऊब चुकी है। लोकसभा चुनाव में भी जनता की मंशा सामने आई थी और विधानसभा उपचुनाव के ये नतीजे भी संकेत कर रहे हैं कि राजनैतिक दल यदि ऐसे ही रहे तो उनका चुनाव जीतना मुश्किल होगा।
केंद्र की मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकाल संसद में विपक्ष के नेता के बिना ही चला और बीजेपी सरकार ने खूब मनमानी की। लेकिन अठारहवीं लोकसभा के चुनाव के बाद इस बार संसद में विपक्ष के नेता की बागडोर राहुल गांधी के जिम्मे है, और वे इस ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभा रहे हैं। इसे उन्होंने संसद के पहले सत्र में ही दिखा दिया। इस बार सत्ता पक्ष को संसद में उन सवालों से दो-चार होना ही पड़ेगा, जिनसे वह बचता आया था।
हर घर नल जल का वर्तमान देखकर यही कहा जा सकता है कि राजनीतिक घोषणाएँ और सरकारी दावे एक तरफ लेकिन वास्तविकता बिलकुल दूसरे ढंग से अपनी कहानी कहती है। मिर्ज़ापुर जिले के ग्रामीण इलाकों में पानी को लेकर कहीं कतार लगानी पड़ रही है तो कहीं पहाड़ों की खाक छाननी पड़ रही है। भीषण गर्मी के बीच महिलाओं को दो-दो, तीन-तीन किलोमीटर दूर से पानी लाकर चूल्हा-चौका करना पड़ रहा है।
देश में हिंदुतव को लेकर जो माहौल चल रहा है, उसमें मुसलमानों को कटघरे में खड़े करने में संघ ने कभी कोई परहेज नहीं करेगा। अभी हाल में नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया और अपने भाषण में प्राचीन विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को जलाकर नष्ट करने का आरोप बख्तियार खिलजी पर लगाया क्योंकि वह मुसलमान था। लेकिन इतिहास के प्रमाण कुछ और ही बात साबित करते हैं। पढ़िए यह लेख
18वीं लोकसभा में 400 पार का दावा करने वाली भाजपा 240 सीट पर ही सिमट गई। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने लेकिन 32 सीटें गठबंधन से उधार लेकर। ऐसे में भाजपा के मातृ दल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को एक वर्ष बाद मणिपुर हिंसा की याद आई और एक कार्यक्रम में बयान दिया 'मणिपुर में पिछले एक वर्ष से अधिक समय से शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए।' इस बयान से संघ, संघ प्रमुख और संघ से जुड़े सभी संगठनों की मानसिकता एक बार फिर सामने आई।
एक समय था जब असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को मंडियों में आसानी से काम मिल जाया करता था लेकिन आज स्थिति यह हो गई है कि पूरे महीने भर में केवल 10-15 दिन ही लोगों को रोजगार मिल पा रहा है। यह स्थिति मजदूरों के अनुसार पिछले 8-10 वर्षों में जयादा तेजी के साथ आई है।
लोकसभा 2024 के चुनाव हो चुके और परिणाम भी सामने आ चुके हैं। लेकिन किसी भी एक दल को बहुमत हासिल नहीं हुआ है। 400 पार का दावा करने वाली भाजपा को इस बार जनता ने सबक सिखा ही दिया, उसने मात्र 240 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की। वाराणसी संसदीय सीट से नरेंद्र मोदी के जीत का अंतर कम हुआ है। भाजपा की कम सीट आने पर भक्त दुखी जरूर हैं लेकिन यह कहकर मन को तसल्ली दे रहे हैं कि मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री बन रहे हैं। लेकिन सहयोगी दल समर्थन देने के लिए जिस तरह से मंत्री पदों की मांग कर रहे हैं, आने वाले दिनों में क्या स्थिति बनेगी, देखना होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिन्दू राष्ट्रवादी हैं और हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के घोषित लक्ष्य वाले आरएसएस के प्रशिक्षित प्रचारक हैं। सांप्रदायिक राष्ट्रवाद को नस्ल या धर्म का लबादा ओढ़े तानाशाही बहुत पसंद आती है। धार्मिक राष्ट्रवादी समूह अपने सर्वोच्च नेता की छवि एक महामानव की बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते। ऐसे में वे अवतारी पुरुष कैसे हुए?
चौथे चरण का वोट खत्म होते-होते राहुल गांधी एक आंधी में तब्दील हो गए। भीषण गर्मी की उपेक्षा कर इंडिया की सभाओं में जो भीड़ उमड़ी, वह अभूतपूर्व है। कई लोगों को संदेह है कि यह भीड़ शायद वोट में तब्दील न हो। लेकिन भीड़ के अन्दर जो जुनून देखा जा रहा है वह इंडिया गठबंधन की कामयाबी की पटकथा को व्यक्त कर रहा है।
सर सुंदरलाल अस्पताल के हृदय रोग विभाग के विभागाध्यक्ष को प्रशासन ने उनके पद से हटा दिया। जबकि उनके कार्यकाल का 2 माह शेष रह गया था। डॉ ओमशंकर अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डॉ के के गुप्ता द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के कारण उन्हें पद से हटाने और हृदय रोग विभाग में बिस्तरों के संख्या (जो उपलब्ध है) मरीजों के लिए खोलने के लिए आमरण अनशन कर रहे हैं।
सदियों से गुलामी और पिछड़ेपन की शिकार रही दलित और पिछड़ी जातियों को आंबेडकरी आरक्षण से कुछ लाभ हुआ लेकिन मोदी ने आते ही आरक्षण पर कैची चलाना शुरू कर दिया। ऐसे में कुछ लोग मोदी को अवतारी पुरुष कहने लगे जिस पर बड़ा प्रश्न खड़ा होता है।
चुनावी दौर में पूर्वाञ्चल के गांवों के किसान अपनी समस्याओं को लेकर खदबदा रहे हैं और पिछले दस वर्षों से सत्ता पर काबिज भाजपा सरकार के खिलाफ गुस्से से भरे हैं। विगत वर्षों में किसानों ने अपनी समस्याओं को लेकर देशव्यापी आंदोलन चलाया लेकिन सरकार से कोई ठोस आश्वासन मिलने की बजाय उनका दमन ही किया गया। इन बातों से किसानों के भीतर एक आक्रोश जमा हुआ है और उन्होंने सत्ता परिवर्तन का मन बना लिया है।
चुनाव के इस माहौल में मिर्ज़ापुरवासियों के मन में गहरी ऊहापोह चल रही है। पिछले दो बार से इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करनेवाली अनुप्रिया पटेल दो बार केंद्र में मंत्री रही हैं लेकिन व्यवसायियों का कहना है कि उन्होंने उनके हित में कुछ नहीं किया। फिलहाल वे ऐसे प्रतिनिधि को जिताने के बारे में सोच रहे हैं जो उनके शहर को नई रौनक से भर दे।
वाराणसी संसदीय क्षेत्र की रोहनिया विधानसभा का एक गाँव बैरवन पिछले एक साल से भय और अनिश्चितता के माहौल में जी रहा है। वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा बनाए जानेवाले ट्रांसपोर्ट नगर के लिए बैरवन को भी उजाड़ा जाना है। विडम्बना यह है कि कुछ किसानों ने बहुत पहले अपनी ज़मीनों का मुआवजा ले लिया जबकि अधिसंख्य किसानों ने नहीं लिया। जिन किसानों ने मुआवजा नहीं लिया है वे आंदोलन करके आज की दर से मुआवजा और पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। इसी रस्साकशी का फायदा उठाकर वाराणसी विकास प्राधिकरण ने पिछले साल मई महीने में ज़मीनों पर कब्जा करना शुरू किया। इसका विरोध होने पर अगले दिन पुलिस ने गाँव में घुसकर लाठीचार्ज किया। एक साल बीतने और लोकसभा चुनाव के ऐन मौके पर इस गाँव के लोग क्या सोच रहे हैं?
सन 1950 से 1977 अर्थात 27 सालों में जनसंघ को सिर्फ छह प्रतिशत मतदाताओं ने पसंद किया था लेकिन 1963 के बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसी राजनीतिक कदम के चलते शिवसेना से लेकर मुस्लिम लीग और जनसंघ जैसे घोर सांप्रदायिक दलों के साथ गठजोड़ की वजह से जनसंघ को बहुत लाभ हुआ। इस लेख में जाने-माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सुरेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक विरासत के बहाने उनकी हताशा पर बात कर रहे हैं।